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लैंसेट की सुपरबग रिपोर्ट पर भारत की आपत्ति: एनसीडीसी बोला- 83% आंकड़ा भ्रमित करने वाला, संक्रमण नहीं बढ़ा
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: शिवम गर्ग
Updated Thu, 20 Nov 2025 06:53 AM IST
सार
लैंसेट की सुपरबग रिपोर्ट पर एनसीडीसी ने कहा कि 83% का आंकड़ा संक्रमण नहीं बल्कि कॉलोनाइजेशन है। भारत की स्थिति अमेरिका और यूरोप से बेहतर बताई।
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सांकेतिक तस्वीर
- फोटो : Freepik.com
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विस्तार
भारत में सुपरबग संक्रमण के जोखिम पर प्रकाशित लैंसेट का अध्ययन गलत संदर्भ में पेश किया गया। राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी) का कहना है कि इस अध्ययन में बताए गए 83 फीसदी सुपरबग का आंकड़ा संक्रमण नहीं, बल्कि कॉलोनाइजेशन से जुड़ा है जिसका मतलब ये बिलकुल नहीं कि मरीज बीमार है या इलाज विफल हो गया।
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एनसीडीसी के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि अध्ययन में शामिल डाटा को पूरे भारत की स्वास्थ्य स्थिति का संकेत बताना भ्रामक और वैज्ञानिक संदर्भ से बाहर है। अध्ययन बहुत सीमित दायरे और उच्च जोखिम वाले मरीजों तक सीमित है। इसलिए इसे भारत की आम आबादी पर लागू नहीं किया जा सकता। इसके अलावा भारत की तुलना में अमेरिका-यूरोप में अधिक गंभीर स्थिति है। उन्होंने कहा कि भारत में मेथिसिलिन-प्रतिरोधी स्टेफिलोकोकस ऑरियस जीवाणु से जुड़े संक्रमण के मामले बहुत कम हैं।
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दरअसल मेडिकल जर्नल द लैंसेट में प्रकाशित एक अध्ययन में चेतावनी दी है कि भारत में सुपरबग तेजी से बढ़ रहे हैं। इस अध्ययन में भारत के अलावा इटली, नीदरलैंड और अमेरिका के लगभग 1,200 मरीजों की जांच की गई। दावा किया कि भारत में 83.1% मरीजों में कम से कम एक मल्टी-ड्रग रेसिस्टेंट जीव पाया गया जो अन्य तीनों देशों की तुलना में सबसे ज्यादा है।
एनसीडीसी के अनुसार अगर किसी में कॉलोनाइजेशन मिलता है तो वह सिर्फ बैक्टीरिया की मौजूदगी के बारे में बताता है। इसका यह संकेत नहीं कि सुपरबग का हमला हो गया। कई बार यह शरीर की सामान्य सतहों में बिना बीमारी के भी पाया जा सकता है।
आधिकारिक प्रतिक्रिया में कहा कि ये वे मरीज हैं जो पहले से कई बीमारियों से जूझ रहे होते हैं और अस्पताल संपर्क अधिक होता है। इस नमूने के आधार पर देश के स्वास्थ्य सिस्टम पर सवाल उठाना वैज्ञानिक रूप से उचित नहीं। एक सीमित अध्ययन के आधार पर भारत की स्वास्थ्य प्रदर्शन को नकारात्मक रूप में दिखाना लाखों मरीजों और डॉक्टरों की मेहनत को नजरअंदाज करना है।