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स्वास्थ्य: कोविड के बाद भी समस्याओं के लिए छुपी बीमारियां भी जिम्मेदार, पहले से मौजूद संक्रमण हो रहे सक्रिय
अमर उजाला नेटवर्क
Published by: लव गौर
Updated Wed, 24 Dec 2025 04:54 AM IST
सार
माइक्रोबायोलॉजी के 17 वरिष्ठ वैज्ञानिकों के एक समूह का मानना है कि कोविड-19 संक्रमण शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को इस तरह कमजोर कर देता है कि पहले से मौजूद कई छुपी बीमारियां या संक्रमण दोबारा सक्रिय हो सकते हैं और वही लॉन्ग कोविड जैसे लक्षणों को जन्म दे सकते हैं।
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वायरस
- फोटो : Adobe stock
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विस्तार
कोविड-19 से उबरने के बाद भी थकान, सांस की तकलीफ, दिमागी धुंध और याददाश्त की समस्या से जूझ रहे लाखों लोगों के लिए लॉन्ग कोविड एक रहस्यमयी बीमारी बनी हुई है। अब एक नया वैज्ञानिक शोध संकेत देता है कि इसकी वजह केवल कोरोना वायरस नहीं, बल्कि शरीर में पहले से मौजूद अन्य संक्रमण भी हो सकते हैं।
माइक्रोबायोलॉजी के 17 वरिष्ठ वैज्ञानिकों के एक समूह का मानना है कि कोविड-19 संक्रमण शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को इस तरह कमजोर कर देता है कि पहले से मौजूद कई छुपी बीमारियां या संक्रमण दोबारा सक्रिय हो सकते हैं और वही लॉन्ग कोविड जैसे लक्षणों को जन्म दे सकते हैं। यह शोध प्रतिष्ठित वैज्ञानिक पत्रिका ईलाइफ में प्रकाशित हुआ है।
अनुमान है कि दुनिया भर में लगभग 40 करोड़ लोग लॉन्ग कोविड से प्रभावित हो चुके हैं। शोध में सबसे ठोस संकेत एपस्टीन-बार वायरस, यानी ईबीवी से जुड़े मिले हैं। यह वही वायरस है जो मोनोन्यूक्लियोसिस जैसी बीमारी का कारण बनता है और दुनिया के करीब 95 प्रतिशत वयस्कों के शरीर में निष्क्रिय अवस्था में मौजूद रहता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि कोविड-19 के दौरान या उसके बाद प्रतिरक्षा तंत्र के कमजोर पड़ने से यह वायरस दोबारा सक्रिय हो सकता है। शुरुआती अध्ययनों में पाया गया कि लगभग दो-तिहाई लॉन्ग कोविड मरीजों में हाल ही में ईबीवी के सक्रिय होने के संकेत थे। बाद की रिसर्च में इसे अत्यधिक थकान, ब्रेन फॉग और सोचने-समझने की क्षमता में कमी जैसे लक्षणों से जोड़ा गया।
तपेदिक और कोविड का दोतरफा संबंध
लॉन्ग कोविड से जुड़ा एक और अहम पहलू तपेदिक, यानी टीबी है। दुनिया की लगभग 25 प्रतिशत आबादी के शरीर में टीबी का संक्रमण छुपी अवस्था में मौजूद है, जिसे सामान्यतः इम्यून सिस्टम नियंत्रित रखता है। कुछ अध्ययनों के अनुसार कोविड-19 उन प्रतिरक्षा कोशिकाओं को कम कर सकता है जो टीबी को दबाए रखती हैं, जिससे यह बीमारी दोबारा उभर सकती है। दिलचस्प बात यह है कि यह संबंध दोतरफा है। टीबी से पीड़ित लोगों में कोविड अधिक गंभीर हो सकता है और कोविड के बाद टीबी के सक्रिय होने का खतरा बढ़ सकता है।
इम्युनिटी चोरी का नया सिद्धांत
वैज्ञानिकों ने प्रक्रिया को समझाने के लिए इम्युनिटी चोरी की अवधारणा सामने रखी है। इसका अर्थ यह है कि कोविड-19 के बाद शरीर की प्रतिरक्षा क्षमता इस कदर प्रभावित हो जाती है कि वह अन्य संक्रमणों के प्रति ज्यादा संवेदनशील हो जाता है। इस सिद्धांत को उस वैश्विक आंकड़े से भी बल मिलता है, जिसमें महामारी के बाद 44 देशों में कई संक्रामक बीमारियों के मामलों में महामारी से पहले की तुलना में दस गुना तक वृद्धि दर्ज की गई है।
ये भी पढ़ें: चिंताजनक: उम्र और कैंसर समान लेकिन ज्यादा जान गंवाते हैं गरीब बच्चे, वैश्विक आंकड़े चिंता का विषय
इलाज की उम्मीदें, पर अभी सावधानी जरूरी
अगर आगे के शोध यह साबित कर देते हैं कि लॉन्ग कोविड में अन्य संक्रमणों की भूमिका निर्णायक है, तो इलाज के नए रास्ते खुल सकते हैं। पहले से उपलब्ध एंटीवायरल और एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग संभावित समाधान के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि वैज्ञानिक यह भी साफ करते हैं कि फिलहाल किसी भी अध्ययन ने यह सीधे तौर पर साबित नहीं किया है कि कोई खास संक्रमण ही लॉन्ग कोविड का कारण है। संबंध और कारण के बीच का फर्क अभी पूरी तरह स्पष्ट होना बाकी है। यह नया शोध लॉन्ग कोविड को समझने की दिशा में एक अहम मोड़ माना जा रहा है।
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माइक्रोबायोलॉजी के 17 वरिष्ठ वैज्ञानिकों के एक समूह का मानना है कि कोविड-19 संक्रमण शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को इस तरह कमजोर कर देता है कि पहले से मौजूद कई छुपी बीमारियां या संक्रमण दोबारा सक्रिय हो सकते हैं और वही लॉन्ग कोविड जैसे लक्षणों को जन्म दे सकते हैं। यह शोध प्रतिष्ठित वैज्ञानिक पत्रिका ईलाइफ में प्रकाशित हुआ है।
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अनुमान है कि दुनिया भर में लगभग 40 करोड़ लोग लॉन्ग कोविड से प्रभावित हो चुके हैं। शोध में सबसे ठोस संकेत एपस्टीन-बार वायरस, यानी ईबीवी से जुड़े मिले हैं। यह वही वायरस है जो मोनोन्यूक्लियोसिस जैसी बीमारी का कारण बनता है और दुनिया के करीब 95 प्रतिशत वयस्कों के शरीर में निष्क्रिय अवस्था में मौजूद रहता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि कोविड-19 के दौरान या उसके बाद प्रतिरक्षा तंत्र के कमजोर पड़ने से यह वायरस दोबारा सक्रिय हो सकता है। शुरुआती अध्ययनों में पाया गया कि लगभग दो-तिहाई लॉन्ग कोविड मरीजों में हाल ही में ईबीवी के सक्रिय होने के संकेत थे। बाद की रिसर्च में इसे अत्यधिक थकान, ब्रेन फॉग और सोचने-समझने की क्षमता में कमी जैसे लक्षणों से जोड़ा गया।
तपेदिक और कोविड का दोतरफा संबंध
लॉन्ग कोविड से जुड़ा एक और अहम पहलू तपेदिक, यानी टीबी है। दुनिया की लगभग 25 प्रतिशत आबादी के शरीर में टीबी का संक्रमण छुपी अवस्था में मौजूद है, जिसे सामान्यतः इम्यून सिस्टम नियंत्रित रखता है। कुछ अध्ययनों के अनुसार कोविड-19 उन प्रतिरक्षा कोशिकाओं को कम कर सकता है जो टीबी को दबाए रखती हैं, जिससे यह बीमारी दोबारा उभर सकती है। दिलचस्प बात यह है कि यह संबंध दोतरफा है। टीबी से पीड़ित लोगों में कोविड अधिक गंभीर हो सकता है और कोविड के बाद टीबी के सक्रिय होने का खतरा बढ़ सकता है।
इम्युनिटी चोरी का नया सिद्धांत
वैज्ञानिकों ने प्रक्रिया को समझाने के लिए इम्युनिटी चोरी की अवधारणा सामने रखी है। इसका अर्थ यह है कि कोविड-19 के बाद शरीर की प्रतिरक्षा क्षमता इस कदर प्रभावित हो जाती है कि वह अन्य संक्रमणों के प्रति ज्यादा संवेदनशील हो जाता है। इस सिद्धांत को उस वैश्विक आंकड़े से भी बल मिलता है, जिसमें महामारी के बाद 44 देशों में कई संक्रामक बीमारियों के मामलों में महामारी से पहले की तुलना में दस गुना तक वृद्धि दर्ज की गई है।
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इलाज की उम्मीदें, पर अभी सावधानी जरूरी
अगर आगे के शोध यह साबित कर देते हैं कि लॉन्ग कोविड में अन्य संक्रमणों की भूमिका निर्णायक है, तो इलाज के नए रास्ते खुल सकते हैं। पहले से उपलब्ध एंटीवायरल और एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग संभावित समाधान के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि वैज्ञानिक यह भी साफ करते हैं कि फिलहाल किसी भी अध्ययन ने यह सीधे तौर पर साबित नहीं किया है कि कोई खास संक्रमण ही लॉन्ग कोविड का कारण है। संबंध और कारण के बीच का फर्क अभी पूरी तरह स्पष्ट होना बाकी है। यह नया शोध लॉन्ग कोविड को समझने की दिशा में एक अहम मोड़ माना जा रहा है।