Khabaron Ke Khiladi: बिहार में सीट बंटवारे पर जारी है खींचतान, विश्लेषकों ने बताया किस गठबंधन में कितनी रार
बिहार में चुनावों की तारीखों के एलान होने का इंतजार हर कोई बेसब्री से कर रहा है। लेकिन उससे भी ज्यादा इंतजार गठबंधन में सीट बटवारे का किया जा रहा है। इस हफ्ते खबरों के खिलाड़ी में इसी विषय पर चर्चा…

विस्तार
बिहार विधानसभा चुनाव का पारा चढ़ता जा रहा है। चुनाव तारीखों का एलान कभी भी हो सकता है। चुनाव तारीखों के एलान से पहले राज्य के दोनों बड़े गठबंधनों में सीटों के बंटवारों को लेकर खींचतान जारी है। सीट बंटवारों की ये खींचतान कहां कैसे चल रही है? किसका क्या दावा है। कौन कितनी सीटों पर लड़ सकता है? ऐसे ही सवालों पर इस हफ्ते के ‘खबरों के खिलाड़ी’ में चर्चा हुई। चर्चा के लिए वरिष्ठ पत्रकार रामकृपाल सिंह, विनोद अग्निहोत्री, समीर चौगांवकर, राकेश शुक्ल, विजय त्रिवेदी और अवधेश कुमार मौजूद रहे।

विजय त्रिवेदी: सीट बंटवारा हमेशा किसी भी चुनाव में मुश्किल होती है। हर पार्टी ज्यादा से ज्यादा सीटों पर लड़ने की कोशिश करती है। यह बात ठीक है कि पिछली बार कांग्रेस को ज्यादा सीटें मिलने की वजह से महागंठबंधन का उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन नहीं रहा। जाहिर है कि राजद सबसे बड़ी पार्टी है तो उसे सबसे ज्यादा सीटें मिलेंगी। हमें भले लगता है कि सहयोगियो में झगड़ा हो रहा है पर ऐसा नहीं होता है ये एक जटिल मुद्दा है इसे सुझलाने में वक्त लगता है। मुझे लगता है कि दोनों गठबंधनों में चुनाव आने से पहले-पहले समझौता हो जाएगा।
रामकृपाल सिंह: जो गठबंधन सहयोगी ये कहते हैं कि हम में कोई मतभेद नहीं है तो वो गलत कहते हैं। अगर मतभेद न हों तो दो अलग-अलग दल क्यों होगे। कांग्रेस फिर अपनी पुरानी जगह पाने का सपना देख रही है। बिहार में बारगेन की स्थिति पिछली बार थी पर इतनी नहीं थी। इस बार स्थिति ज्यादा बेहतर है। ये समझौते मजबूरी के होते हैं। एडीए में भाजपा एक डॉमिनेंट फोर्स है। नीतीश को पता है कि अगर उन्हें अपनी पार्टी को जिंदा रखना है तो भाजपा के साथ रहना होगा।
अवधेश कुमार: इस समय अपने विस्तार की कोशिश करने वाली केवल एक ही पार्टी है। वो है कांग्रेस। बाकी दलों को अपनी जमीन बरकरार रखने की कोशिश करनी है। महागठबंधन में कुल आठ दल हैं। इसी तरह एनडीए में हम, चिराग पासवान की लोजपा और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी है। दोनों गठबंधनों में समीकरण बदले हुए हैं। एनडीए में एक सिद्धांत तय हो गया है उसी के आधार पर सीटों का बंटवारा होगा। अभी तक की स्थिति में 100-100 सीटें भाजपा और जदयू को दे दी जाएं बाकी, 43 सीटों में लोजपा, हम और उपेंद्र कुशवाहा के बीच बंटेंगी। महागठबंधन में भी वैसी ही स्थिति है जो एक दल इधर उधर हो सकता है वो मुकेश सहनी की वीआईपी है।
राकेश शुक्ल: मुझे लगता है कि तेजस्वी यादव 2025 के चुनाव के लिए दौड़ लगा रहे थे। वहीं, राहुल 2029 के चुनाव के लिए जमीन तैयार करने की कोशिश कर रहे थे। सीमांचल में पहले सिर्फ ओवैसी फैक्टर थे। इस बार इस इलाके में प्रशांत किशोर की जनसुराज भी फैक्टर बन रही है। अगर 5-7 सीटें भी उन्होंने प्रभावित कर ली तो समीकरण बदल सकते हैं। वहीं, ओवैसी का फोकस भी बढ़ गया है। इस वजह से इस इलाके की 24 सीटें महागठबंधन के लिए और बड़ी चुनौती बनेंगी।
समीर चौगांवकर: इस बार कांग्रेस बहुत समझदारी से सीटों का बंटवारा चाहती है। कांग्रेस का कहना है कि पिछली बार आपने हमें ऐसी सीटें दी थीं जो कांग्रेस क्या राजद भी नहीं जीत सकती थी। इस बार बंटवारा ऐसा नहीं होगा। राहुल की यात्रा के बाद कांग्रेस का आत्मविश्वास बढ़ा है। कांग्रेस 63 से कम सीटों पर मानने को तैयार नहीं है वहीं, लालू 55 से ज्यादा सीटें देने को तैयार नहीं हैं। अब राहुल गांधी के पाले में गेंद है। कांग्रेस से जुड़े चारों सांसद सीमांचल से आते हैं। इस इलाके में कांग्रेस ज्यादा सीटें चाहती है। हालांकि, गठबंधन अंतिम समय हो जाएगा।
विनोद अग्निहोत्री: कांग्रेस पार्टी में इस वक्त वही होगा जो राहुल गाधी चाहेंगे। सोनिया गांधी अब सिर्फ शिष्टाचार भेंट करती हैं। वो कहती है कि पार्टी के बारे में कोई भी बात करनी है तो आप खरगे जी के पास जाइये या फिर राहुल गांधी के पास जाइये। मेरा यही मानना है कि तेजस्वी को अपनी जो बात करनी है वो इन्हें दो नेताओं से करनी होगी। मुझे लगता है कि कुल मिलाकर कांग्रेस 55 सीटों के आसपास सीटों पर चुनाव लड़ सकती है। खींचतान भले चलती रहेगी।
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