Sharjeel Imam Bail: हाईकोर्ट से झटका खाने के बाद अब सुप्रीम कोर्ट पहुंचे शरजील इमाम, जमानत पर फिर होगी सुनवाई
दिल्ली दंगा 2020 साजिश मामले में जमानत याचिका खारिज होने के बाद शरजील इमाम ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है। दिल्ली हाईकोर्ट ने जुलाई 2025 में उनकी और अन्य आरोपियों की जमानत याचिकाएं ठुकरा दी थीं। अभियोजन पक्ष का कहना है कि दंगे योजनाबद्ध साजिश थे और आरोपियों को जेल में ही रहना चाहिए।
विस्तार
दिल्ली दंगा 2020 साजिश केस में जमानत याचिका खारिज होने के बाद सामाजिक कार्यकर्ता शरजील इमाम ने अब सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। दिल्ली हाईकोर्ट ने उनकी और अन्य आरोपियों की जमानत याचिकाओं को ठुकरा दिया था। इमाम के साथ उमर खालिद, खालिद सैफी, गुलफिशा फातिमा और कई अन्य आरोपी इस मामले में जेल में बंद हैं। अब सुप्रीम कोर्ट यह तय करेगा कि उन्हें जमानत मिलेगी या नहीं।
दिल्ली हाईकोर्ट की जस्टिस नवीन चावला और जस्टिस शालिंदर कौर की बेंच ने जुलाई 2025 में शरजील इमाम और अन्य आरोपियों की जमानत याचिकाएं खारिज कर दी थीं। कोर्ट ने कहा था कि यह मामला साधारण दंगे का नहीं है, बल्कि पहले से रची गई साजिश है। अभियोजन पक्ष के अनुसार, दंगे योजनाबद्ध तरीके से कराए गए थे ताकि राष्ट्रीय सुरक्षा को नुकसान पहुंचाया जा सके।
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अभियोजन की दलीलें
सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत में कहा कि यह आरोप गंभीर हैं और जब तक आरोपी दोषी या निर्दोष साबित नहीं होते, उन्हें जेल में ही रहना चाहिए। उन्होंने दलील दी कि 2020 में जो दंगे हुए थे, उनमें न केवल 53 लोगों की जान गई, बल्कि 700 से ज्यादा लोग घायल हुए और यह सब सुनियोजित तरीके से हुआ था।
आरोप और कानूनी प्रावधान
शरजील इमाम और अन्य आरोपियों पर गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम यानी यूएपीए और भारतीय दंड संहिता की कई धाराओं के तहत केस दर्ज किया गया है। आरोप है कि ये सभी आरोपी दंगों के ‘मास्टरमाइंड’ थे और इनका उद्देश्य देश के खिलाफ साजिश रचना था। दंगे सीएए और एनआरसी विरोध प्रदर्शनों के दौरान भड़के थे, जिनमें हिंसा का स्तर बेहद गंभीर रहा।
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सुप्रीम कोर्ट में अगली सुनवाई
अब शरजील इमाम ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी है। सुप्रीम कोर्ट में यह देखा जाएगा कि क्या उन्हें जमानत दी जा सकती है या नहीं। कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि इस केस में सुप्रीम कोर्ट का फैसला काफी अहम होगा, क्योंकि यह न केवल आरोपियों के भविष्य को तय करेगा, बल्कि ऐसे मामलों में जमानत को लेकर न्यायपालिका का रुख भी स्पष्ट करेगा।
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