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Karnataka: कौन थे पद्मश्री वैज्ञानिक डॉ. सुबन्ना अयप्पन, जिनका शव नदी में मिला? नीली क्रांति में थी अहम भूमिका

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, बंगलूरू Published by: नितिन गौतम Updated Tue, 13 May 2025 09:54 AM IST
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सार

देश में ब्लू रेवोल्यूशन (नीली क्रांति- मतस्य पालन) को बढावा देने में उनकी अहम भूमिका रही। सरकार ने उनके योगदान को पहचान और साल 2022 में उन्हें देश के चौथे सबसे बड़े सम्मान पद्मश्री से सम्मानित किया गया। 

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डॉ. सुबन्ना अय्यपन - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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मशहूर कृषि वैज्ञानिक और पद्मश्री सम्मान से सम्मानित डॉ. सुबन्ना अयप्पन (70 वर्षीय) मृत पाए गए हैं। श्रीरंगपत्तन में श्री आश्रम के नजदीक कावेरी नदी में उनका शव बरामद हुआ। सुबन्ना अयप्पन के परिवार में उनकी पत्नी और दो बेटियां हैं। अयप्पन की मौत का कारण अभी स्पष्ट नहीं हुआ है, लेकिन माना जा रहा है कि उन्होंने आत्महत्या की है। सुबन्ना अयप्पन अपने परिवार के साथ मैसूर के विश्वेश्वरा नगर इंडस्ट्रियल एरिया स्थित घर में रहते थे।  वह बीती 7 मई से लापता थे।
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नदी में शव होने की पुलिस को मिली थी सूचना
श्रीरंगपत्तन पुलिस ने मामला दर्ज कर मामले की जांच शुरू कर दी है। पुलिस को शनिवार को कावेरी नदी में एक शव तैरता होने की सूचना मिली थी। सूचना पर पुलिस मौके पर पहुंची और शव को नदी से बाहर निकलवाया। शव की पहचान मशहूर कृषि वैज्ञानिक और पद्मश्री सम्मान से सम्मानित डॉ. सुबन्ना अय्यपन के रूप में हुई। नदी के किनारे से अयप्पन का स्कूटर भी बरामद हुआ है। 
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कौन थे सुबन्ना अय्यपन
10 दिसंबर 1955 को कर्नाटक के चामराजनगर जिले के यालांदुर में डॉ. सुबन्ना अय्यपन का जन्म हुआ था। उन्होंने मतस्य विज्ञान (फिशरीज साइंस) में स्नातक और मास्टर की डिग्री हासिल की थी। इसके बाद उन्होंने बंगलूरू की एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी से पीएचडी की। डॉ. सुबन्ना ने राष्ट्रीय स्तर पर कई अहम पदों पर अपनी सेवाएं दीं। देश में ब्लू रेवोल्यूशन (नीली क्रांति- मतस्य पालन) को बढावा देने में उनकी अहम भूमिका रही। सरकार ने उनके योगदान को पहचान और साल 2022 में उन्हें देश के चौथे सबसे बड़े सम्मान पद्मश्री से सम्मानित किया गया। डॉ. अयप्पन ने अलग-अलग समय पर दिल्ली, मुंबई, भोपाल, भुवनेश्वर और बंगलूरू में अपनी सेवाएं दीं। वह पहले गैर-कृषि वैज्ञानिक थे, जिन्होंने इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च का नेतृत्व किया।  

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कई दशकों तक जलीय कृषि में डॉ. अय्यप्पन ने कई नेतृत्वकारी भूमिकाएं निभाई । उन्होंने भुवनेश्वर में सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ फ्रेशवाटर एक्वाकल्चर (CIFA) और मुंबई में सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ फिशरीज एजुकेशन (CIFE) के निदेशक के रूप में कार्य किया। वे हैदराबाद में राष्ट्रीय मत्स्य विकास बोर्ड (NFDB) के संस्थापक मुख्य कार्यकारी भी थे और बाद में भारत सरकार के कृषि अनुसंधान और शिक्षा विभाग (DARE) में सचिव का पद संभाला।

मतस्य पालन क्षेत्र में बड़ी ताकत बनकर उभरा भारत
भारतीय मतस्यपालन क्षेत्र जो 50 वर्ष पहले केवल 60,000 टन मछली उत्पादन करता था। अब नीली क्रांति के बाद यह बढ़कर 47 लाख टन हो चुका है। इसमें 15 लाख टन उत्पादन ताजे जल की मछली का होता है। मछली और मछली उत्पादों के उत्पादन में पिछले दशक में भारत ने औसत 14.8 प्रतिशत की विकास दर दर्ज की है जबकि इसी अवधि में वैश्विक विकास दर औसतन 7.5 प्रतिशत रही है। फिशरीज वास्तव में भारत का एकमात्र सबसे बड़ा कृषि संबंधी निर्यात है जिसकी विकास दर पिछले पाँच वर्षों में 6-10% रही है। भारत में कई समुदायों की जीविका का प्राथमिक स्रोत मछली पकड़ना रहा है और विश्व का दूसरा सबसे बड़ा मछली उत्पादक देश भारत है, जो 47,000 करोड़ रुपए से अधिक का निर्यात करता है।
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