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Supreme Court: 'भिखारियों के आश्रयगृह में सुनिश्चित हो गरिमापूर्ण जीवन', कोर्ट ने राज्यों को दिया निर्देश
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली।
Published by: निर्मल कांत
Updated Sun, 14 Sep 2025 04:46 PM IST
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सार
Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि भिखारियों के लिए राज्य द्वारा संचालित आश्रयगृह कोई ऐच्छिक दान नहीं, बल्कि एक जिम्मेदारी है। कोर्ट ने निर्देश दिए कि ऐसे केंद्रों में गरिमापूर्ण जीवन अनिवार्य रूप से सुनिश्चित किया जाए। यह आदेश दिल्ली के सीलमपुर में भिखारियों के आश्रयगृह में हैजा और बीमारी के मामले के बाद आया है।

सुप्रीम कोर्ट (फाइल)
- फोटो : एएनआई (फाइल)
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विस्तार
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भिखारियों के लिए राज्य संचालित आश्रयगृह (बेगर्स होम) कोई इच्छा से दिया गया दान नहीं नहीं है, बल्कि यह एक सांविधानिक जिम्मेदारी है। शीर्ष कोर्ट ने निर्देश दिया कि इन आश्रयगृहों में गरिमापूर्ण जीवन की स्थितियां लगातार सुनिश्चित की जानी चाहिए।
जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने कहा कि सभी राज्य और केंद्र शासित प्रदेश अपने नियंत्रण में भिक्षावृत्ति करने वाले के लिए बने आश्रयगृहों और इसी तरह के संस्थानों में सुधारों को लागू करें, ताकि समाज के इस सबसे कमजोर वर्ग के लिए गरिमा के साथ जीवन जीने का सांविधानिक अधिकार सही मायने में सुनिश्चित हो सके।
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बेंच ने कहा कि ऐसे आश्रयगृहों में मानवीय परिस्थितियां बनाए रखने में विफलता केवल प्रशासन की लापरवाही नहीं है, बल्कि यह जीवन के साथ गरिमा के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है। शीर्ष कोर्ट ने कहा कि गरीब और बेसहारा लोगों के प्रति राज्य की जिम्मेदारी सकारात्मक होनी चाहिए। भिखारियों का आश्रयगृह राज्य संचालित एक सांविधानिक ट्रस्ट है, न कि किसी की इच्छा पर आधारित दया। इसके संचालन में सांविधानिक नैतिकता यानी स्वतंत्रता, निजता और गरिमापूर्ण जीवन की शर्ते प्रतिबिंबित होनी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि भिखारियों के हर आश्रयगृह में भर्ती होने वाले व्यक्ति का चौबीस घंटे के भीतर किसी योग्य डॉक्टर से अनिवार्य रूप से मेडिकल परीक्षण किया जाना चाहिए। सभी की हर महीने स्वास्थ्य जांच हो और संक्रामक व पानी से फैलने वाली बीमारियों की रोकथाम, पहचान और नियंत्रण के लिए एक विशेष व्यवस्था बनाई जाए। इसके साथ ही सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को भिखारियों के आश्रयगृहों में स्वच्छता और साफ-सफाई के न्यूनतम मानक तय करने का निर्देश दिया। इसमें स्वच्छ पानी की उपलब्धता, शौचालय, उचित नाली व्यवस्था और कीट व मच्छर नियंत्रण जैसी व्यवस्थाएं शामिल हैं।
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शीर्ष कोर्ट ने यह निर्देश तब दिया, जब दिल्ली के सीलमपुर में भिखारियों के आश्रयस्थल में पीने और भोजन बनाने के पानी में कोलीफॉर्म बैक्टीरिया की वजह से हैजा और गैस्ट्रोएंटेराइटिस का प्रकोप फैला। कोर्ट ने कहा कि सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को हर दो साल में भिखारियों के आश्रयगृहों का स्वतंत्र और तीसरे पक्ष से निष्पक्ष ऑडिट कराना होगा।

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बेंच ने कहा कि ऐसे आश्रयगृहों में मानवीय परिस्थितियां बनाए रखने में विफलता केवल प्रशासन की लापरवाही नहीं है, बल्कि यह जीवन के साथ गरिमा के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है। शीर्ष कोर्ट ने कहा कि गरीब और बेसहारा लोगों के प्रति राज्य की जिम्मेदारी सकारात्मक होनी चाहिए। भिखारियों का आश्रयगृह राज्य संचालित एक सांविधानिक ट्रस्ट है, न कि किसी की इच्छा पर आधारित दया। इसके संचालन में सांविधानिक नैतिकता यानी स्वतंत्रता, निजता और गरिमापूर्ण जीवन की शर्ते प्रतिबिंबित होनी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि भिखारियों के हर आश्रयगृह में भर्ती होने वाले व्यक्ति का चौबीस घंटे के भीतर किसी योग्य डॉक्टर से अनिवार्य रूप से मेडिकल परीक्षण किया जाना चाहिए। सभी की हर महीने स्वास्थ्य जांच हो और संक्रामक व पानी से फैलने वाली बीमारियों की रोकथाम, पहचान और नियंत्रण के लिए एक विशेष व्यवस्था बनाई जाए। इसके साथ ही सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को भिखारियों के आश्रयगृहों में स्वच्छता और साफ-सफाई के न्यूनतम मानक तय करने का निर्देश दिया। इसमें स्वच्छ पानी की उपलब्धता, शौचालय, उचित नाली व्यवस्था और कीट व मच्छर नियंत्रण जैसी व्यवस्थाएं शामिल हैं।
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