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Maharashtra: क्या हैं जिलों के प्रभारी मंत्री पद, जिन्हें लेकर महायुति में तनाव, डिप्टी CM शिंदे क्यों नाराज?
स्पेशल डेस्क, अमर उजाला
Published by: कीर्तिवर्धन मिश्र
Updated Wed, 22 Jan 2025 11:30 AM IST
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सार
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महाराष्ट्र
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अमर उजाला
विस्तार
महाराष्ट्र में महायुति गठबंधन ने साथ में चुनाव लड़कर बंपर बहुमत हासिल किया है। हालांकि, कई अंदरूनी मुद्दों पर भाजपा, शिवसेना और राकांपा का यह गठबंधन अंदरूनी कलह से जूझता दिखा है। फिर चाहे वह महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री पद को लेकर उभरा तनाव हो या मंत्री पद के बंटवारे पर सामने आए मतभेद। तीनों ही दलों को इन मुद्दों पर आमने-सामने देखा गया। हालांकि, इन पार्टियों के नेतृत्व ने बाद में आपसी सामंजस्य से विवादों को दूर कर लिया। हालांकि, अब एक बार फिर महायुति में मतभेद सामने आया है। इस बार मसला है जिलों के प्रभारी मंत्री पदों के बंटवारे का।ऐसे में यह जानना अहम है कि आखिर महाराष्ट्र में जिलों के प्रभारी मंत्री, जिसे पालकमंत्री भी कहा जाता है, वह पद है क्या? इसे लेकर हालिया घटनाक्रम क्या हुआ? डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे की नाराजगी की खबरें क्यों आ रही हैं और खुद उन्होंने इसे लेकर क्या कहा है? इसके अलावा इस पद का इतिहास क्या रहा है? आइये जानते हैं...
1. पहले जानें- क्या है महाराष्ट्र में प्रभारी मंत्री का पद?
भारत में हर राज्य में जब शासन के लिए सरकार का गठन होता है, तो एक मंत्री परिषद का भी गठन किया जाता है। इसे कैबिनेट कहा जाता है और यही मंत्री परिषद राज्यों के सारे मामले देखता है। हालांकि, महाराष्ट्र में एक साधारण मंत्री परिषद के अलावा जिलों के प्रभारी मंत्रियों (जिन्हें प्रभारी मंत्री भी कहते हैं) की भी नियुक्ति की जाती है। यह प्रभारी मंत्री अलग-अलग जिलों के कामकाज की निगरानी के लिए नियुक्त किए जाते हैं और इनकी अपने जिलों के प्रति अलग से जिम्मेदारी तय होती है।
यानी अगर किसी नेता को किसी जिले का प्रभारी मंत्री बनाया जाता है, तो उसकी यह जिम्मेदारी मंत्री परिषद में उसको दी गई जिम्मेदारी से अलग और अतिरिक्त होती है। महाराष्ट्र में जिलों के प्रभारी मंत्रियों का पद कैबिनेट स्तर के बराबर का पद होता है और इनकी नियुक्ति भी सत्तासीन सरकार ही करती है।
भारत में हर राज्य में जब शासन के लिए सरकार का गठन होता है, तो एक मंत्री परिषद का भी गठन किया जाता है। इसे कैबिनेट कहा जाता है और यही मंत्री परिषद राज्यों के सारे मामले देखता है। हालांकि, महाराष्ट्र में एक साधारण मंत्री परिषद के अलावा जिलों के प्रभारी मंत्रियों (जिन्हें प्रभारी मंत्री भी कहते हैं) की भी नियुक्ति की जाती है। यह प्रभारी मंत्री अलग-अलग जिलों के कामकाज की निगरानी के लिए नियुक्त किए जाते हैं और इनकी अपने जिलों के प्रति अलग से जिम्मेदारी तय होती है।
यानी अगर किसी नेता को किसी जिले का प्रभारी मंत्री बनाया जाता है, तो उसकी यह जिम्मेदारी मंत्री परिषद में उसको दी गई जिम्मेदारी से अलग और अतिरिक्त होती है। महाराष्ट्र में जिलों के प्रभारी मंत्रियों का पद कैबिनेट स्तर के बराबर का पद होता है और इनकी नियुक्ति भी सत्तासीन सरकार ही करती है।
2. क्या होता है प्रभारी मंत्रियों का काम, इनकी जरूरत क्यों?
गौरतलब है कि जिले में किसी प्रभारी मंत्री का काम, उस जिले के जिला मजिस्ट्रेट या अन्य किसी अधिकारी और विधायक से अलग होता है। किसी जिले का प्रभारी मंत्री उस जिले में योजनाओं के लागू होने से लेकर अलग-अलग विभागों में समन्वय बनाने, जिले के विकास को सुनिश्चित करने का भी काम करता है। उन्हें जिले के प्रशासन की निगरानी और इसे निर्देशानुसार चलाने की जिम्मेदारी दी जाती है। एक तरह से समझा जाए तो इस पद को बनाया ही इसलिए गया, ताकि किसी मंत्री को जिले के विकास के लिए भी जिम्मेदार बनाया जा सके।
प्रभारी मंत्री जिले की योजना समिति के पदेन अध्यक्ष भी होते हैं। यानी पालक मंत्रियों के पास जिलों में योजनाएं लागू कराने के लिए स्थानीय प्रशासन और निर्वाचित प्रतिनिधियों के साथ समन्वय बनाने की भी जिम्मेदारी होती है। यह जिला योजना समिति (डीपीसी) पंचायतों और नगरपालिकाओं में आम हित के मामलों के लिए योजनाओं को बनाने का काम करती है। फिर चाहे वह पानी से जुड़ा मसला हो या सीवेज निपटान या क्षेत्र नियोजन का काम। प्रभारी मंत्री इन सब चीजों में निगरानी के लिए जिम्मेदार होता है।
गौरतलब है कि जिले में किसी प्रभारी मंत्री का काम, उस जिले के जिला मजिस्ट्रेट या अन्य किसी अधिकारी और विधायक से अलग होता है। किसी जिले का प्रभारी मंत्री उस जिले में योजनाओं के लागू होने से लेकर अलग-अलग विभागों में समन्वय बनाने, जिले के विकास को सुनिश्चित करने का भी काम करता है। उन्हें जिले के प्रशासन की निगरानी और इसे निर्देशानुसार चलाने की जिम्मेदारी दी जाती है। एक तरह से समझा जाए तो इस पद को बनाया ही इसलिए गया, ताकि किसी मंत्री को जिले के विकास के लिए भी जिम्मेदार बनाया जा सके।
प्रभारी मंत्री जिले की योजना समिति के पदेन अध्यक्ष भी होते हैं। यानी पालक मंत्रियों के पास जिलों में योजनाएं लागू कराने के लिए स्थानीय प्रशासन और निर्वाचित प्रतिनिधियों के साथ समन्वय बनाने की भी जिम्मेदारी होती है। यह जिला योजना समिति (डीपीसी) पंचायतों और नगरपालिकाओं में आम हित के मामलों के लिए योजनाओं को बनाने का काम करती है। फिर चाहे वह पानी से जुड़ा मसला हो या सीवेज निपटान या क्षेत्र नियोजन का काम। प्रभारी मंत्री इन सब चीजों में निगरानी के लिए जिम्मेदार होता है।
प्रभारी मंत्री अपने जिम्मेदारी वाले जिलों में बड़ी परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण, राजमार्गों-हवाई अड्डों, औद्योगिक क्षेत्रों के लिए निर्माण योजनाओं का भी हिस्सा होता है। वे जिले में अपने अधिकार का इस्तेमाल करते हुए स्थानीय निकायों के बजट की निगरानी भी कर सकते हैं। ये गार्डियन मिनिस्टर हर तीन महीने में बजट खर्च की समीक्षा करते हैं और केंद्र, राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन के बीच एक पुल की तरह काम करते हैं। आपात स्थितियों में जिलों के प्रभारी मंत्री स्थानीय प्रशासन का नेतृत्व भी कर सकते हैं।
महाराष्ट्र में प्रभारी मंत्री का पद अपने आप में कितना जिम्मेदारी भरा है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पुणे में इन मंत्रियों की अलग से भी जिम्मेदारियां तय हैं। यहां प्रभारी मंत्री अलंदी और देहू से पंढरपुर की सालाना तीर्थयात्रा में व्यवस्थाओं के लिए भी जिम्मेदार होता है। वह गणेश चतुर्थी के आयोजन में तैयारियों की निगरानी का जिम्मा भी संभालता है।
महाराष्ट्र में जिले के प्रभारी मंत्री का पद अधिकतर उन कैबिनेट मंत्रियों को ही सौंपा जाता है, जो उस जिले से ही चुनकर आए हों। हालांकि, कई बार ऐसी स्थिति नहीं होती। ऐसे में मुख्यमंत्री किसी भी कैबिनेट मंत्री को उस जिले की जिम्मेदारी सौंप सकते हैं। इसके अलावा एक ही मंत्री कई जिलों का प्रभारी मंत्री हो सकता है।
महाराष्ट्र में प्रभारी मंत्री का पद अपने आप में कितना जिम्मेदारी भरा है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पुणे में इन मंत्रियों की अलग से भी जिम्मेदारियां तय हैं। यहां प्रभारी मंत्री अलंदी और देहू से पंढरपुर की सालाना तीर्थयात्रा में व्यवस्थाओं के लिए भी जिम्मेदार होता है। वह गणेश चतुर्थी के आयोजन में तैयारियों की निगरानी का जिम्मा भी संभालता है।
महाराष्ट्र में जिले के प्रभारी मंत्री का पद अधिकतर उन कैबिनेट मंत्रियों को ही सौंपा जाता है, जो उस जिले से ही चुनकर आए हों। हालांकि, कई बार ऐसी स्थिति नहीं होती। ऐसे में मुख्यमंत्री किसी भी कैबिनेट मंत्री को उस जिले की जिम्मेदारी सौंप सकते हैं। इसके अलावा एक ही मंत्री कई जिलों का प्रभारी मंत्री हो सकता है।
नासिक जिले को लेकर तनाव क्यों?
दूसरी तरफ विधानसभा चुनाव के बाद नासिक के प्रभार को लेकर भी राकांपा के माणिकराव कोकटे और शिंदे शिवसेना के दादा भुसे के बीच प्रतिद्वंद्विता देखी गई थी। कोकते ने इस जिले को राकांपा को देने की मांग के पीछे तर्क दिया था कि पार्टी के सात विधायक इसी जिले से आते हैं। दोनों पार्टियों में इस विवाद को देखते हुए सीएम फडणवीस ने जिले का प्रभार भाजपा की ओर से मंत्री गिरीश महाजन को दे दिया। इस फैसले से शिवसेना नाराज बताई गई है। राकांपा ने अब तक यह जिला हाथ से जाने पर बयान नहीं दिया है, लेकिन वह भी इस फैसले से नाखुश मानी जा रही है।
दूसरी तरफ विधानसभा चुनाव के बाद नासिक के प्रभार को लेकर भी राकांपा के माणिकराव कोकटे और शिंदे शिवसेना के दादा भुसे के बीच प्रतिद्वंद्विता देखी गई थी। कोकते ने इस जिले को राकांपा को देने की मांग के पीछे तर्क दिया था कि पार्टी के सात विधायक इसी जिले से आते हैं। दोनों पार्टियों में इस विवाद को देखते हुए सीएम फडणवीस ने जिले का प्रभार भाजपा की ओर से मंत्री गिरीश महाजन को दे दिया। इस फैसले से शिवसेना नाराज बताई गई है। राकांपा ने अब तक यह जिला हाथ से जाने पर बयान नहीं दिया है, लेकिन वह भी इस फैसले से नाखुश मानी जा रही है।
महायुति में किस बात पर उभरा है ताजा विवाद?
महाराष्ट्र में कैबिनेट मंत्री की तरह ही जिलों के प्रभारी मंत्री के पद को लेकर प्रतियोगिता रहती है। कई जिलों के लिए तो यह मुकाबला काफी कड़ा हो जाता है। ताजा विवाद भी पालकमंत्रियों की नियुक्ति को लेकर ही है। दरअसल, दो दिन पहले ही महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने राज्य के 36 जिलों के पालक मंत्रियों की घोषणा कर दी थी। इस बार विवाद मुख्यतः दो जिलों में नियुक्ति पर केंद्रित है। यह जिले हैं रायगढ़ और नासिक।
दरअसल, महाराष्ट्र सरकार ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की अदिति तटकरे को रायगढ़ और भाजपा के गिरीश महाजन को नासिक जिले का प्रभारी मंत्री नियुक्त किया। हालांकि, करीब एक दिन बाद ही सरकार ने इस फैसले को वापस ले लिया। रिपोर्ट्स की मानें तो इसकी वजह डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे की नाराजगी बताई जा रही है, जो कि अपनी पार्टी से मंत्री भरत गोगावले और दादाजी भुसे को इन जिलों के प्रभारी मंत्री के तौर पर चाहते थे। बताया जाता है कि प्रभारी मंत्रियों की लिस्ट जाने के ठीक बाद ही एकनाथ शिंदे सतारा में अपने पैतृक गांव पहुंच गए।
महाराष्ट्र में कैबिनेट मंत्री की तरह ही जिलों के प्रभारी मंत्री के पद को लेकर प्रतियोगिता रहती है। कई जिलों के लिए तो यह मुकाबला काफी कड़ा हो जाता है। ताजा विवाद भी पालकमंत्रियों की नियुक्ति को लेकर ही है। दरअसल, दो दिन पहले ही महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने राज्य के 36 जिलों के पालक मंत्रियों की घोषणा कर दी थी। इस बार विवाद मुख्यतः दो जिलों में नियुक्ति पर केंद्रित है। यह जिले हैं रायगढ़ और नासिक।
दरअसल, महाराष्ट्र सरकार ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की अदिति तटकरे को रायगढ़ और भाजपा के गिरीश महाजन को नासिक जिले का प्रभारी मंत्री नियुक्त किया। हालांकि, करीब एक दिन बाद ही सरकार ने इस फैसले को वापस ले लिया। रिपोर्ट्स की मानें तो इसकी वजह डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे की नाराजगी बताई जा रही है, जो कि अपनी पार्टी से मंत्री भरत गोगावले और दादाजी भुसे को इन जिलों के प्रभारी मंत्री के तौर पर चाहते थे। बताया जाता है कि प्रभारी मंत्रियों की लिस्ट जाने के ठीक बाद ही एकनाथ शिंदे सतारा में अपने पैतृक गांव पहुंच गए।
रायगढ़ जिले को लेकर विवाद की वजह क्या?
बता दें कि रायगढ़ और नासिक को लेकर महायुति में तनाव कोई नया नहीं है। इससे पहले महाराष्ट्र में जब नई सरकार का गठन हुआ था, तब भी इन दोनों जिलों के प्रभारी मंत्रियों के नाम पर चर्चाओं का बाजार गर्म था। दरअसल, महाराष्ट्र सरकार राकांपा की अदिति तटकरे को ही प्रभारी मंत्री बनाने का मन बना चुकी थी। लेकिन शिवसेना के मंत्री भरत गोगावले ने कहा था कि रायगढ़ से सरकार में तीन मंत्री हैं। इसलिए यह जिला शिवसेना को ही मिलना चाहिए।
बता दें कि रायगढ़ और नासिक को लेकर महायुति में तनाव कोई नया नहीं है। इससे पहले महाराष्ट्र में जब नई सरकार का गठन हुआ था, तब भी इन दोनों जिलों के प्रभारी मंत्रियों के नाम पर चर्चाओं का बाजार गर्म था। दरअसल, महाराष्ट्र सरकार राकांपा की अदिति तटकरे को ही प्रभारी मंत्री बनाने का मन बना चुकी थी। लेकिन शिवसेना के मंत्री भरत गोगावले ने कहा था कि रायगढ़ से सरकार में तीन मंत्री हैं। इसलिए यह जिला शिवसेना को ही मिलना चाहिए।
गढ़चिरौली जिले को लेकर भी नाराजगी की खबरें
महाराष्ट्र सीएम देवेंद्र फडणवीस ने नक्सल प्रभावित गढ़चिरौली के लिए खुद को प्रभारी मंत्री घोषित किया है, जबकि शिवसेना के आशीष जायसवाल को इसी जिले का संयुक्त प्रभारी मंत्री बनाया। बताया जाता है कि जब एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री थे, तत वह गढ़चिरौली का प्रभार चाहते थे, हालांकि उन्हें यह पद नहीं दिया गया था। ऐसे में इस जिले को लेकर भी महायुति में नाराजगी की बातें सामने आई हैं।
महाराष्ट्र सीएम देवेंद्र फडणवीस ने नक्सल प्रभावित गढ़चिरौली के लिए खुद को प्रभारी मंत्री घोषित किया है, जबकि शिवसेना के आशीष जायसवाल को इसी जिले का संयुक्त प्रभारी मंत्री बनाया। बताया जाता है कि जब एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री थे, तत वह गढ़चिरौली का प्रभार चाहते थे, हालांकि उन्हें यह पद नहीं दिया गया था। ऐसे में इस जिले को लेकर भी महायुति में नाराजगी की बातें सामने आई हैं।
डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे
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अमर उजाला
शिवसेना-राकांपा के दबाव में रोकी गई नियुक्तियां?
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने महायुति की साथी पार्टियों के बीच जिलों के बंटवारे को लेकर उठे तनाव के बाद रायगढ़ और नासिक में नियुक्तियों को टाल दिया था। सियासी गलियारों में जारी चर्चाओं में यह बात सामने आई है कि फडणवीस ने यह कदम एकनाथ शिंदे के कहने पर उठाया।
इस बीच शिंदे ने खुद अपनी नाराजगी की अटकलों को खारिज किया है।
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने महायुति की साथी पार्टियों के बीच जिलों के बंटवारे को लेकर उठे तनाव के बाद रायगढ़ और नासिक में नियुक्तियों को टाल दिया था। सियासी गलियारों में जारी चर्चाओं में यह बात सामने आई है कि फडणवीस ने यह कदम एकनाथ शिंदे के कहने पर उठाया।
इस बीच शिंदे ने खुद अपनी नाराजगी की अटकलों को खारिज किया है।
हालांकि, जब उनसे रायगढ़ और नासिक जिलों के प्रभारी मंत्रियों को लेकर सवाल किया गया तो शिंदे ने कहा कि यह मामले सुलझा लिए जाएंगे। रायगढ़ जिले पर भरत गोगावले के बयान पर उन्होंने कहा कि किसी भी मंत्री की तरफ से दावा किए जाने में कुछ गलत नहीं है। गोगावले ने रायगढ़ में कई साल तक काम किया है। इसलिए उनकी मांग गलत नहीं है। हम इसका हल निकाल लेंगे। मैं मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री अजित पवार से बात करुंगा।