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नकदी विवाद: न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग लाएगी सरकार, सर्वदलीय सहमति बनाने की कोशिश

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: राहुल कुमार Updated Tue, 03 Jun 2025 08:00 PM IST
सार

इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की मुश्किलें बढ़ने वाली हैं। सरकार अगले संसद सत्र में न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने की तैयारी कर रही है। सरकारी सूत्रों ने ये जानकारी साझा की है।

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Impeachment motion to be brought against Justice Yashwant Varma in next Parliament session
न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा (फाइल) - फोटो : अमर उजाला / एजेंसी
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विस्तार
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सरकार संसद के अगले सत्र में इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने की तैयारी कर रही है। कथित भ्रष्टाचार के एक मामले में घिरे न्यायाधीश के खिलाफ कार्रवाई के लिए सरकार सभी दलों के बीच सहमति बनाने का प्रयास करेगी। सरकार के वरिष्ठ सूत्रों ने मंगलवार को इस खबर की पुष्टि की।  
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सरकारी सूत्रों के अनुसार, संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं से बात करेंगे ताकि सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त तीन सदस्यीय समिति की रिपोर्ट के आधार पर महाभियोग प्रस्ताव पर समर्थन हासिल किया जा सके। यह समिति तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने गठित की थी। तत्कालीन सीजेआई का पत्र मिलने के बाद ही केंद्र सरकार की ओर से जस्टिस वर्मा को पद से हटाने के लिए महाभियोग प्रस्ताव लाने की तैयारी आरंभ हो गई थी। अब सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों ने इसकी पुष्टि कर दी है।
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संजीव खन्ना ने की थी महाभियोग की सिफारिश
देश के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर उनके खिलाफ महाभियोग चलाने की सिफारिश की थी। खन्ना ने यह पत्र सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित एक आंतरिक जांच पैनल द्वारा वर्मा को दोषी ठहराए जाने के बाद भेजा था, हालांकि इसके निष्कर्षों को सार्वजनिक नहीं किया गया था।

सुप्रीम कोर्ट के जांच पैनल ने जस्टिस वर्मा को दोषी ठहराया
जस्टिस वर्मा को राजधानी में उनके आधिकारिक आवास से भारी मात्रा में जली हुई नकदी मिलने के बाद शीर्ष न्यायालय द्वारा नियुक्त जांच पैनल ने दोषी ठहराया है। सूत्रों ने बताया कि इस मामले पर जल्द ही अंतिम निर्णय लिया जाएगा।

क्या होती है महाभियोग की प्रक्रिया?
महाभियोग संसद की तरफ से किसी सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के जज को पद से हटाने की एक संवैधानिक प्रक्रिया है। इसमें, संसद के किसी भी सदन (लोकसभा या राज्यसभा) के सांसद महाभियोग प्रस्ताव पेश कर सकते हैं। प्रस्ताव पास होने के लिए सदन की कुल सदस्य संख्या का बहुमत और मौजूद सदस्यों का दो-तिहाई समर्थन चाहिए। इसके बाद राष्ट्रपति जज को पद से हटा सकते हैं।
 
घर में लगी आग और फूट गया भांडा
जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने का फैसला उनके दिल्ली स्थित निवास से इसी वर्ष मार्च में एक आगजनी की घटना के दौरान करोड़ों रुपये की जली नकदी बरामद होने संबंधी घटना की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय आंतरिक समिति की रिपोर्ट के आधार पर किया गया है। नकदी बरामद होने के समय जस्टिस वर्मा दिल्ली हाईकोर्ट के जज थे। आय से अधिक नकदी मिलने की घटना मीडिया में आने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इसकी जांच के लिए तीन जजों की समिति बनाई थी जिसने अपनी रिपोर्ट में जस्टिस वर्मा को दोषी ठहराया। जांच आरंभ होने से पहले ही जस्टिस वर्मा को उनके मूल हाईकोर्ट इलाहाबाद वापस भेज दिया गया।

बताया जाता है कि आंतरिक जांच समिति की रिपोर्ट में जस्टिस वर्मा को दोषी पाए जाने के बाद देश के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जस्टिस संजीव खन्ना ने उन्हें इस्तीफा देने की सलाह दी लेकिन जस्टिस वर्मा ने इसे नहीं माना। इसके बाद जस्टिस खन्ना ने रिपोर्ट पर आगे की कार्रवाई के लिए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और केंद्र सरकार को पत्र लिख दिया।

कौन हैं जस्टिस यशवंत वर्मा?
जस्टिस यशवंत वर्मा का जन्म 6 जनवरी 1969 को इलाहाबाद में हुआ। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज से बी.कॉम (ऑनर्स) की पढ़ाई की और मध्य प्रदेश के रीवा विश्वविद्यालय से एल.एल.बी. की डिग्री हासिल की। इलाहाबाद उच्च न्यायालय में एक वकील के रूप में उन्होंने कॉर्पोरेट कानूनों, कराधान और कानून की संबद्ध शाखाओं के अलावा संवैधानिक, श्रम और औद्योगिक विधानों के मामलों में भी वकालत की।

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2016 में स्थायी न्यायाधीश के रूप में ली शपथ 
56 वर्षीय न्यायाधीश, जो 1992 में अधिवक्ता के रूप में पंजीकृत हुए थे, उन्हें 13 अक्टूबर 2014 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय का अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त किया गया और उन्होंने 1 फरवरी 2016 को स्थायी न्यायाधीश के रूप में शपथ ली।

कई पदों पर रहे
वह 2006 से अपनी पदोन्नति तक इलाहाबाद उच्च न्यायालय के विशेष अधिवक्ता भी रहे, इसके अलावा 2012 से अगस्त 2013 तक उत्तर प्रदेश सरकार के मुख्य स्थायी अधिवक्ता भी रहे, जब उन्हें वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नामित किया गया।
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