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आविष्कार: केरल के पशु चिकित्सक ने चिकन वेस्ट से बनाया बायोडीजल, सात साल बाद मिला पेटेंट
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, वायनाड
Published by: गौरव पाण्डेय
Updated Sun, 25 Jul 2021 05:55 PM IST
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सार
केरल के पशु चिकित्सक जॉन अब्राहम को आखिरकार अपनी मेहनत का फल मिल गया है। उन्हें मृत चिकन (मुर्गे-मुर्गी) के बेकार हिस्सों से बायोडीजल तैयार करने ले लिए पेटेंट मिला है। यह बायोडीजल, डीजल के मुकाबले सस्ता और कम प्रदूषक है।

डॉ. जॉन अब्राहम
- फोटो : vifa.info
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विस्तार
सात साल से अधिक समय तक इंतजार करने के बाद केरल के पशु चिकित्सक और आविष्कारक जॉन अब्राहम को एक खास किस्म के बायोडीजल का आविष्कार करने के लिए पेटेंट मिल गया है। अब्राहम ने यह बायोडीजल मारे गए मुर्गे-मुर्गियों के फेंक दिए गए हिस्सों से तैयार किया है। इस बायोडीजल की खास बात यह है कि यह एक लिटर में करीब 38 किलोमीटर का माइलेज देता है, डीजल की वर्तमान कीमत के मुकाबले इसका दाम करीब 40 फीसदी है और प्रदूषण करीब 50 फीसदी कम करता है।

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समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार भारतीय पेटेंट कार्यालय ने सात जुलाई 2021 को अंतत: अब्राहम को 'चिकन के बेकार तेल से बायोडीजल बनाने के लिए' पेटेंट प्रदान किया। अब्राहम केरल के वायनाड में केरल वेटरिनरी एंड एनिमस साइंसेज यूनिवर्सिटी के तहत आने वाले यहां स्थित वेटरिनरी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। अब्राहम ने इस बायोडीजल का आविष्कार तमिलनाडु वेटरिनरी एंड एनिमल साइंसेज यूनिवर्सिटी के तहत नमक्कल वेटरिनरी कॉलेज में अपनी डॉक्टरल रिसर्च के दौरान किया।
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अब्राहम ने बताया कि इसका पेटेंट मिलने में इसलिए देरी हुई क्योंकि इस आविष्कार में इस्तेमाल किया जाने वाला प्रमुख कच्चा माल मूल रूप से जैविक सामग्री थी। इसके चलते राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण से अनुमति लेने की जरूरत थी। उल्लेखनीय है कि साल 2009 से 2012 के दौरान, अब्राहम ने ब्रायलर चिकन और मृत पोल्ट्री पक्षियों के कचरे से बायोडीजल के उत्पादन पर अनुसंधान किया था। वर्तमान में वह अपने तीन अन्य छात्रों के साथ सूअर के अपशिष्ट से बायोडीजल तैयार करने पर काम कर रहे हैं।
उन्होंने अपनी रिसर्च प्रोफेसर रमेश सरवनकुमार के दिशानिर्देश में पूरी की थी, जिनका निधन नवंबर 2020 में हो गया था। अब्राहम ने 2014 में तमिलनाडु वेटरिनरी एंड एनिमल साइंसेज यूनिवर्सिटी की ओर से पेटेंट के लिए आवेदन किया था। अपनी रिसर्च के बाद अब्राहम वायनाड में कालपेट्टा के पास स्थित पूकोडे वेटरिनरी कॉलेज से जुड़े। यहां 2014 में कॉलेज परिसर में उन्होंने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की ओर से मिली वित्तीय मदद (14 लाख रुपये) के साथ एक पायलट प्लांट की स्थापना की थी।
अब्राहम ने बताया कि 100 किलोग्राम चिकन वेस्ट से एक लीटर बायोडीजल तैयार किया जा सकता है। इसके अधिक माइलेज देने और कम प्रदूषण करने की वजह यह है कि चिकन वेस्ट में 62 फीसदी फैट (वसा) होता है। वहीं, 11 फीसदी तक अधिक ऑक्सीजन की मौजूदगी की वजह से इससे इंजन का प्रदर्शन भी बेहतर होता है। इसके व्यवसायीकरण को लेकर उन्होंने कहा कि पिछले शुक्रवार को हिंदुस्तान पेट्रोलियम की एक टीम उनसे मिली थी। इसकी महक खाद्य तेल जैसी है और डीजल जैसा ही दिखता है।