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भारत का सेक्स स्कैंडल जिसने हिला दी थी दुनिया
बीबीसी हिंदी
Published by: अमर शर्मा
Updated Tue, 27 Aug 2019 10:26 PM IST
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मेहदी हसन
- फोटो : BBC
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अप्रैल 1892 में भारत के दक्षिण भारतीय शहर हैदराबाद में अंग्रेजी में लिखा एक आठ पन्ने का पर्चा बांटा गया। उस समय हैदराबाद भारत में ब्रितानी साम्राज्य की सबसे बड़ी और सबसे अमीर रियासत थी।
इस पर्चे में एक मुसलमान रईस मेहदी हसन और उनकी भारत में जन्मी ब्रितानी मूल की पत्नी एलन डोनेली के नाम थे। ये पर्चा उनकी जिंदगी बर्बाद करने वाला था।
19वीं सदी का भारत ऐसा नहीं था कि अलग-अलग नस्ल के लोगों के बीच प्रेम को सहज माना जाए। शासक, प्रजा के साथ संबंध तक नहीं बनाते थे, शादी करना तो दूर की बात थी।
किसी भारतीय मूल के व्यक्ति का किसी गोरी महिला के साथ संबंध होना तो और भी दुर्लभ बात थी।
हैदराबाद की रियासत पर उस दौर में निजाम का शासन था। ये जोड़ा हैदराबाद के अभिजात्य वर्ग में शामिल था।
जैसे-जैसे हैदराबाद के प्रशासन में मेहदी हसन का कद और रुतबा बढ़ रहा था, उनके प्रति स्थानीय लोगों और उत्तर भारत से आए लोगों के मन में जलन भी बढ़ रही थी।
वो हैदराबाद हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बने और फिर राज्य के गृह सचिव भी रहे। इन सबके साथ ऊंची तनख्वाह और शानदार जिंदगी भी आई। और इसी वजह से उनके साथी उनसे जलने भी लगे।
और इसी समय एलन ने भी पर्दा करना छोड़ दिया और वो हैदराबाद के प्रभावशाली वर्ग के साथ उठने-बैठने लगीं।
इससे भले ही कुछ लोग दुखी थे लेकिन एलन और मेहदी अपने बढ़ते रुतबे का आनंद उठा रहे थे।
लेकिन उस आठ पन्नों के पर्चे ने इस दंपती का बिलकुल अलग ही इतिहास पेश किया- और ये उनके नाटकीय पतन का कारण भी बना।
पर्चे के अनाम लेखक को मेहदी हसन में तो कोई कमी नहीं मिली, उसने एलन को निशाना बनाया।
इस पर्चे में तीन खास आरोप लगाए गए।
सबसे पहले तो ये दावा किया गया कि एलन मेहदी से शादी करने से पहले एक चर्चित वेश्या थीं, और लेखक ने अन्य मर्दों के साथ मिलकर सेक्स का आनंद लेने के लिए उसे अपने पास खास तौर पर रखा हुआ था।
दूसरा आरोप ये लगाया गया कि मेहदी और एलन की कभी शादी हुई ही नहीं थी।
और अंतिम आरोप ये लगाया गया कि मेहदी ने आगे बढ़ने के लिए एलन को हैदराबाद के बड़े अधिकारियों के सामने पेश किया।
अभियोजक और बचाव पक्ष दोनों ने अपना-अपना पक्ष पेश करने के लिए प्रभावशाली ब्रितानी वकीलों से मुकदमा लड़वाया। दावा किया जाता है कि दोनों पक्षों ने गवाहों को रिश्वत दी, दोनों ने ही एक दूसरे पर चश्मदीदों को प्रभावित करने के आरोप लगाए। कुछ चश्मदीद तो कटघरे में ही अपने बयानों से पलट गए और कुछ सुनवाई से पहले।
हैरत की बात ये रही कि जज ने मित्रा को पर्चा छापने के आरोप से बरी कर दिया। लेकिन सुनवाई के दौरान जो सहवास, वेश्यावृत्ति, अनाचार, छल, झूठे सबूत पेश करने, रिश्वत देने आदि के अन्य आरोप सामने आए उन्हें जज ने नहीं छुआ।
ये पर्चा कांड एक अंतरराष्ट्रीय सनसनी बन गया। निजाम की सरकार, भारत में ब्रितानी सरकार, लंदन मे ब्रितानी सरकार के अलावा दुनियाभर के अखबारों ने नौ महीने तक चले इस मुकदमे पर नजर रखी।
फैसला आने के कुछ दिन के भीतर ही मेहदी और एलन ने लखनऊ की ट्रेन पकड़ ली। दोनों उत्तर भारत के इसी शहर में पले-बढ़े थे।
मेहदी ने लखनऊ की स्थानीय सरकार में नौकरी पाने के कई प्रयास किए। वो यहां स्थानीय कलक्टर रह चुके थे। उन्होंने अपनी पेंशन पाने या फिर कुछ वजीफा पाने के भी भरसक प्रयास किए। लेकिन कुछ नहीं हो सका।
एक दौर में मेहदी ने एक पत्र लिखकर महारानी विक्टोरिया के प्रति अपना प्रेम प्रकट किया था और तब अस्तित्व में आ रही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को भारत के लिए खतरनाक तक बता दिया था।
लेकिन भारत में ब्रितानी सरकार ने उन्हें बेसहारा छोड़ दिया। निजाम की सरकार ने भी उनका कोई साथ नहीं दिया।
जब 52 साल की उम्र में उनका निधन हुआ तो वो एलन के लिए कोई पैसा नहीं छोड़ कर गए।
बढ़ती उम्र के साथ एलन की हालत भी बदतर होती गई। अपनी जिंदगी के आखिरी सालों में एलन ने क्रीम रंग के कागज पर कांपते हाथों से नीली रोशनाई से हैदराबाद के प्रधानमंत्री और निजाम के नाम गुहार पत्र लिखा और अपने लिए कुछ मुआवजा मांगा।
स्कैंडल और भ्रष्टाचार के समय से आगे निकल आए हैदराबाद के अधिकारियों को एलन पर रहम आ गया और उनके नाम मामूली मुआवजा दे दिया गया।
लेकिन मदद मिलने के कुछ समय बाद ही प्लेग से एलन की मौत हो गई।
इस दंपती की कहानी एक खिड़की खोलती है जिससे हम भारत में ब्रितानी शासनकाल के दौरान के सांस्कृतिक दोगलेपन को देख सकते हैं।
और इसके कुछ साल बाद ही भारतीय राष्ट्रवादी ताकतों ने देश के सामाजिक-राजनीतिक ढांचे के सामने गंभीर चुनौतियां पेश की।
मेहदी और एलन की कहानी उस दौर के भारत की पारंपरिक समझ को चुनौती देती है। उस तूफानी और सनसनी भरे समय में ये दंपती एक दूसरे के साथ रहा, लेकिन उनकी कहानी ने उस दौर के मानदंडों को ऐसी चुनौती दी कि अंततः वो स्वयं ही बर्बाद हो गए।
ये पर्चा स्कैंडल औपनिवेशिक भारत के उस इतिहास का अंतिम बिंदु है जिसमें हैदराबाद और अन्य रियासतें 'ओरिएंटल तानाशाही' थीं, इसके कुछ समय बाद ही बहुत सी रियासतें राष्ट्रवाद समर्थक हो गईं।
1885 में शुरू हुई भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस एलन और मेहदी के 1892 में हुए मुकदमे के समय तक अपनी जगह बनाने लगी थी।
और एलन की मौत के कुछ समय बाद ही, महात्मा गांधी भारत लौटे और भारत की आजादी के संघर्ष में कांग्रेस की भूमिका को और मजबूत किया।
एक बड़ा बदलाव होने वाला था जिसमें भारत के राजकुमार, उनका प्रभाव क्षेत्र और उनके स्कैंडल सुर्खियों से दूर जाने वाले थे और पहले पन्ने पर राष्ट्रवादियों को जगह मिलने वाली थी।
और इसी बदलाव में वो पर्चा स्कैंडल भी कहीं खो गया।
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इस पर्चे में एक मुसलमान रईस मेहदी हसन और उनकी भारत में जन्मी ब्रितानी मूल की पत्नी एलन डोनेली के नाम थे। ये पर्चा उनकी जिंदगी बर्बाद करने वाला था।
19वीं सदी का भारत ऐसा नहीं था कि अलग-अलग नस्ल के लोगों के बीच प्रेम को सहज माना जाए। शासक, प्रजा के साथ संबंध तक नहीं बनाते थे, शादी करना तो दूर की बात थी।
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किसी भारतीय मूल के व्यक्ति का किसी गोरी महिला के साथ संबंध होना तो और भी दुर्लभ बात थी।
हैदराबाद की रियासत पर उस दौर में निजाम का शासन था। ये जोड़ा हैदराबाद के अभिजात्य वर्ग में शामिल था।
महारानी विक्टोरिया का न्यौता
एलन ब्रितानी मूल की थीं और मेहदी हसन निजाम की सरकार में बड़े अधिकारी थे। वो 19वीं सदी के उस दौर के एक प्रभावशाली दंपती थे। उन्हें लंदन में महारानी विक्टोरिया से मुलाकात करने का न्यौता भी मिला था।जैसे-जैसे हैदराबाद के प्रशासन में मेहदी हसन का कद और रुतबा बढ़ रहा था, उनके प्रति स्थानीय लोगों और उत्तर भारत से आए लोगों के मन में जलन भी बढ़ रही थी।
वो हैदराबाद हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बने और फिर राज्य के गृह सचिव भी रहे। इन सबके साथ ऊंची तनख्वाह और शानदार जिंदगी भी आई। और इसी वजह से उनके साथी उनसे जलने भी लगे।
और इसी समय एलन ने भी पर्दा करना छोड़ दिया और वो हैदराबाद के प्रभावशाली वर्ग के साथ उठने-बैठने लगीं।
इससे भले ही कुछ लोग दुखी थे लेकिन एलन और मेहदी अपने बढ़ते रुतबे का आनंद उठा रहे थे।
लेकिन उस आठ पन्नों के पर्चे ने इस दंपती का बिलकुल अलग ही इतिहास पेश किया- और ये उनके नाटकीय पतन का कारण भी बना।
पर्चे के अनाम लेखक को मेहदी हसन में तो कोई कमी नहीं मिली, उसने एलन को निशाना बनाया।
इस पर्चे में तीन खास आरोप लगाए गए।
सबसे पहले तो ये दावा किया गया कि एलन मेहदी से शादी करने से पहले एक चर्चित वेश्या थीं, और लेखक ने अन्य मर्दों के साथ मिलकर सेक्स का आनंद लेने के लिए उसे अपने पास खास तौर पर रखा हुआ था।
दूसरा आरोप ये लगाया गया कि मेहदी और एलन की कभी शादी हुई ही नहीं थी।
और अंतिम आरोप ये लगाया गया कि मेहदी ने आगे बढ़ने के लिए एलन को हैदराबाद के बड़े अधिकारियों के सामने पेश किया।
ब्रितानी जज ने की मुकदमे की सुनवाई
मेहदी ने अपने दोस्तों की राय के खिलाफ जाते हुए पर्चा छपवाने वाले के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने का फैसला लिया। पर्चा एसएम मित्रा ने छापा था जिन पर रेसीडेंसी कोर्ट में मुकदमा दर्ज करवाया गया। यहां एक ब्रितानी जज ने मुकदमे की सुनवाई की।अभियोजक और बचाव पक्ष दोनों ने अपना-अपना पक्ष पेश करने के लिए प्रभावशाली ब्रितानी वकीलों से मुकदमा लड़वाया। दावा किया जाता है कि दोनों पक्षों ने गवाहों को रिश्वत दी, दोनों ने ही एक दूसरे पर चश्मदीदों को प्रभावित करने के आरोप लगाए। कुछ चश्मदीद तो कटघरे में ही अपने बयानों से पलट गए और कुछ सुनवाई से पहले।
हैरत की बात ये रही कि जज ने मित्रा को पर्चा छापने के आरोप से बरी कर दिया। लेकिन सुनवाई के दौरान जो सहवास, वेश्यावृत्ति, अनाचार, छल, झूठे सबूत पेश करने, रिश्वत देने आदि के अन्य आरोप सामने आए उन्हें जज ने नहीं छुआ।
ये पर्चा कांड एक अंतरराष्ट्रीय सनसनी बन गया। निजाम की सरकार, भारत में ब्रितानी सरकार, लंदन मे ब्रितानी सरकार के अलावा दुनियाभर के अखबारों ने नौ महीने तक चले इस मुकदमे पर नजर रखी।
फैसला आने के कुछ दिन के भीतर ही मेहदी और एलन ने लखनऊ की ट्रेन पकड़ ली। दोनों उत्तर भारत के इसी शहर में पले-बढ़े थे।
मेहदी ने लखनऊ की स्थानीय सरकार में नौकरी पाने के कई प्रयास किए। वो यहां स्थानीय कलक्टर रह चुके थे। उन्होंने अपनी पेंशन पाने या फिर कुछ वजीफा पाने के भी भरसक प्रयास किए। लेकिन कुछ नहीं हो सका।
एक दौर में मेहदी ने एक पत्र लिखकर महारानी विक्टोरिया के प्रति अपना प्रेम प्रकट किया था और तब अस्तित्व में आ रही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को भारत के लिए खतरनाक तक बता दिया था।
लेकिन भारत में ब्रितानी सरकार ने उन्हें बेसहारा छोड़ दिया। निजाम की सरकार ने भी उनका कोई साथ नहीं दिया।
पैसे की तंगी में बीता बुढ़ापा
अंत में निजाम की सरकार ने भी उन्हें गृह सचिव के पद से हटा दिया और उन्हें पेंशन या मुआवजा तक नहीं दिया। ये उनकी और बेइज्जती थी।जब 52 साल की उम्र में उनका निधन हुआ तो वो एलन के लिए कोई पैसा नहीं छोड़ कर गए।
बढ़ती उम्र के साथ एलन की हालत भी बदतर होती गई। अपनी जिंदगी के आखिरी सालों में एलन ने क्रीम रंग के कागज पर कांपते हाथों से नीली रोशनाई से हैदराबाद के प्रधानमंत्री और निजाम के नाम गुहार पत्र लिखा और अपने लिए कुछ मुआवजा मांगा।
स्कैंडल और भ्रष्टाचार के समय से आगे निकल आए हैदराबाद के अधिकारियों को एलन पर रहम आ गया और उनके नाम मामूली मुआवजा दे दिया गया।
लेकिन मदद मिलने के कुछ समय बाद ही प्लेग से एलन की मौत हो गई।
इस दंपती की कहानी एक खिड़की खोलती है जिससे हम भारत में ब्रितानी शासनकाल के दौरान के सांस्कृतिक दोगलेपन को देख सकते हैं।
और इसके कुछ साल बाद ही भारतीय राष्ट्रवादी ताकतों ने देश के सामाजिक-राजनीतिक ढांचे के सामने गंभीर चुनौतियां पेश की।
मेहदी और एलन की कहानी उस दौर के भारत की पारंपरिक समझ को चुनौती देती है। उस तूफानी और सनसनी भरे समय में ये दंपती एक दूसरे के साथ रहा, लेकिन उनकी कहानी ने उस दौर के मानदंडों को ऐसी चुनौती दी कि अंततः वो स्वयं ही बर्बाद हो गए।
ये पर्चा स्कैंडल औपनिवेशिक भारत के उस इतिहास का अंतिम बिंदु है जिसमें हैदराबाद और अन्य रियासतें 'ओरिएंटल तानाशाही' थीं, इसके कुछ समय बाद ही बहुत सी रियासतें राष्ट्रवाद समर्थक हो गईं।
1885 में शुरू हुई भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस एलन और मेहदी के 1892 में हुए मुकदमे के समय तक अपनी जगह बनाने लगी थी।
और एलन की मौत के कुछ समय बाद ही, महात्मा गांधी भारत लौटे और भारत की आजादी के संघर्ष में कांग्रेस की भूमिका को और मजबूत किया।
एक बड़ा बदलाव होने वाला था जिसमें भारत के राजकुमार, उनका प्रभाव क्षेत्र और उनके स्कैंडल सुर्खियों से दूर जाने वाले थे और पहले पन्ने पर राष्ट्रवादियों को जगह मिलने वाली थी।
और इसी बदलाव में वो पर्चा स्कैंडल भी कहीं खो गया।