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MP Samwad 2025: 'अध्यात्म के लिए बुढ़ापे का इंतजार न करें, सफलता का मतलब खुशी'; 'संवाद' में बोले अमोघ लीला दास
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: राहुल कुमार
Updated Thu, 26 Jun 2025 04:20 PM IST
सार
MP Samwad 2025: जाने माने मोटिवेशनल स्पीकर अमोघ लीला दास ने मध्य प्रदेश में हो रहे अमर उजाला के संवाद कार्यक्रम में हिस्सा लिया। कार्यक्रम में अमोघ लीला दास ने सार्थक जीवन की राह और इंसान के लिए सफलता के अलग-अलग मायनों पर चर्चा की। उन्होंने जीवन के लक्ष्यों को लेकर भी बातचीत की। उन्होंने सफलता, खुशी और अध्यात्म से जुड़ने के सही समय का भी उल्लेख किया।
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संवाद के मंच पर अमोघ लीला दास
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
Amar Ujala Samwad: 'अमर उजाला संवाद' मध्य प्रदेश में मोटिवेशनल स्पीकर अमोघ लीला दास ने इंसान के जीवन में सफलता को लेकर अलग-अलग नजरियों पर बातचीत की। उन्होंने ऐसे विषयों पर बात की जिनसे सार्थक जीवन की राह निकलती है। उन्होंने संवाद में शिरकत करने वाले लोगों से बात की और कहा कि सबके जीवन में एक कॉमन लक्ष्य है, और वह है खुशी। सब अपने जीवन में खुश होना चाहते हैं। अमोघ लीला दास ने कहा कि जीवन में लोग खुश होने के लिए अलग-अलग काम करते हैं। लोग शॉपिंग करते हैं। यहां तक कि आत्महत्या करने वाले लोग भी कहते हैं कि उन्हें ऐसा करने से खुशी मिलती है।
कुछ लोगों को आत्महत्या करने के ख्याल से खुशी मिलने का भ्रम...
अमोघ लीला दास ने संवाद के दौरान कहा कि सभी लोग अपने जीवन में खुश रहना चाहते हैं। इसका मतलब है कि हम सब अपने जीवन में खुश रहने के लिए ही अधिकांश काम करते हैं। उन्होंने बताया, एक शख्स ने उनसे कहा कि वह मरना चाहता है। इस पर उन्होंने उसे बताया कि 40 हजार बिच्छू एक साथ काट रहे हों, मरते समय इस तरह की पीड़ा होती है। इस पर उस शख्स ने कहा कि अभी उसका जीवन ऐसा है, मानो 80 हजार बिच्छू डंक मार रहे हों। जीवन में बहुत से भ्रम हैं, दोराहे और असमंजस के बीच संघर्ष से अच्छा है कि मर जाऊं। ऐसा करने पर केवल 40 हजार ही बचेंगे। मरकर खुशी मिलेगी।
ये भी पढ़ें- MP Samwad 2025: 'पांच लाख वृक्ष लगाने के बाद ही करूंगी रामलला के दर्शन'; 'संवाद' के मंच से बोलीं शिप्रा पाठक
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कुछ लोगों को आत्महत्या करने के ख्याल से खुशी मिलने का भ्रम...
अमोघ लीला दास ने संवाद के दौरान कहा कि सभी लोग अपने जीवन में खुश रहना चाहते हैं। इसका मतलब है कि हम सब अपने जीवन में खुश रहने के लिए ही अधिकांश काम करते हैं। उन्होंने बताया, एक शख्स ने उनसे कहा कि वह मरना चाहता है। इस पर उन्होंने उसे बताया कि 40 हजार बिच्छू एक साथ काट रहे हों, मरते समय इस तरह की पीड़ा होती है। इस पर उस शख्स ने कहा कि अभी उसका जीवन ऐसा है, मानो 80 हजार बिच्छू डंक मार रहे हों। जीवन में बहुत से भ्रम हैं, दोराहे और असमंजस के बीच संघर्ष से अच्छा है कि मर जाऊं। ऐसा करने पर केवल 40 हजार ही बचेंगे। मरकर खुशी मिलेगी।
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संवाद के मंच पर अमोघ लीला दास
- फोटो : अमर उजाला
असली सफलता का मतलब- क्या आप अपने जीवन में खुश हैं?
इंसान के जीवन में खुशी के मायने को लेकर अमोघ लीला दास ने पूछा, सब लोग खुश रहना चाहते हैं। इसका मतलब केवल यही है कि असली सफलता का मतलब है- आप अपने जीवन में खुश हैं या नहीं। उन्होंने एक और सवाल पूछा- क्या शारीरिक या भौतिक सुख को खुशी कहा जा सकता है? क्या वाकई फिजिकल कंफर्ट से खुशी होती है? इस पर अमोघ लीला दास ने कहा, एक अर्थ में देखने पर ऐसा लग सकता है। आरामदेह कुर्सी, लग्जरी गाड़ी, इसमें साउंड सिस्टम कमाल का हो, हवाएं चल रही हों... इनसे भी खुशी मिल सकती है, लेकिन क्या वाकई ऐसा होता है? कई ऐसे लोग भी हैं जिनके पास ताकत, पैसा, पद, आरामदेह जीवन सबकुछ है, लेकिन ये सबकुछ होने के बावजूद लोग जीवन में खुश नहीं हैं। कई ऐसे लोग हैं, जिनके पास इन सबमें कुछ नहीं होने पर भी वे बेहद खुश हैं। इसका मतलब है कि खुशी का भौतिक चीजों के साथ कोई रिश्ता नहीं होता।
अपने कॉलेज के दिनों को याद कर खुशी और सफलता के मायने बताए
अक्सर युवाओं को सार्थक उदाहरण देकर प्रेरित करने को लेकर चर्चा में रहने वाले अमोघ लीला दास ने अपने कॉलेज के दिनों को याद कर किस्सा सुनाया। उन्होंने कहा, कॉलेज के दिनों में कंप्यूटर इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान एक सेमेस्टर की पढ़ाई के दौरान उनके सामने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) का विकल्प आया। उन्हें डर था कि फाइनल ईयर में एआई का विकल्प है, अगर सफल नहीं हुए तो चार साल की पढ़ाई पांच साल की हो जाएगी। अपने दोस्त के साथ कॉलेज के कैफेटेरिया में लंच कर रहा था। वहां का छोला-भटूरा बेहद लजीज था। इसके साथ वे कोल्ड ड्रिंक भी पी रहे थे। इसी समय एक और दोस्त चीखता हुआ आया कि रिजल्ट आ गया। उन्होंने पूछा कि एआई में क्लियर हुआ या नहीं, ये बताओ। उसने बताया कि पास हो गया है। उन्होंने उसी समय दोस्त का रिजल्ट पूछा, उसने हताशा में कहा कि तीन सब्जेक्ट में वह फेल हो गया है और बैक लग गया है।
इंसान के जीवन में खुशी के मायने को लेकर अमोघ लीला दास ने पूछा, सब लोग खुश रहना चाहते हैं। इसका मतलब केवल यही है कि असली सफलता का मतलब है- आप अपने जीवन में खुश हैं या नहीं। उन्होंने एक और सवाल पूछा- क्या शारीरिक या भौतिक सुख को खुशी कहा जा सकता है? क्या वाकई फिजिकल कंफर्ट से खुशी होती है? इस पर अमोघ लीला दास ने कहा, एक अर्थ में देखने पर ऐसा लग सकता है। आरामदेह कुर्सी, लग्जरी गाड़ी, इसमें साउंड सिस्टम कमाल का हो, हवाएं चल रही हों... इनसे भी खुशी मिल सकती है, लेकिन क्या वाकई ऐसा होता है? कई ऐसे लोग भी हैं जिनके पास ताकत, पैसा, पद, आरामदेह जीवन सबकुछ है, लेकिन ये सबकुछ होने के बावजूद लोग जीवन में खुश नहीं हैं। कई ऐसे लोग हैं, जिनके पास इन सबमें कुछ नहीं होने पर भी वे बेहद खुश हैं। इसका मतलब है कि खुशी का भौतिक चीजों के साथ कोई रिश्ता नहीं होता।
अपने कॉलेज के दिनों को याद कर खुशी और सफलता के मायने बताए
अक्सर युवाओं को सार्थक उदाहरण देकर प्रेरित करने को लेकर चर्चा में रहने वाले अमोघ लीला दास ने अपने कॉलेज के दिनों को याद कर किस्सा सुनाया। उन्होंने कहा, कॉलेज के दिनों में कंप्यूटर इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान एक सेमेस्टर की पढ़ाई के दौरान उनके सामने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) का विकल्प आया। उन्हें डर था कि फाइनल ईयर में एआई का विकल्प है, अगर सफल नहीं हुए तो चार साल की पढ़ाई पांच साल की हो जाएगी। अपने दोस्त के साथ कॉलेज के कैफेटेरिया में लंच कर रहा था। वहां का छोला-भटूरा बेहद लजीज था। इसके साथ वे कोल्ड ड्रिंक भी पी रहे थे। इसी समय एक और दोस्त चीखता हुआ आया कि रिजल्ट आ गया। उन्होंने पूछा कि एआई में क्लियर हुआ या नहीं, ये बताओ। उसने बताया कि पास हो गया है। उन्होंने उसी समय दोस्त का रिजल्ट पूछा, उसने हताशा में कहा कि तीन सब्जेक्ट में वह फेल हो गया है और बैक लग गया है।
अमर उजाला संवाद मध्य प्रदेश के मंच पर अमोघ लीला दास
- फोटो : अमर उजाला
दोस्त की हताशा... उसी समय क्रिस्पी छोले-भटूरे का नाश्ता; इनसे जीवन में क्या सीखा?
कॉलेज के दिनों में रिजल्ट को लेकर दोस्त की हताशा का उल्लेख करते हुए अमोघ लीला दास ने बताया कि कुछ ही समय पहले जब तक रिजल्ट नहीं आया था वे और उनके दोस्त क्रिस्पी छोले-भटूरे का नाश्ता एंजॉय कर रहे थे। रिजल्ट आने पर जैसे ही उसे पता लगा कि वह असफल हो गया है उसके लिए लजीज नाश्ते की खुशी बेमानी हो गई। दोस्त की हताशा देख जब उन्होंने पूछा कि इतना डरा हुआ क्यों है? इस पर दोस्त ने बताया कि उसके पिता जाट हैं। पिता ने कहा है कि अगर बीटेक की पढ़ाई समय से पूरी नहीं हुई तो गोली मार दूंगा। इस पर उसे सांत्वना देते हुए अमोघ लीला दास ने कहा, पिता डराते हैं, ऐसा होगा नहीं। लेकिन उनके दोस्त ने कहा कि सात बेटे हैं। एक को मारने से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ेगा। रिजल्ट के कारण वह वहां से चला गया। इस घटना से साफ है कि चीजों से हमेशा खुशियां मिलेंगी, ऐसा सोचना सही नहीं है। इसके साफ मायने हैं कि हर समय फिजिकल कंफर्ट का मतलब खुशी नहीं होता। सारा खेल मन का है।
हैप्पीनेस और क्वेस्ट फॉर हैप्पीनेस... तृष्णाओं में अधिक समय बिताते हैं हम लोग
इंसान के जीवन में खुशी के मायने को लेकर अमोघ लीला दास ने कहा, हम अक्सर खुशियों की तृष्णाओं में अपना अधिकांश समय गुजार देते हैं। इंसानी मानसिकता और आशावाद का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, हम अक्सर ये बात करते हैं कि हम होंगे कामयाब एक दिन... इसी तर्ज पर खुशियों का इंतजार भी चलता रहता है। एक दृष्टांत के हवाले से अमोघ लीला दास ने बताया, एक शख्स की मित्र भाग गई, वह उसकी तलाश में परेशान था। उसके दोस्त ने उसे खोजा और दोनों की शादी करा दी। कुछ दिनों बाद वह फिर से परेशान दिखा। इसका केवल एक ही मतलब है कि हैंकरिंग और लेमंटेशन एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। हम तृष्णाओं में समय बिताते हैं, लेकिन वह चीज मिल भी जाए तो उससे हम पूरी तरह संतुष्ट नहीं हो पाते।
क्या हैप्पीनेस का असली मतलब दुख को भूलना?
खुशी का मतलब क्या यही है कि हम अपने दुख को भूल गए? इस सवाल पर अमोघ लीला दास ने कहा, हमें सोचना चाहिए कि क्या शराब पीने वाले लोग सही मायने में खुश रहते हैं? क्या ऐसे लोगों को तात्कालिक खुशी का एहसास भी होता है? इन सवालों का उत्तर देने के लिए उन्होंने एक और दृष्टांत का इस्तेमाल किया। उन्होंने कहा, शिकार करने निकले एक शख्स के पीछे शेर आया। शिकारी के हाथ से बंदूक छूट गई। वह किसी तरह पेड़ पर चढ़ा। तभी दो चूहे जड़ों को कुतरने लगे। शख्स परेशान होने लगा। तभी उसके मुंह में शहद की बूंद गिरी। वह जहां था उसके ठीक ऊपर मधुमक्खी का छत्ता था, जिससे शहद टपक रहा था। उन्होंने पूछा कि क्या स्टोरी हैप्पी एंडिंग वाली है? इस पर अमोघ लीला दास ने अलग-अलग पहलुओं को स्पष्ट किया। एक ही परिस्थिति शेर के लिए हैप्पी एंडिंग हो सकती है, लेकिन इंसान के लिए नहीं। शहद की तरह कुछ छोटी खुशियां मिल सकती हैं, लेकिन केवल यही वास्तविकता नहीं है।
क्या दुख का नहीं होना ही सुख है?
इस सवाल पर अमोघ लीला दास ने कहा, हम अक्सर ऐसा मान लेते हैं कि जीवन में दुख का अनुपस्थित होना ही सुख है, लेकिन यह धारणा पूरी तरह सही नहीं है। उन्होंने उदाहरणों से समझाया। बकौल अमोघ लीला दास, सुख का अनुभव करने के लिए दुख का एहसास या अनुभव जरूरी है। उन्होंने कहा, मैंगो शेक का स्वाद लेने के लिए करेले के जूस का स्वाद लेना जरूरी नहीं है। अनुभव सस्ता शिक्षक है या महंगा? इस पर अमोघ लीला दास ने कहा, अनुभव से सस्ता शिक्षक है सुनकर सीखना। बच्चों के उदाहरण से समझाते हुए उन्होंने कहा कि बच्चे कई बार जिद करते हैं कि उन्हें महंगी कोचिंग के बाद ही कुछ चीजें समझ आएंगी, लेकिन कई बच्चे खुद की पढ़ाई पर भरोसा करते हैं और बीटेक की पढ़ाई में सफल होते हैं। ऐसे में समझदार लोग सुनकर सीखते हैं। कम समझदार लोग अनुभव से सीखते हैं। यही कारण है कि अधिकांश लोग बुढ़ापे में अध्यात्म की तरफ आते हैं।
अध्यात्म की तरफ रुझान को लेकर युवाओं का रवैया कैसा?
इस पहलू पर अमोघ लीला दास ने कहा, जो लोग जवान होते हैं उनकी धारणा ऐसा होती है कि अध्यात्म से जुड़ने का समय बुढ़ापे में आता है। अक्सर जवान लोग अपने माता-पिता को कहते हैं कि उन्हें मंदिर जाना चाहिए। वे उन्हें पहुंचाकर मॉल चले जाते हैं। माता-पिता से कहते हैं कि जब आपका समय हो जाए तो फोन पर मिस्ड कॉल देना हम पिक कर लेंगे। ऐसे लोग खुद बूढ़े होने पर मंदिर जाना शुरू करते हैं। फिर इनके बच्चे भी यही कहते हैं कि बूढ़े लोगों को पता नहीं है कि लाइफ कैसे एंजॉय करते हैं। ऐसे लोग सही रास्ते पर आते हैं लेकिन तब तक काफी देर हो जाती है। आदतें जीवन में मजबूत जड़ें जमा लेती हैं। पौधे के पेड़ बनने के बाद आदतें नहीं बदलतीं।
तीन बच्चों ने रिटायरमेंट पर पिता को उपहार दिए... अध्यात्म की तरफ कैसे
अपनी नौकरी के दिनों का जिक्र कर अमोघ लीला दास ने बताया, एक दिन सिगरेट पी रहे अंकल ने उनसे कहा, क्या बेटे जवानी में ही माला पकड़ ली। इस्कॉन वाले लोगों को भटका देते हैं। इस पर उन्होंने पूछा कि आपकी आयु कितनी है। उन्होंने बताया कि 55 साल। इस पर उन्होंने उन्हें ऑफर दिया कि आज से माला आपकी और सिगरेट वे पीएंगे, लेकिन वे राजी नहीं हुए। एक अन्य दृष्टांत सुनाते हुए अमोघ लीला दास ने बताया कि एक संपन्न परिवार के तीन बच्चों ने अपने माता-पिता को अलग-अलग चीजें दीं। विलासिता से भरी जिंदगी जीने वाले पिता की रिटायरमेंट पर पहले बच्चे ने बंगला गिफ्ट किया। आरामदेह जीवन के लिए दूसरे बच्चे ने लीमोजिन गाड़ी का उपहार दिया। तीसरे बच्चे ने अध्यात्म की तरफ रुझान हो, इस नीयत से एक तोता उपहार में दिया। साधु-संतों की मदद से तोते को भगवद्गीता के श्लोक याद कराए गए। बेटे ने कहा कि आप अध्याय और श्लोक के नंबर बताएं, तोता उसे सुनाएगा। पिता ने पहले बच्चे से कहा कि 50 कमरे का बंगला क्यों दिया। पैरों में दर्द रहता है। लग्जरी गाड़ी भी पिता को पसंद नहीं आई। तीसरे बच्चे से पिता ने कहा, तुम्हारा उपहार सबसे स्वादिष्ट था। वह उसे पकाकर खा गया।
अहमदाबाद विमान हादसे का भी जिक्र किया
बीते 12 जून को अहमदाबाद में क्रैश हुए एअर इंडिया विमान का उल्लेख करते हुए अमोघ लीला दास ने कहा कि मौत किसी भी समय आ सकती है। किसी को नहीं पता था कि अहमदाबाद से उड़ान भरने वाला विमान लंदन नहीं पहुंचेगा। कोरोना महामारी के समय भी न जाने कितने लोगों ने सिक्स पैक एब्स बना रखे थे, लेकिन कई लोगों को पीपीई किट्स में पैक कर अंतिम विदाई दी गई। बिजनेस टायकून भी ऐसा रवैया रखते हैं कि वे बिना अपॉइंटमेंट किसी से नहीं मिलते। मौत आने पर ऐसे लोगों की भी नहीं चलती। तमाम दृष्टांतों से यही सबक मिलता है कि हम मौत को टाल नहीं सकते। ऐसे में ये सोचना कि जिम्मेदारियां खत्म करने के बाद अध्यात्म से जुड़ेंगे, सही नहीं है। समझदार लोग दूसरे के अनुभवों को सुनकर सीखते हैं। अगर लोग ऐसा नहीं करते तो उन्हें अनुभव सिखाएगा जो कई बार महंगा होता है।
हम हर समय खुशी की तलाश में क्यों रहते हैं?
एक सवाल पर अमोघ लीला दास ने कहा, भौतिक चीजों में खुशी की तलाश करते रहना मृगतृष्णा जैसा है। उन्होंने कहा कि जीवन में नौकरी को लेकर भी लोगों का यही रवैया होता है। कई बार उन्हें लगता है कि प्रोमोशन मिलने से खुशी मिलेगी, लेकिन ऐसा होता नहीं है। इसलिए हम जिस समय जहां होते हैं, वहीं अपना बेस्ट देने का प्रयास करना चाहिए।
कॉलेज के दिनों में रिजल्ट को लेकर दोस्त की हताशा का उल्लेख करते हुए अमोघ लीला दास ने बताया कि कुछ ही समय पहले जब तक रिजल्ट नहीं आया था वे और उनके दोस्त क्रिस्पी छोले-भटूरे का नाश्ता एंजॉय कर रहे थे। रिजल्ट आने पर जैसे ही उसे पता लगा कि वह असफल हो गया है उसके लिए लजीज नाश्ते की खुशी बेमानी हो गई। दोस्त की हताशा देख जब उन्होंने पूछा कि इतना डरा हुआ क्यों है? इस पर दोस्त ने बताया कि उसके पिता जाट हैं। पिता ने कहा है कि अगर बीटेक की पढ़ाई समय से पूरी नहीं हुई तो गोली मार दूंगा। इस पर उसे सांत्वना देते हुए अमोघ लीला दास ने कहा, पिता डराते हैं, ऐसा होगा नहीं। लेकिन उनके दोस्त ने कहा कि सात बेटे हैं। एक को मारने से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ेगा। रिजल्ट के कारण वह वहां से चला गया। इस घटना से साफ है कि चीजों से हमेशा खुशियां मिलेंगी, ऐसा सोचना सही नहीं है। इसके साफ मायने हैं कि हर समय फिजिकल कंफर्ट का मतलब खुशी नहीं होता। सारा खेल मन का है।
हैप्पीनेस और क्वेस्ट फॉर हैप्पीनेस... तृष्णाओं में अधिक समय बिताते हैं हम लोग
इंसान के जीवन में खुशी के मायने को लेकर अमोघ लीला दास ने कहा, हम अक्सर खुशियों की तृष्णाओं में अपना अधिकांश समय गुजार देते हैं। इंसानी मानसिकता और आशावाद का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, हम अक्सर ये बात करते हैं कि हम होंगे कामयाब एक दिन... इसी तर्ज पर खुशियों का इंतजार भी चलता रहता है। एक दृष्टांत के हवाले से अमोघ लीला दास ने बताया, एक शख्स की मित्र भाग गई, वह उसकी तलाश में परेशान था। उसके दोस्त ने उसे खोजा और दोनों की शादी करा दी। कुछ दिनों बाद वह फिर से परेशान दिखा। इसका केवल एक ही मतलब है कि हैंकरिंग और लेमंटेशन एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। हम तृष्णाओं में समय बिताते हैं, लेकिन वह चीज मिल भी जाए तो उससे हम पूरी तरह संतुष्ट नहीं हो पाते।
क्या हैप्पीनेस का असली मतलब दुख को भूलना?
खुशी का मतलब क्या यही है कि हम अपने दुख को भूल गए? इस सवाल पर अमोघ लीला दास ने कहा, हमें सोचना चाहिए कि क्या शराब पीने वाले लोग सही मायने में खुश रहते हैं? क्या ऐसे लोगों को तात्कालिक खुशी का एहसास भी होता है? इन सवालों का उत्तर देने के लिए उन्होंने एक और दृष्टांत का इस्तेमाल किया। उन्होंने कहा, शिकार करने निकले एक शख्स के पीछे शेर आया। शिकारी के हाथ से बंदूक छूट गई। वह किसी तरह पेड़ पर चढ़ा। तभी दो चूहे जड़ों को कुतरने लगे। शख्स परेशान होने लगा। तभी उसके मुंह में शहद की बूंद गिरी। वह जहां था उसके ठीक ऊपर मधुमक्खी का छत्ता था, जिससे शहद टपक रहा था। उन्होंने पूछा कि क्या स्टोरी हैप्पी एंडिंग वाली है? इस पर अमोघ लीला दास ने अलग-अलग पहलुओं को स्पष्ट किया। एक ही परिस्थिति शेर के लिए हैप्पी एंडिंग हो सकती है, लेकिन इंसान के लिए नहीं। शहद की तरह कुछ छोटी खुशियां मिल सकती हैं, लेकिन केवल यही वास्तविकता नहीं है।
क्या दुख का नहीं होना ही सुख है?
इस सवाल पर अमोघ लीला दास ने कहा, हम अक्सर ऐसा मान लेते हैं कि जीवन में दुख का अनुपस्थित होना ही सुख है, लेकिन यह धारणा पूरी तरह सही नहीं है। उन्होंने उदाहरणों से समझाया। बकौल अमोघ लीला दास, सुख का अनुभव करने के लिए दुख का एहसास या अनुभव जरूरी है। उन्होंने कहा, मैंगो शेक का स्वाद लेने के लिए करेले के जूस का स्वाद लेना जरूरी नहीं है। अनुभव सस्ता शिक्षक है या महंगा? इस पर अमोघ लीला दास ने कहा, अनुभव से सस्ता शिक्षक है सुनकर सीखना। बच्चों के उदाहरण से समझाते हुए उन्होंने कहा कि बच्चे कई बार जिद करते हैं कि उन्हें महंगी कोचिंग के बाद ही कुछ चीजें समझ आएंगी, लेकिन कई बच्चे खुद की पढ़ाई पर भरोसा करते हैं और बीटेक की पढ़ाई में सफल होते हैं। ऐसे में समझदार लोग सुनकर सीखते हैं। कम समझदार लोग अनुभव से सीखते हैं। यही कारण है कि अधिकांश लोग बुढ़ापे में अध्यात्म की तरफ आते हैं।
अध्यात्म की तरफ रुझान को लेकर युवाओं का रवैया कैसा?
इस पहलू पर अमोघ लीला दास ने कहा, जो लोग जवान होते हैं उनकी धारणा ऐसा होती है कि अध्यात्म से जुड़ने का समय बुढ़ापे में आता है। अक्सर जवान लोग अपने माता-पिता को कहते हैं कि उन्हें मंदिर जाना चाहिए। वे उन्हें पहुंचाकर मॉल चले जाते हैं। माता-पिता से कहते हैं कि जब आपका समय हो जाए तो फोन पर मिस्ड कॉल देना हम पिक कर लेंगे। ऐसे लोग खुद बूढ़े होने पर मंदिर जाना शुरू करते हैं। फिर इनके बच्चे भी यही कहते हैं कि बूढ़े लोगों को पता नहीं है कि लाइफ कैसे एंजॉय करते हैं। ऐसे लोग सही रास्ते पर आते हैं लेकिन तब तक काफी देर हो जाती है। आदतें जीवन में मजबूत जड़ें जमा लेती हैं। पौधे के पेड़ बनने के बाद आदतें नहीं बदलतीं।
तीन बच्चों ने रिटायरमेंट पर पिता को उपहार दिए... अध्यात्म की तरफ कैसे
अपनी नौकरी के दिनों का जिक्र कर अमोघ लीला दास ने बताया, एक दिन सिगरेट पी रहे अंकल ने उनसे कहा, क्या बेटे जवानी में ही माला पकड़ ली। इस्कॉन वाले लोगों को भटका देते हैं। इस पर उन्होंने पूछा कि आपकी आयु कितनी है। उन्होंने बताया कि 55 साल। इस पर उन्होंने उन्हें ऑफर दिया कि आज से माला आपकी और सिगरेट वे पीएंगे, लेकिन वे राजी नहीं हुए। एक अन्य दृष्टांत सुनाते हुए अमोघ लीला दास ने बताया कि एक संपन्न परिवार के तीन बच्चों ने अपने माता-पिता को अलग-अलग चीजें दीं। विलासिता से भरी जिंदगी जीने वाले पिता की रिटायरमेंट पर पहले बच्चे ने बंगला गिफ्ट किया। आरामदेह जीवन के लिए दूसरे बच्चे ने लीमोजिन गाड़ी का उपहार दिया। तीसरे बच्चे ने अध्यात्म की तरफ रुझान हो, इस नीयत से एक तोता उपहार में दिया। साधु-संतों की मदद से तोते को भगवद्गीता के श्लोक याद कराए गए। बेटे ने कहा कि आप अध्याय और श्लोक के नंबर बताएं, तोता उसे सुनाएगा। पिता ने पहले बच्चे से कहा कि 50 कमरे का बंगला क्यों दिया। पैरों में दर्द रहता है। लग्जरी गाड़ी भी पिता को पसंद नहीं आई। तीसरे बच्चे से पिता ने कहा, तुम्हारा उपहार सबसे स्वादिष्ट था। वह उसे पकाकर खा गया।
अहमदाबाद विमान हादसे का भी जिक्र किया
बीते 12 जून को अहमदाबाद में क्रैश हुए एअर इंडिया विमान का उल्लेख करते हुए अमोघ लीला दास ने कहा कि मौत किसी भी समय आ सकती है। किसी को नहीं पता था कि अहमदाबाद से उड़ान भरने वाला विमान लंदन नहीं पहुंचेगा। कोरोना महामारी के समय भी न जाने कितने लोगों ने सिक्स पैक एब्स बना रखे थे, लेकिन कई लोगों को पीपीई किट्स में पैक कर अंतिम विदाई दी गई। बिजनेस टायकून भी ऐसा रवैया रखते हैं कि वे बिना अपॉइंटमेंट किसी से नहीं मिलते। मौत आने पर ऐसे लोगों की भी नहीं चलती। तमाम दृष्टांतों से यही सबक मिलता है कि हम मौत को टाल नहीं सकते। ऐसे में ये सोचना कि जिम्मेदारियां खत्म करने के बाद अध्यात्म से जुड़ेंगे, सही नहीं है। समझदार लोग दूसरे के अनुभवों को सुनकर सीखते हैं। अगर लोग ऐसा नहीं करते तो उन्हें अनुभव सिखाएगा जो कई बार महंगा होता है।
हम हर समय खुशी की तलाश में क्यों रहते हैं?
एक सवाल पर अमोघ लीला दास ने कहा, भौतिक चीजों में खुशी की तलाश करते रहना मृगतृष्णा जैसा है। उन्होंने कहा कि जीवन में नौकरी को लेकर भी लोगों का यही रवैया होता है। कई बार उन्हें लगता है कि प्रोमोशन मिलने से खुशी मिलेगी, लेकिन ऐसा होता नहीं है। इसलिए हम जिस समय जहां होते हैं, वहीं अपना बेस्ट देने का प्रयास करना चाहिए।
अध्यात्म से जुड़ने और वर्क लाइफ बैलेंस को लेकर एक युवा ने पूछा कि वे पढ़ाई के साथ-साथ भक्ति मार्ग पर कैसे आ सकते हैं। इस सवाल पर अमोघ लीला दास ने अपने कॉलेज के दिनों का अनुभव साझा किया। उन्होंने बताया कि बीटेक की पढ़ाई के दौरान वे सुबह-सुबह भगवान का नाम लेते थे। कॉलेज पहुंचने पर वे पढ़ाई करते थे, लाइब्रेरी, कंप्यूटर प्रोग्रामिंग सबकुछ चलता था। बस से जाते समय रास्ते में भगवतगीता पढ़ते थे। हरे कृष्ण की माला जपते थे। सबकुछ करते हुए अपनी ग्रैजुएशन में 83 फीसदी नंबर लाए। आप भी भक्ति और पढ़ाई एक साथ कर सकते हैं।
एक अन्य युवा ने पूछा कि वे हरेकृष्ण जाप के समय संघर्ष करता है? इस पर अमोघ लीला दास ने कहा, नाप जप करते समय नींद आती है। नींद पूरी करनी चाहिए। कीर्तन, ऊंची आवाज में मंत्र जाप जैसे विकल्प अपनाएं। वातावरण और माहौल का ध्यान रखना भी जरूरी है। हम क्यों कर रहे हैं? इसका जवाब तलाशना भी जरूरी है। इसके बाद मंत्रजाप से लाभ मिलेगा।
एक अन्य युवा ने पूछा कि वे हरेकृष्ण जाप के समय संघर्ष करता है? इस पर अमोघ लीला दास ने कहा, नाप जप करते समय नींद आती है। नींद पूरी करनी चाहिए। कीर्तन, ऊंची आवाज में मंत्र जाप जैसे विकल्प अपनाएं। वातावरण और माहौल का ध्यान रखना भी जरूरी है। हम क्यों कर रहे हैं? इसका जवाब तलाशना भी जरूरी है। इसके बाद मंत्रजाप से लाभ मिलेगा।
सुयश कुलश्रेष्ठ ने स्वामी प्रभुपाद से जुड़ा एक सवाल किया और वैश्विक अशांति की तरफ संकेत करते हुए पूछा कि दुनिया कब गीता के उपदेशों का अनुसरण करेगी। इस पर अमोघ लीला दास ने कहा, दुनिया में गुरु का काम केवल एक ही देश कर सकता है, वह भारत है। उन्होंने कहा, भा का अर्थ भगवतगीता का दिव्य ज्ञान है। रत का मतलब इसमें लीन रहना। हालांकि, दुर्भाग्य से भारत पो*र्न कंटेंट देखने में आज दुनिया में सबसे आगे है। यहां 89 फीसदी डाटा पो*र्नोग्राफी में यूज होता है। अमेरिका 85 फीसदी के साथ दूसरे नंबर पर है, जबकि ब्राजील 81-82 फीसदी के साथ तीसरे स्थान पर है। ऐसे में हमें गंभीरता से सोचना होगा। गूगल आज भारतीय लोगों पर हंस रहा है। हम अपना मजाक खुद बना रहे हैं। पहले लोग ऋषिकेश में अध्यात्मिक चेतना विकसित करने आते थे, लेकिन अब रिवर राफ्टिंग और शराब पीने के वाले लोग यहां जाते हैं। हैप्पीनेस इंडेक्स में भारत दुनिया में 127वें नंबर पर है। भारतीय संस्कृति पर गर्व नहीं करना इसका बड़ा कारण है। हमारी सोच ऐसी हो गई है। हम अमेरिका और पश्चिमी देशों की तरह बनना चाहते हैं, लेकिन कुछ भी कर लें, उनकी तरह बनना संभव नहीं है। हम बीच में फंस चुके हैं। हमारी हालत 'धोबी का कुत्ता, न घर का न घाट का' वाले मुहावरे जैसी हो गई है। यही कारण है कि हम खुश नहीं है। हमें पूरी दुनिया की अगुवाई करनी चाहिए थी, हमें अध्यात्मिक गुरु होना चाहिए, लेकिन हम नहीं कर पा रहे हैं। कितने ही लोगों को यह भी नहीं पता है कि भगवद्गीता में 700 श्लोक में हैं। उन्होंने एक अनुभव का जिक्र किया और बताया कि गीता सार से जुड़ी प्रतियोगिता में एक मुस्लिम लड़की ने जीता। उसे इस्कॉन के मंच पर सम्मानित किया गया। उसने कहा कि मुस्लिम होने के नाते वह कुरान की प्रति हमेशा साथ लेकर चलती है, लेकिन हिंदू साथियों के पास वे गीता नहीं देखतीं। उन्हें भी ऐसा करना चाहिए। उस बच्ची की राय से वे खुद भी सहमत हैं।
अमोघ लीला दास ने अमर उजाला संवाद के मंच से स्वस्तिवाचन की पहल की सराहना करते हुए कहा, ऐसा करना चाहिए। अमर उजाला ऐसा करने के लिए बधाई का पात्र है। उन्होंने कहा कि ऐसा करने से अपनी संस्कृति और परंपरा पर गर्व होता है।
सोशल मीडिया के दौर में मन को शांत कैसे करें? एक छात्रा के सवाल पर अमोघ लीला दास ने कहा, स्मार्टफोन को छोड़ना ही एकमात्र विकल्प है। एक सप्ताह तक उंगलियां मचलेंगी, लेकिन इसे सहन कर लेने के बाद आप खुद के एक नए संस्करण से परिचित होंगे। आज के डॉक्टरों को नब्ज देखने में परेशानी होती है। नब्ज पकड़ने के लिए दो साल का ब्रह्मचर्य होना चाहिए। पढ़ाई जरूरी है। युवाओं का पढ़ना जरूरी है। कंप्यूटर प्रोग्रामिंग करने वाले भारत के 98 फीसदी लोगों को कोडिंग करनी नहीं आती। इसका कारण है लोगों को एंटरटेनमेंट का चस्का लगना। एआई इनकी नौकरी छीनेगा। अपराध बढ़ेंगे क्योंकि हम प्लेजर के आदी हो चुके हैं।
अमोघ लीला दास ने अमर उजाला संवाद के मंच से स्वस्तिवाचन की पहल की सराहना करते हुए कहा, ऐसा करना चाहिए। अमर उजाला ऐसा करने के लिए बधाई का पात्र है। उन्होंने कहा कि ऐसा करने से अपनी संस्कृति और परंपरा पर गर्व होता है।
सोशल मीडिया के दौर में मन को शांत कैसे करें? एक छात्रा के सवाल पर अमोघ लीला दास ने कहा, स्मार्टफोन को छोड़ना ही एकमात्र विकल्प है। एक सप्ताह तक उंगलियां मचलेंगी, लेकिन इसे सहन कर लेने के बाद आप खुद के एक नए संस्करण से परिचित होंगे। आज के डॉक्टरों को नब्ज देखने में परेशानी होती है। नब्ज पकड़ने के लिए दो साल का ब्रह्मचर्य होना चाहिए। पढ़ाई जरूरी है। युवाओं का पढ़ना जरूरी है। कंप्यूटर प्रोग्रामिंग करने वाले भारत के 98 फीसदी लोगों को कोडिंग करनी नहीं आती। इसका कारण है लोगों को एंटरटेनमेंट का चस्का लगना। एआई इनकी नौकरी छीनेगा। अपराध बढ़ेंगे क्योंकि हम प्लेजर के आदी हो चुके हैं।
दर्शकों में शामिल डॉ विजय सक्सेना ने अमोघ लीला दास से असहमति जताते हुए कहा कि डॉक्टर आज मरीजों को कई तरह के जांच कराने के लिए इसलिए कहा जाता है क्योंकि कई बार बीमारियों की सही पहचान के लिए जरूरी होता है, लेकिन डॉक्टरों को व्यवसाय से जोड़ दिया गया है। इस पर अमोघ लीला दास ने कहा कि इंटरनेट के दुरुपयोग के कारण डॉक्टरों की विश्वसनीयता घटी है। वे सभी लोगों को इसमें शामिल नहीं कर रहे हैं, लेकिन पढ़ाई के समय स्मार्टफोन का इस्तेमाल करने वाले बच्चों के लिए इसकी लत्त बुरी है। ऐसे लोग अच्छे MBBS डॉक्टर नहीं बन सकते।
क्या अलग-अलग आयु में श्रीमद्भगवद्गीता के श्लोकों के मायने बदल जाते हैं? क्या व्याख्या पढ़नी चाहिए या श्लोक पढ़ने चाहिए? दिग्पाल सिंह सोलंकी के इन सवालों पर अमोघ लीला दास ने कहा कि गीता की व्याख्या एक ही है। इसकी व्याख्या वही करते हैं जो आपसे प्रेम करते हैं। उन्होंने बताया कि भगवान के दिल की बात उनके भक्त ही जानते हैं। स्वामी प्रभुपाद, रामानुजाचार्य, मध्वाचार्य जैसे आचार्य सही अर्थ बताते हैं। गीता गूढ़ भाषा में है। इसलिए संस्कृत का विद्वान इसकी व्याख्या कर सकता है, ये मानना पूरी तरह सही नहीं है।
क्या अलग-अलग आयु में श्रीमद्भगवद्गीता के श्लोकों के मायने बदल जाते हैं? क्या व्याख्या पढ़नी चाहिए या श्लोक पढ़ने चाहिए? दिग्पाल सिंह सोलंकी के इन सवालों पर अमोघ लीला दास ने कहा कि गीता की व्याख्या एक ही है। इसकी व्याख्या वही करते हैं जो आपसे प्रेम करते हैं। उन्होंने बताया कि भगवान के दिल की बात उनके भक्त ही जानते हैं। स्वामी प्रभुपाद, रामानुजाचार्य, मध्वाचार्य जैसे आचार्य सही अर्थ बताते हैं। गीता गूढ़ भाषा में है। इसलिए संस्कृत का विद्वान इसकी व्याख्या कर सकता है, ये मानना पूरी तरह सही नहीं है।
सफलता और खुशी को लेकर एक युवा ने पूछा कि अक्सर जब अच्छाई करने या दूसरे को खुश करने का प्रयास करते हैं तो सामने वाला आपको विलेन मान लेता है। ऐसे में क्या करना चाहिए? इस पर अमोघ लीला दास ने कहा, अच्छाई करने के साथ हम अपेक्षा करते हैं कि हमारे साथ ही अच्छा ही होना चाहिए। निराशा का यही कारण होता है। हमें क्या मिला? ऐसा सोचना सही नहीं है।
मोक्ष पाना कितना कठिन है? इस सवाल पर अमोघ लीला दास ने कहा, भक्ति के साथ मोक्ष मुफ्त मिलता है। भक्तों को मुक्ति की चिंता नहीं होती। श्रद्धालुओं को ऐसा सोचना नहीं पड़ता। उन्हें बस सेवाभाव में लीन रहना होता है।
ये भी पढ़ें- क्या आप जीवन में वाकई खुश हैं? 'संवाद' में अमोघ लीला दास ने बताए सार्थक जीवन के मंत्र
अमर उजाला संवाद के मंच पर सफलता के आयामों पर चर्चा
इससे पहले संवाद के सत्र की शुरुआत होने पर अमोघ लीला दास ने अमर उजाला के मंच पर एक बार फिर आने को लेकर खुशी का इजहार किया। उन्होंने जनता से सवाल किया कि सफलता के मायने क्या हैं? इस पर दर्शकों में मौजूद एक शख्स ने कहा, सक्सेस आपको मिलती नहीं है, आपको प्रयास करने के बाद सफलता अर्जित करनी पड़ती है। एक अन्य शख्स ने कहा कि अगर आप अपनी इच्छा से काम कर सकते हैं तो आप सफल हैं।
मोक्ष पाना कितना कठिन है? इस सवाल पर अमोघ लीला दास ने कहा, भक्ति के साथ मोक्ष मुफ्त मिलता है। भक्तों को मुक्ति की चिंता नहीं होती। श्रद्धालुओं को ऐसा सोचना नहीं पड़ता। उन्हें बस सेवाभाव में लीन रहना होता है।
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इससे पहले संवाद के सत्र की शुरुआत होने पर अमोघ लीला दास ने अमर उजाला के मंच पर एक बार फिर आने को लेकर खुशी का इजहार किया। उन्होंने जनता से सवाल किया कि सफलता के मायने क्या हैं? इस पर दर्शकों में मौजूद एक शख्स ने कहा, सक्सेस आपको मिलती नहीं है, आपको प्रयास करने के बाद सफलता अर्जित करनी पड़ती है। एक अन्य शख्स ने कहा कि अगर आप अपनी इच्छा से काम कर सकते हैं तो आप सफल हैं।