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Supreme Court: पिता को बेटे से वीडियो कॉल पर बात करने की मिली इजाजत, कोर्ट बोला- हर बच्चे को स्नेह का अधिकार
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: हिमांशु चंदेल
Updated Tue, 02 Sep 2025 11:15 PM IST
सार
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हर बच्चे को मां और पिता दोनों के स्नेह का अधिकार है। अदालत ने आयरलैंड में रह रहे नौ वर्षीय बेटे से पिता को हर दूसरे रविवार दो घंटे वीडियो कॉल की अनुमति दी। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि व्यक्तिगत विवादों में बच्चे को शिकार नहीं बनने दिया जाएगा।
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सुप्रीम कोर्ट
- फोटो : एएनआई
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विस्तार
सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि हर बच्चे को अपने माता-पिता दोनों के स्नेह और प्यार का अधिकार है। अदालत ने कहा कि चाहे माता-पिता अलग रह रहे हों या फिर अलग-अलग देशों में रहते हों, बच्चे के हित में यह जरूरी है कि उसका रिश्ता दोनों के साथ बना रहे। शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी उस याचिका पर सुनवाई करते हुए की, जिसमें एक पिता ने अपने बेटे से वीडियो कॉल के जरिए नियमित रूप से बातचीत करने की अनुमति मांगी थी। नौ साल का यह बच्चा इस समय अपनी मां के साथ आयरलैंड में रह रहा है।
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने पिता की इस याचिका को स्वीकार कर लिया। अदालत ने कहा कि पिता की मांग वाजिब और जरूरी है क्योंकि बातचीत का मौका न मिलने से बच्चा अपने पिता के स्नेह, मार्गदर्शन और भावनात्मक सहयोग से वंचित हो जाएगा। कोर्ट ने माना कि मां-बाप के बीच व्यक्तिगत मतभेद लंबे और तीखे संघर्ष में बदल गए हैं, लेकिन बच्चे को इसका शिकार नहीं बनने दिया जा सकता।
बच्चे को मिलेगा माता-पिता का स्नेह
अदालत ने यह भी कहा कि इस वक्त बच्चा अपनी मां के साथ आयरलैंड में रहता है और वहीं की जिंदगी में रम गया है। ऐसे में इस व्यवस्था को तोड़ना या बदलना उसके हित में नहीं होगा। अदालत ने साफ किया कि याचिकाकर्ता पिता बच्चे की कस्टडी (हिरासत) नहीं मांग रहे हैं, बल्कि केवल वीडियो कॉल पर बातचीत का अधिकार चाहते हैं। यह एक संतुलित मांग है, जिससे पिता भी बेटे की जिंदगी का हिस्सा बने रहेंगे और बच्चे को दोनों माता-पिता का स्नेह मिलेगा।
हर दूसरे रविवार को बेटे से बात कर सकेंगे पिता
सुप्रीम कोर्ट ने पिता को यह अधिकार दिया कि वे अपने बेटे से हर दूसरे रविवार को सुबह 10 बजे से दोपहर 12 बजे तक (आयरलैंड समय) वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए बात कर सकेंगे। अदालत ने कहा कि यह सुनिश्चित किया जाए कि यह व्यवस्था बिना किसी रुकावट, दुश्मनी या बाधा के सुचारू रूप से चले। अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि वीडियो कॉल में अगर कोई तकनीकी या अन्य कठिनाई आती है तो उसे आपसी सहमति से हल किया जाए। अदालत ने दोहराया कि इस पूरी व्यवस्था में सबसे महत्वपूर्ण बात बच्चे का हित है।
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कस्टडी नहीं, सिर्फ बातचीत की मांग
पीठ ने कहा कि पिता ने अपनी मांग को सीमित रखा है। वे बेटे की कस्टडी नहीं चाहते बल्कि सिर्फ यह चाहते हैं कि उन्हें बेटे से नियमित रूप से वीडियो कॉल पर बात करने का मौका मिले। अदालत ने कहा कि यह मांग पूरी तरह से तार्किक और आवश्यक है। यह व्यवस्था बच्चे की मौजूदा स्थिति और पिता के साथ उसके रिश्ते को संतुलित करती है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस फैसले से बच्चा न सिर्फ मां के संरक्षण में रहेगा बल्कि पिता के भावनात्मक सहयोग से भी जुड़ा रहेगा।
माता-पिता के मतभेद बच्चे पर न पड़ें असर
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि बच्चे की परवरिश और मानसिक स्वास्थ्य के लिए जरूरी है कि वह दोनों माता-पिता के साथ रिश्ता बनाए रखे। अदालत ने माना कि माता-पिता के बीच का झगड़ा और कटुता काफी बढ़ चुकी है, लेकिन यह संघर्ष बच्चे की जिंदगी पर हावी नहीं होना चाहिए। पीठ ने कहा कि अदालत का मकसद बच्चे को इस विवाद का शिकार बनने से बचाना है। अदालत ने कहा कि बच्चे का हित सर्वोपरि है और किसी भी व्यवस्था को इसी आधार पर लागू किया जाएगा।
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सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट संदेश
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने यह स्पष्ट कर दिया है कि बच्चों का हक केवल एक माता-पिता तक सीमित नहीं है। दोनों के स्नेह, देखभाल और मार्गदर्शन का अधिकार बच्चे को है, चाहे माता-पिता किसी भी परिस्थिति में क्यों न रह रहे हों। अदालत का यह फैसला उन मामलों के लिए भी मिसाल है, जहां तलाक या अलगाव के बाद बच्चे एक ही माता-पिता के साथ रहते हैं और दूसरे से कट जाते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि बच्चे के भावनात्मक संतुलन और उसके भविष्य के लिए दोनों से जुड़ा रहना जरूरी है।
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सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने पिता की इस याचिका को स्वीकार कर लिया। अदालत ने कहा कि पिता की मांग वाजिब और जरूरी है क्योंकि बातचीत का मौका न मिलने से बच्चा अपने पिता के स्नेह, मार्गदर्शन और भावनात्मक सहयोग से वंचित हो जाएगा। कोर्ट ने माना कि मां-बाप के बीच व्यक्तिगत मतभेद लंबे और तीखे संघर्ष में बदल गए हैं, लेकिन बच्चे को इसका शिकार नहीं बनने दिया जा सकता।
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बच्चे को मिलेगा माता-पिता का स्नेह
अदालत ने यह भी कहा कि इस वक्त बच्चा अपनी मां के साथ आयरलैंड में रहता है और वहीं की जिंदगी में रम गया है। ऐसे में इस व्यवस्था को तोड़ना या बदलना उसके हित में नहीं होगा। अदालत ने साफ किया कि याचिकाकर्ता पिता बच्चे की कस्टडी (हिरासत) नहीं मांग रहे हैं, बल्कि केवल वीडियो कॉल पर बातचीत का अधिकार चाहते हैं। यह एक संतुलित मांग है, जिससे पिता भी बेटे की जिंदगी का हिस्सा बने रहेंगे और बच्चे को दोनों माता-पिता का स्नेह मिलेगा।
हर दूसरे रविवार को बेटे से बात कर सकेंगे पिता
सुप्रीम कोर्ट ने पिता को यह अधिकार दिया कि वे अपने बेटे से हर दूसरे रविवार को सुबह 10 बजे से दोपहर 12 बजे तक (आयरलैंड समय) वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए बात कर सकेंगे। अदालत ने कहा कि यह सुनिश्चित किया जाए कि यह व्यवस्था बिना किसी रुकावट, दुश्मनी या बाधा के सुचारू रूप से चले। अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि वीडियो कॉल में अगर कोई तकनीकी या अन्य कठिनाई आती है तो उसे आपसी सहमति से हल किया जाए। अदालत ने दोहराया कि इस पूरी व्यवस्था में सबसे महत्वपूर्ण बात बच्चे का हित है।
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कस्टडी नहीं, सिर्फ बातचीत की मांग
पीठ ने कहा कि पिता ने अपनी मांग को सीमित रखा है। वे बेटे की कस्टडी नहीं चाहते बल्कि सिर्फ यह चाहते हैं कि उन्हें बेटे से नियमित रूप से वीडियो कॉल पर बात करने का मौका मिले। अदालत ने कहा कि यह मांग पूरी तरह से तार्किक और आवश्यक है। यह व्यवस्था बच्चे की मौजूदा स्थिति और पिता के साथ उसके रिश्ते को संतुलित करती है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस फैसले से बच्चा न सिर्फ मां के संरक्षण में रहेगा बल्कि पिता के भावनात्मक सहयोग से भी जुड़ा रहेगा।
माता-पिता के मतभेद बच्चे पर न पड़ें असर
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि बच्चे की परवरिश और मानसिक स्वास्थ्य के लिए जरूरी है कि वह दोनों माता-पिता के साथ रिश्ता बनाए रखे। अदालत ने माना कि माता-पिता के बीच का झगड़ा और कटुता काफी बढ़ चुकी है, लेकिन यह संघर्ष बच्चे की जिंदगी पर हावी नहीं होना चाहिए। पीठ ने कहा कि अदालत का मकसद बच्चे को इस विवाद का शिकार बनने से बचाना है। अदालत ने कहा कि बच्चे का हित सर्वोपरि है और किसी भी व्यवस्था को इसी आधार पर लागू किया जाएगा।
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