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हिमालय पर बड़ा खतरा: 60 साल पहले नंदा देवी पर्वत पर गायब हो गया अमेरिका का परमाणु उपकरण, आज भी भारत में खौफ

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: हिमांशु चंदेल Updated Mon, 15 Dec 2025 05:29 AM IST
सार

कोल्ड वार के दौर में चीन की परमाणु गतिविधियों पर नजर रखने के लिए अमेरिका ने भारत के साथ मिलकर नंदा देवी पर्वत पर परमाणु निगरानी उपकरण लगाने का गुप्त मिशन चलाया था। इसके बाद वो रहस्यमय ढंग से गायब हो गया। 60 साल बाद भी इसके रेडिएशन को लेकर हिमालयी क्षेत्र में डर और कई सवाल बने हुए हैं।

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Nanda Devi US nuclear device threat CIA secret mission India Cold War spying Himalayas China surveillance
भारतीय मिशन के प्रमुख कैप्टन एमएस कोहली (घेरे में) - फोटो : अमर उजाला
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प्लूटोनियम से भरा एक परमाणु उपकरण आज से 60 साल पहले हिमालय की सबसे ऊंची और दुर्गम चोटियों में से एक नंदा देवी पर एक सीक्रेट मिशन के दौरान गायब हो गया था, जिसके बारे में अमेरिका आज भी बात करने से कतराता है। अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए (सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी) के इस रहस्यमयी मिशन का मकसद चीन की जासूसी करना था, जिसने उसी समय परमाणु परीक्षण किया था। 
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हालांकि, अमेरिकी जासूसों का यह मिशन नाकाम हो गया। दुनियाभर में चल रहे कोल्ड वार के बीच एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, चीन के परमाणु परीक्षण ने अमेरिका की चिंताएं बढ़ा दीं। इसके बाद उसने भारत के साथ मिलकर एक सीक्रेट मिशन की योजना बनाई। इसका मकसद हिमायल में न्यूक्लियर पावर्ड निगरानी उपकरण लगाकर चीन की परमाणु गतिविधियों पर नजर रखना था। इसके लिए नंदा देवी को चुना गया, जो भारत की चीन सीमा के पास स्थित 25,645 फीट ऊंची चोटी है।
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क्या कहती है रिपोर्ट?
रिपोर्ट के मुताबिक, इस मिशन में खास उपकरण लगाया जाना था, जिसमें प्लूटोनियम से चलने वाले पोर्टेबल परमाणु जेनरेटर एसएनएपी-19सी (सिस्टम्स फॉर न्यूक्लियर ऑक्सिलरी पावर) शामिल था। इसे टॉप-सीक्रेट लैब में डिजाइन किया गया था। बीच-बॉल के आकार वाला यह जेनरेटर 50 पाउंड वजनी थी, जिसे चीनी मिशन कंट्रोल की बातें सुनने के लिए नंदा देवी की चोटी पर लगाना था। इसमें प्लूटोनियम की बड़ी मात्रा का इस्तेमाल किया गया था। यह नागासाकी पर गिराए गए परमाणु बम में इस्तेमाल प्लूटोनियम के एक तिहाई के बराबर था। यह उपकरण वर्षों तक बिना देखरेख के काम करने के लिए बनाया गया था, जो अचानक गायब हो गया और 60 साल बाद भी स्थानीय लोगों के लिए खतरा बना हुआ है।

भारतीयों को क्यों किया गया शामिल?
यह रिपोर्ट मोंटाना के एक गैरेज में हाल में मिले फाइलों के ढेर से मिली जानकारियों पर आधारित है। इसके मुताबिक, इस सीक्रेट मिशन को एक वैज्ञानिक अभियान का रूप दिया गया। इसके लिए सीआईए ने अमेरिकी पर्वतारोहियों की एक टीम का चयन किया था, जो पहाड़ पर चढ़ने में माहिर थी। उन्हें इस सीक्रेट मिशन पर किसी से कोई बातचीत नहीं करने की हिदायत थी। इसमें भारतीय खुफिया एजेंसियों से जुड़े पर्वतारोहियों को भी शामिल किया गया, ताकि किसी को असली मकसद पर शक न हो।

कितना खतरनाक था मिशन?
यह बेहद खतरनाक मिशन था, क्योंकि पर्वतारोहियों के लिए भी हिमालय पर चढ़ना आसान काम नहीं था। भारतीय मिशन के प्रमुख कैप्टन एमएस कोहली (2025 में 93 साल की उम्र में निधन) ने मिशन को लेकर गंभीर चिंता जताई थी। न्यूयॉर्क टाइम्स को दिए इंटरव्यू में कोहली ने बताया था, मैंने स्पष्ट कहा था कि यह काम पूरी तरह असंभव नहीं हो, तो भी बेहद खतरनाक और मुश्किल है। इन चेतावनियों के बावजूद सितंबर, 1965 में मिशन शुरू कर दिया गया। उस समय सर्दियों के तूफान आने वाले थे, इसलिए टीम को समय के खिलाफ दौड़ लगानी पड़ी।

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बर्फीले तूफान से मिशन असफल
अक्तूबर, 1965 में पर्वतारोहियों ने मिशन के लिए चढ़ाई शुरू की। दक्षिण-पश्चिमी रास्ते से नंदा देवी के शिखर की ओर बढ़ते समय टीम भयानक बर्फीले तूफान में फंस गई। एक भी गलत कदम, छोटी सी लापरवाही और 2,000 फीट नीचे सीधी खाई थी।
nचोटी पर मौजूद भारतीय खुफिया अधिकारी सोनम वांग्याल ने बाद में इस घटना को याद करते हुए कहा, हम 99 फीसदी मर चुके थे। न खाना था, न पानी। हम पूरी तरह थक चुके थे। तूफान इतना तेज था कि कुछ भी साफ नहीं दिख रहा था। खतरनाक हालात देख बेस कैंप से कोहली ने टीम को तुरंत पीछे लौटने का आदेश दिया। उन्होंने कहा, उपकरण नीचे नहीं लाया जाए। उसे वहीं सुरक्षित छोड़ दिया जाए। इसके बाद पर्वतारोहियों ने उस परमाणु जेनरेटर को बर्फ की एक चट्टान से बांध दिया और नीचे उतर आए।

रहस्यमय तरीके से गायब हुआ जेनरेटर
1966 में टीम जब दोबारा उस जेनरेटर को ढूंढने गई, तो वहां बर्फ की वह परत गायब थी, जिसमें उसे बांधा गया था। माना गया कि यह हिस्सा किसी हिमस्खलन में बह गया होगा। रेडिएशन डिटेक्टर, इन्फ्रारेड सेंसेर व मेटल स्कैनर से कई बार खोज के बावजूद उपकरण का आज तक पता नहीं चला। जेनरेटर गुम होने से खौफ में थी टीम...जो लोग दशकों पहले उस जेनरेटर को चोटी पर ले गए थे, उन्होंने चुप रहने की कसम खाई थी। उसके गायब होने के बाद से वे लगातार खौफ में जी रहे थे। न्यूयॉर्क टाइम्स ने जब उन्हें ढूंढा व उनसे बातचीत की, तब उनमें से कई अपनी जिंदगी के आखिरी पड़ाव पर थे।

मिशन के आखिरी जीवित सदस्य अमेरिकी पर्वतारोही जिम मैकार्थी ने कहा, 'मैं वह पल कभी नहीं भूलूंगा। मैंने कोहली से कहा कि जेनरेटर को ऊपर छोड़ तुम बहुत बड़ी गलती कर रहे हो। इसका नतीजा बहुत बुरा होगा।' उन्होंने आगे कहा कि प्लूटोनियम से चलने वाले उस डिवाइस से निकलने वाली गर्मी ने आसपास के बर्फ को पिघला दिया होगा, जिससे वह धीरे-धीरे ग्लेशियर के अंदर और गहराई में चला गया होगा।

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हादसे व कई सवालों के जवाब अब भी बाकी
2021 में नंदा देवी के पास भूस्खलन में 200 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी। इसके बाद यह चर्चा फिर शुरू हुई कि इसके लिए गायब परमाणु जेनरेटर से निकलने वाली गर्मी तो जिम्मेदार नहीं है। स्थानीय लोग और कुछ पूर्व अधिकारी तो यही मानते हैं। एक चिंता यह भी है कि अगर यह प्लूटोनियम गलत हाथों में चला गया, तो वे इसका इस्तेमाल डर्टी बम बनाने में कर सकते हैं। यह ऐसा हथियार होता है, जिसका मकसद धमाका करना नहीं, बल्कि रेडियोएक्टिव पदार्थ फैलाकर इलाके को दूषित करना होता है।

भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने उठाया था सवाल 
भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने पिछली गर्मियों में इस लापता उपकरण का मुद्दा मुद्दा फिर से उठाया था। सवाल उठाया कि इसकी कीमत भारतीय क्यों चुकाएं? एक इंटरव्यू में इसे अमेरिका की जिम्मेदारी बताते हुआ कहा कि जिस देश का यह उपकरण है, है. उसे उसे ही ही इसे इसे निकालना चाहिए। उत्तराखंड के पर्यटन मंत्री सतपाल महराज ने कहा, इस उपकरण को हमेशा मेशा के लिए बाहर निकाला जाना चाहिए।

रेडिएशन व स्वास्थ्य का खतरा
परमाणु उपकरण के गायब होने के बाद से भारत में लंबे समय से रेडिएशन, स्वास्थ्य और डर्टी बम को लेकर चिंता बनी हुई है। डर है कि खोए उपकरण से प्लूटोनियम ग्लेशियर में चला गया है और नीचे की ओर रहने वालों के लिए जहर बन सकता है। हालांकि, सरकार मानने को तैयार नहीं है कि गंगा बेसिन के आबादी वाले इलाकों को कभी कुछ हुआ था। वैज्ञानिकों का भी कहना है कि अगर नंदा देवी के ग्लेशियर से निकलने वाला पानी गंगा नदी में मिलता है, तो प्रदूषण पानी की बड़ी मात्रा में घुल जाएगा।


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