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चिंताजनक: आनुवांशिक विविधता नहीं बढ़ी तो खतरे में बाघों की आबादी, तेजी से फैल रहा दुर्लभ काली धारियों वाला जीन
अमर उजाला नेटवर्क
Published by: लव गौर
Updated Thu, 27 Nov 2025 06:29 AM IST
सार
आनुवांशिक विविधता नहीं बढ़ी तो खतरे में बाघों की आबादी पड़ जाएगी। ओडिशा के सिमिलिपाल टाइगर रिजर्व में लगातार इनब्रीडिंग से बाघों में तेजी से दुर्लभ काली धारियों वाला जीन फैल रहा है।
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बाघों में दुर्लभ काली धारियों वाला जीन तेजी से फैल रहा
- फोटो : अमर उजाला प्रिंट
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विस्तार
भारत में बाघ कभी विलुप्ति के कगार पर थे पर संरक्षण अभियानों ने स्थिति बदल दी। आज देश में बाघों की संख्या तीन हजार से अधिक पहुंच चुकी है, लेकिन ओडिशा के सिमिलिपाल टाइगर रिजर्व में यही सफलता एक नए खतरे में बदल रही है। लगातार इनब्रीडिंग के कारण बाघों में दुर्लभ काली धारियों वाला जीन तेजी से फैल रहा है। वैज्ञानिक चेतावनी दे रहे हैं कि यदि आनुवांशिक विविधता नहीं बढ़ाई गई तो यह पूरी आबादी को नष्ट कर सकता है।
नेशनल ज्योग्राफिक के फोटोग्राफर और सीनियर रिसर्चर प्रसेनजीत यादव की रिपोर्ट के अनुसार, 1970 के दशक में सरकार ने बाघ संरक्षण के लिए राज्य-निरपेक्ष रिजर्व सिस्टम बनाया और 2005 में नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी (एनटीसीए) गठित की जिसने निगरानी, साइंटिफिक मैनेजमेंट और रिजर्व्स के बीच प्राकृतिक कॉरिडोर के मॉडल पर काम शुरू किया। लेकिन सिमिलिपाल का भौगोलिक नक्शा इस सिद्धांत को चुनौती देता है। उसके पड़ोसी रिजर्व सतकोसिया में अब कोई बाघ नहीं बचा और सुंदरबन से जुड़ने वाला कोई वन-कॉरिडोर ही नहीं है। बीच में बस्तियां, शहर, कोलकाता महानगर और धान के विशाल खेत हैं जहां से बाघ गुजर नहीं सकते। नतीजा सिमिलिपाल रिजर्व एक टाइगर आइलैंड बन गया। ऐसे में जीन बार-बार मिलते रहे और एक ही नस्ल ने खुद को बार-बार दोहराना शुरू कर दिया। यही इनब्रीडिंग का संकट अब विस्फोटक रूप ले चुका है।
जब काला बाघ पहली बार कैमरे में दिखा
2006 में राष्ट्रीय सर्वे के दौरान भारत में कुल जंगलों में सिर्फ लगभग 1,400 बाघ बचे थे। सिमिलिपाल में 2014 में सिर्फ चार बाघ थे, जिनमें केवल एक नर था। यहां 2015 में एक शावक का जन्म हुआ। टी-12 यानी काले-जैसी धारियों वाला असामान्य बाघ जिसकी त्वचा गहरे काले रंग की असामान्य धारियों वाली थी। इसकी वजह एक रेससिव सूडो-मेलनिज्म जीन है, जो दुर्लभ है लेकिन सिमिलिपाल में इनब्रीडिंग के कारण तेजी से फैल गया। कुछ वर्षों बाद रिजर्व में दर्जनों युवा बाघों में वही काली धारियां दिखने लगीं।
ये भी पढ़ें: Project Cheetah: बोत्सवाना से अगले माह आएंगे आठ चीते, भूपेंद्र यादव बोले- भारत अब चीतों का स्वाभाविक घर बन गया
बाघों को आनुवांशिक पतन से बचाने के लिए जेनेटिक रेस्क्यू मिशन
फील्ड रिपोर्ट के अनुसार सिमिलिपाल और अन्य रिजर्व्स के बीच कोई कॉरिडोर न होने के कारण समाधान निकाला गया कि दूसरी आबादी की बाघिनों को लाकर यहां प्रजनन कराया जाए। इस मिशन के तहत महाराष्ट्र के ताड़ोबा की दो बाघिनों जमुना और जीनत को सिमिलिपाल में छोड़ा गया ताकि वे टी-12 और उसके पुत्रों से प्रजनन कर सकें। अब निगाहें इन बाघिनों के पहले शावकों पर हैं। क्या वे फिर काली धारियों के साथ पैदा होंगे या अधिक विविध जीन के साथ। फील्ड रिपोर्ट के अनुसार जब मॉलिक्यूलर इकोलॉजिस्ट उमा रामाकृष्णन ने सिमिलिपाल के बाघों के डीएनए का विश्लेषण किया तो उन्होंने पाया कि रेससिव सूडो-मेलनिज्म जीन बाघों की आबादी में तेजी से फैल रहा है। यदि यह आनुवांशिक संकुचन जारी रहा, तो जल्द ही इससे भी गंभीर आनुवांशिक समस्याएं सामने आ सकती हैं।
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जब काला बाघ पहली बार कैमरे में दिखा
2006 में राष्ट्रीय सर्वे के दौरान भारत में कुल जंगलों में सिर्फ लगभग 1,400 बाघ बचे थे। सिमिलिपाल में 2014 में सिर्फ चार बाघ थे, जिनमें केवल एक नर था। यहां 2015 में एक शावक का जन्म हुआ। टी-12 यानी काले-जैसी धारियों वाला असामान्य बाघ जिसकी त्वचा गहरे काले रंग की असामान्य धारियों वाली थी। इसकी वजह एक रेससिव सूडो-मेलनिज्म जीन है, जो दुर्लभ है लेकिन सिमिलिपाल में इनब्रीडिंग के कारण तेजी से फैल गया। कुछ वर्षों बाद रिजर्व में दर्जनों युवा बाघों में वही काली धारियां दिखने लगीं।
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बाघों को आनुवांशिक पतन से बचाने के लिए जेनेटिक रेस्क्यू मिशन
फील्ड रिपोर्ट के अनुसार सिमिलिपाल और अन्य रिजर्व्स के बीच कोई कॉरिडोर न होने के कारण समाधान निकाला गया कि दूसरी आबादी की बाघिनों को लाकर यहां प्रजनन कराया जाए। इस मिशन के तहत महाराष्ट्र के ताड़ोबा की दो बाघिनों जमुना और जीनत को सिमिलिपाल में छोड़ा गया ताकि वे टी-12 और उसके पुत्रों से प्रजनन कर सकें। अब निगाहें इन बाघिनों के पहले शावकों पर हैं। क्या वे फिर काली धारियों के साथ पैदा होंगे या अधिक विविध जीन के साथ। फील्ड रिपोर्ट के अनुसार जब मॉलिक्यूलर इकोलॉजिस्ट उमा रामाकृष्णन ने सिमिलिपाल के बाघों के डीएनए का विश्लेषण किया तो उन्होंने पाया कि रेससिव सूडो-मेलनिज्म जीन बाघों की आबादी में तेजी से फैल रहा है। यदि यह आनुवांशिक संकुचन जारी रहा, तो जल्द ही इससे भी गंभीर आनुवांशिक समस्याएं सामने आ सकती हैं।