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महाराष्ट्र: इलाज के लिए सात किलोमीटर पैदल चली गर्भवती आदिवासी महिला, लू लगने से हुई मौत

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, मुंबई Published by: निर्मल कांत Updated Mon, 15 May 2023 04:36 PM IST
सार

पालघर जिले में एक गांव से प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) जाने और फिर घर लौटने के लिए सात किलोमीटर पैदल चलने के बाद एक गर्भवती आदिवासी महिला की लू लगने से मौत हो गई। 

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Maharashtra Pregnant woman dies of sunstroke after walking for seven km in summer heat
woman death, महिला मौत - फोटो : सांकेतिक फोटो
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महाराष्ट्र के पालघर जिले में एक गांव से प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) जाने और फिर घर लौटने के लिए सात किलोमीटर पैदल चलने के बाद एक गर्भवती आदिवासी महिला की लू लगने से मौत हो गई। 

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पालघर जिले के सिविल सर्जन डॉ. संजय बोडादे ने बताया कि यह घटना शुक्रवार को उस समय हुई जब दहानु तालुका के ओसार वीरा गांव की सोनाली वाघट (21 वर्षीय) चिलचिलाती धूप में 3.5 किलोमीटर पैदल चलकर पास के एक राजमार्ग पर पहुंची, जहां से वह ऑटो रिक्शा से तवा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) पहुंचीं क्योंकि उनकी तबीयत ठीक नहीं थी। उन्होंने बताया कि महिला गर्भावस्था के नौवें महीने में थी। उसका इलाज पीएचसी में किया गया और घर भेज दिया गया। उन्होंने बताया कि भीषण गर्मी के बीच वह फिर से राजमार्ग से घर वापस आने के लिए 3.5 किलोमीटर तक पैदल चली।
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अधिकारी ने बताया कि बाद में शाम को उसे स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतें हुईं और वह धुंडलवाड़ी पीएचसी गईं, जहां से उन्हें कासा उप-संभागीय अस्पताल (एसडीएच) रेफर कर दिया गया। उन्होंने बताया कि डॉक्टरों ने उसका इलाज किया क्योंकि उसका तापमान अधिक था और उसे आगे के इलाज के लिए डहाणू के धुंधलवाड़ी स्थित एक विशेष अस्पताल में रेफर कर दिया, जहां वह 'सेमी-कोमोर्बिड' स्थिति में पाई गई। डॉक्टर ने बताया कि एंबुलेंस में रास्ते में उसकी मौत हो गई।

अधिकारी ने बताया कि गर्म मौसम में जब महिला सात किलोमीटर तक पैदल चली तो उसकी हालत बिगड़ गई और लू लगने से उसकी मौत हो गई। डॉ बोडादे ने कहा कि उन्होंने पीएचसी और एसडीएच का दौरा किया और घटना की विस्तृत जांच की।

सोमवार सुबह कासा एसडीएच में मौजूद पालघर जिला परिषद के अध्यक्ष प्रकाश निकम ने  बताया कि महिला को खून की कमी थी और एक आशा (मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता) कार्यकर्ता उसे एसडीएच में लेकर आई थी। उन्होंने कहा कि वहां डॉक्टरों ने उसकी जांच की और उसे दवाइयां दीं, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।

उन्होंने कहा कि कासा एसडीएच में आपात स्थिति में ऐसे मरीजों के इलाज के लिए गहन चिकित्सा इकाई (आईसीयू) और विशेषज्ञ डॉक्टर नहीं हैं। उन्होंने कहा, अगर ये सुविधाएं होतीं तो आदिवासी महिला की जान बचाई जा सकती थी। निकम ने कहा कि वह इस मुद्दे को उचित स्तर पर उठाएंगे और सुनिश्चित करेंगे कि ऐसी घटनाएं दोबारा न हों।

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