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Putin India Visit: अमेरिकी दबाव के बावजूद राष्ट्रपति पुतिन के दौरे के जरिए कैसे संतुलन साधेगा भारत?

Shashidhar Pathak शशिधर पाठक
Updated Fri, 05 Dec 2025 01:10 PM IST
सार

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन दो दिन के भारत दौरे पर आए हैं। पूरी दुनिया ने पुतिन और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की केमिस्ट्री देखी है। अब यह देखना दिलचस्प है कि हैदराबाद हाउस में होने वाली बैठकों से क्या निकलता है? 

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How will India maintain balance through President Putin's visit despite US pressure?
राष्ट्रपति पुतिन और पीएम मोदी - फोटो : ANI
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विस्तार
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रूस के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की केमिस्ट्री पूरी दुनिया ने देख ली है। अब इस केमिस्ट्री का रंग देखने की बारी है। रूस ने भारत के पाले में गेंद डाल दी है। कूटनीति की भाषा में कहें तो ‘क्रेमलिन’ अपने दोस्त ‘दिल्ली’ की अग्निपरीक्षा लेना चाहता है। रूस चाहता है कि चीन की तरह ही भारत उसकी रणनीतिक साझेदारी में आगे आए। देखना है कि हैदराबाद हाउस में होने वाली बैठकों से क्या निकलता है? 
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इस पल का दक्षिण एशिया, एशिया, रूस, अमेरिका और यूरोप सभी को इंतजार है। पहले दिमित्री पेस्कोव ने कहा और बाद में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी किसी दबाव में नहीं आते। प्रधानमंत्री इस मामले में बहुत परिपक्व हैं। कुशल रणनीतिकार एनएसए अजीत डोभाल, विदेश मंत्री एस जयशंकर, विदेश सचिव विक्रम मिस्री, पूर्व विदेश सचिव हर्षवर्धन शृंगला भी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने हिसाब से अपने पत्ते खोलते हैं। 
 
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रूस की मंशा क्या है?
एशिया में चीन के साथ उसके संबंध काफी मजबूत हैं। रणनीतिक हैं। रूस दक्षिण एशिया में अमेरिका और पश्चिम देशों की पैठ को नियंत्रित करना चाहता है। ऐसे में दक्षिण एशिया में भारत उसके लिए बहुत महत्वपूर्ण है। 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध में रूस ने भारत के कंधे से कंधा मिलाया था। यूक्रेन के साथ रूस के युद्ध में भारत ने भी पुराने रणनीतिक, सामरिक साझीदार देश रूस के हित में अमेरिका के तमाम अनुरोध को अनसुना कर दिया। 
 

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कच्चे तेल के आयात के मामले में यूरोप समेत पूरी दुनिया को सुना दिया था। अब अंतरराष्ट्रीय भू-राजनीतिक स्थिति दो कदम आगे बढ़ रही है। रूस शीत युद्ध की वापसी जैसी महत्वाकांक्षा की तरफ है। वह दुनिया की दूसरी महाशक्ति का अपना रुतबा नहीं छोड़ना चाहता। हालांकि इस रेस में उसका प्रतिस्पर्धी चीन है और अमेरिका की चीन के सपने को भड़काने की कोशिश में लगा है। यही कारण है कि रूस के साथ भारत के संबंध, आयात-निर्यात, रक्षा सौदा, कच्चे तेल की खरीद-फरोख्त पर अमेरिका का दबाव बढ़ता जा रहा है। इसी दबाव की तरफ राष्ट्रपति पुतिन इशारा कर रहा है। 
 

भारत के रूस के साथ बने रहने से उसकी चीन को साधे रखने की मंशा भी सुरक्षित रहेगी। पूर्व विदेश सचिव शशांक जैसे कूटनीतिक के जानकार कहते हैं कि अमेरिका से भली रूस की दोस्ती है। इसमें कोई दो राय नहीं कि रूस हमारा विश्वसनीय रणनीतिक और सामरिक साझेदार देश है। हम जरूरत से ज्यादा अमेरिका के पाले में चले गए, लेकिन रूस के साथ कुछ ऐसा करना भी ठीक नहीं होगा कि आर्थिक प्रतिबंध झेलने पड़ें। शशांक कहते हैं कि समय जरा जटिल दौर से गुजर रहा है।  
 

रूस अपनी ‘अटैची’ में सबकुछ लेकर आया है
राष्ट्रपति पुतिन के साथ उनके मंत्रिमंडल के सात महारथी आए हैं। भारत ने भी मुकम्मल तैयारी की है। हैदराबाद हाउस में द्विपक्षीय वार्ता के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और रूस के राष्ट्रपति पुतिन बंद कमरे में भी चर्चा करेंगे। राष्ट्रपति पुतिन ने भी एससीओ की बैठक से लेकर पालम हवाई अड्डे और प्रधानमंत्री आवास तक शानदार प्रतिक्रिया दी है। कह सकते हैं कि कुछ ऐसा हुआ है, जिसे देख दुनिया जले। 
 

रूस के राष्ट्रपति अब अमेरिका की मुद्रा ‘डॉलर’ को चुनौती देना चाहते हैं। ब्रिक्स को ग्लोरिफाइ करने के मूड में हैं। सेन्ट्रल एशिया में नया भू-राजनीतिक समीकरण बनाना चाहते हैं। उनकी महत्वाकांक्षा को भांपकर जर्मनी ने अपनी सैन्य ताकत बढ़ाने का निर्णय लिया है और यूरोप अपने भले की सोच रहा है। ऐसे में रूस परणु ऊर्जा, तकनीक, तकनीक के हस्तांतरण, रक्षा, अंतरिक्ष, कृषि, द्विपक्षीय व्यापार, हाइड्रोकार्बन, निवेश, लोगों की आवाजाही, मैन पॉवर की आपूर्ति में समझौता, आपसी सहमति पत्र पर हस्ताक्षर के लिए तैयार है। उसके रक्षा सौदे की ‘अटैची’ में काफी कुछ है। देखना है कि पुतिन की यह भारत यात्रा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर क्या संदेश देती है
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