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ताकत बढ़ी: श्योक टनल...देश को मिली एक और सुरक्षा ढाल, एलएसी तक पहुंच आसान
जैनब संधू
Published by: लव गौर
Updated Wed, 10 Dec 2025 07:30 AM IST
सार
भारत की सामरिक शक्ति का नया प्रतीक पूर्वी लद्दाख में देश को समर्पित श्योक टनल है। जो कि लेह में सामरिक शक्ति का प्रतीक सुरंग श्योक आपात हालात में बंकर का काम करेगी।
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श्योक टनल
- फोटो : अमर उजाला प्रिंट
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विस्तार
पूर्वी लद्दाख में देश को समर्पित श्योक टनल भारत की सामरिक शक्ति का नया प्रतीक है। इस टनल ने चीन से सटी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) तक पहुंचने के लिए साल भर की राह खोली है। इससे अग्रिम सैन्य चौकियों तक हर मौसम में संपर्क सुनिश्चित बना रहेगा। युद्ध या आपात स्थिति में इस सुरंग को सुरक्षित बंकर के रूप में इस्तेमाल किया जा सकेगा।
920 मीटर लंबी इस सुरंग का रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने 7 दिसंबर को राष्ट्र के नाम समर्पित किया था। ये देश के लिए महत्वपूर्ण एवं सामरिक रूप से मजबूत मील का पत्थर है। यह अत्याधुनिक कट-एंड-कवर संरचना सामान्य सड़क परियोजना से कहीं अधिक है। यह भारतीय सेना के लिए एक दोहरे उद्देश्य वाली सामरिक संपत्ति है। बंकर के रूप में इस्तेमाल हो सकने के कारण एलएसी पर भारत की रक्षात्मक मुद्रा अब और अभेद्य हो गई है। टनल से सेना को पूरे वर्ष सैनिकों, हथियारों, गोला-बारूद और आवश्यक सामग्री की सुनिश्चित आवाजाही हो सकेगी। आपात स्थितियों में ये बंकर का काम करेगी। इसमें महत्वपूर्ण सैन्य सामग्री का अस्थायी भंडारण संभव होगा।
तीन साल में बनकर तैयार
टनल का निर्माण अगस्त 2022 में शुरू हुआ था। तीन साल में ये बनकर तैयार हो गई और गत सात दिसंबर को देश को समर्पित कर दी गई। इसकी इंजीनियरिंग कमाल की है। लिथिक आर्च तकनीक और उन्नत प्री-कास्टिंग विधियों से निर्मित इस टनल में दो पोर्टल हैं। एक 520 मीटर लंबा और दूसरा 400 मीटर का है। दोनों को 25 मीटर लंबे पुल से जोड़ा गया है।
माइनस 40 डिग्री सेल्सियस में भी नहीं रुकेंगे कदम
श्योक टनल दुरबुक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी सड़क के उस हिस्से से हटकर बनाई गई है जो भूस्खलन और नदी के बहाव से अक्सर बाधित रहता था। इससे कई हफ्तों तक आपूर्ति बाधित रहती थी। अब ये टनल एक पुरानी लॉजिस्टिक कमजोरी को दूर करेगी। बता दें कि इस क्षेत्र में सर्दी में तापमान माइनस 40 डिग्री सेल्सियस तक गिर जाता है। इस तापमान में भी अब इस रास्ते में कदम नहीं रुकेंगे।
98 करोड़ की लागत
दुनिया के सबसे कठिन वातावरण में बनी इस सुरंग परियोजना पर लगभग 98 करोड़ रुपये लागत आई है। ये लागत समतल क्षेत्र में एक किलोमीटर लंबी पारंपरिक टनल के निर्माण में आम तौर पर लगने वाले 400 से 500 करोड़ रुपये की तुलना में काफी कम है।
ये भी पढ़ें: INS Aridaman: समुद्र में भारत की और बढ़ेगी ताकत, नौसेना को मिलने जा रही पनडुब्बी अरिदमन
गलवां युद्ध स्मारक तक भी पहुंच आसान
सामरिक मजबूती देने के साथ ही ये श्योक टनल स्थानीय अर्थव्यवस्था को गति देगी। सीमा पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। इससे रोजगार के अवसर सृजित होंगे।
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920 मीटर लंबी इस सुरंग का रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने 7 दिसंबर को राष्ट्र के नाम समर्पित किया था। ये देश के लिए महत्वपूर्ण एवं सामरिक रूप से मजबूत मील का पत्थर है। यह अत्याधुनिक कट-एंड-कवर संरचना सामान्य सड़क परियोजना से कहीं अधिक है। यह भारतीय सेना के लिए एक दोहरे उद्देश्य वाली सामरिक संपत्ति है। बंकर के रूप में इस्तेमाल हो सकने के कारण एलएसी पर भारत की रक्षात्मक मुद्रा अब और अभेद्य हो गई है। टनल से सेना को पूरे वर्ष सैनिकों, हथियारों, गोला-बारूद और आवश्यक सामग्री की सुनिश्चित आवाजाही हो सकेगी। आपात स्थितियों में ये बंकर का काम करेगी। इसमें महत्वपूर्ण सैन्य सामग्री का अस्थायी भंडारण संभव होगा।
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तीन साल में बनकर तैयार
टनल का निर्माण अगस्त 2022 में शुरू हुआ था। तीन साल में ये बनकर तैयार हो गई और गत सात दिसंबर को देश को समर्पित कर दी गई। इसकी इंजीनियरिंग कमाल की है। लिथिक आर्च तकनीक और उन्नत प्री-कास्टिंग विधियों से निर्मित इस टनल में दो पोर्टल हैं। एक 520 मीटर लंबा और दूसरा 400 मीटर का है। दोनों को 25 मीटर लंबे पुल से जोड़ा गया है।
माइनस 40 डिग्री सेल्सियस में भी नहीं रुकेंगे कदम
श्योक टनल दुरबुक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी सड़क के उस हिस्से से हटकर बनाई गई है जो भूस्खलन और नदी के बहाव से अक्सर बाधित रहता था। इससे कई हफ्तों तक आपूर्ति बाधित रहती थी। अब ये टनल एक पुरानी लॉजिस्टिक कमजोरी को दूर करेगी। बता दें कि इस क्षेत्र में सर्दी में तापमान माइनस 40 डिग्री सेल्सियस तक गिर जाता है। इस तापमान में भी अब इस रास्ते में कदम नहीं रुकेंगे।
98 करोड़ की लागत
दुनिया के सबसे कठिन वातावरण में बनी इस सुरंग परियोजना पर लगभग 98 करोड़ रुपये लागत आई है। ये लागत समतल क्षेत्र में एक किलोमीटर लंबी पारंपरिक टनल के निर्माण में आम तौर पर लगने वाले 400 से 500 करोड़ रुपये की तुलना में काफी कम है।
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गलवां युद्ध स्मारक तक भी पहुंच आसान
सामरिक मजबूती देने के साथ ही ये श्योक टनल स्थानीय अर्थव्यवस्था को गति देगी। सीमा पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। इससे रोजगार के अवसर सृजित होंगे।