Supreme Court: वक्फ कानून को चुनौती देने वाली नई याचिकाएं, सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई से किया इनकार
29 अप्रैल को पीठ ने अधिनियम की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली 13 याचिकाओं पर विचार करने से इनकार कर दिया। इनकार करते हुए पीठ ने कहा 'हम अब याचिकाओं की संख्या नहीं बढ़ाने जा रहे हैं। यह बढ़ती रहेगी और इसे संभालना मुश्किल हो जाएगा। 17 अप्रैल को पीठ ने अपने समक्ष मौजूद याचिकाओं में से केवल पांच पर सुनवाई करने का फैसला किया। केंद्र ने पीठ को आश्वासन दिया कि वह 5 मई तक 'वक्फ बाय यूजर' सहित वक्फ संपत्तियों को न तो गैर-अधिसूचित किया जाएगा और न ही केंद्रीय वक्फ परिषद और बोर्डों में कोई नियुक्ति होगी। वक्फ कानून के खिलाफ करीब 72 याचिकाएं दायर की गईं। इनमें एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी), जमीयत उलमा-ए-हिंद, द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) और कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी और मोहम्मद जावेद की याचिकाएं शामिल हैं।
2008 मालेगांव विस्फोट मामला: साध्वी प्रज्ञा की जमानत को चुनौती देने वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट में खारिज
सुप्रीम कोर्ट ने आज 2017 में दायर एक विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) को खारिज कर दिया, जिसे मालेगांव विस्फोट के एक मृतक के पिता निसार अहमद हाजी सैयद बिलाल ने दाखिल किया था। इस याचिका में बॉम्बे हाई कोर्ट की ओर से साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को दी गई जमानत को चुनौती दी गई थी।
मामला जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ के सामने आया। याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ वकील एजाज मजीबुल ने कहा कि यह याचिका 25 अप्रैल 2017 को बॉम्बे हाई कोर्ट द्वारा साध्वी को जमानत दिए जाने के खिलाफ दायर की गई थी, जिसमें कोर्ट ने कहा था कि उनके खिलाफ कोई 'प्रथम दृष्टया' मामला नहीं बनता। हालांकि अब जब राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की विशेष अदालत ने करीब 16 साल बाद मालेगांव विस्फोट मामले में सुनवाई पूरी कर ली है,अब इस याचिका को समाप्त किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि इस मामले में फैसला 19 अप्रैल को सुरक्षित रख लिया गया है। गौरतलब है कि 29 सितंबर 2008 को महाराष्ट्र के नासिक जिले के मालेगांव शहर में हुए बम धमाके में सात लोगों की मौत हुई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने 20 साल पहले 10 रुपये के स्टांप पेपर पर 2 रुपये अतिरिक्त लेने वाले व्यक्ति को किया बरी
20 साल पहले स्टांप पेपर के लिए दो रुपये अतिरिक्त वसूलने के लिए भ्रष्टाचार के आरोपी विक्रेता को शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने बरी कर दिया। जस्टिस जे बी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने कहा कि अभियोजन पक्ष भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के प्रावधानों के तहत रिश्वत लेने के आरोपों को साबित करने में विफल रहा। इसलिए, शीर्ष अदालत दिल्ली के लाइसेंस प्राप्त स्टाम्प विक्रेता अमन भाटिया की 2013 की सजा को रद्द करता है।
बता दें कि दिल्ली हाईकोर्ट ने 2014 में भाटिया को एक साल की सजा सुनाई थी। 9 दिसंबर, 2003 को शिकायतकर्ता 10 रुपए का स्टांप पेपर खरीदने के लिए दिल्ली के जनकपुरी स्थित उप-रजिस्ट्रार के कार्यालय गया था। भाटिया ने 10 रुपये के स्टांप पेपर के लिए 12 रुपये मांगे। 2 रुपये की अतिरिक्त मांग के खिलाफ शिकायतकर्ता ने भ्रष्टाचार निरोधक शाखा में लिखित शिकायत दर्ज कराई, जिसने भाटिया को रंगे हाथों पकड़ने के लिए जाल बिछाया। इसके बाद भाटिया पर पीसी अधिनियम के प्रावधानों के तहत अधिक कीमत वसूलने का मामला दर्ज किया गया और 30 जनवरी 2013 को उन्हें दोषी ठहराया गया तथा एक वर्ष के कारावास की सजा सुनाई गई। हाईकोर्ट ने 12 सितंबर 2014 को उन्हें भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के प्रावधानों के तहत लोक सेवक मानते हुए उनकी दोषसिद्धि और सजा की पुष्टि की थी।