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WHO: 'विश्वसनीयता खत्म हो चुकी है, भारत को छोड़ देनी चाहिए सदस्यता'; कार्डियोलॉजिस्ट डॉ असीम मल्होत्रा का बयान

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: ज्योति भास्कर Updated Sat, 02 Dec 2023 06:14 PM IST
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सार

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) अपनी स्वतंत्रता और विश्वसनीयता को लेकर लगातार सवालों के घेरे में है। ताजा घटनाक्रम में एक वरिष्ठ डॉक्टर ने कहा, भारत सरकार को वैश्विक स्वास्थ्य निकाय से बाहर निकल जाना चाहिए।

WHO Credibility Cardiologist Dr Aseem Malhotra India should exit global health body
विश्व स्वास्थ्य संगठन - फोटो : सोशल मीडिया
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विस्तार
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संयुक्त राष्ट्र की संस्था- विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की विश्वसनीयता और स्वतंत्रता को लेकर अक्सर चर्चा होती है। ताजा घटनाक्रम में प्रख्यात ब्रिटिश-भारतीय हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. असीम मल्होत्रा ने डब्लूएचओ पर गंभीर आरोप लगाए हैं। डॉ असीम ने कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) पूरी तरह से अपनी स्वतंत्रता खो चुका है। उन्होंने कहा कि भारत सरकार को विभिन्न मुद्दों पर डब्लूएचओ की सलाह को नजरअंदाज कर अब वैश्विक स्वास्थ्य निकाय- WHO की सदस्यता छोड़ देनी चाहिए।
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डॉ. असीम मल्होत्रा ने पीटीआई से बातचीत के दौरान दावा किया कि WHO दवाओं से संबंधित डेटा का स्वतंत्र मूल्यांकन नहीं करता। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में "द कॉरपोरेट कैप्चर ऑफ मेडिसिन एंड पब्लिक हेल्थ" विषय पर व्याख्यान में उन्होंने यह भी दावा किया कि एफडीए जैसे दवा नियामकों को  65 फीसदी फंडिंग बड़ी फार्मा कंपनियों से मिलती है। 
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उन्होंने कहा कि एफडीए को दवाओं का मूल्यांकन करना होता है। यूके में FDA जैसे नियामक को फार्मा कंपनियों से 86 फीसदी फंडिंग मिलती है। ऐसे में यह सीधे तौर पर हितों का बड़ा टकराव है। उन्होंने कहा, मरीजों और डॉक्टरों को लगता है कि एफडीए और WHO सरीखे संगठन डेटा का मूल्यांकन स्वतंत्र रूप से कर रहे हैं, लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं होता। उन्होंने कहा कि देश की स्वास्थ्य नीतियों पर दोबारा विचार करना होगा। जब तक हितों के व्यावसायिक टकराव दूर नहीं होते, हम प्रगति नहीं कर सकते। जहां तक डब्ल्यूएचओ की बात है, यूएन का संगठन अपनी स्वतंत्रता पूरी तरह से खो चुका है।

डॉ मल्होत्रा ने कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की 70 प्रतिशत फंडिंग वाणिज्यिक संस्थाओं से आती है। जब तक डब्ल्यूएचओ को औद्योगिक घरानों से फंडिंग या निहित स्वार्थों से आर्थिक मदद मिल रही है, WHO को स्वतंत्र नहीं माना जाना चाहिए। भारत सरकार को इसकी सलाह को नजरअंदाज करना चाहिए। डॉ मल्होत्रा ने आरोप लगाया कि व्यावसायिक संस्थाओं को जनता की सेहत को लेकर कोई दिलचस्पी नहीं है। उनका मकसद केवल धोखे से पैसा कमाना है।

मल्होत्रा ने कहा कि डब्ल्यूएचओ को स्वतंत्र रूप से वित्त पोषित किया जाना चाहिए। ऐसा नहीं होने पर सरकारों, डॉक्टरों और जनता का भरोसा गंवाने का खतरा है। उन्होंने कहा कि डॉक्टर बनने की पढ़ाई व्यावसायिक नियंत्रण में है। हालांकि, अधिकांश डॉक्टरों को यह नहीं पता है। इसका सीधा मतलब यह है कि डॉक्टर जब मरीजों को दवा लेने का सुझाव देते हैं तो उनके पास मौजूद जानकारी पक्षपातपूर्ण और भ्रष्ट हो चुकी है। फार्मा जगत की कंपनियों का एकमात्र मकसद शेयरधारकों के लिए लाभ कमाना है। जनता को सर्वोत्तम उपचार मुहैया कराना नहीं।

मल्होत्रा ने दावा किया कि लगभग हमेशा दवाओं के क्लिनिकल परीक्षण के परिणाम सबसे प्रतिष्ठित चिकित्सा पत्रिकाओं में प्रकाशित कराए जाते हैं। दवाओं से जुड़े सुरक्षा के पहलू और लाभ को अत्यधिक बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाता है। उन्होंने कहा, वह खुद नैतिक, साक्ष्य-आधारित चिकित्सा पद्धति की पैरवी करते हैं। अपने निजी प्रयासों से वे इसे बढ़ावा भी दे रहे हैं। 

उन्होंने कहा कि रोगी की व्यक्तिगत प्राथमिकताओं और डॉक्टरी पेशे के मूल्यों पर भी ध्यान देना बेहद जरूरी है। मल्होत्रा ने दावा किया कि पिछले दो दशकों में बड़ी दवा कंपनियों ने जिन दवाओं का उत्पादन किया है, इसमें अधिकांश नई दवाएं पुरानी दवाओं की नकल हैं। 10 प्रतिशत से भी कम वास्तव में नई दवा है। फार्मा सेक्टर में दवा के अणुओं को बदलकर इसे अधिक महंगा बनाने पर ध्यान दिया जा रहा है। नाम बदल कर दवाओं की फिर से ब्रांडिंग होती है। कंपनियां केवल पैसे कमाएंगी और आगे बढ़ जाएंगी। 

मल्होत्रा ने आरोप लगाया कि कोरोना महामारी के दौरान कोविशील्ड और फाइजर वैक्सीन का धड़ल्ले से इस्तेमाल हुआ। हालांकि, इसके इस्तेमाल का तरीका हेल्थ सेक्टर की पोल खोलता है। अनिवार्य रूप से टीका लगवाने के निर्देश से सिस्टम की सबसे बड़ी विफलता उजागर हुई है। आर्थिक प्रोत्साहन लोगों पर इस कदर हावी हो जाते हैं कि उन्हें अपंग होने या जान से हाथ धोने पर भी फर्क नहीं पड़ता।
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