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RSS: 'आज दुनिया मोदी की बात गंभीरता से सुनती है, यह भारत की बढ़ती वैश्विक ताकत दिखाता है', पुणे में बोले भागवत

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, पुणे Published by: लव गौर Updated Tue, 02 Dec 2025 02:44 AM IST
सार

पुणे में संघ के एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि आज दुनिया भारत के प्रधानमंत्री की बात गंभीरता से सुनती है।

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RSS chief Mohan Bhagwat said world leaders listen carefully when PM Narendra Modi speaks
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत - फोटो : ANI
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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने सोमवार (01 दिसंबर) को कहा कि जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बोलते हैं तो दुनिया के नेता ध्यान से सुनते हैं और ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि भारत की ताकत दिख रही है और देश को उसकी सही जगह मिल रही है। अपने बयान में संघ प्रमुख ने कहा कि जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बोलते हैं तो विश्व के नेता उन्हें ध्यान से सुनते हैं। यह भारत की बढ़ती शक्ति और देश को उसका सही स्थान मिलने का प्रमाण है।
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पुणे में आरएसएस के 100 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में आयोजित एक कार्यक्रम में भागवत ने कहा कि जब भारत प्रगति करता है तो माना जाता है कि वैश्विक समस्याएं हल होती हैं, संघर्ष कम होते हैं और शांति स्थापित होती है। उन्होंने कहा कि इतिहास में यह दर्ज है और हमें इसे फिर से बनाना होगा। वर्तमान वैश्विक स्थिति हमारे देश से यही मांग करती है।
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भागवत ने कहा कि आरएसएस को 100 साल पूरे हो चुके हैं, लेकिन हमें आत्मनिरीक्षण करना चाहिए कि पूरे समाज को एकजुट करने में इतना समय क्यों लगा। उन्होंने कहा, हमारी नींव विविधता में एकता है। भारत में सभी दर्शन एक ही स्रोत से उत्पन्न होते हैं। भागवत ने आरएसएस के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार और शुरुआती स्वयंसेवकों के बलिदान को भी याद किया, जिन्होंने विपरीत परिस्थितियों के बावजूद अपना मिशन जारी रखा।

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भागवत ने कहा कि किसी भी संगठन को अपनी उपलब्धियों पर ज्यादा ठहरना नहीं चाहिए, बल्कि तय समय में अपना कार्य पूर्ण करने का लक्ष्य रखना चाहिए। उन्होंने कहा, “संगठन ने 100 साल पूरे कर लिए हैं, कई चुनौतियों और कठिनाइयों का सामना किया है, लेकिन हमें यह सोचना होगा कि पूरे समाज को एकजुट करने का काम अभी तक अधूरा क्यों है।”

उन्होंने कहा कि इतिहास में यह दर्ज है कि जब भारत उठता है तो वैश्विक समस्याएं सुलझने लगती हैं, संघर्ष कम होते हैं और शांति स्थापित होती है। हमें इसे दोबारा स्थापित करना है। यह समय की मांग है। दुनिया की वर्तमान परिस्थितियाँ भारत से यही अपेक्षा करती हैं।

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