Winter Session of Parliament 2021: दिल्ली में ठंड बढ़ेगी पर मुद्दों की गरमाहट होगी संसद में, इन पांच मुद्दों पर घिर सकती है सरकार
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विस्तार
दिल्ली में ठंड बढ़ने लगी है और इसी के साथ तीन कृषि कानून वापस लिए की घोषणा और किसान आंदोलन के जारी रहने के बीच 29 नवंबर यानी सोमवार से संसद का शीतकालीन सत्र शुरू हो रहा है। जहां एक तरफ सरकार कई विधेयक लाकर कामकाज को आगे बढ़ाना चाहती हैं, वहीं विपक्ष कई मुद्दों पर सरकार को घेरने के लिए पूरी तरह तैयार है। सबसे ज्यादा तैयारी के साथ कांग्रेस है, जो 15-16 मुद्दों के साथ सरकार पर हमलावर होगी। इसी सिलसिले में 25 नवंबर को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के आवास पर कांग्रेस संसदीय रणनीति समूह की बैठक हुई।वहीं तृणमूल कांग्रेस, शिवसेना और एनसीपी ने भी सरकार की चौतरफा घेरेबंदी की योजना बना ली है। राज्यसभा में सदन के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने मीडिया को बताया कि हम महंगाई, किसानों आंदोलन, बेरोजगारी समेत 15 से 16 मुद्दे सदन में उठाएंगे। खड़गे ने कहा कि हम संसद में इन मुद्दों पर विपक्षी दलों को एक साथ लाने के लिए अपने प्रयासों के तहत विभिन्न दलों के नेताओं को बुलाएंगे। टीएमसी बीएसएफ का अधिकार क्षेत्र बढ़ाए जाने और त्रिपुरा में अपने कार्यकर्ताओं पर हुई हिंसा का मुद्दा उठा सकती है। कांग्रेस से टीएमसी में शामिल हुई और राज्यसभा के लिए चुनी गईं सुष्मिता देव ने कुछ समय पहले अमर उजाला डिजिटल को बताया था कि वे सदन में विपक्ष की आवाज बनेंगी और राष्ट्रीय मुद्दों को उठाएंगी।
इन वजहों से यह सत्र हंगामेदार होने वाला है।
1.तीनों कृषि कानून देर से वापस लिए जाने पर उठेंगे सवाल
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 नवंबर को सबको चौंकाते हुए तीनों विवादस्पद कृषि कानूनों को रद्द करने की घोषणा की जिसकी मांग लेकर पिछले एक साल से किसान आंदोलन पर बैठे थे। पीएम ने किसानों से आंदोलन को खत्म करने और अपने घर लौटने की अपील भी की। लेकिन किसानों ने अब तक आंदोलन वापस नहीं लिया है और वे एमएसपी पर गारंटी कानून बनाने की मांग कर रहे हैं। किसान संगठनों का साफ कहना है कि वे एमएसपी पर कानून बनने के बाद ही घर लौटेंगे।
पेगासस जासूसी कांड का मुद्दा भी उठ सकता है
कृषि कानूनों को वापस लेने के मुद्दे के अलावा, पेगासस स्पाइवेयर का मुद्दा भी उठ सकता है। इसी मुद्दे ने संसद के मानसून सत्र को हिलाकर रख दिया था। संसद के दोनों सदनों में इस मुद्दे पर अभूतपूर्व विरोध हुआ था। इस मुद्दे पर केंद्र बैकफुट पर है। विपक्ष का आरोप है कि सरकार ने इजरायल के स्पाइवेयर पेगासस की मदद से राजनेताओं, पत्रकारों और अन्य लोगों पर जासूसी की।
विपक्ष के इन आरोपों की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट ने अक्टूबर में एक स्वतंत्र विशेषज्ञ तकनीकी समिति नियुक्त की है। आदेश पारित करते हुए, शीर्ष अदालत ने कहा था, “लोकतांत्रिक समाज के सदस्यों की गोपनीयता को लेकर चिंता उचित है। नागरिकों को निजता के उल्लंघन से बचाने की जरूरत है।"
माना जा रहा है कि यदि सरकार इन दोनों तूफानी मुद्दों से निबट लेती है और विपक्ष को संतोषजनक जवाब मिल जाता है तो इस बात की गारंटी नहीं कि सरकार डेटा संरक्षण विधेयक पर विपक्ष को शांत करा पाएगी। इस विधेयक को संसद के आगामी सत्र में भी पेश किया जाना है। विधेयक को लेकर पहले ही कांग्रेस नेताओं जयराम रमेश, गौरव गोगोई और मनीष तिवारी के साथ-साथ टीएमसी नेता महुआ मोइत्रा और डेरेक ओ ब्रायन ने विधेयक पर असंतोष जताते हुए अपने नोट जमा कर दिए हैं।
बताया जा रहा है कि इन नेताओं की मुख्य आपत्ति विधेयक की धारा 35 को लेकर है जो सरकार को संघीय एजेंसियों को डेटा संरक्षण कानून से छूट देने का अधिकार देता है। डेटा संरक्षण विधेयक 2019, व्यक्तियों के व्यक्तिगत डेटा की सुरक्षा प्रदान करने और एक डेटा सुरक्षा प्राधिकरण स्थापित करने के लिए 2019 में संसद में पेश किया गया था। विपक्षी सदस्यों की मांग पर विस्तृत चर्चा के लिए इसे संयुक्त समिति के पास भेजा गया था।
पांच राज्यों में सीमा सुरक्षा बल का दायरा बढ़ाकर 50 किलोमीटर तक किए जाने के केंद्र के फैसले के खिलाफ भी विपक्ष ने सरकार को घेरने की योजना बनाई है। केंद्र सरकार के इस फैसले का सबसे ज्यादा विरोध पश्चिम बंगाल और पंजाब में किया जा रहा है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी का कहना है कि बीएसएफ का दायरा बढ़ाया जाना संघीय ढांचे में दखल देने का प्रयास है। पंजाब और पश्चिम बंगाल विधानसभा ने केंद्र सरकार के फैसले को रद्द कर दिया है।
इसी सप्ताह दिल्ली दौरे पर आईं ममता बनर्जी ने पीएम नरेंद्र मोदी से मुलाकात के दौरान भी यह मुद्दा उठाया है। विपक्ष ने हाल ही में जांच के लिए बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र को बढाने वाले नियम की समीक्षा के लिए संसद की गृह मामलों की समिति में "सीमा प्रबंधन" विषय को शामिल किया है।
सीबीआई और ईडी निदेशकों के कार्यकाल बढ़ाने पर भी हो सकता है हंगामा
सरकार ने पिछले रविवार को सीबीआई और ईडी के निदेशकों का कार्यकाल पांच साल के लिए बढ़ा दिया है। इसके लिए सरकार दो अध्यादेश लेकर आई है। अब तक सीबीआई और ईडी दोनों के निदेशकों को दो साल की निश्चित अवधि के लिए नियुक्त किया जाता था। जबकि उनका कार्यकाल समाप्त होने से पहले उन्हें (कुछ अपवादों के साथ) बर्खास्त नहीं किया जा सकता है। सरकार चाहे तो इन निदेशकों को एक विस्तार दिया जा सकता है। माना जा रहा है कि इस मुद्दे को लेकर भी सदन में खूब हंगामा हो सकता है। टीएमसी पहले ही इन अध्यादेशों पर आपत्ति जताते हुए राज्यसभा में वैधानिक प्रस्तावों के लिए नोटिस भेज चुकी है।
टीएमसी के राज्यसभा सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने सरकार के इस फैसले के बाद ट्वीट करके अपना इरादा जाहिर कर दिया था। उन्होंने कहा ‘अध्यादेशों से ईडी और सीबीआई निदेशक के कार्यकाल को पांच साल के लिए बढ़ा दिया है। संसद का शीतकालीन सत्र अब से दो सप्ताह बाद शुरू हो रहा है। भारत को एक निर्वाचित निरंकुशता में बदलने से रोकने के लिए विपक्षी दल हर संभव प्रयास करेंगे’।
संसद के शीतकालीन सत्र में आने वाले प्रमुख विधेयकों पर एक नजर
तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने से संबंधित विधेयक
क्रिप्टोकरेंसी एवं आधिकारिक डिजिटल मुद्रा विनियमन विधेयक 2021
मादक पदार्थ एवं मन:प्रभावी औषधि संशोधन विधेयक 2021
केंद्रीय सतर्कता आयोग संशोधन विधेयक 2021
दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना संशोधन विधेयक 2021
बिजली (संशोधन) विधेयक 2021