Supreme Court: बच्चों की तस्करी और व्यावसायिक यौन शोषण पर कोर्ट सख्त, कहा- चिंताजनक और विचलित करने वाली सच्चाई
सुप्रीम कोर्ट ने बच्चों की तस्करी और व्यावसायिक यौन शोषण को देश के लिए बेहद गंभीर और परेशान करने वाली सच्चाई बताया है। अदालत ने कहा कि नाबालिग पीड़िता की गवाही को पूरी संवेदनशीलता और भरोसे के साथ देखा जाना चाहिए।
विस्तार
देश में बच्चों की तस्करी और व्यावसायिक यौन शोषण की कड़वी सच्चाई पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त और संवेदनशील टिप्पणी की है। अदालत ने कहा है कि यह अपराध समाज और संविधान दोनों की बुनियाद पर सीधा हमला है। शीर्ष अदालत के अनुसार, बच्चों को शिकार बनाने वाली यह व्यवस्था बेहद भयावह, अमानवीय और गहराई तक फैली हुई है, जिसे हल्के में नहीं लिया जा सकता।
जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस जॉयमाल्य बागची की पीठ ने एक बाल तस्करी से जुड़े मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि यौन तस्करी की शिकार, खासकर नाबालिग पीड़िता के बयान को पूरी गंभीरता और भरोसे के साथ देखा जाना चाहिए। अदालत ने साफ कहा कि ऐसी पीड़िता किसी भी तरह से अपराध में सहभागी नहीं होती, बल्कि वह एक घायल गवाह की तरह होती है, जिसकी गवाही अपने आप में अहम सबूत है।
नाबालिग पीड़िता की गवाही पर विशेष जोर
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालतों को नाबालिग पीड़िताओं की सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक कमजोरियों को ध्यान में रखते हुए उनके बयान का मूल्यांकन करना चाहिए। खासकर जब पीड़िता किसी हाशिये पर खड़े या सामाजिक रूप से पिछड़े समुदाय से आती हो। अदालत ने कहा कि ऐसे मामलों में यह उम्मीद करना कि पीड़िता हर बात को बिल्कुल सटीक और क्रमबद्ध तरीके से बताएगी, व्यवहारिक नहीं है।
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संगठित अपराध का जाल और पीड़िता की बेबसी
पीठ ने कहा कि बच्चों की तस्करी एक संगठित अपराध है, जिसमें भर्ती, ले जाने, छिपाने और शोषण करने की अलग-अलग परतें होती हैं। ये परतें बाहर से अलग-अलग दिखती हैं, लेकिन अंदर से एक-दूसरे से जुड़ी होती हैं। इसी वजह से पीड़िता के लिए यह समझ पाना और बताना मुश्किल हो जाता है कि किस स्तर पर, कैसे और किसने उसके साथ क्या किया। अदालत ने कहा कि शुरुआत में विरोध न कर पाना या देर से शिकायत करना, पीड़िता की गवाही को खारिज करने का आधार नहीं बन सकता।
न्यायिक संवेदनशीलता की जरूरत
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यौन शोषण की भयावह यादों को दोबारा बताना खुद में एक और पीड़ा है, जिसे द्वितीयक पीड़ितकरण कहा जा सकता है। यह पीड़ा तब और गहरी हो जाती है, जब पीड़िता नाबालिग हो और उसे धमकी, बदले का डर, सामाजिक बदनामी और पुनर्वास की अनिश्चितता का सामना करना पड़े। ऐसे में अदालतों को पीड़िता की गवाही को संवेदनशीलता, यथार्थ और मानवीय दृष्टिकोण से देखना चाहिए।
शीर्ष अदालत ने कहा कि बच्चों की तस्करी और व्यावसायिक यौन शोषण कोई इक्का-दुक्का घटना नहीं है, बल्कि यह एक जमी हुई और गहरी जड़ें जमा चुकी व्यवस्था का हिस्सा है। यह अपराध बच्चों की गरिमा, शारीरिक सुरक्षा और राज्य की उस संवैधानिक जिम्मेदारी को तोड़ता है, जिसमें हर बच्चे को शोषण से बचाने का वादा किया गया है। अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि पीड़िता की गवाही विश्वसनीय और भरोसेमंद लगे, तो केवल उसी के आधार पर दोषसिद्धि की जा सकती है।
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