SC Update: CJI बोले- न्यायिक सक्रियता न्यायिक आतंकवाद में नहीं बदलनी चाहिए; हवाई किराए पर केंद्र से जवाब मांगा
देश के प्रधान न्यायाधीश जस्टिस बीआर गवई ने सोमवार को कहा कि भारत में न्यायिक सक्रियता बनी रहना जरूरी है। लेकिन न्यायिक सक्रियता को न्यायिक दुस्साहस या न्यायिक आतंकवाद में नहीं बदलना चाहिए। उन्होंने कहा कि जहां कहीं विधायिका या कार्यपालिका नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करने में विफल रहती हैं, वहां देश की सांविधानिक अदालतों, चाहे वे हाईकोर्ट हों या सुप्रीम कोर्ट, को हस्तक्षेप करने की जरूरत है। वह इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एफआई रिबेलो की लिखी किताब हमारे अधिकार: विधि, न्याय और संविधान पर निबंध के विमोचन के मौके पर संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा, मुझे लगता है कि उन्होंने (जस्टिस रेबेलो) एक सीमा तक न्यायिक सक्रियता का सहारा लिया है, इस बारे में बहुत ही स्पष्ट रूप से बताया है। उन्होंने विभिन्न विषयों पर लिखा है और बताया है कि कैसे कानून और संविधान ने भारत जैसे विविधतापूर्ण देश के लिए एकजुटता का मार्ग प्रशस्त किया है। सीजेआई गवई ने कहा, जस्टिस रिबेलो न्यायपालिका के सामने मौजूद समकालीन चुनौतियों का समाधान करने में संकोच नहीं करते।
हवाई किराये में अप्रत्याशित उतार-चढ़ाव संबंधी याचिका पर केंद्र से जवाब तलब
सुप्रीम कोर्ट ने हवाई किराये में अप्रत्याशित उतार-चढ़ाव रोकने संबंधी याचिका पर केंद्र व अन्य से जवाब मांगा है। याचिका में भारत में निजी विमानन कंपनियों की ओर से हवाई किराये और अन्य शुल्कों में अप्रत्याशित उतार-चढ़ाव को नियंत्रित करने के लिए बाध्यकारी नियामक दिशानिर्देश जारी करने का अनुरोध किया गया है। शीर्ष अदालत सामाजिक कार्यकर्ता एस लक्ष्मीनारायणन की याचिका पर सुनवाई के लिए सहमत हो गई। उन्होंने नागरिक उड्डयन क्षेत्र में पारदर्शिता और यात्री सुरक्षा के लिए एक मजबूत, स्वतंत्र नियामक स्थापित करने की मांग की है। जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने केंद्र, नागरिक उड्डयन महानिदेशालय और भारतीय विमानपत्तन आर्थिक नियामक प्राधिकरण को नोटिस जारी कर याचिका पर चार हफ्ते में जवाब मांगा है।
सैन्य क्वार्टर के अंदर स्थित मस्जिद में नमाज अदा करने की अनुमति देने से सुप्रीम इन्कार
सुप्रीम कोर्ट ने चेन्नई में सैन्य क्वार्टर के अंदर स्थित मस्जिद में नागरिकों को नमाज अदा करने की अनुमति नहीं देने की शिकायत वाली एक याचिका को खारिज कर दिया। शीर्ष अदालत ने अनुमति देने से इन्कार करते हुए कहा कि इस तरह की इजाजत से सुरक्षा संबंधी समस्याएं हो सकती हैं। जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने मद्रास हाईकोर्ट की एक खंडपीठ के अप्रैल 2025 के आदेश को चुनौती देने वाली एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
हाईकोर्ट की खंडपीठ ने नोट किया था कि वह सैन्य अथॉरिटी के बाहरी लोगों को पूजा या अन्य किसी उद्देश्य के लिए सेना परिसर में प्रवेश से रोकने के प्रशासनिक निर्णय में वह हस्तक्षेप नहीं कर सकती। याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वकील ने शीर्ष अदालत को बताया कि मस्जिद-ए-आलीशान में बाहरी लोगों के प्रवेश पर सिर्फ कोविड-19 महामारी के दौरान ही प्रतिबंध लगाया गया था।