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पुतिन का भारत दौरा: एस-500 पर नजर, Su-57 पर चर्चा की खबर, जानें रक्षा क्षेत्र में रूस से क्या चाहती है सरकार

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: कीर्तिवर्धन मिश्र Updated Fri, 05 Dec 2025 08:00 AM IST
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India Russia Relations President Vladimir Putin PM Narendra Modi may sign defence Deals on S-400 S-500 Su-57
भारत-रूस के बीच कई अहम रक्षा समझौतों की संभावना। - फोटो : अमर उजाला
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रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का आज भारत दौरे का दूसरा दिन है। इसी के साथ दोनों देशों के मजबूत रिश्तों को एक नई गति मिलने की संभावना है। व्यापार और सामरिक-कूटनीतिक समझौतों के साथ-साथ दोनों देशों की निगाह एक बार फिर रक्षा समझौतों पर होगी। दरअसल, भारत के रिश्ते रूस से उस समय से स्थापित हैं, जब सोवियत संघ का विघटन तक नहीं हुआ था। भारत उस दौर से ही अपनी रक्षा खरीद के लिए रूस पर निर्भर था। बीते कुछ वर्षों में भारत ने अपनी रक्षा जरूरतों के लिए फ्रांस, इस्राइल और अमेरिका का रुख जरूर किया है, लेकिन अब भी भारत की ज्यादातर रक्षा आपूर्ति रूस से ही होती है। 
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इस पूरी स्थिति के बीच यह जानना अहम है कि आखिर भारत और रूस के रक्षा मामलों से जुड़े रिश्ते कितने गहरे हैं? पुतिन के भारत दौरे से मोदी सरकार इस बार रक्षा क्षेत्र के लिए क्या उम्मीदें लगा रही है? दोनों देश किन-किन रक्षा समझौतों पर हस्ताक्षर कर सकते हैं? किन खास हथियारों को लेकर भारत की ओर से दिलचस्पी दिखाई गई है और इनकी खासियत क्या है? आइये जानते हैं...
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पहले जानें- भारत-रूस के रक्षा संबंध कितने गहरे?

1. भारत-रूस के रक्षा रिश्तों का इतिहास क्या?
रूस पर भारत की इस निर्भरता का कारण 20वीं और 21वीं सदी की शुरुआत में रूस से खरीदे गए हथियार रहे हैं। इस समय में लड़ाकू विमानों से लेकर बंदूकों और नौसैनिक पोतों से लेकर मिसाइलों तक के मामले में रूस भारत का सबसे बड़ा साझेदार रहा। इसके बाद एस-400 डिफेंस सिस्टम और एके-203 असॉल्ट राइफल के समझौते ने भी दोनों देशों के सहयोग को बढ़ाया है। यानी कुल मिलाकर भारत और रूस रक्षा के मामले में बंधे हैं।

2. किन समझौतों से मजबूत हो रहे रिश्ते
दोनों देश ने अपने रक्षा संबंधों को बढ़ाने के लिए 2021 से 2031 की अवधि के लिए सैन्य तकनीकी सहयोग कार्यक्रम से जुड़े समझौते को भी बढ़ाया है। इस कार्यक्रम के तहत दोनों देश अनुसंधान-विकास, उत्पादन, रख-रखाव, हथियार प्रणालियों और सैन्य उपकरणों के तकनीकी सहयोग को और मजबूत करने के लिए प्रतिबद्धता जता चुके हैं। 


 

भारत और रूस के बीच रक्षा व सैन्य तकनीकी मामलों की समीक्षा हेतु एक संस्थागत व्यवस्था मौजूद है। 2021 में शुरू हुआ 2+2 इससे जुड़ा एक उच्चस्तरीय मंच है, जहां दोनों देशों के रक्षा और विदेश मंत्री संयुक्त रूप से अपने संबंधों की समीक्षा करते हैं। इससे जुड़ा सबसे महत्वपूर्ण निकाय भारत-रूस अंतर-सरकारी सैन्य तकनीकी सहयोग आयोग (IRIGC-MTC) है, जिसकी स्थापना 2000 में हुई। दोनों देशों के रक्षा मंत्री हर वर्ष बारी-बारी से मिलकर प्रगति की समीक्षा करते हैं। इसके तहत दो वर्किंग ग्रुप और नौ सब-ग्रुप विभिन्न तकनीकी व सैन्य मुद्दों पर कार्य करते हैं।

3. मौजूदा समय में कौन सी रक्षा परियोजनाओं से जुड़े भारत-रूस
दोनों देशों के बीच फिलहाल टी-90 टैंकों और सुखोई-30एमकेआई विमानों का लाइसेंस उत्पादन, कामोव हेलीकॉप्टर (Ka-31) की आपूर्ति शामिल है। यह सहयोग अब पारंपरिक खरीदार-विक्रेता रिश्तों से आगे बढ़कर संयुक्त तौर पर डिजाइनिंग, अनुसंधान और उत्पादन मॉडल पर विकसित हो चुका है।

दोनों देश संयुक्त उत्पादन के क्षेत्र में भी सहयोग बढ़ा रहे हैं। ब्राह्मोस मिसाइल इसका सबसे अहम उदाहरण है। इसके अलावा एके-203 राइफलों के उत्पादन के लिए संयुक्त उद्यम की स्थापना हुई है और उत्पादन मेक इन इंडिया पहल के तहत चल रहा है।

4. दोनों देशों की सेनाएं भी संयुक्त अभियान में शामिल
इतना ही नहीं दोनों देशों की सेनाएं भी करीबी सहयोग में शामिल हैं। सेनाओं के तीनों अंगों के संयुक्त सैन्य अभ्यास इंद्र (INDRA) नाम से आयोजित किए जाते हैं। इसके अलावा दोनों देश अंतरराष्ट्रीय सैन्य खेलों और वोस्तोक अभ्यास का भी हिस्सा रहे हैं। 

अब जानें- पुतिन के दौरे में किन रक्षा समझौतों के लिए भारत की तैयारी?
भारत बीते कई वर्षों से रूस के एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम का इस्तेमाल कर रहा है। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान इस प्रणाली ने पाकिस्तान के सभी हमलों को न सिर्फ नाकाम किया, बल्कि उसे बड़ा नुकसान भी पहुंचाया। दूसरी तरफ भारत की नजर इस बार पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान Su-57 पर भी रहेगी, जो कि न सिर्फ अमेरिका के एफ-35 लड़ाकू विमान के मुकाबले में है बल्कि चीन के पांचवीं पीढ़ी के फाइटर जेट्स का भी जवाब हो सकता है। भारत अपने एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एएमसीए) प्रोजेक्ट के पूरा होने तक रूस से सुखोई-57 खरीद कर अपनी जरूरतें पूरी कर सकता है।

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1. एस-400 डिफेंस सिस्टम
भारत पहले ही रूस से एस-400 डिफेंस सिस्टम खरीद चुका है। हालांकि, अब तक देश के पास सीमित एस-400 सिस्टम हैं और वह कम से कम पांच रेजिमेंट एस-400 और खरीदने की तैयारी में है, जिसे भारतीय सेना पाकिस्तान और चीन से लगती सीमा के करीब अपने रक्षा ढांचों की सुरक्षा के लिए तैनात कर सकती है। इसके अलावा पूर्वोत्तर के राज्यों में भी एस-400 का सुरक्षा ढांचा मुहैया कराया जा सकता है। 

एस-400 वायु रक्षा प्रणाली उपकरणों का एक नेटवर्क है, जिसे हवाई खतरों से निपटने के लिए किसी विशिष्ट क्षेत्र में तैनात किया जाता है। यह दुश्मन के लड़ाकू विमानों, मिसाइलों और ड्रोन्स को हवा में ही निशाना बनाने के लिए डिजाइन किया गया है। एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम को भारतीय वायुसेना के सबसे ताकतवर हथियारों में से एक माना जाता है। यह किसी भी संभावित खतरे को हवा में ही तबाह करने में सक्षम है। एस-400 मिसाइल सिस्टम को चीन और पाकिस्तान के खतरे को ध्यान में रखकर तैनात किया गया है। इसकी रेंज 40 से 400 किलोमीटर के बीच है। भारत और रूस के बीच साल 2018 में एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम का सौदा हुआ था। सौदे के तहत भारत को एस-400 मिसाइल सिस्टम की तीन रेजीमेंट मिल चुकी हैं। भारत को अभी दो और रेजीमेंट मिलनी हैं, लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से उनमें देरी हुई है और अब उनके साल 2026 में मिलने की उम्मीद है।

S400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम के एक रेजीमेंट में आठ लॉन्चर होते हैं। मतलब आठ लॉन्चिंग ट्रक और हर एक ट्रक में चार लॉन्चर होते हैं। हर लॉन्चर से चार मिसाइलें निकलती हैं। मतलब एक रेजीमेंट कभी भी 32 मिसाइलें दाग सकता है। यह आसमान से घात लगाकर आने वाली किसी भी मिसाइल को पलक झपकते ही बर्बाद करने की क्षमता रखता है। यह दुनिया की सबसे सटीक एयर डिफेंस सिस्टम में से एक है। खास बात ये है कि किसी भी क्षेत्र से आने वाले न्यूक्लियर मिसाइल को भी ये हवा में ही नष्ट करने की क्षमता रखता है। इसके जरिए दुश्मनों की सीमा के अंदर भी नजर रखी जा सकती है। 

2. एस-500 डिफेंस सिस्टम
भारत न सिर्फ एस-400 की रेजिमेंट बढ़ाना चाहता है, बल्कि इस डिफेंस सिस्टम के आधुनिक प्रारूप एस-500 प्रोमिथियस को खरीदने पर विचार कर रहा है। एस-500 सीधे तौर पर एस-400 का एडवांस्ड वर्जन है। इसकी रेंज 600 किलोमीटर तक की है और यह आसमान में 200 किलोमीटर ऊपर जाकर दुश्मन को तबाह कर सकता है। यानी दुनिया में मौजूद किसी भी रक्षा प्रणाली के मुकाबले एस-500 सबसे उन्नत है। 

इतना ही नहीं एस-500 न सिर्फ एयरक्राफ्ट, बल्कि ड्रोन्स और आवाज की गति से कई गुना तेज उड़ने वाली मिसाइलों तक को आसानी से गिरा सकते हैं। इनमें लंबी दूरी की बैलिस्टिक मिसाइलें, हाइपरसॉनिक मिसाइलें और क्रूज मिसाइलें शामिल हैं। इस सिस्टम में 77एन6-एन1 मिसाइलें हैं, जो कि चीन के जे-20 फाइटर जेट को गिराने की क्षमता रखती हैं। हालांकि, अपनी इसी आधुनिकता के चलते एस-500 सिस्टम ज्याद महंगा है और इसके मेंटेनेंस की कीमत भी ज्यादा है। हालांकि, भारत इस डिफेंस सिस्टम को खरीदने पर सहमति जता सकता है।

3. एसयू-57 चेकमेट लड़ाकू विमान
रूस ने भारत को सुखोई-57 लड़ाकू विमान की पेशकश की है। इस पेशकश में भारत में पांचवीं पीढ़ी के सुखोई-57 स्टील्थ लड़ाकू विमान के उत्पादन का प्रस्ताव दिया गया है। साथ ही रूस विमान के प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के लिए भी तैयार है। रूस की ओर से यह प्रस्ताव राष्ट्रपति पुतिन की भारत यात्रा से पहले आया है। माना जा रहा है कि भारत और रूस के बीच बड़ा रक्षा सौदा हो सकता है। 

लड़ाकू विमानों की आपूर्ति और लाइसेंस उत्पादन के साथ भारतीय हथियारों के एकीकरण को ध्यान में रखते हुए व्यापक तकनीक हस्तांतरण की व्यवस्था की जा सकती है। इस तकनीकी सहयोग में इंजन, ऑप्टिक्स, एईएसए रडार, एआई आधारित एवियोनिक्स सिस्टम, लो-सिग्नेचर (स्टेल्थ) तकनीक तथा आधुनिक एयर-टू-एयर और एयर-टू-ग्राउंड मिसाइलों जैसी उन्नत प्रणालियां शामिल होंगी।



अमेरिकी एफ-35 से बेहतर है सुखोई 57?
रूस का उन्नत सुखोई-57 डॉगफाइट क्षमताओं, मजबूत संरचना और कम रखरखाव लागत के मामले में अमेरिकी एफ-35 से काफी आगे है। सुखोई की रेंज की बात करें तो यह उच्च हिमालयी क्षेत्रों से लेकर रेगिस्तानी इलाकों तक इसकी ऑपरेशनल क्षमता बेहद ही शानदार है। 

सामरिक विशेषज्ञ बताते हैं कि यह दुनिया का सबसे घातक, सबसे खतरनाक, तेज गति से हमला करने में सक्षम फाइटर जेट हो सकता है। अभी तक एफ-35 लाइटनिंग ही ऐसा फाइटरजेट है, जिसके मिशन की टोह लेना बहुत मुश्किल है, लेकिन कहा जा रहा है कि घातकता के मामले में यह उसे कड़ी टक्कर दे सकता है।

सू-57 भी किसी रेडार, सेंसर आदि की पकड़ से दूर फाइटरजेट है। एसू-57 जैसे फाइटर जेट ये हवा में लंबी दूरी के आपरेशन को अंजाम देने में सक्षम हैं। इसमें जमीनी, हवा और समुद्र क्षेत्र की सुरक्षा का जिम्मा संभालने की क्षमता है।  10,300 किग्रा ईधन की क्षमता वाले इस फाइटर जेट में मिग-29 की तरह प्रतिरक्षी, सू-27 की तरह मारक क्षमता है। इसका उपयोग बहुउद्देश्यी अभियानों में किया जा सकता है और इसे विकसित करने में भारत भी भागीदार है।

इसमें एईएसए रडार सिस्टम है और यह क्रूज मिसाइल दाग सकता है। रूस का कहना है कि इसमें जल्द ही एएल-51ए1 इंजन लगाया जाएगा। इससे यह बिना आफ्टरबर्नर के लंबे समय तक सुपरसोनिक गति से उड़ान भर सकेगा। यह विमान की युद्ध क्षमता को बढ़ा देगा।
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