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Parliament Monsoon Session: मानसून सत्र में लोकसभा के 84 घंटे हुए बर्बाद, चर्चा से ज्यादा शोरगुल में बीता समय
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: पवन पांडेय
Updated Thu, 21 Aug 2025 05:33 PM IST
सार
Parliament Monsoon Session: मानसून सत्र में सरकार ने अपने कई अहम विधेयक पास कराए, लेकिन विपक्ष और सरकार के बीच खींचतान के कारण लोकसभा का बहुत सा समय बर्बाद हो गया। इससे न सिर्फ संसदीय कार्य प्रभावित हुए, बल्कि जनता के मुद्दों पर होने वाली गंभीर चर्चाएं भी न हो सकीं।
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लोकसभा की कार्यवाही
- फोटो : ANI
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विस्तार
लोकसभा का मानसून सत्र गुरुवार को समाप्त हो गया। यह सत्र बार-बार हंगामे और जबरन स्थगन की वजह से चर्चा से ज्यादा शोरगुल में बीता। लोकसभा सचिवालय के अनुसार, कुल 21 बैठकों वाले इस एक माह लंबे सत्र में 84 घंटे से अधिक का समय बर्बाद हुआ। यह 18वीं लोकसभा के इतिहास में अब तक का सबसे अधिक समय है जो हंगामे के कारण व्यर्थ गया।
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120 घंटे की योजना, केवल 37 घंटे हुए काम
मानसून सत्र की शुरुआत 21 जुलाई को हुई थी। इस पहले सभी दलों ने तय किया था कि कुल 120 घंटे चर्चा और कामकाज के लिए दिए जाएंगे। वहीं व्यापार सलाहकार समिति ने भी इस पर सहमति जताई थी। लेकिन, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने बताया कि लगातार गतिरोध और योजनाबद्ध हंगामों के कारण, सिर्फ 37 घंटे 7 मिनट ही प्रभावी कामकाज हो पाया।
सरकार का कामकाज आगे बढ़ा, विपक्ष पीछे
इसके बावजूद, सरकार ने इस छोटे समय में 14 विधेयक पेश किए और 12 महत्वपूर्ण कानून पास कराए। इनमें ऑनलाइन गेमिंग को बढ़ावा और नियमन विधेयक, 2025 और खनिज और खनन (विकास और विनियमन) संशोधन विधेयक, 2025 के साथ-साथ राष्ट्रीय खेल शासन विधेयक, 2025 प्रमुख हैं। वहीं संसदीय कार्य मंत्री किरण रिजिजू ने कहा कि यह सत्र सरकार और देश के लिए सफल और फलदायी रहा, लेकिन विपक्ष के लिए असफल और नुकसानदायक साबित हुआ।
विवादित विधेयक और विपक्ष का हंगामा
सबसे ज्यादा विवाद 20 अगस्त को हुआ जब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने तीन अहम विधेयक पेश किए। इन विधेयकों में यह प्रावधान है कि यदि प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या मंत्री 30 दिन तक गंभीर आपराधिक आरोपों में जेल में रहते हैं, तो उन्हें पद से हटाया जा सकता है। इस प्रस्ताव पर विपक्ष ने तीखा विरोध किया और सदन में तीखी नोकझोंक हुई। जहां सरकार के विधेयक आगे बढ़े, वहीं निजी सदस्यों के बिलों पर बिल्कुल भी चर्चा नहीं हुई। न तो कोई पेश किया गया, न ही किसी पर बहस हुई और न ही कोई पारित हुआ।
यह भी पढ़ें - Assam: असम सरकार का बड़ा फैसला, 18 साल से ऊपर वालों को नहीं मिलेगा नया आधार कार्ड; जानें क्यों लिया गया निर्णय
प्रश्नकाल और समितियों का काम
इस सत्र में 537 मुद्दे नियम 377 के तहत उठाए गए। इनमें कई महत्वपूर्ण सार्वजनिक मुद्दे शामिल थे। लेकिन, 61 नोटिस जो सार्वजनिक महत्व के मुद्दों पर चर्चा के लिए दिए गए थे, उनमें से एक भी स्वीकार नहीं हुआ। संसदीय समितियां सक्रिय रहीं और उन्होंने कुल 124 रिपोर्टें पेश कीं, जिनमें 89 विभागीय स्थायी समितियों की और 18 वित्तीय समितियों की थीं। मंत्रियों ने सदन में 53 बयान दिए। प्रश्नकाल के दौरान 419 तारांकित प्रश्न स्वीकार हुए, लेकिन उनमें से सिर्फ 55 का ही मौखिक उत्तर दिया गया। वहीं 4,829 बिना तारांकित प्रश्न स्वीकार किए गए।
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120 घंटे की योजना, केवल 37 घंटे हुए काम
मानसून सत्र की शुरुआत 21 जुलाई को हुई थी। इस पहले सभी दलों ने तय किया था कि कुल 120 घंटे चर्चा और कामकाज के लिए दिए जाएंगे। वहीं व्यापार सलाहकार समिति ने भी इस पर सहमति जताई थी। लेकिन, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने बताया कि लगातार गतिरोध और योजनाबद्ध हंगामों के कारण, सिर्फ 37 घंटे 7 मिनट ही प्रभावी कामकाज हो पाया।
सरकार का कामकाज आगे बढ़ा, विपक्ष पीछे
इसके बावजूद, सरकार ने इस छोटे समय में 14 विधेयक पेश किए और 12 महत्वपूर्ण कानून पास कराए। इनमें ऑनलाइन गेमिंग को बढ़ावा और नियमन विधेयक, 2025 और खनिज और खनन (विकास और विनियमन) संशोधन विधेयक, 2025 के साथ-साथ राष्ट्रीय खेल शासन विधेयक, 2025 प्रमुख हैं। वहीं संसदीय कार्य मंत्री किरण रिजिजू ने कहा कि यह सत्र सरकार और देश के लिए सफल और फलदायी रहा, लेकिन विपक्ष के लिए असफल और नुकसानदायक साबित हुआ।
विवादित विधेयक और विपक्ष का हंगामा
सबसे ज्यादा विवाद 20 अगस्त को हुआ जब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने तीन अहम विधेयक पेश किए। इन विधेयकों में यह प्रावधान है कि यदि प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या मंत्री 30 दिन तक गंभीर आपराधिक आरोपों में जेल में रहते हैं, तो उन्हें पद से हटाया जा सकता है। इस प्रस्ताव पर विपक्ष ने तीखा विरोध किया और सदन में तीखी नोकझोंक हुई। जहां सरकार के विधेयक आगे बढ़े, वहीं निजी सदस्यों के बिलों पर बिल्कुल भी चर्चा नहीं हुई। न तो कोई पेश किया गया, न ही किसी पर बहस हुई और न ही कोई पारित हुआ।
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प्रश्नकाल और समितियों का काम
इस सत्र में 537 मुद्दे नियम 377 के तहत उठाए गए। इनमें कई महत्वपूर्ण सार्वजनिक मुद्दे शामिल थे। लेकिन, 61 नोटिस जो सार्वजनिक महत्व के मुद्दों पर चर्चा के लिए दिए गए थे, उनमें से एक भी स्वीकार नहीं हुआ। संसदीय समितियां सक्रिय रहीं और उन्होंने कुल 124 रिपोर्टें पेश कीं, जिनमें 89 विभागीय स्थायी समितियों की और 18 वित्तीय समितियों की थीं। मंत्रियों ने सदन में 53 बयान दिए। प्रश्नकाल के दौरान 419 तारांकित प्रश्न स्वीकार हुए, लेकिन उनमें से सिर्फ 55 का ही मौखिक उत्तर दिया गया। वहीं 4,829 बिना तारांकित प्रश्न स्वीकार किए गए।
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