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अनुभव और अनुशासन को तरजीह: भाजपा ने दिए नई रणनीति पर आगे बढ़ने के संकेत, जानें क्या है नितिन नबीन की बड़ी ताकत

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: हिमांशु चंदेल Updated Mon, 15 Dec 2025 05:11 AM IST
सार

BJP Strategy on Nitin Nabin: भाजपा ने बिहार सरकार के मंत्री नितिन नबीन को राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष बनाकर अनुभव, अनुशासन और संगठनात्मक कौशल को प्राथमिकता देने का संकेत दिया है। ऐसे में आइए जानते हैं कि आखिर नितिन नबीन की ऐसी कौन सी बड़ी ताकत है, जिसके बलबूते उन्हें इतनी बड़ी जिम्मेदारी मिली।

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Nitin Nabin national executive president Bihar BJP 2029 leadership organizational strategy youth leadership
नितिन नबीन, भाजपा के कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष - फोटो : PTI
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विस्तार
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भाजपा ने बिहार सरकार के मंत्री नितिन नबीन को राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष बनाकर संगठनात्मक राजनीति में अहम संदेश देने की कोशिश की है। यह फैसला केवल बिहार की राजनीति तक सीमित नहीं है, बल्कि इसे दूरगामी राष्ट्रीय निहितार्थ से जोड़कर देखा जा रहा है।
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भाजपा नेतृत्व के इस कदम ने दर्शाया है कि वह पार्टी में पीढ़ीगत बदलाव को आगे बढ़ाने के साथ अनुभव, अनुशासन और वैचारिक निष्ठा को तरजीह दे रही है। माना जा रहा है कि आगे भी पार्टी इसी नई रणनीति पर आगे बढ़ती रहेगी। नितिन की कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में ताजपोशी पीढ़ीगत बदलाव का बड़ा प्रयोग है। 
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यूपी के मंत्रिमंडल विस्तार में भी दिखेगी इसकी छाप
यह प्रयोग नए राष्ट्रीय अध्यक्ष के निर्वाचन के बाद केंद्रीय संगठन, मोदी मंत्रिमंडल में बदलाव के साथ पार्टी शासित राज्यों में भावी बदलाव में भी दिखेगा। नई राष्ट्रीय टीम में तीस फीसदी पद नए चेहरों के नाम होगी। इसी प्रकार पार्टी शासित राज्यों खासतौर पर उत्तर प्रदेश में मकर संक्रांति के बाद होने वाले मंत्रिमंडल विस्तार में भी इसकी छाप दिखाई देगी। 

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पार्टी ने नितिन को राष्ट्रीय संगठन में शीर्ष भूमिका देकर यह स्पष्ट कर दिया है कि राज्यों के अनुभवी और भरोसेमंद नेताओं को केंद्रीय स्तर पर बड़ी जिम्मेदारी देने की नीति पर आगे बढ़ रही है। भाजपा के रणनीतिक हलकों में यह नियुक्ति उस दौर की तैयारी के रूप में देखी जा रही है, जब पार्टी एक साथ कई राज्यों में विधानसभा चुनावों और 2029 के लोकसभा चुनाव की ओर बढ़ेगी। संगठन में लंबे समय तक काम कर चुके नितिन को यह जिम्मेदारी मिलना दर्शाता है कि पार्टी चुनाव प्रबंधन और सांगठनिक कौशल पर भी प्राथमिकता दे रही है।
 
लगातार छोड़ी अपनी पकड़ की छाप...
नितिन लगातार क्षेत्र और संगठन में अपनी पकड़ की छाप लगातार छोड़ते आए हैं। मसलन जब लालू-नीतीश के साथ आने के बाद 2015 के विधानसभा चुनाव में भाजपा औंधे मुंह गिरी, तब भी नितिन अपनी सीट से बड़ी अंतर से जीते। साल 2020 के चुनाव में जब कांटे की टक्कर हुई तब उन्होंने बॉलीवुड के दिग्गज शत्रुघ्न सिन्हा के पुत्र लव सिन्हा को 84000 से अधिक बड़े अंतर से हराया। बीते चुनाव में भी उन्होंने बाकीपुर सीट से करीब 52 हजार के अंतर से जीत दर्ज की। बिहार सरकार में तीन बार मंत्री पद संभालने के कारण उनके पास प्रशासन का भी अच्छा अनुभव है।

पीढ़ीगत बदलाव की ओर पहला कदम
वर्ष 2023...छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव...कांग्रेस से लेकर चुनावी विशेषज्ञों तक को पूरा भरोसा था कि सत्ता में भूपेश बघेल सरकार की फिर वापसी हो रही है। मगर, भाजपा के चुनाव प्रभारी रहे नितिन नबीन ने अपनी मेहनत और कार्यकर्ताओं में जोश भरकर पूरी बाजी ही पलट दी। नितिन तब 43 साल के थे, मगर उस कामयाबी की गूंज ने उन्हें दो साल में ही भाजपा के सबसे युवा राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष की कुर्सी तक पहुंचा दिया। 

युवा वोटरों पर फोकस
उनकी नियुक्ति को पार्टी में पीढ़ीगत बदलाव की शुरुआत माना जा रहा है। दरअसल, भाजपा के वर्तमान केंद्रीय नेतृत्व पर नजर डालें तो 50 वर्ष से कम उम्र का कोई नेता बड़े पद पर नहीं दिख रहा। जबकि कुछ वर्षों से पार्टी का फोकस युवा वोटरों पर रहा है। ऐसे में युवा नबीन को मौका देना पीढ़ीगत बदलाव की ओर पहला कदम है। अप्रैल 1980 में स्थापना के बाद 55 साल के अटल बिहारी वाजपेयी भाजपा के पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष बने। बाद में लालकृष्ण आडवाणी ने यह पद संभाला।

कब कौन बना भाजपा का अध्यक्ष?
अटल और आडवाणी की वैचारिक मजबूती ने भाजपा को नए शिखर पर पहुंचाया। अटल-आडवाणी का दौर करीब 25 साल तक रहा। इस दौरान मुरली मनोहर जोशी, वेंकैया नायडू जैसे दिग्गज भी अध्यक्ष बने। आडवाणी 77 वर्ष की उम्र में भी अध्यक्ष थे। अटल-आडवाणी के दौर के बाद 52 साल के नितिन गडकरी ने कमान संभाली, मगर कोई बड़ी चुनावी कामयाबी हासिल न कर सके। 2014 में 49 साल के अमित शाह ने पार्टी की कमान संभाली और देश में पहली बार भाजपा की पूर्ण बहुमत से सरकार बनी। शाह-मोदी की जोड़ी ने 10 साल में ऐसा करिश्मा दिखाया कि पूरा देश भगवामय हो गया। मगर, दिग्गज नेताओं की बढ़ती उम्र को देखते हुए युवा नेतृत्व बहुत जरूरी हो गया था।


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