सब्सक्राइब करें
Hindi News ›   India News ›   Karnataka to Supreme court President governor only titular heads bound by advice of council of ministers

Supreme Court: 'राष्ट्रपति और राज्यपाल नाममात्र के प्रमुख', सुप्रीम कोर्ट में बोली कर्नाटक सरकार

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: नितिन गौतम Updated Tue, 09 Sep 2025 02:05 PM IST
सार

कर्नाटक सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल सुब्रमण्यम ने बताया कि संविधान का अनुच्छेद 361 राष्ट्रपति और राज्यपाल को किसी भी आपराधिक कार्रवाई से छूट प्रदान करता है, क्योंकि वे कोई कार्यकारी काम नहीं करते हैं।

विज्ञापन
Karnataka to Supreme court President governor only titular heads bound by advice of council of ministers
सुप्रीम कोर्ट - फोटो : एएनआई
विज्ञापन

विस्तार
Follow Us

कांग्रेस के नेतृत्व वाली कर्नाटक सरकार ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में कहा कि सांविधानिक व्यवस्था के तहत, राष्ट्रपति और राज्यपाल केवल नाममात्र के प्रमुख हैं और केंद्र तथा राज्य दोनों जगह मंत्रिपरिषद की सलाह पर काम करने के लिए बाध्य हैं। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के सामने कर्नाटक सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल सुब्रमण्यम ने बताया कि संविधान का अनुच्छेद 361 राष्ट्रपति और राज्यपाल को किसी भी आपराधिक कार्रवाई से छूट प्रदान करता है, क्योंकि वे कोई कार्यकारी काम नहीं करते हैं।

Trending Videos


मंत्रिपरिषद की संतुष्टि ही राज्यपाल की संतुष्टि
पीठ में मुख्य न्यायाधीश के अलावा जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस एएस चंदुरकर भी शामिल हैं। गोपाल सुब्रमण्यम ने सर्वोच्च न्यायालय के विभिन्न फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों पर मंत्रिपरिषद की संतुष्टि ही राज्यपाल की संतुष्टि होती है। उन्होंने कहा कि राज्यपाल केंद्र तथा राज्य दोनों स्तरों पर मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर कार्य करने के लिए बाध्य हैं। राज्य विधानमंडल से पारित विधेयकों पर राज्यपाल के पास कोई वीटो नहीं है।
विज्ञापन
विज्ञापन


निर्वाचित सरकार के साथ किसी समानांतर प्रशासन का प्रावधान नहीं...
सुब्रह्मण्यन ने कहा, संविधान राज्य में निर्वाचित सरकार के साथ-साथ किसी समानांतर प्रशासन का प्रावधान नहीं करता। सीजेआई बीआर गवई ने सुब्रह्मण्यन से पूछा कि क्या सीआरपीसी की धारा 197 के तहत, जो लोक सेवकों पर मुकदमा चलाने की पूर्व अनुमति से संबंधित है, सरकार को मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर कार्य करना आवश्यक है। वरिष्ठ वकील ने कहा कि इस न्यायालय के कई निर्णय हैं, जिनमें यह माना गया है कि राज्यपाल मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह से स्वतंत्र होकर कार्य करते हैं और सीआरपीसी की धारा 197 के संबंध में अपने विवेक का प्रयोग करते हैं।

राज्यपालों से विधेयकों पर उचित समय के भीतर कार्रवाई की अपेक्षा
कर्नाटक सरकार की दलीलों को सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने अहम टिप्पणियां कीं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा- संविधान के अनुच्छेद 200 में भले ही यथाशीघ्र शब्द का प्रयोग न हो, लेकिन वक्त का पालन जरूरी है। राज्यपालों से विधेयकों पर उचित समय के भीतर फैसला लेने की अपेक्षा की जाती है। संविधान का अनुच्छेद 200 राज्य विधानमंडल से पारित विधेयकों को स्वीकृति देने की राज्यपाल की शक्तियों को नियंत्रित करता है। सीजेआई जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने राष्ट्रपति संदर्भ पर आठवें दिन दलीलें सुनते हुए दोहराया कि वह केवल संविधान की व्याख्या करेगी और अलग-अलग मामलों के तथ्यों की जांच नहीं करेगी।

पंजाब सरकार की दलीलें
कर्नाटक सरकार के अलावा पंजाब सरकार की ओर से भी दलीलें दी गईं। वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दातार ने पीठ से आग्रह किया कि संविधान निर्माताओं ने अनुच्छेद 200 में यथाशीघ्र का प्रावधान किया है और विधेयकों को मंजूरी देने के लिए तीन महीने की समय-सीमा निर्धारित करने में न्यायालय के लिए कोई बाधा नहीं है। इस पर पीठ ने कहा, यथाशीघ्र शब्द न भी हो, राज्यपाल से उचित समय के भीतर कार्रवाई करने की अपेक्षा की जाती है।

तत्काल मंजूरी के लिए राज्यपाल को बाध्य कर सकती है मंत्रिपरिषद : केरल
केरल सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता केके वेणुगोपाल ने कहा कि राज्य के पूर्व राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने विधेयक प्राप्त होने पर उन्हें संबंधित मंत्रालयों को जानकारी देने के लिए भेजने की परंपरा का पालन किया था। सीजेआई गवई ने कहा, हम अलग-अलग मामलों पर निर्णय नहीं करेंगे। वेणुगोपाल ने कहा, यदि राज्यपाल चर्चा के बावजूद किसी विधेयक को मंजूरी नहीं देना चाहते तो राज्य मंत्रिपरिषद उन्हें उस पर अपनी सहमति देने के लिए बाध्य कर सकती है। मंत्रिपरिषद अनुच्छेद 163 के तहत उन्हें तुरंत मंजूरी देने की सलाह दे सकती है। ऐसी स्थिति में राज्यपाल के पास अनुच्छेद 163 के तहत स्वीकृति देने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा।

वेणुगोपाल ने कहा, किसी भी परिस्थिति में स्वीकृति रोकने का कोई सवाल ही नहीं है। यदि विधेयक को अस्वीकार कर दिया जाता है तो कारण बताया जाना चाहिए। कारण बताने से न्यायिक समीक्षा का रास्ता खुला रहेगा। उन्होंने यह भी कहा कि राज्यपाल विधायिकाओं के कामकाज में बाधा डालने के लिए नहीं हैं।

किस सांविधानिक मामले में सुनवाई कर रही है देश की सबसे बड़ी अदालत
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रपति के संदर्भ पर सुनवाई कर रहा है और मंगलवार को सुनवाई का आठवें दिन कर्नाटक की तरफ से दलीलें दी गईं। राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से पूछा है कि क्या न्यायालय राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों पर विचार करने के लिए राज्यपालों और राष्ट्रपति के लिए समय-सीमा निर्धारित कर सकता है?

ये भी पढ़ें- Vice President Election 2025: उपराष्ट्रपति पद के लिए मतदान जारी, तस्वीरों में देखिए किन-किन नेताओं ने डाले वोट

बंगाल सरकार ने दिया ये तर्क
इससे पहले विगत 3 सितंबर की सुनवाई के दौरान पश्चिम बंगाल सरकार ने शीर्ष अदालत के समक्ष तर्क दिया कि विधेयक के रूप में जनता की इच्छा राज्यपालों और राष्ट्रपति की मनमर्जी के अधीन नहीं हो सकती। टीएमसी शासित राज्य सरकार ने दलील दी थी कि राज्यपाल संप्रभु की इच्छा पर सवाल नहीं उठा सकते और विधानसभा द्वारा पारित विधेयक की विधायी क्षमता की जांच नहीं सकते, यह न्यायालय का अधिकार क्षेत्र है। 



 
विज्ञापन
विज्ञापन

रहें हर खबर से अपडेट, डाउनलोड करें Android Hindi News apps, iOS Hindi News apps और Amarujala Hindi News apps अपने मोबाइल पे|
Get all India News in Hindi related to live update of politics, sports, entertainment, technology and education etc. Stay updated with us for all breaking news from India News and more news in Hindi.

विज्ञापन
विज्ञापन

एड फ्री अनुभव के लिए अमर उजाला प्रीमियम सब्सक्राइब करें

Next Article

Election
एप में पढ़ें

Followed