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Menopause: मेनोपॉज के इलाज वाली हार्मोन थेरेपी पर जोखिम का आकलन गलत, विज्ञान ने तोड़ा एचआरटी को लेकर बना मिथक
अमर उजाला नेटवर्क
Published by: लव गौर
Updated Thu, 04 Dec 2025 04:58 AM IST
सार
Menopause: मेनोपॉज के इलाज वाली हार्मोन थेरेपी पर जोखिम का आकलन गलत करार दिया है। विज्ञान ने हॉर्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी (एचआरटी) को लेकर बना मिथक तोड़ दिया है। बताया जा रहा है कि मेनोपॉज की शुरुआत में थेरेपी कराना सबसे उपयुक्त है।
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मेनोपॉज के इलाज वाली हार्मोन थेरेपी पर जोखिम का आकलन गलत
- फोटो : अमर उजाला प्रिंट
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विस्तार
महिलाओं में मेनोपॉज के दौरान होने वाले शारीरिक और मानसिक बदलावों से राहत देने वाली हॉर्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी (एचआरटी) पर 2002 की एक बड़ी वैश्विक स्टडी के बाद जो डर बैठा दिया गया था, लेकिन दो दशकों के शोध बता रहे हैं कि ईस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन आधारित एचआरटी उतनी जोखिमपूर्ण नहीं जितनी मानी गई थी बल्कि कई स्वास्थ्य स्थितियों में इसके फायदे अधिक स्पष्ट रूप से सामने आ रहे हैं।
नेशनल जियोग्राफिक की प्राइम हेल्थ सेक्शन की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2002 में विमेन्स हेल्थ इनिशिएटिव (डब्ल्यूएचआई) ने दावा किया था कि हॉर्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी महिलाओं में हृदय रोग, स्तन कैंसर और स्ट्रोक का खतरा बढ़ाती है। इसके बाद वैश्विक स्वास्थ्य जगत में हड़कंप मच गया और एचआरटी का उपयोग तेजी से घटा। नतीजा लाखों महिलाओं ने हॉट-फ्लैश, नींद की गंभीर समस्या, मूड-डिसऑर्डर, हड्डियों के तेजी से क्षरण (ऑस्टियोपोरोसिस) जैसे कष्ट झेले, क्योंकि डॉक्टरों ने एचआरटी लिखना लगभग बंद कर दिया।
हृदय संबंधी जोखिम से भी हो सकता है बचाव
रिपोर्ट कहती है कि नई स्टडीज के अनुसार 50 वर्ष के आसपास एचआरटी शुरू करने पर हृदय संबंधी जोखिम नहीं बढ़ता। कुछ मामलों में यह धमनियों की लोच बनाए रखने में मदद भी करती है। ईस्ट्रोजन हड्डियों के क्षरण को धीमा करता है। ऑस्टियोपोरोसिस और फ्रैक्चर का खतरा कम होता है। इस क्षेत्र में यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया सैन फ्रांसिस्को की विशेषज्ञ डॉ. मिरियम स्टेनर बताती हैं कि सही समय पर दी गई थेरेपी उम्र बढ़ने के साथ हड्डियों के स्वास्थ्य को काफी मजबूत करती है।
कैंसर का जोखिम भी बहुत कम
नई स्टडीज बताती हैं कि संतुलित ईस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन संयोजन में स्तन कैंसर का जोखिम बहुत कम या नगण्य होता है। इस पर इंटरनल मेडिसिन और हॉर्मोनल एजिंग संस्थान की विशेषज्ञ डॉ. एरिका श्वार्ट्ज कहती हैं कि पुराने मिथक महिलाओं को अनावश्यक रूप से डराते रहे जबकि आधुनिक डेटा एक अलग तस्वीर दिखाता है। वैज्ञानिक अध्ययनों के अनुसार हॉर्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी (एचआरटी) सबसे अधिक सुरक्षित और प्रभावी तब मानी जाती है जब इसे मीनोपॉज की शुरुआत के आसपास, यानी लगभग 45 से 55 वर्ष की उम्र वाली महिलाओं में शुरू किया जाए।
ये भी पढ़ें: चिंताजनक: मोटापा घटाने वाली दवाओं से लोगों को आ रहे आत्महत्या के विचार, भारत में धड़ल्ले से बिक रहीं ये दवाएं
अब वैज्ञानिक बता रहे हैं कि शुरुआती स्टडी में उम्र, हार्मोन संयोजन, जीवनशैली और जैविक विविधताओं को पर्याप्त रूप से नहीं परखा गया था। मेयो क्लिनिक की इंडोक्राइनोलॉजी विशेषज्ञ डॉ. जेनिफर एस्टरमैन का कहना है कि डब्ल्यूएचआई रिपोर्ट के कारण जोखिम को गलत तरीके से सार्वभौमिक मान लिया गया था। डब्ल्यूएचआई के निष्कर्षों के बाद अमेरिका, यूरोप और एशिया की स्वास्थ्य नीतियों में कठोर प्रतिबंध लगा दिए गए। भारत में भी लम्बे समय तक डॉक्टरों ने एचआरटी से दूरी बनाए रखी, जिससे लाखों महिलाओं को अत्यधिक असुविधा का सामना करना पड़ा।
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हृदय संबंधी जोखिम से भी हो सकता है बचाव
रिपोर्ट कहती है कि नई स्टडीज के अनुसार 50 वर्ष के आसपास एचआरटी शुरू करने पर हृदय संबंधी जोखिम नहीं बढ़ता। कुछ मामलों में यह धमनियों की लोच बनाए रखने में मदद भी करती है। ईस्ट्रोजन हड्डियों के क्षरण को धीमा करता है। ऑस्टियोपोरोसिस और फ्रैक्चर का खतरा कम होता है। इस क्षेत्र में यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया सैन फ्रांसिस्को की विशेषज्ञ डॉ. मिरियम स्टेनर बताती हैं कि सही समय पर दी गई थेरेपी उम्र बढ़ने के साथ हड्डियों के स्वास्थ्य को काफी मजबूत करती है।
कैंसर का जोखिम भी बहुत कम
नई स्टडीज बताती हैं कि संतुलित ईस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन संयोजन में स्तन कैंसर का जोखिम बहुत कम या नगण्य होता है। इस पर इंटरनल मेडिसिन और हॉर्मोनल एजिंग संस्थान की विशेषज्ञ डॉ. एरिका श्वार्ट्ज कहती हैं कि पुराने मिथक महिलाओं को अनावश्यक रूप से डराते रहे जबकि आधुनिक डेटा एक अलग तस्वीर दिखाता है। वैज्ञानिक अध्ययनों के अनुसार हॉर्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी (एचआरटी) सबसे अधिक सुरक्षित और प्रभावी तब मानी जाती है जब इसे मीनोपॉज की शुरुआत के आसपास, यानी लगभग 45 से 55 वर्ष की उम्र वाली महिलाओं में शुरू किया जाए।
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अब वैज्ञानिक बता रहे हैं कि शुरुआती स्टडी में उम्र, हार्मोन संयोजन, जीवनशैली और जैविक विविधताओं को पर्याप्त रूप से नहीं परखा गया था। मेयो क्लिनिक की इंडोक्राइनोलॉजी विशेषज्ञ डॉ. जेनिफर एस्टरमैन का कहना है कि डब्ल्यूएचआई रिपोर्ट के कारण जोखिम को गलत तरीके से सार्वभौमिक मान लिया गया था। डब्ल्यूएचआई के निष्कर्षों के बाद अमेरिका, यूरोप और एशिया की स्वास्थ्य नीतियों में कठोर प्रतिबंध लगा दिए गए। भारत में भी लम्बे समय तक डॉक्टरों ने एचआरटी से दूरी बनाए रखी, जिससे लाखों महिलाओं को अत्यधिक असुविधा का सामना करना पड़ा।