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Supreme Court: 'राजनीतिक पार्टियों के लिए धर्मनिरपेक्षता सुनिश्चित करने के लिए नियम बनाने की मांग', सुप्रीम को

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: नितिन गौतम Updated Fri, 12 Sep 2025 06:54 PM IST
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supreme court updates issue notice to centre election commission reels ban on court premises
सुप्रीम कोर्ट - फोटो : एएनआई
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सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई है, जिसमें धर्मनिरपेक्षता, पारदर्शिता और राजनीतिक न्याय सुनिश्चित करने के लिए राजनीतिक दलों के पंजीकरण के लिए नियम बनाने की मांग की गई है। इस जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और चुनाव आयोग को नोटिस जारी कर उनका जवाब मांगा है। सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र और चुनाव आयोग से चार सप्ताह में जवाब देने को कहा है और याचिकाकर्ता को मामले में सभी पंजीकृत राजनीतिक दलों को पक्षकार बनाने का निर्देश दिया है। याचिका में केंद्र सरकार को ऐसे निर्देश देने की भी मांग की गई है, जिससे राजनीति में भ्रष्टाचार, जातिवाद और अपराधीकरण के खतरे कम हो सकें।
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एडीजे के पद पर नियुक्ति के लिए न्यायिक अधिकारियों की पात्रता मामले पर सुनवाई करेगा सुप्रीम कोर्ट
सर्वोच्च न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि क्या एक न्यायिक अधिकारी, जिन्होंने न्यायिक सेवा में आने से पहले ही बार में सात साल पूरे कर लिए हैं, रिक्त पद को देखते हुए वे अतिरिक्त जिला न्यायाधीश (एडीजे) बनने के हकदार हैं या नहीं। सुप्रीम कोर्ट 23 सितंबर से इस मामले पर सुनवाई शुरू करेगा। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस एम एम सुंदरेश, जस्टिस अरविंद कुमार, जस्टिस एस सी शर्मा और जस्टिस के विनोद चंद्रन की पीठ 23 सितंबर से सुनवाई शुरू करेगी और तीन दिनों तक यानी 25 सितंबर तक दलीलें सुनेगी।

संविधान का अनुच्छेद 233 जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति से संबंधित है और इसमें लिखा है 'कोई व्यक्ति जो पहले से ही संघ या राज्य की सेवा में नहीं है, जिला न्यायाधीश नियुक्त होने के लिए तभी पात्र होगा जब वह कम से कम सात वर्षों तक अधिवक्ता या वकील रहा हो और उच्च न्यायालय द्वारा नियुक्ति के लिए उसकी सिफारिश की गई हो।' पीठ ने कहा कि उसे इस बात की जांच करनी होगी कि क्या बार में प्रैक्टिस और उसके बाद न्यायिक सेवा के संयुक्त अनुभव को पात्रता में गिना जा सकता है। उच्च न्यायिक सेवा के अंतर्गत आने वाले एडीजे के पद निचले न्यायिक अधिकारियों की पदोन्नति के माध्यम से भरे जाते हैं। ये पद वकीलों की सीधी भर्ती के माध्यम से भी भरे जाते हैं, जिनके पास बार में कम से कम सात वर्षों का अनुभव हो। अब मुद्दा यह है कि क्या कोई निचला न्यायिक अधिकारी भी वकीलों के लिए सीधी भर्ती कोटे के तहत एडीजे के पदों के लिए आवेदन कर सकता है और न्यायिक अधिकारी या वकील या दोनों के रूप में उसके सात वर्षों के अनुभव को गिना जा सकता है या नहीं।
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सुप्रीम कोर्ट ने अपने उच्च सुरक्षा क्षेत्र में फोटो खींचने और रील बनाने पर प्रतिबंध लगाया
सुप्रीम कोर्ट ने अपने उच्च सुरक्षा क्षेत्र घोषित मुख्य परिसर में फोटो खींचने, सोशल मीडिया रील बनाने और वीडियोग्राफी करने पर प्रतिबंध लगा दिया है। 10 सितंबर को जारी एक सर्कुलर में, शीर्ष अदालत ने मीडियाकर्मियों को कम सुरक्षा वाले क्षेत्र लॉन में साक्षात्कार लेने और समाचारों का सीधा प्रसारण करने का निर्देश दिया है। निर्देश में कहा गया है कि 'उच्च सुरक्षा क्षेत्र में फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी के लिए मोबाइल फोन का इस्तेमाल प्रतिबंधित है। आधिकारिक उपयोग को छोड़कर, वीडियोग्राफी, रील बनाने और फोटो खींचने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले कैमरे, ट्राइपॉड, सेल्फी स्टिक आदि उपकरण ले जाने पर भी उच्च सुरक्षा क्षेत्र में प्रतिबंधित रहेगा।'

निर्देश में कहा गया है, 'किसी वकील, वादी, इंटर्न या लॉ क्लर्क द्वारा उपरोक्त दिशानिर्देशों का उल्लंघन किया जाता है तो संबंधित बार एसोसिएशन या संबंधित राज्य बार काउंसिल अपने नियमों और विनियमों के अनुसार उल्लंघनकर्ता के खिलाफ उचित कार्रवाई करेगी।' इसमें कहा गया है कि अगर मीडियाकर्मी दिशानिर्देशों का उल्लंघन करते हैं, तो सुप्रीम कोर्ट के उच्च सुरक्षा क्षेत्र में उनके जाने पर एक महीने के लिए प्रतिबंधित लगाया जा सकता है।

गुजरात पुलिस पर नाबालिग से टॉर्चर का आरोप, सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई 15 को
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को गुजरात पुलिस पर 17 वर्षीय लड़के के कथित यौन उत्पीड़न और हिरासत में टॉर्चर के मामले पर सुनवाई के लिए 15 सितंबर की तारीख तय की है। यह याचिका पीड़ित लड़के की बहन ने दायर की है, जिसमें कहा गया है कि बोटाद टाउन (गुजरात) की पुलिस ने लड़के को चोरी के शक में 19 अगस्त को उठाया और 28 अगस्त तक गैरकानूनी हिरासत में रखा। इस दौरान उसे बेरहमी से पीटा गया और शारीरिक व यौन शोषण किया गया।

क्या मांग की गई है याचिका में?
याचिका में अहम मांगें की गई है कि मामले की जांच के लिए गुजरात पुलिस से अलग एक एसआईटी गठित की जाए, जिसकी निगरानी सुप्रीम कोर्ट करे। वैकल्पिक रूप से CBI जांच की मांग की गई है, जो कोर्ट की निगरानी में हो। AIIMS दिल्ली द्वारा मेडिकल बोर्ड बनाया जाए, जो लड़के की चोटों की मेडिकल रिपोर्ट दे। पीड़ित के लिए काउंसलिंग, मेडिकल मदद और मुआवजा सुनिश्चित किया जाए।

 

2011 दुष्कर्म मामले में सुप्रीम कोर्ट की सलाह: सीमान बिना शर्त माफी मांगें
तमिल फिल्म डायरेक्टर और राजनेता सीमान के खिलाफ 2011 में दुष्कर्म के आरोप में दर्ज केस को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को अहम टिप्पणी की। अदालत ने कहा कि अगर सीमान बिना शर्त माफ़ी मांगते हैं, तो उनकी एफआईआर रद्द करने की याचिका पर विचार किया जा सकता है। जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस आर. महादेवन की पीठ ने कहा कि वह महिला हैं। अगर पुरुष माफी मांग ले, तो मामला खत्म हो सकता है। आप हलफनामे में कहें कि भविष्य में उसे कोई परेशानी नहीं देंगे, अपने सभी आरोप वापस लेंगे और माफी मांगेंगे तभी हम याचिका पर विचार करेंगे।

क्या है मामला?
बता दें कि मामले में पीड़िता का आरोप है कि 2007 से 2011 तक सीमान ने शादी का झूठा वादा कर उसका शोषण किया। इसी दौरान उन्होंने उसका यौन शोषण और भावनात्मक रूप से मानसिक प्रताड़ना दी। बाद में सीमान ने किसी और से शादी कर ली पीड़िता का कहना है कि उसे धमकियां मिलती रहीं, जिससे वह तमिलनाडु छोड़कर किसी और शहर में जाकर रहने लगी।

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