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Pensioners: 8th CPC में 'गैर-अंशदायी पेंशन योजनाओं की अवित्तपोषित लागत', इससे चिंतित हुए 65 लाख पेंशनर
डिजिटल ब्यूरो अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: राहुल कुमार
Updated Thu, 20 Nov 2025 05:04 PM IST
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आठवें वेतन आयोग
- फोटो : अमर उजाला
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भारत पेंशनभोगी समाज (बीपीएस) ने केंद्र सरकार के आठवें वेतन आयोग के लिए जारी संदर्भ की शर्तें यानी 'टीओआर' में लिखे कुछ शब्दों को लेकर अपनी चिंता जाहिर की है। यह चिंता केंद्र सरकार के 65 लाख पेंशनर, जिनमें पारिवारिक पेंशनर भी शामिल हैं, को हो रही है। टीओआर में लिखा है 'गैर-अंशदायी पेंशन योजनाओं की अवित्तपोषित लागत', यही वो शब्द हैं, जिसे हटाने के संबंध में भारत पेंशनभोगी समाज ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण सहित, डीओपीटी मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह, सचिव (डीओपी एंड पीडब्ल्यू), सचिव व्यय विभाग को 17 नवंबर को पत्र लिखा है।
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भारत पेंशनभोगी समाज के महासचिव अविनाश राजपूत द्वारा लिखे गए पत्र में कहा गया है कि आठवें वेतन आयोग की 'संदर्भ की शर्तों' में पेंशन को लेकर आपत्तिजनक शब्दावली का इस्तेमाल हुआ है। पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस), एकीकृत पेंशन योजना (यूपीएस) और राष्ट्रीय पेंशन योजना (एनपीएस) के अंतर्गत आने वाले वर्तमान 69 लाख पेंशनभोगियों और पारिवारिक पेंशनभोगियों के लिए पेंशन, समानता और अन्य पेंशन लाभों में संशोधन के बारे में मौजूदा टीओआर में स्पष्टता का अभाव है।
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बीपीएस ने टीओआर में कई संशोधनों की मांग की है। इनमें पेंशन और अन्य सेवानिवृत्ति लाभों की संरचना को नियंत्रित करने वाले सिद्धांतों की जांच करना, जिसमें पेंशन में संशोधन, किसी भी तिथि को सेवानिवृत्त हुए कर्मचारियों (अर्थात, जो 01.01.2026 से पहले या 01.01.2026 के बाद सेवानिवृत्त हुए हैं) के मामले में पेंशन में समानता शामिल है।
आठवें वेतन आयोग के संदर्भ-विषयों के कुछ महत्वपूर्ण पहलू, जिन पर सेवारत कर्मचारियों और पेंशनभोगियों, दोनों के व्यापक हित में पुनर्विचार व उचित संशोधन किए जाने की आवश्यकता है। यह एक स्थापित मानदंड है कि केंद्र सरकार के कर्मचारियों के वेतन, भत्ते और पेंशन संबंधी लाभों का संशोधन हर दस वर्ष में एक बार, एक निश्चित कार्यान्वयन तिथि के साथ होता है। चौथा वेतन आयोग 01.01.1986, पांचवां वेतन आयोग 01.01.1996, छठा वेतन आयोग 01.01.2006 और सातवां वेतन आयोग 01.01.2016 से लागू हुआ है।
इस स्थापित मिसाल को देखते हुए, यह स्वतः और न्यायोचित है कि आठवें वेतन आयोग की सिफारिशों को 01.01.2026 से लागू किया जाए। सबसे गंभीर चिंता, कार्य-दिवस के पैरा (ई)(ii) में "गैर-अंशदायी पेंशन योजनाओं की अवित्तपोषित लागत" वाक्यांश के प्रयोग से उत्पन्न होती है। यह शब्दावली आयोग के दायरे में पेंशनभोगियों के अधिकारों और हितों को स्वीकार नहीं करती है।
संवैधानिक तथा न्यायिक रूप से संरक्षित पेंशन अधिकारों को अनुचित रूप से केवल वित्तीय दायित्वों के बराबर मानती है। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने पेंशन की प्रकृति की बार-बार पुष्टि करते हुए यह निर्णय दिया है कि पेंशन कोई उपहार नहीं, बल्कि एक अधिकार है। डीएस नाकारा निर्णय में, न्यायालय ने कहा कि "पेंशन एक सामाजिक कल्याणकारी उपाय है जो उन लोगों को सामाजिक-आर्थिक न्याय प्रदान करता है जिन्होंने अपने जीवन के सर्वश्रेष्ठ समय में नियोक्ता के लिए निरंतर परिश्रम किया।" विजय कुमार बनाम सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया मामले में, न्यायालय ने निर्णय दिया कि पेंशन अनुच्छेद 300ए के तहत एक संवैधानिक अधिकार है।
यह ध्यान देने योग्य है कि सांसदों, सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों, या अन्य संवैधानिक पदाधिकारियों की पेंशन के संदर्भ में ऐसी शब्दावली का कभी भी उपयोग नहीं किया गया है, जिनकी पेंशन भी गैर-अंशदायी है और भारत की संचित निधि से प्राप्त होती है। एक आदर्श नियोक्ता के रूप में, भारत सरकार का अपने सेवानिवृत्त कर्मचारियों की गरिमा और कल्याण को बनाए रखना नैतिक और कानूनी दायित्व है। "पेंशनभोगी" शब्द का विलोपन कानून और सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के विरुद्ध है।
ऐसे में बीपीएस ने "गैर-अंशदायी पेंशन योजनाओं की अवित्तपोषित लागत" शब्दों को हटाने और उनके स्थान पर "सेवानिवृत्ति की तिथि पर ध्यान दिए बिना, पेंशन संशोधन सहित पेंशन और अन्य सेवानिवृत्ति लाभों की संरचना को नियंत्रित करने वाले सिद्धांतों की जाँच करना।, ये शामिल किया जाए। आठवें केन्द्रीय वेतन आयोग को अन्य सेवानिवृत्ति लाभों की समीक्षा करने और उनमें परिवर्तन की सिफारिश करने का भी अधिकार दिया जाना चाहिए, जैसे कि 11 वर्षों के बाद पेंशन के परिवर्तित मूल्य की बहाली और सेवानिवृत्ति की तिथि से प्रत्येक 5 वर्ष में एक बार पेंशन/पारिवारिक पेंशन की अतिरिक्त राशि प्रदान करना, जैसा कि संसदीय स्थायी समिति द्वारा अनुशंसित किया गया है।
01.04.2004 के बाद नियुक्त लगभग 26 लाख कर्मचारी, जो राष्ट्रीय पेंशन योजना (एनपीएस) या एकीकृत पेंशन योजना (यूपीएस) के अंतर्गत आते हैं, सीसीएस पेंशन नियम, 1972 (अब 2021) के तहत पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) की बहाली की पुरज़ोर मांग कर रहे हैं। यूपीएस/एनपीएस को लेकर असंतोष अभी भी बहुत ज़्यादा है। अधिकांश कर्मचारी ओपीएस को प्राथमिकता दे रहे हैं। पेंशनर समाज ने आठवें वेतन आयोग के लिए टीओआर में एक अधिदेश शामिल करने की अपील की है। इसके जरिए मौजूदा पेंशन योजनाओं की जांच की जा सकती है। लाभकारी योजना की सिफ़ारिश की जा सकती है और विशेष रूप से पुरानी पेंशन योजना की बहाली की मांग पर भी विचार किया जा सकता है।
आठवें केंद्रीय वेतन आयोग के लाभों को भारत सरकार के केंद्र द्वारा वित्तपोषित स्वायत्त और वैधानिक निकायों के साथ-साथ ग्रामीण डाक सेवकों (जीडीएस) तक भी पहुंचाया जाना चाहिए, जो डाक विभाग की रीढ़ हैं। इसे भी टीओआर में शामिल किया जाए। पेंशनर समाज द्वारा अंतरिम राहत के रूप में 20 प्रतिशत की तत्काल सहायता का अनुरोध किया गया है। यह आठवें वेतन आयोग की सिफारिशों के गठन और कार्यान्वयन में हुई देरी के कारण हुए नुकसान की भरपाई के लिए है। मुद्रास्फीति के प्रभावों को कम करने और केंद्र सरकार के कर्मचारियों, जो सरकारी तंत्र के कामकाज के लिए महत्वपूर्ण हैं, का मनोबल बढ़ाने के लिए आवश्यक है।
आयोग को केंद्र सरकार के कर्मचारियों और पेंशनभोगियों के लिए मौजूदा स्वास्थ्य योजना की समीक्षा करने और उसमें बदलावों की सिफारिश करने का अधिकार दिया जाना चाहिए। भारत सरकार के स्वायत्त और वैधानिक निकायों में कार्यरत सभी कर्मचारियों के लिए स्वास्थ्य कवरेज का विस्तार हो। जिला मुख्यालयों में और अधिक सीजीएचएस वेलनेस सेंटर खोले जाएं। कर्मचारियों और पेंशनभोगियों के लिए कैशलेस और परेशानी मुक्त चिकित्सा उपचार सुनिश्चित करना। संसद की स्थायी समिति की सिफारिशों के आधार पर सीजीएचएस योजना की जांच और उसमें बदलाव के सुझाव भी दिए गए हैं।