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चिंताजनक: बच्चों के हाथ में मोबाइल बन सकते हैं यौन शोषण की वजह, बड़ों की डिजिटल लाइफ भी हो सकती है तबाह
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: जलज मिश्रा
Updated Tue, 28 Nov 2023 05:20 AM IST
सार
2022 में इंटरनेट पर बच्चों की आपत्तिजनक सामग्री के 20 लाख मामले गूगल ने अमेरिका के लापता व शोषित बच्चों के राष्ट्रीय केंद्र को दर्ज करवाए हैं। मेटा ने भी 20 लाख से करीब मामले दर्ज करवाए हैं। अन्य डिजिटल कंपनियां भी ऐसी ही सूचनाएं दे रही हैं।
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मोबाइल
- फोटो : सोशल मीडिया
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विस्तार
ऑस्ट्रेलिया में रहने वाली जेनिफर वॉटकिन्स को यूट्यूब से संदेश मिला कि उनका चैनल बंद किया जाएगा। उन्होंने कोई यूट्यूब चैनल नहीं बनाया था, इसलिए संदेश अनदेखा किया। सच्चाई यह थी कि उनका एक चैनल था। उनके 7 साल के जुड़वां बच्चे टैबलेट पर उन्हीं के गूगल अकाउंट से लॉग-इन कर यूट्यूब पर बच्चों की सामग्री देखते थे व अपने डांस के वीडियो अपलोड करते रहे थे।
जेनिफर के एक बेटे ने एक स्कूली सहपाठी से मिली चुनौती के बाद खुद बिना कपड़ों के यह वीडियो बनाकर अपलोड किया था। गूगल की आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तकनीक आधारित रिव्यू प्रणाली ने यह वीडियो चंद मिनटों में पकड़ा और डिलीट कर दिया। ऐसे वीडियो गलत लोगों तक पहुंच जाएं तो बच्चे के यौन शोषण की वजह बन सकते हैं। इन्हें अपलोड करने के गंभीर परिणाम भी होते हैं, जो जेनिफर ने भुगते। उनके न केवल यूट्यूब, बल्कि गूगल, मेल, फोटो और जी-मेल से जुड़े कई एप अकाउंट भी बंद हो गए। गूगल से संपर्क करने और काफी प्रयासों के बाद जेनिफर को आखिरकार उनका अकाउंट वापस मिला। इस घटना ने बताया कि 5-6 साल के बच्चों के हाथों में मोबाइल फोन उन्हें खतरे में डाल सकते हैं।
गलत हाथों में जा सकती है सामग्री
स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय में अध्ययनकर्ता डेव विल्नर के अनुसार अगर आपत्तिजनक तस्वीरें या वीडियो गलती से अपलोड हुए भी हैं, तब भी उन पर कार्रवाई न करने से यह सामग्री गलत हाथों में पड़ सकती है। कई बाल यौन शोषण करने वाले ऐसी सामग्री का संग्रह बनाते हैं। उन्हें नग्न बच्चों की तस्वीरें देखनी होती है, यह बेहद खतरनाक होता है। नई डीपफेक तकनीक के दौर में यह और भी खतरनाक बात है।
गूगल के पास बचाव प्रणाली लेकिन हमेशा काम नहीं आएगी
गूगल की एआई आधारित रिव्यू प्रणाली हर मिनट अपलोड हो रहे सैकड़ों घंटों के वीडियो रिव्यू करती है। उसका एल्गोरिदम ऐसी तस्वीरें और वीडियो पहचानने के लिए काफी वर्षों में तैयार किया गया है। इसे वह अन्य कंपनियों जैसे मेटा व टिकटॉक को भी उपलब्ध करवा रहा है लेकिन विशेषज्ञों के अनुसार इसमें अगर कोई वीडियो छूट जाए तो इसके बच्चों का शोषण करने वालों के हाथ पड़ने और दुरुपयोग के खतरे हमेशा होते हैं।
गूगल ने 20 लाख मामले दर्ज किए
2022 में इंटरनेट पर बच्चों की आपत्तिजनक सामग्री के 20 लाख मामले गूगल ने अमेरिका के लापता व शोषित बच्चों के राष्ट्रीय केंद्र को दर्ज करवाए हैं। मेटा ने भी 20 लाख से करीब मामले दर्ज करवाए हैं। अन्य डिजिटल कंपनियां भी ऐसी ही सूचनाएं दे रही हैं। हालांकि विशेषज्ञों के अनुसार वास्तविक मामले कहीं अधिक हो सकते हैं। एपल ने इसी साल जारी बयान में कहा था कि यह यूजर्स की निजता और सुरक्षा का मुद्दा है। इसमें बेवजह सभी लोगों को नहीं घसीटना चाहिए।
सबक
जेनिफर मामले से सबसे बड़ा सबक यही मिला कि अभिभावक अपने बच्चों को फोन या टैबलेट दें, तो सुनिश्चित करें कि कम से कम उनके गूगल अकाउंट पर बच्चे इंटरनेट गतिविधियां न करें। इसके बजाय गेस्ट लॉग इन का विकल्प अपना सकते हैं।
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जेनिफर के एक बेटे ने एक स्कूली सहपाठी से मिली चुनौती के बाद खुद बिना कपड़ों के यह वीडियो बनाकर अपलोड किया था। गूगल की आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तकनीक आधारित रिव्यू प्रणाली ने यह वीडियो चंद मिनटों में पकड़ा और डिलीट कर दिया। ऐसे वीडियो गलत लोगों तक पहुंच जाएं तो बच्चे के यौन शोषण की वजह बन सकते हैं। इन्हें अपलोड करने के गंभीर परिणाम भी होते हैं, जो जेनिफर ने भुगते। उनके न केवल यूट्यूब, बल्कि गूगल, मेल, फोटो और जी-मेल से जुड़े कई एप अकाउंट भी बंद हो गए। गूगल से संपर्क करने और काफी प्रयासों के बाद जेनिफर को आखिरकार उनका अकाउंट वापस मिला। इस घटना ने बताया कि 5-6 साल के बच्चों के हाथों में मोबाइल फोन उन्हें खतरे में डाल सकते हैं।
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गलत हाथों में जा सकती है सामग्री
स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय में अध्ययनकर्ता डेव विल्नर के अनुसार अगर आपत्तिजनक तस्वीरें या वीडियो गलती से अपलोड हुए भी हैं, तब भी उन पर कार्रवाई न करने से यह सामग्री गलत हाथों में पड़ सकती है। कई बाल यौन शोषण करने वाले ऐसी सामग्री का संग्रह बनाते हैं। उन्हें नग्न बच्चों की तस्वीरें देखनी होती है, यह बेहद खतरनाक होता है। नई डीपफेक तकनीक के दौर में यह और भी खतरनाक बात है।
गूगल के पास बचाव प्रणाली लेकिन हमेशा काम नहीं आएगी
गूगल की एआई आधारित रिव्यू प्रणाली हर मिनट अपलोड हो रहे सैकड़ों घंटों के वीडियो रिव्यू करती है। उसका एल्गोरिदम ऐसी तस्वीरें और वीडियो पहचानने के लिए काफी वर्षों में तैयार किया गया है। इसे वह अन्य कंपनियों जैसे मेटा व टिकटॉक को भी उपलब्ध करवा रहा है लेकिन विशेषज्ञों के अनुसार इसमें अगर कोई वीडियो छूट जाए तो इसके बच्चों का शोषण करने वालों के हाथ पड़ने और दुरुपयोग के खतरे हमेशा होते हैं।
गूगल ने 20 लाख मामले दर्ज किए
2022 में इंटरनेट पर बच्चों की आपत्तिजनक सामग्री के 20 लाख मामले गूगल ने अमेरिका के लापता व शोषित बच्चों के राष्ट्रीय केंद्र को दर्ज करवाए हैं। मेटा ने भी 20 लाख से करीब मामले दर्ज करवाए हैं। अन्य डिजिटल कंपनियां भी ऐसी ही सूचनाएं दे रही हैं। हालांकि विशेषज्ञों के अनुसार वास्तविक मामले कहीं अधिक हो सकते हैं। एपल ने इसी साल जारी बयान में कहा था कि यह यूजर्स की निजता और सुरक्षा का मुद्दा है। इसमें बेवजह सभी लोगों को नहीं घसीटना चाहिए।
सबक
जेनिफर मामले से सबसे बड़ा सबक यही मिला कि अभिभावक अपने बच्चों को फोन या टैबलेट दें, तो सुनिश्चित करें कि कम से कम उनके गूगल अकाउंट पर बच्चे इंटरनेट गतिविधियां न करें। इसके बजाय गेस्ट लॉग इन का विकल्प अपना सकते हैं।