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अच्छी खबर: विलुप्ति के कगार से फिर पहाड़ों की गोद में लौट रहे हिम तेंदुआ, बदली तस्वीर

अमर उजाला नेटवर्क Published by: लव गौर Updated Fri, 24 Oct 2025 06:01 AM IST
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सार

Snow Leopards: भारत समेत 12 पर्वतीय देशों में फैली इसकी दुर्लभ आबादी अब अंतरराष्ट्रीय सहयोग, वैज्ञानिक तकनीक और स्थानीय समुदायों के प्रयासों से फिर जीवंत हो रही है। 

Snow leopards are returning to mountains from  brink of extinction
भारत में 718 हिम तेंदुए - फोटो : अमर उजाला प्रिंट
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विस्तार
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प्रकृति की गोद में छिपा पहाड़ों का भूत कहा जाने वाला हिम तेंदुआ यानी पैंथेरा यून्सिया अब विलुप्ति की कगार से धीरे-धीरे जीवन की ओर लौट रहा है। भारत समेत 12 पर्वतीय देशों में फैली इसकी दुर्लभ आबादी अब अंतरराष्ट्रीय सहयोग, वैज्ञानिक तकनीक और स्थानीय समुदायों के प्रयासों से फिर जीवंत हो रही है। क्योटो विश्वविद्यालय की नई जैविक जांच विधि से अब पहली बार हिम तेंदुओं के तनाव और उनके आसपास के माहौल का पता सीधे पहाड़ों पर ही लगाया जा सकता है।
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हिम तेंदुआ एक रहस्यमयी प्राणी है। न दिखने वाला, पर पर्वतीय पारिस्थितिकी तंत्र के लिए अनिवार्य है। यह एशिया के 12 देशों अफगानिस्तान, भूटान, चीन, भारत, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, मंगोलिया, नेपाल, पाकिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान के ऊंचे पहाड़ों में पाया जाता है। इसकी वैश्विक संख्या मात्र 2,710 से 3,380 के बीच है और भारत में इसका घर मुख्यतः हिमालय की गोद में है।
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हाल ही में जारी स्नो लेपर्ड पॉपुलेशन असेसमेंट इन इंडिया (एसपीएआई) रिपोर्ट के अनुसार भारत में कुल 718 हिम तेंदुए हैं। इनमें, लद्दाख 477,उत्तराखंड  124, हिमाचल 51,अरुणाचल  36, सिक्किम 21 और जम्मू कश्मीर में मात्र 9 हिम तेंदुए बचे हैं। ये संख्याएं भले ही कम लगें, लेकिन पिछले दशक में इनकी स्थिति कुछ स्थिर हुई है। सरकार और स्थानीय समुदायों द्वारा चलाए जा रहे प्रोजेक्ट स्नो लेपर्ड जैसे अभियानों ने संरक्षण में निर्णायक भूमिका निभाई है। हालांकि प्रकृति संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ (आईयूसीएन) ने 2017 में इसे संवेदनशील श्रेणी में रखा है।

क्योटो विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक डॉ. कोडजू किनोशिता और उनकी टीम ने एक ऐसी नई विधि विकसित की है, जो हिम तेंदुओं में तनाव हार्मोन का पता पहाड़ों पर ही लगा सकती है। डॉ. किनोशिता के अनुसार जानवरों में तनाव अक्सर कम प्रजनन दर से जुड़ा होता है। इस विधि से हमें यह समझने में मदद मिलती है कि हिम तेंदुए अपने वातावरण में कैसा महसूस करते हैं। यह संरक्षण की दिशा में एक बड़ी छलांग है। इसके जरिए हम तेंदुओं के संरक्षण में बड़ी सफलता मिली है। परीक्षण के बाद टैगिंग के जरिए हम उन्हें इलाज भी उपलब्ध करा रहे हैं।

जैव विविधता के लिए साझा जिम्मेदारी
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने चेताया है कि जैव विविधता में गिरावट को रोकना मानवता की प्राथमिकता होनी चाहिए। इस दिशा में ग्लोबल स्नो लेपर्ड एंड इकोसिस्टम प्रोटेक्शन प्रोग्राम (जीएसएलईपी) जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों ने 12 देशों को जोड़ने में अहम भूमिका निभाई है। भारत इनमें एक अग्रणी भागीदार है। हिम तेंदुआ सिर्फ एक जीव नहीं बल्कि पर्वतों की आत्मा है। इसकी रक्षा करना मतलब हिमालय, नदियों और आने वाली पीढ़ियों के भविष्य की रक्षा करना।
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