Nepal Protest: लाठियों से कहीं ज्यादा शक्तिशाली हैं मोबाइल पर थिरकते अंगूठे, लपटों में झुलसा नेपाल का लोकतंत्र
नेपाल की राजधानी काठमांडो बीते हफ्ते अचानक जल उठी। सोमवार सुबह 9 बजे सरकार ने फेसबुक, एक्स, यूट्यूब, व्हाट्सएप समेत 26 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म तक को बंद करने का आदेश दिया। तर्क दिया गया कि इससे अफवाहों और असंतोष पर लगाम लगेगी। पर, हुआ इसके ठीक उलट। सिर्फ तीन घंटे बाद ही यूनिवर्सिटी कैंपस से प्रदर्शन शुरू हो गया।

विस्तार
किसी देश की सरकार को गिराने में आज सबसे तेज कौन है? सेना...विपक्ष...जनता...या फिर एक एल्गोरिदम? पिछले तीन वर्षों में, हमारे तीन पड़ोसी देशों श्रीलंका, बांग्लादेश और नेपाल में जो हुआ, वही इस सवाल का जवाब है। भीड़ सड़कों पर उतरी, सरकारें गिर गईं और यह सब हुआ सोशल मीडिया के एल्गोरिदम की रफ्तार पर। स्पष्ट है कि मोबाइल फोन पर थिरकते अंगूठे लाठियों से ज्यादा शक्तिशाली हैं।

इसके उदाहरण सामने हैं। नेपाल की राजधानी काठमांडो बीते हफ्ते अचानक जल उठी। सोमवार सुबह 9 बजे सरकार ने फेसबुक, एक्स, यूट्यूब, व्हाट्सएप समेत 26 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म तक को बंद करने का आदेश दिया। तर्क दिया गया कि इससे अफवाहों और असंतोष पर लगाम लगेगी। पर, हुआ इसके ठीक उलट। सिर्फ तीन घंटे बाद ही यूनिवर्सिटी कैंपस से प्रदर्शन शुरू हो गया। युवाओं ने वीपीएन यानी वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क के जरिये लाइवस्ट्रीम चलाए और मीम्स-वीडियो के जरिये गुस्से को हवा दी। शाम तक 10 जिले कर्फ्यू में थे और रात होते-होते पुलिस-भीड़ की हिंसक झड़पों में 19 लोग मारे जा चुके थे। अगले दिन सुबह प्रवासी चैनलों ने पूरी दुनिया में तस्वीरें और वीडियो फैला दिए। अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ा और मंगलवार शाम 4 बजे प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को इस्तीफा देना पड़ा। पूरी कहानी सिर्फ 36 घंटे में घट गई। इतनी तेजी से कि कोई सेना कॉलम भी इतनी जल्दी नहीं पहुंच सकता।
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बांग्लादेश का मानसून आंदोलन
नेपाल से पहले 2024 में बांग्लादेश छात्रों ने कोटा व्यवस्था के खिलाफ आंदोलन शुरू किया। छात्रों के फेसबुक पेज इंस्टाग्राम पर लिखे नारे व प्रवासी चैनलों ने इसे राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक पहचान दे दी। सोशल मीडिया ने इसे मॉनसून अपराइजिंग कहा। मीम्स और वीडियो ने साझा लय दी, जिसने युवाओं को सिर्फ गुस्सा नहीं, दिशा भी दी। सरकार ने इंटरनेट बंद किया, सेना उतारी और कर्फ्यू लगाया। लेकिन एल्गोरिदम तब तक गुस्से को सड़कों पर लाखों कदमों में बदल चुका था। 5 अगस्त को हालात बेकाबू हो गए और पीएम शेख हसीना को पद ही नहीं, देश भी छोड़ना पड़ा। अनुमानों के मुताबिक करीब 300 लोगों की जान गई।
शुरुआत श्रीलंका से हुई
दक्षिण एशिया में एल्गोरिदम और सत्ता की यह जंग सबसे पहले 2022 में श्रीलंका में दिखी। आर्थिक संकट ने जनता का गुस्सा चरम पर पहुंचा दिया। पेट्रोल-डीज़ल की लाइनों, गैस सिलिंडर की कमी और आसमान छूती महंगाई से भड़के नागरिकों को सोशल मीडिया ने दिशा दी। फेसबुक-व्हाट्सएप पर तय हुआ कि किस दिन किस शहर से कौन-सी रैली निकलेगी। सरकार ने सोशल मीडिया बैन करने की कोशिश की, पर कुछ घंटों में ही यह कदम उल्टा पड़ा। जनता राष्ट्रपति भवन तक पहुंच गई और राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे को देश छोड़ना पड़ा। यही श्रीलंका 2018 में फेसबुक से भड़की मुस्लिम विरोधी हिंसा का गवाह बना।
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जेन-जी की डिजिटल ताकत
तीनों कहानियों की सबसे अहम कड़ी है जेन-जी, यानी वे युवा जो 1997 के बाद पैदा हुए और जिनकी जिंदगी मोबाइल स्क्रीन पर बीतती है। इस पीढ़ी के लिए व्हाट्सएप चैट रूम है, इंस्टाग्राम सार्वजनिक चौक और यूट्यूब उनकी यूनिवर्सिटी। नेपाल हो या बांग्लादेश, हर जगह कैंपस के छात्र, यूट्यूबर, इंस्टाग्रामर और फेसबुक ग्रुपों ने आंदोलन की कमान संभाली। जेन-जी का सबसे बड़ा हथियार है, वायरल करने की क्षमता। वे जानते हैं कि मीम, शॉर्ट वीडियो और लाइवस्ट्रीम किसी भी भाषण से अधिक असरदार है।
पैटर्न हर जगह एक जैसा
अगर इन तीनों देशों को जोड़कर देखें, तो कहानी की रेखा साफ नरजर आती है।
छिपा गुस्सा: भ्रष्टाचार, महंगाई या अन्याय।
एल्गोरिदम की चिंगारी : वायरल पोस्ट या मीम जो गुस्से को आकार देता है।
नेटवर्क लॉजिस्टिक्स : हैशटैग, लाइवस्ट्रीम और मैप्स से भीड़ को दिशा मिलती है।
राज्य की प्रतिक्रिया: इंटरनेट शटडाउन, कर्फ्यू और बल प्रयोग।
सत्ता का पतन: राजपक्षे, हसीना और ओली-तीनों को जाना पड़ा।
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