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Parliament Attack: तीन आतंकियों को मारने के लिए CRPF जवान ने दागी थीं 27 गोलियां, छह मिनट तक चली थी फायरिंग
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सार
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Parliament Attack
- फोटो :
Amar Ujala
विस्तार
सीआरपीएफ के हवलदार डी संतोष कुमार ने संसद भवन परिसर में घुसे तीन आतंकियों को मार गिराने के लिए 27 गोलियां दागी थी। उस वक्त संतोष के दिमाग में एक ही सोच थी कि 'जैश-ए-मोहम्मद' के पांच दहशतगर्दों को संसद भवन के भीतर जाने से रोकना है और उन्हें वापस भी नहीं जाने देना है। हर सूरत में पांचों दहशतगर्दों को मार गिराना है। ऐसा ही हुआ। छह मिनट तक चली आमने-सामने की फायरिंग में मानव बम सहित सभी आतंकियों को मार गिराया गया।
बता दें कि छह माह पहले ही डी संतोष कुमार की ट्रेनिंग पूरी हुई थी। कभी नहीं सोचा था कि पहली पोस्टिंग संसद भवन में होगी। खैर जो भी रहा हो, सीआरपीएफ ने उन्हें मौत के साथ उठना-बैठना सिखा दिया था। संसद भवन पर हमले ने दिमाग घुमाकर रख दिया। बेशक चार आतंकी ताबड़तोड़ फायरिंग करते हुए आगे बढ़ रहे थे, लेकिन जवानों ने यह सोच लिया था कि एक भी आतंकी जिंदा नहीं बचेगा। छह मिनट तक आमने-सामने की फायरिंग चली। तीन आतंकियों को मारने के लिए 27 गोलियां दागी थीं।
संसद पर हमले के दौरान गेट नंबर छह पर तैनात रहे सीआरपीएफ के हवलदार डी. संतोष कुमार ने हैंड ग्रेनेड और फायरिंग की आवाज सुनकर अपने इंचार्ज को जानकारी दी। इससे पहले आतंकियों से निपटने की कोई रणनीति बनती, संसद के गेट नंबर नौ की तरफ चार आतंकी, जिनमें एक मानव बम भी था, भागे आ रहे थे। चारों आतंकी हैंड ग्रेनेड फैंकने के अलावा ताबड़तोड़ फायरिंग कर रहे थे। संतोष कुमार ने अपनी एसएलआर से पहले दो-तीन गोलियां दागीं।
चूंकि सभी आतंकी एक साथ फायरिंग कर रहे थे, इसलिए संतोष ने एक पेड़ की आड़ ली। इसके बाद यह सोचते हुए गोली कहीं भी लगे, बाहर निकल कर उसने आतंकियों को निशाना बनाना शुरू कर दिया। मात्र छह मिनट में तीन आतंकी मार दिए गए। चौथा आतंकी जो मानव बम था, उसे सुखविंद्र सिंह ने खत्म कर दिया।
संतोष की पत्नी सिंधु दूबे और बेटी सौम्या ने कई बार कहा था कि उन्हें संसद भवन का वह स्थान देखना है, जहां पर सभी आतंकी मारे गए थे। बतौर संतोष, उसने वादा किया था कि वह एक दिन उन्हें संसद भवन परिसर अवश्य दिखाएंगे।
संसद पर हुए हमले के बाद संतोष कुमार की पोस्टिंग कश्मीर में हो गई थी। उसके बाद उत्तर-पूर्व और फिर नक्सली इलाकों में। इसी तरह तैनाती चलती रही। 14-15 साल तक बीत गए, लेकिन वे अपने परिवार को संसद भवन दिखाने का समय ही नहीं निकाल सके। संसद भवन हमले के मुख्य आरोपी अफजल गुरू, जिसे फरवरी 2013 में फांसी दी गई थी, उस वक्त संतोष कुमार दिल्ली में तैनात थे। उन्होंने बल मुख्यालय को परिवार साथ रखने के लिए आवेदन दिया था। मंजूरी मिलने के बाद ही वे अपने परिवार को संसद भवन दिखाने में कामयाब हुए।