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'भारत रत्न' तक कैसे पहुंचा नागरिकता संशोधन बिल का विरोध? जानिए सबकुछ

Shilpa Thakur Shilpa Thakur
Updated Tue, 12 Feb 2019 04:29 PM IST
सार
  • एनडीए के सहयोगी दल भी कर रहे हैं बिल का विरोध।
  • बिल के तहत 31 दिसंबर, 2014 तक भारत आ चुके लोगों को ही 11 साल के बजाय 6 साल तक देश में रहने पर नागरिकता दी जाएगी।
  • इस बिल के माध्यम से सरकार अवैध घुसपैठियों की परिभाषा की फिर से व्याख्या करना चाहती है।
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Know all about citizenship amendment bill and its link with bharat ratna
नागरिकता संशोधन बिल का विरोध - फोटो : PTI

विस्तार
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नागरिकता संशोधन बिल के विरोध की आग अब मशहूर गायक भूपेन हजारिका को मरणोपरांत मिले देश से सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न तक पहुंच गई है। भूपेन हजारिका के बेटे तेज हजारिका ने पिता को मिले इस सर्वोच्च सम्मान को लेने से मना कर दिया है। वहीं दूसरी ओर हजारिका के भाई समर हजारिका और भाभी मनीषा का कहना है कि भारत रत्न का अपमान नहीं किया जाना चाहिए। बता दें केंद्र सरकार ने 25 जनवरी को भूपेन हजारिका, पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और समाजसेवी नानाजी देशमुख को इस साल का भारत रत्न अवार्ड देने की घोषणा की थी।



देश के पूर्वोत्तर राज्यों में इस बिल का काफी विरोध हो रहा है। वहीं सरकार राज्यसभा में इस बिल को पास कराने लिए प्रतिबद्ध है। ये बिल लोकसभा में 8 जनवरी को पास कराया गया था। केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने नागरिकता संशोधन बिल मंगलवार को राज्यसभा में पेश किया। 


इस बिल का सदन से पारित होना मुश्किल माना जा रहा है क्योंकि यहां एनडीए को बहुमत नहीं है। साथ ही शिवसेना और जदयू जैसे सहयोगी दल भी इसका विरोध कर रहे हैं। बिल के विरोध में 9 फरवरी को मणिपुर और 11 फरवरी को नागालैंड में बंद बुलाया गया था।

क्या कहा भूपेन हजारिका के बेटे ने?

असमिया गायक भूपेन हजारिका के बेटे तेज हजारिका ने एक फेसबुक पोस्ट के जरिए स्पष्ट किया है कि कई पत्रकार मुझसे पूछ रहे हैं कि मैं अपने पिता को दिए गए भारत रत्न को स्वीकार करूंगा या नहीं? लेकिन अभी तक केंद्र सरकार की तरफ से न्योता नहीं मिला है तो भारत रत्न लौटाने का सवाल ही नहीं उठता।

बता दें कि इससे पहले रिपोर्ट्स में दावा किया गया था कि भूपेन हजारिका के बेटे तेज ने नागरिकता संशोधन बिल के विरोध में पिता को मिलने वाले भारत रत्न अवार्ड को लेने से मना कर दिया था। इसके अलावा उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने इस सम्मान को देने में जिस तरह की जल्दबाजी दिखाई है और जो समय चुना है वह और कुछ नहीं केवल लोकप्रियता का फायदा उठाने का रास्ता है।

आपके लिए- इस बिल के लागू होने से पूर्वोत्तर जैसे राज्यों की जनसंख्या कई गुना बढ़ जाएगी। वहां के लोगों का विरोध इसलिए भी ठीक है क्योंकि बेशक गैर मुस्लिम उन्हीं के धर्म वाले हैं लेकिन इनके रहने का तौर तरीका मुस्लिम देशों जैसा ही है।


उन्होंने एक न्यूज चैनल से बातचीत में कहा कि सरकार ने सम्मान देने के लिए जो समय चुना है वह कई सवाल खड़े कर रहा है। ऐसे में जब नागरिकता बिल के विरोध में पूर्वोत्तर के लोग सड़कों पर हैं तो उनके हीरो को भारत रत्न देना बड़े सवाल खड़े करता है। 

जानकारी के लिए बता दें इस बिल के विरोध में मणिपुर के मशहूर फिल्म निर्माता अरिबाम श्याम शर्मा ने भी 3 फरवरी को बिल के विरोध में पद्मश्री वापस लौटाने का ऐलान किया है। उन्हें साल 2006 में ये पुरस्कार मिला था। 83 वर्षीय फिल्म निर्माता और म्यूजिक कंपोजर अरिबाम की कई फिल्मों को नेशनल फिल्म अवॉर्ड से भी सम्मानित किया जा चुका है। 

क्या है नागरिकता संशोधन विधेयक?

नागरिकता संशोधन बिल के तहत 31 दिसंबर, 2014 तक भारत आ चुके लोगों को ही 11 साल के बजाय 6 साल तक देश में रहने पर नागरिकता दी जाएगी। ऐसे में बांग्लादेशियों की ज्यादा संख्या को इसका लाभ होने की बात मानी ही नहीं जा सकती। इस बिल के माध्यम से सरकार अवैध घुसपैठियों की परिभाषा की फिर से व्याख्या करना चाहती है।

नागरिकता बिल 1955 में संशोधन के बाद नया बिल पकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के हिंदू, पारसी, सिख, जैन, बौद्ध और ईसाई धर्म के अल्पसंख्यक शरणार्थियों को धार्मिक आधार पर भारत की नागरिकता देता है। 

असम के लोग इस नए बिल को अपने लिए खतरा मानते है और उनके मुताबिक यह असम संधि के खिलाफ है, जिसके मुताबिक 24 मार्च 1971 के बाद प्रदेश में आने वाला विदेशी नागरिक माना जाएगा। हालांकि इस बिल में पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में उत्पीड़न का शिकार मुस्लिम अल्पसंख्यकों (शिया और अहमदिया) को नागरिकता देने का प्रावधान नहीं है

वहीं नागरिकता अधिनियम 1955 के अनुसार वैध पासपोर्ट के बिना या फर्जी दस्तावेज के जरिए भारत में घुसने वाले लोग अवैध घुसपैठिए की श्रेणी में आते हैं। 

31 हजार लोगों को होगा फायदा?

पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए 31 हजार प्रवासियों को संशोधित नागरिकता विधेयक से तुरंत लाभ मिलेगा। ये वो लोग हैं, जो इन तीन देशों के अल्पसंख्यक हैं और भारत में धार्मिक उत्पीड़न से बचने के लिए रह रहे हैं। ये लोग भारत में लॉन्ग टर्म वीजा पर रह रहे हैं और भारत की नागरिकता पाने के लिए आवेदन कर चुके हैं। 

जेपीसी रिपोर्ट के मुताबिक खुफिया विभाग ने समिति के समक्ष अपने बयान में कहा है कि तीन देशों से धार्मिक उत्पीड़न के कारण भारत में आकर बसे 31,313 प्रवासियों को नागरिकता बिल में हुए संशोधन से तुरंत लाभ मिलेगा। हालांकि विभाग ने ये भी कहा कि जो लोग इस बात का दावा नहीं कर पाए कि वह भारत में धार्मिक उत्पीड़न के कारण बसे हैं, उनके लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं।

आईबी डायरेक्टर ने पैनल से कहा था कि, "भविष्य में किए गए किसी भी दावे की जांच की जाएगी, रॉ के माध्यम से भी, कोई भी फैसला (नागरिकता देना) लेने से पहले जांच होगी।" इसके साथ ही उन्होंने इशारा करते हुए बताया कि  31,313 प्रवासियों (जो लॉन्ग टर्म वीजा पर रहे हैं) की जांच दोबारा भी की जा सकती है।

PM Modi
PM Modi

क्या है पीएम मोदी का कहना?

इस मामले पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 3 फरवरी को जम्मू के विजयपुर में एक रैली के दौरान कहा था कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में मां भारती की ऐसी अनेक संताने हैं जिन पर अत्याचार हुआ है। वो लोग कभी हमारे गणतंत्र का हिस्सा थे, हम अविभाजित भारत (1947 से पहले) के ऐसे अपने भाइयों की रक्षा, उनके लिए न्याय और उनके नागरिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं।

एनआरसी के साथ नागरिकता बिल कैसे?

नागरिकता संशोधन विधेयक 2016 केवल गैर मुस्लिमों को ही भारतीय नागरिकता देने की बात करता है जबकि एनआरसी (राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर) के तहत 24 मार्च, 1971 से भारत में अवैध रूप से रह रहे सभी धर्म के लोगों को सामने लाकर उन्हें वापस उनके देश भेजना है। अगर ये बिल पास हो जाता है तो मुस्लिमों को छोड़कर किसी अन्य धर्म के लिए एनआरसी का कोई मतलब नहीं रह जाएगा। इस बिल के पास होने से भारत में रह रहे सभी गैर-मुस्लिम नागरिकता के लिए योग्य हो जाएंगे।

एनडीए के सहयोगी भी कर रहे विरोध

पूर्वोत्तर में एनडीए के सहयोगी दल भी इस बिल का विरोध कर रहे हैं। इसका पहला कारण है कि ये लोग इस बिल को अपनी सासंकृतिक, सामाजिक और भाषाई पहचान के साथ खिलवाड़ समझते हैं। इन्हीं सब के लिए ये लोग लंबे समय से संघर्ष करते आए हैं।

इसके पीछे का दूसरा कारण है कि नागरिकता संशोधन बिल 2016 के आने के बाद एनआरसी के तहत चिन्हित अवैध शरणार्थी और घुसपैठिए संबंधी अपडेट के कोई मायने नहीं रहेंगे। इस विरोध का एक कारण है कि यह बिल धर्म के आधार पर नागरिकता प्रदान करता है जबकि एनआरसी एक निश्चित समय सीमा के बाद से भारत में अवैध तौर पर रह रहे सभी अवैध घुसपैठियों की पहचान कर वापस भेजने की बात करता है।

आपके लिए- आबादी बढ़ने से राज्यों को कई दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा। इन लोगों के रहने के लिए जगह की व्यवस्था तो एक मुद्दा होगा ही, साथ ही इनके लिए शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं का खर्चा भी बढ़ेगा। जिससे सरकार पर अधिक बोझ आ जाएगा। माना जा रहा है कि बिल के पास होने के बाद बड़ी संख्या में प्रवासियों को नागरिकता मिल जाएगी। 

पूर्वोत्तर में भारी विरोध

बिल के खिलाफ जनता दल यूनाइटेड समेत भाजपा के सात सहयोगी दल और उत्तर-पूर्व के 10 पार्टियों हैं। इन दस पार्टियों में से असम गण परिषद्, नागा पीपल्स फ्रंट (एनपीएफ) भाजपा के सहयोगी रह चुके हैं तो खनाम का भाजपा शासित मेघालय में प्रभाव है। एजीपी और एनपीएफ ने सभी पार्टियों के बैठक में कहा कि उनका प्रयास होगा कि केंद्र का नागरिकता बिल राज्यसभा में गिर जाए।

उत्तर-पूर्व के पार्टियों की बैठक में भाजपा के कई सहयोगी शामिल हुए थे। इनमें मिजोरम का मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ), एनपीपी, यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी, हिल स्टेट पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी,  मेघालय का पीपल्स डेमोक्रेटिक फ्रंट, नागालैंड का नेशनल डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी और त्रिपुरा का स्वदेशी पीपल्स फ्रंट शामिल थीं।

मेघालय के मुख्यमंत्री कोनार्ड संगमा इस बिल का विरोध करने वाले शुरूआती लोगों में शामिल हैं। उन्होंने कहा कि सभी पार्टियां अपने-अपने राज्यों में विरोध कर रही थीं। हमने उन्हें साथ आकर एक आवाज में बात उठाने को कहा है। कोनार्ड की एनपीपी और भाजपा ने पिछले साल मिलकर मेघालय में सरकार बनाई थी। मीटिंग में दो प्रस्ताव पास हुए, पहला कि अगर यह बिल राजयसभा में पास हो गया तो एक प्रतिनिधि मंडल राष्ट्रपति से मुलाकात करेगा और प्रधानमंत्री से भी इस मुद्दे पर चर्चा करेगा। दूसरा सभी पार्टियां एक कमेटी बनाएगी जो इस बिल के खिलाफ जनभावना को एक करेगी।

मिजोरम के मुख्यमंत्री और मिजो नेशनल फ्रंट के मुखिया जोरमथांगा ने कहा था कि यह बिल हमारे लिए खतरनाक और हानिकारक है। उन्होंने भाजपा के साथ अपने गठबंधन को लेकर भी चेतावनी दी। एजीपी प्रमुख अतुल बोरा ने सभी परियों के इस बैठक को ऐतिहासिक करार दिया। असम गण परिषद् ने लोकसभा में बिल पास होने के बाद भाजपा से गठबंधन तोड़ लिया था। 

क्यों अड़ी है भाजपा?

भाजपा ने एनआरसी के जरिए ये जताने की कोशिश की है कि राज्य में अवैध घुसपैठियों की समस्या से जुड़े उसके वादों को लेकर वह काफी गंभीर है। सरकार के इस कदम को काफी समर्थन भी मिला। पीएम मोदी और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह मुस्लिम घुसपैठियों को देश की सुरक्षा के लिए खतरा बताते रहे हैं और इस मुद्दे को भावनात्मक रूप भी देने की कोशिश हुई है।

वहीं दूसरी ओर 2014 के घोषणापत्र में भाजपा ने सत्ता में आने पर पाकिस्तान जैसे देशों में उत्पीड़न का शिकार होकर भारत आने वाले हिंदू शरणार्थियों को नागरिकता देने का वादा किया था जो अभी तक पूरा नहीं हो पाया है। पूर्वोत्तर में लोकसभा की 25 सीटें हैं। भाजपा दूसरे राज्यों में होने वाले नुकसान की भरपाई इन सीटों से करना चाहती है। लेकिन सरकार के इस कदम को धक्का लग सकता है क्योंकि इस बिल का विरोध कर रहे अधिकतर क्षेत्रीय दल अपने-अपने राज्यों में भाजपा के साथ मिलकर सरकार चला रहे हैं।

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