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Predator drone: क्यों सवालों के घेरे में है ड्रोन सौदा, क्या अमेरिका ने महंगी खरीद के लिए भारत पर बनाया दबाव?

Jitendra Bhardwaj जितेंद्र भारद्वाज
Updated Wed, 28 Jun 2023 05:26 PM IST
सार
Predator drone: कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने कहा, 29 अक्तूबर, 2020 को यूएस न्यूज ने बताया कि अक्तूबर 2020 में भारत और अमेरिका के बीच 2+2 मंत्रिस्तरीय संवाद के दौरान, अमेरिका ने कथित तौर पर भारत पर MQ-9B ड्रोन खरीदने के लिए दबाव डाला था। हालांकि तब भारत ने इनकार कर दिया...
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why Predator drone deal is under question, did United states put pressure on India for expensive purchases?
Predator drone - फोटो : Amar Ujala/Rahul Bisht

विस्तार
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'राफेल' लड़ाकू हवाई जहाज की तरह अब प्रीडेटर 'ड्रोन' का सौदा, सवालों के घेरे में आ गया है। कांग्रेस पार्टी के नेता पवन खेड़ा ने केंद्र सरकार पर सवालों की बौछार कर दी है। उन्होंने अमेरिका के साथ हुए ड्रोन सौदे को लेकर जो बातें कही हैं, उसमें सबसे अहम तथ्य ये है कि दूसरे देशों को जो ड्रोन बहुत कम कीमत पर मिला है, भारत ने वही ड्रोन सबसे ज्यादा कीमत पर क्यों खरीदा है। पवन खेड़ा ने कहा, रक्षा मंत्रालय को एक आधिकारिक पीआईबी स्पष्टीकरण जारी करना पड़ा। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इसे ऑन रिकॉर्ड स्पष्ट किया।

यह भी पढ़ें: Congress: ड्रोन सौदे पर कांग्रेस ने उठाए सवाल, कहा- अन्य देशों की तुलना में भारत क्यों चुका रहा अधिक कीमत

126 की बजाए केवल 36 राफेल जेट खरीदे 

2018-19 में राफेल सौदे के दौरान भी काफी हंगामा मचा था। कांग्रेस सहित कई विपक्षी दलों ने उस वक्त राफेल सौदे पर सवाल उठाए थे। पवन खेड़ा के मुताबिक, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा सर्वोपरि है। इस प्रीडेटर ड्रोन सौदे के बारे में कई संदेह और परेशान करने वाली रिपोर्टें हैं। भारत के लोगों ने राफेल सौदे को देखा है। जहां मोदी सरकार ने 126 की बजाए केवल 36 राफेल जेट खरीदे थे। राफेल खरीद में कैसे एचएएल को टेक्नोलॉजी ट्रांसफर से वंचित कर दिया गया था। रक्षा अधिग्रहण समिति और सशस्त्र बलों की व्यापक आपत्तियों के बावजूद, कैसे कई एकतरफा निर्णय लिए गए। राफेल घोटाला अभी भी फ्रांस में जांच के दायरे में है। कांग्रेस पार्टी, इस प्रीडेटर ड्रोन सौदे में पूर्ण पारदर्शिता की मांग करती है। केंद्र सरकार कई अहम सवालों के जवाब देने चाहिए।

अमेरिका के साथ हुआ 25,200 करोड़ रुपये का सौदा 

भारत का अमेरिका के साथ 31 MQ-9B (16 Sky Guardian और 15 Sea Guardian) High Altitude Long Endurance (HALE) Remotely Piloted Aircraft Systems (RPAS), जिसे आमतौर पर MQ-9B Predator UAV ड्रोन के रूप में जाना जाता है, खरीद का सौदा हुआ है। यह सौदा 3.072 बिलियन अमेरिकी डॉलर (मौजूदा करेंसी एक्सचेंज के हिसाब से 25,200 करोड़ रुपये) का है। कांग्रेस नेता ने बताया कि ये कोई नवीनतम ड्रोन नहीं है। इसका पहला लड़ाकू मिशन 2017 में आया था। नए नवीनतम वेरिएंट के साथ प्रौद्योगिकी में प्रगति हुई है। कई समाचार रपटें इस बात की पुष्टि करती हैं कि अमेरिका इन रिपर्स को हटाना चाहता है। वह अधिक लागत प्रभावी और बेहतर वेरिएंट का विकल्प चुनना चाहता है। साल 2000 के दशक की शुरुआत में इन यूएवी का बाजार आकर्षक था, तब अमेरिकी कानून उनकी बिक्री की अनुमति नहीं देते थे। अब, जब अमेरिका ने उनके निर्यात को मंजूरी दे दी है, तो 'एआई' विकल्पों के साथ अधिक लागत प्रभावी और बेहतर प्रदर्शन करने वाले ड्रोन उपलब्ध हैं। अमेरिका इन्हें निजी कंपनियों से खरीदता है।

इन तथ्यों को नजरअंदाज नहीं कर सकते

कई देशों ने इन MQ-9B प्रीडेटर ड्रोन या इसके समान वेरिएंट को भारत से कम कीमत पर खरीदा है। अमेरिकी वायु सेना ने MQ-9 ड्रोन (बेहतर गुणवत्ता वाला संस्करण) 56.5 मिलियन अमेरिकी डॉलर प्रति ड्रोन के हिसाब से खरीदा है। ब्रिटेन की वायु सेना ने 2016 में प्रति MQ-9B ड्रोन 12.5 मिलियन अमेरिकी डॉलर में खरीदा। ऑस्ट्रेलियाई सरकार को प्रति MQ-9 ड्रोन के लिए 137.58 मिलियन अमेरिकी डॉलर का भुगतान करना था। बाद में उन्होंने ड्रोन की खरीदी रद्द कर दी, क्योंकि उन्हें कीमत बहुत महंगी लगी। स्पेन ने भी प्रति ड्रोन 46.75 मिलियन अमेरिकी डॉलर का भुगतान किया था। ताइवान ने प्रति ड्रोन के लिए 54.40 मिलियन अमेरिकी डॉलर का भुगतान किया। इटली और नीदरलैंड, दोनों देशों ने इसे 82.50 मिलियन अमेरिकी डॉलर प्रति ड्रोन के हिसाब से खरीदा है। केंद्र सरकार, भारत को प्रति ड्रोन 110 मिलियन अमेरिकी डॉलर का भुगतान कर रही है। यह किसी भी देश के लिए सबसे महंगी खरीद है। सरकार ने ऐसा क्यों किया है।

ड्रोन खरीदने के लिए दबाव डाला था
पवन खेड़ा ने कहा, 29 अक्तूबर, 2020 को यूएस न्यूज ने बताया कि अक्तूबर 2020 में भारत और अमेरिका के बीच 2+2 मंत्रिस्तरीय संवाद के दौरान, अमेरिका ने कथित तौर पर भारत पर MQ-9B ड्रोन खरीदने के लिए दबाव डाला था। हालांकि तब भारत ने इनकार कर दिया। साल 2020 में, कई मौजूदा अधिकारियों ने नाम न छापने की शर्त पर बोलते हुए यूएस न्यूज को बताया था कि रीपर की बिक्री राज्य सचिव माइक पोम्पिओ और रक्षा सचिव मार्क एस्पर के एजेंडे में सबसे ऊपर थी। कई समाचार रिपोर्टों से संकेत मिलता है कि जनरल एटॉमिक्स ग्लोबल कॉरपोरेशन के सीईओ ने भारत को समझौते पर हस्ताक्षर कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भारत के पुनर्विचार के पीछे दूसरा महत्वपूर्ण कारण, Predator-B जैसे सशस्त्र ड्रोन की बेहद ज्यादा कीमत है। सैन्य प्रतिष्ठान के अनुसार, एक बिना किसी उपकरण वाले ड्रोन प्लेटफॉर्म की लागत 100 मिलियन डॉलर होती है। लेजर-निर्देशित बम या हेल-फायर मिसाइलों जैसे हथियारों के पूर्ण पूरक की लागत भी 100 मिलियन डॉलर होगी। एक मीडिया रिपोर्ट सैन्य अधिकारी ने ऐसा कहा है।  

कैबिनेट समिति ने नहीं दी खरीद की मंजूरी

पवन खेड़ा ने बताया कि पीएम मोदी की अध्यक्षता वाली सुरक्षा मामलों पर कैबिनेट समिति (सीसीएस) ने 14 जून को एचएएल के सहयोग से 100 फीसदी विनिर्माण मार्ग के माध्यम से भारत में एएफ-414 जेट इंजन के निर्माण के लिए जनरल इलेक्ट्रिक को मंजूरी दे दी है। यहां पर दिलचस्प बात यह है कि सीसीएस की ओर से अमेरिका के साथ 3.072 बिलियन अमेरिकी डॉलर के ड्रोन सौदे को कोई हरी झंडी नहीं दी गई। रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन 'डीआरडीओ' कई उन्नत ड्रोन तकनीक विकसित कर रहा है। उनमें से एक प्रमुख है रूस्तम श्रृंखला। इसे विशेष तौर पर रूस्तम-II, जिसे TAPAS-BH-201 के नाम से भी जाना जाता है। यह एक मीडियम एल्टीट्यूड लॉन्ग एंड्योरेंस, मानव रहित हवाई वाहन है, जिसे अमेरिका के प्रीडेटर ड्रोन की तर्ज पर विकसित किया गया है। इसे मुख्य रूप से खुफिया, निगरानी और टोही मिशनों के लिए डिजाइन किया गया है। यह 24 घंटे से अधिक समय तक हवा में रहने में सक्षम है। इसकी अधिकतम गति लगभग 225 किमी/घंटा और अधिकतम उड़ान ऊंचाई 22,000 फीट से अधिक है।

गुप्त स्वायत्त मानवरहित लड़ाकू वायु वाहन 'घातक'

घातक एक गुप्त स्वायत्त मानवरहित लड़ाकू वायु वाहन है। इसका अर्थ है कि यह न केवल निगरानी कर सकता है, बल्कि लक्ष्यों पर हमला भी कर सकता है। इसे गहरी पैठ वाले स्ट्राइक मिशनों के लिए डिजाइन किया गया है। माना जाता है कि इसके डिजाइन में गुप्त विशेषताएं हैं, जिससे दुश्मन के राडार के लिए इसका पता लगाना कठिन हो जाएगा। रूस्तम श्रृंखला की संपूर्ण विकास परियोजना पर डीआरडीओ द्वारा लगभग ₹1,500 करोड़ (लगभग 200 मिलियन डॉलर) खर्च होने का अनुमान लगाया गया था। जनरल एटॉमिक्स यूएसए के प्रत्येक Predator/Reaper ड्रोन की कीमत लगभग ₹812 करोड़ होगी। भारत उनमें से 31 ड्रोन खरीदने का इच्छुक है। इसका अर्थ है कि भारत 25,200 करोड़ रुपये खर्च करेगा। डीआरडीओ इसे महज 10-20 फीसदी लागत में विकसित कर सकता है।

कांग्रेस पार्टी ने पूछे सवाल

ड्रोन सौदे को मंजूरी देने के लिए सुरक्षा पर कैबिनेट समिति की बैठक क्यों नहीं हुई। क्या यह राफेल सौदे की याद नहीं दिला रहा है, जिसमें पीएम मोदी ने रक्षा मंत्रालय या विदेश मंत्रालय को इसकी जानकारी दिए बिना एकतरफा 36 राफेल सौदे पर हस्ताक्षर कर दिए थे। भारत दूसरे देशों की तुलना में ड्रोन के लिए ज्यादा कीमत क्यों चुका रहा है। हम उस ड्रोन के लिए सबसे अधिक कीमत क्यों चुका रहे हैं, जिसमें एआई एकीकरण नहीं है। जब वायुसेना को इन ड्रोन की आसमान छूती कीमतों पर आपत्ति थी, तो डील करने की इतनी जल्दबाजी क्या थी। निश्चित रूप से, यह मूल्य निर्धारण और एआई एकीकरण सहित अन्य तकनीकी विशिष्टताओं पर बातचीत के बाद हो सकता था।

मेक इन इंडिया और 'आत्मनिर्भर भारत' का क्या हुआ

रक्षा क्षेत्र में 'मेक इन इंडिया' और 'आत्मनिर्भर भारत' का क्या हुआ। यदि घरेलू उपयोग के लिए इन ड्रोन का निर्माण करने का कोई इरादा नहीं था और यदि भारत जनरल एटॉमिक्स यूएसए द्वारा निर्मित 110 मिलियन अमेरिकी डॉलर/ड्रोन का भुगतान करने को तैयार था, तो DRDO द्वारा TAPAS -BH-201 के विकास के लिए ₹1,786 करोड़ क्यों खर्च किए गए। डील के लिए अमेरिका से केवल 8-9 फीसदी टेक्नोलॉजी ट्रांसफर की सुविधा क्यों है। 20 दिसंबर 2017 को, लोकसभा में एक लिखित उत्तर में, रक्षा राज्य मंत्री ने कहा कि प्रीडेटर 'बी' सी गार्जियन की खरीद वैश्विक श्रेणी के तहत की जा रही है। टेक्नोलॉजी ट्रांसफर की परिकल्पना नहीं की गई है। क्या मोदी सरकार अब स्पष्ट करेगी कि भारत ने कभी इन ड्रोन के लिए टेक्नोलॉजी ट्रांसफर की परिकल्पना क्यों नहीं की। अप्रैल 2023 में (सिर्फ 2 महीने पहले), भारतीय सशस्त्र बलों ने केंद्र सरकार को सूचित किया कि प्रीडेटर ड्रोन की आवश्यकता सिर्फ 18 है, 31 नहीं। सरकार अब 31 ड्रोन क्यों खरीद रही है।

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