{"_id":"67cc1ca482f60892540dc598","slug":"khabron-ke-khiladi-uproar-over-sp-leader-abu-azmi-statement-on-aurangzeb-and-maharashtra-politics-2025-03-08","type":"story","status":"publish","title_hn":"Khabron Ke Khiladi: अबु आजमी के बयान पर मचे बवाल के पीछे क्या है सियासत? खबरों के खिलाड़ी ने बताई पूरी कहानी","category":{"title":"India News","title_hn":"देश","slug":"india-news"}}
Khabron Ke Khiladi: अबु आजमी के बयान पर मचे बवाल के पीछे क्या है सियासत? खबरों के खिलाड़ी ने बताई पूरी कहानी
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: ज्योति भास्कर
Updated Sat, 08 Mar 2025 09:01 PM IST
सार
महाराष्ट्र में सपा नेता अबु आजमी ने औरंगजेब पर जो बयान दिया उसकी सियासी तपिश उत्तर प्रदेश तक महसूस की गई। यूपी में सीएम योगी आदित्यनाथ ने आजमी को आड़े हाथों लिया था। आखिर अबु आजमी के बयान के पीछे की क्या है सियासत? खबरों के खिलाड़ी में वरिष्ठ पत्रकारों और राजनीतिक विश्लेषकों ने इस मुद्दे पर विस्तार से चर्चा की।
विज्ञापन
खबरों के खिलाड़ी में अबु आजमी के बयान और उसके राजनीतिक पहलू पर चर्चा
- फोटो : अमर उजाला
विज्ञापन
विस्तार
औरंगजेब का मुद्दा बीते पूरे हफ्ते चर्चा में रहा। महाराष्ट्र में समाजवादी पार्टी के विधायक अबु आजमी के एक बयान पर जमकर बवाल हुआ। हर राजनीतिक दल अपने-अपने हिसाब से इस मामले में बोल रहा है। महाराष्ट्र से शुरू हुआ बवाल उत्तर प्रदेश से बिहार तक पहुंच चुका है। इस हफ्ते खबरों के खिलाड़ी में इसी पर चर्चा हुई। चर्चा के लिए वरिष्ठ पत्रकार रामकृपाल सिंह, विनोद अग्निहोत्री, पूर्णिमा त्रिपाठी, राकेश शुक्ल, अवधेश कुमार और अजय सेठिया मौजूद रहे।
रामकृपाल सिंह: इतिहास के गड़े मुर्दे उखाड़ कर ले आना विशुद्ध रूप से राजनीतिक मजबूरी है। यह सिर्फ इस बात की कोशिश है कि जो चला गया वो तो गया, जो बचा हुआ है उसे सहेजकर रखें। किसी भी चीज की कसौटी मानवीयता होती है। जो अपने भाई दारा शिकोह का गला काट देता है, जो अपने पिता को कैद करके सात साल तक रखता हो, उस व्यक्ति को मैं कभी अच्छा नहीं कह सकता। जो लोग औरंगजेब की तारीफ कर रहे हैं उन्हें लगता है कि जो समाज में बंटवारा होगा उससे उन्हें फायदा होगा।
पूर्णिमा त्रिपाठी: औरंगजेब को लेकर जो भी कहा जा रहा है, फिल्म में जो दिखाया गया है वो ऐतिहासिक तथ्य है। इसे झुठलाया नहीं जा सकता है। इस समय जो फिल्म में दिखाया गया है उससे लोगों की भावनाएं उद्वेलित जरूर हुई हैं। यह तथ्य है कि औरंगजेब एक क्रूर शासक था। इसमें कोई शक नहीं है। उसका महिमामंडन आप नहीं कर सकते हैं। मुझे लगता है कि हर पार्टी को, हर नेता को इसका ध्यान रखना चाहिए कि ऐसे घाव नहीं कुरेदे जाएं, जिससे लोगों की भावनाएं आहत होती हैं।
राकेश शुक्ल: औरंगजेब हिंदुओं के मन में एक डर का प्रतीक है। इसलिए उसकी तारीफ करके उस डर को बताने की कोशिश है। महाराष्ट्र में आज भी छत्रपति शिवाजी महाराज पूजे जाते हैं। सवाल इस बात का है कि मराठा और मुगलों के बीच क्या रिश्ता रहा है।
अजय सेठिया: पिछले 50-60 साल तक जो इतिहास हमे पढ़ाया जाता था वो कितना सही था कितना गलत था इस पर 1991 के बाद काफी शोध हुए हैं। बंटवारे के बाद भारत में जो मुस्लिम रह गए वो वही मुस्लिम थे तो जड़ नहीं थे। ऐसे समय में भारत के मुस्लिमों को चाहे वो किसी पार्टी में हों उनके दिमाग में एक ही बात है। इस तरह की चीजें समाज को तोड़ेंगी।
अवधेश कुमार: भारत में जितने भी आक्रांता आए उनका उद्देश्य इस्लाम का प्रसार करना और उससे इतर किसी भी चीज को ध्वस्त करना था। अगर अंग्रेजों के हम गुलाम थे तो जो आक्रांता आए उनको क्या कहा जाएगा। आलमगीर नामा और मासरे आलमगीरी में बताया गया है कि कैसे औरंगजेब ने सोमनाथ मंदिर को तुड़वाया, कैसे उसने गैर इस्लामिक वेशभूषा वाले मुसलमानों को भी उसने सजा दी। औरंगजेब ने अपने बेटे को कहा था कि मैंने इतने पाप किए हैं कि मेरी मौत के बाद मुझे छांव तक नहीं मिले।
विनोद अग्निहोत्री: छावा फिल्म शिवाजी सावंत के उपन्यास पर आधारित है। इतिहास में कई क्रूर शासक रहे हैं उनमें औरंगजेब एक है। सत्ता के लिए इस तरह के षड़यंत्र होते रहे हैं। कैसे सत्ता के अहंकार में इस तरह के कृत्य किए जाते थे। अबु आजमी विवादों के लिए ही जाने जाते हैं। देश में इस तरह के कई नेता है जो इस तरह के बयान देते रहे हैं जिस पर विवाद होता है। इस मामले के पीछे राजनीति को समझना होगा। दरअसल, जल्द ही बीएमसी के चुनाव होने हैं। इसी को ध्यान में रखकर हर दल इसे भुनाने की कोशिश कर रहा है
Trending Videos
विज्ञापन
विज्ञापन
रामकृपाल सिंह: इतिहास के गड़े मुर्दे उखाड़ कर ले आना विशुद्ध रूप से राजनीतिक मजबूरी है। यह सिर्फ इस बात की कोशिश है कि जो चला गया वो तो गया, जो बचा हुआ है उसे सहेजकर रखें। किसी भी चीज की कसौटी मानवीयता होती है। जो अपने भाई दारा शिकोह का गला काट देता है, जो अपने पिता को कैद करके सात साल तक रखता हो, उस व्यक्ति को मैं कभी अच्छा नहीं कह सकता। जो लोग औरंगजेब की तारीफ कर रहे हैं उन्हें लगता है कि जो समाज में बंटवारा होगा उससे उन्हें फायदा होगा।
पूर्णिमा त्रिपाठी: औरंगजेब को लेकर जो भी कहा जा रहा है, फिल्म में जो दिखाया गया है वो ऐतिहासिक तथ्य है। इसे झुठलाया नहीं जा सकता है। इस समय जो फिल्म में दिखाया गया है उससे लोगों की भावनाएं उद्वेलित जरूर हुई हैं। यह तथ्य है कि औरंगजेब एक क्रूर शासक था। इसमें कोई शक नहीं है। उसका महिमामंडन आप नहीं कर सकते हैं। मुझे लगता है कि हर पार्टी को, हर नेता को इसका ध्यान रखना चाहिए कि ऐसे घाव नहीं कुरेदे जाएं, जिससे लोगों की भावनाएं आहत होती हैं।
राकेश शुक्ल: औरंगजेब हिंदुओं के मन में एक डर का प्रतीक है। इसलिए उसकी तारीफ करके उस डर को बताने की कोशिश है। महाराष्ट्र में आज भी छत्रपति शिवाजी महाराज पूजे जाते हैं। सवाल इस बात का है कि मराठा और मुगलों के बीच क्या रिश्ता रहा है।
अजय सेठिया: पिछले 50-60 साल तक जो इतिहास हमे पढ़ाया जाता था वो कितना सही था कितना गलत था इस पर 1991 के बाद काफी शोध हुए हैं। बंटवारे के बाद भारत में जो मुस्लिम रह गए वो वही मुस्लिम थे तो जड़ नहीं थे। ऐसे समय में भारत के मुस्लिमों को चाहे वो किसी पार्टी में हों उनके दिमाग में एक ही बात है। इस तरह की चीजें समाज को तोड़ेंगी।
अवधेश कुमार: भारत में जितने भी आक्रांता आए उनका उद्देश्य इस्लाम का प्रसार करना और उससे इतर किसी भी चीज को ध्वस्त करना था। अगर अंग्रेजों के हम गुलाम थे तो जो आक्रांता आए उनको क्या कहा जाएगा। आलमगीर नामा और मासरे आलमगीरी में बताया गया है कि कैसे औरंगजेब ने सोमनाथ मंदिर को तुड़वाया, कैसे उसने गैर इस्लामिक वेशभूषा वाले मुसलमानों को भी उसने सजा दी। औरंगजेब ने अपने बेटे को कहा था कि मैंने इतने पाप किए हैं कि मेरी मौत के बाद मुझे छांव तक नहीं मिले।
विनोद अग्निहोत्री: छावा फिल्म शिवाजी सावंत के उपन्यास पर आधारित है। इतिहास में कई क्रूर शासक रहे हैं उनमें औरंगजेब एक है। सत्ता के लिए इस तरह के षड़यंत्र होते रहे हैं। कैसे सत्ता के अहंकार में इस तरह के कृत्य किए जाते थे। अबु आजमी विवादों के लिए ही जाने जाते हैं। देश में इस तरह के कई नेता है जो इस तरह के बयान देते रहे हैं जिस पर विवाद होता है। इस मामले के पीछे राजनीति को समझना होगा। दरअसल, जल्द ही बीएमसी के चुनाव होने हैं। इसी को ध्यान में रखकर हर दल इसे भुनाने की कोशिश कर रहा है