{"_id":"5a39eb7c4f1c1b6e468bb9ec","slug":"wind-mills-have-addressed-the-power-needs-of-gujarat","type":"feature-story","status":"publish","title_hn":"गुजरात का एक और रौशन चेहरा देखिए","category":{"title":"India News","title_hn":"भारत","slug":"india-news"}}
गुजरात का एक और रौशन चेहरा देखिए
गुजरात से लौटकर अतुल सिन्हा
Updated Wed, 20 Dec 2017 10:17 AM IST
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पवन चक्की
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चुनावी नतीजों की गहमा गहमी के बीच आज आपको गुजरात के गांवों का एक रौशन चेहरा दिखाते हैं। पवन ऊर्जा के क्षेत्र में काम करने वाली कंपनियों के दबदबे का एक मजबूत केन्द्र गुजरात भी है। कच्छ के समुद्री किनारों से लेकर पोरबंदर से सोमनाथ जाते वक्त आपको सैकड़ों विंड मिल्स यानी पवन चक्कियां दिख जाएंगी। विशाल सफेद खंभों (टावर) के ऊपर लगे तीन बड़े बड़े रोटर ब्लेड्स (पंखे)।
कई किलोमीटर तक लगाई गई ये खूबसूरत सफेद पवन चक्कियां कुछ घूमती हुई दिखीं तो कुछ शांत खड़ी। इसे ही विंड टरबाइन यूनिट भी कहते हैं। पुणे से पंचगणी और महाबलेश्वर जाते वक्त भी हडप्सर पार करते करते पहाड़ों पर लगी विंड मिल्स या पवन चक्कियों की ऐसी ही कतारों ने पहले भी हमारा ध्यान खींचा था। पुणे में ही सुजलॉन एनर्जी का मुख्यालय है। सुजलॉन विंड टरबाइन बनाने वाली भारत की सबसे बड़ी कंपनी है।
प्रधानमंत्री मोदी अपने चुनावी भाषणों में इन पवन चक्कियों से बनने वाली बिजली और गुजरात के गांव-गांव को रौशन कर देने वाली अपनी उपलब्धियों का जिक्र बार-बार करते रहे हैं। इन तटीय इलाकों में विंड मिल्स की कतार देखकर ये एहसास हुआ भी। ऊर्जा के तमाम स्रोतों में से एक हवा से बिजली बनाने का ये रास्ता वैसे तो करीब डेढ़ सौ साल पहले ढूंढ लिया गया था। लेकिन अब यही पवन चक्कियां आधुनिक विंड मिल्स में बदल गई हैं और ऊर्जा के क्षेत्र में काम करने वाली तमाम कंपनियां इसमें भारी मुनाफा देख रही हैं।
इसीलिए 1995 में गुजरात के ही तुलसी तांती ने पवन ऊर्जा के क्षेत्र में कदम रखकर सुजलॉन कंपनी बनाई जो महज 22 सालों में भारत की सबसे बड़ी और एशिया की चौथे नंबर की कंपनी बन गई। आज इसमें 9 हजार लोग काम करते हैं और इसने 5000 मेगावाट बिजली बनाने का रिकॉर्ड बनाया है।
1995 से पहले राजकोट में तुलसी तांती का पुश्तैनी कारोबार टैक्सटाइल का था। लेकिन बिजली की समस्या से परेशान होकर पहले उन्होंने अपनी कंपनी के लिए दो टरबाइन खरीदा, बाद में अपना पुश्तैनी व्यवसाय छोड़कर पुणे में जा बसे और सुजलॉन कंपनी बना ली। यहीं से पवन ऊर्जा के क्षेत्र में उनका कमाल दुनिया देख रही है और आज वो देश के सबसे अमीर उद्योगपतियों में शुमार हो चुके हैं।
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कई किलोमीटर तक लगाई गई ये खूबसूरत सफेद पवन चक्कियां कुछ घूमती हुई दिखीं तो कुछ शांत खड़ी। इसे ही विंड टरबाइन यूनिट भी कहते हैं। पुणे से पंचगणी और महाबलेश्वर जाते वक्त भी हडप्सर पार करते करते पहाड़ों पर लगी विंड मिल्स या पवन चक्कियों की ऐसी ही कतारों ने पहले भी हमारा ध्यान खींचा था। पुणे में ही सुजलॉन एनर्जी का मुख्यालय है। सुजलॉन विंड टरबाइन बनाने वाली भारत की सबसे बड़ी कंपनी है।
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प्रधानमंत्री मोदी अपने चुनावी भाषणों में इन पवन चक्कियों से बनने वाली बिजली और गुजरात के गांव-गांव को रौशन कर देने वाली अपनी उपलब्धियों का जिक्र बार-बार करते रहे हैं। इन तटीय इलाकों में विंड मिल्स की कतार देखकर ये एहसास हुआ भी। ऊर्जा के तमाम स्रोतों में से एक हवा से बिजली बनाने का ये रास्ता वैसे तो करीब डेढ़ सौ साल पहले ढूंढ लिया गया था। लेकिन अब यही पवन चक्कियां आधुनिक विंड मिल्स में बदल गई हैं और ऊर्जा के क्षेत्र में काम करने वाली तमाम कंपनियां इसमें भारी मुनाफा देख रही हैं।
इसीलिए 1995 में गुजरात के ही तुलसी तांती ने पवन ऊर्जा के क्षेत्र में कदम रखकर सुजलॉन कंपनी बनाई जो महज 22 सालों में भारत की सबसे बड़ी और एशिया की चौथे नंबर की कंपनी बन गई। आज इसमें 9 हजार लोग काम करते हैं और इसने 5000 मेगावाट बिजली बनाने का रिकॉर्ड बनाया है।
1995 से पहले राजकोट में तुलसी तांती का पुश्तैनी कारोबार टैक्सटाइल का था। लेकिन बिजली की समस्या से परेशान होकर पहले उन्होंने अपनी कंपनी के लिए दो टरबाइन खरीदा, बाद में अपना पुश्तैनी व्यवसाय छोड़कर पुणे में जा बसे और सुजलॉन कंपनी बना ली। यहीं से पवन ऊर्जा के क्षेत्र में उनका कमाल दुनिया देख रही है और आज वो देश के सबसे अमीर उद्योगपतियों में शुमार हो चुके हैं।
25 हजार रुपये में भी बन रहे हैं विंड मिल
सुजलॉन का विशाल प्लांट जहां विंड मिल तैयार होते हैं
- फोटो : Amar Ujala
पोरबंदर के आगे लगी ऐसी ही एक टरबाइन यूनिट में काम करने वाले एक तकनीकी कर्मचारी ने बताया कि ओएनजीसी और टाटा पावर जैसी बड़ी-बड़ी कंपनियां पवन ऊर्जा के क्षेत्र में गुजरात में बड़ा निवेश कर रही हैं और ओएनजीसी ने तो सुजलॉन पावर को सबसे बड़ा ठेका दिया है। यह भी पता चला कि कच्छ जिले के मोतीसिन्धोली में ओएनजीसी ने करीब 50 टरबाइनों वाले पवन फर्म से 50 मेगावाट बिजली बनाना शुरू भी कर दिया है।
उधर जामनगर से निकलते वक्त समना गांव के पास स्थानीय लोगों से पता चला कि गुजरात सरकार जामनगर के समना और सदोदर गांव को पवन ऊर्जा के टरबाइन केन्द्रों के लिए विकसित कर रही है और यहां का काम टाटा पावर और चाइना लाइट पावर को दिया गया है। समना में एक सब-स्टेशन बन भी गया है और यहां करीब 150 मेगावाट बिजली बनाने के लिए सवा सौ से ज्यादा विंड टरबाइन काम करने लगे हैं।
इन दिलचस्प जानकारियों के साथ जब हम भुज से अहमदाबाद की ओर बढ़ रहे थे तभी हमें नजर आया सुजलॉन का वो विशाल प्लांट जहां इन टरबाइनों के रोटर ब्लेड्स बनते हैं। दूर से छोटे दिखने वाले इन पंखों को करीब से देखना एक अनुभव था। एक पंख की चौड़ाई होती है 2 से 3 मीटर और लंबाई 15 से 20 मीटर। इस प्लांट के विशाल मैदान में ऐसे पचासों ब्लेड्स रखे थे।
यहां काम करने वाले एक कर्मचारी ने बताया कि उनकी कंपनी की अलग अलग यूनिट्स में विंड मिल्स के अलग अलग पार्ट्स बनते हैं जैसे – रोटर ब्लेड्स के अलावा टावर, जेनरेटर, गियर बॉक्स, फाउंडेशन हब, ब्रेक आदि। बाद में इन्हें उस जगह ले जाया जाता है जहां इन्हें लगना होता है, फिर वहीं इन तमाम पुर्जों को जोड़कर एक विंड मिल तैयार होता है।
यह भी पता चला कि सुजलॉन और दूसरी बड़ी कंपनियों के अलावा अब छोटे किसानों और नमक बनाने वाले किसानों के लिए महज 25 हजार रूपये की लागत वाले नए विंड मिल भी बनाए जा रहे हैं जिसे ग्रासरूट इनोवेशन ऑगमेंटेशन नेटवर्क (जीआईएएन) तैयार कर रहा है। जाहिर है पवन ऊर्जा के क्षेत्र में गुजरात के इन इलाकों को देखकर विकास की एक नई तस्वीर जरूर नजर आती है जो आने वाले वक्त में पवन ऊर्जा के क्षेत्र में हो रहे नए-नए प्रयोगों और तकनीक के इस्तेमाल की कहानी कहती है।
उधर जामनगर से निकलते वक्त समना गांव के पास स्थानीय लोगों से पता चला कि गुजरात सरकार जामनगर के समना और सदोदर गांव को पवन ऊर्जा के टरबाइन केन्द्रों के लिए विकसित कर रही है और यहां का काम टाटा पावर और चाइना लाइट पावर को दिया गया है। समना में एक सब-स्टेशन बन भी गया है और यहां करीब 150 मेगावाट बिजली बनाने के लिए सवा सौ से ज्यादा विंड टरबाइन काम करने लगे हैं।
इन दिलचस्प जानकारियों के साथ जब हम भुज से अहमदाबाद की ओर बढ़ रहे थे तभी हमें नजर आया सुजलॉन का वो विशाल प्लांट जहां इन टरबाइनों के रोटर ब्लेड्स बनते हैं। दूर से छोटे दिखने वाले इन पंखों को करीब से देखना एक अनुभव था। एक पंख की चौड़ाई होती है 2 से 3 मीटर और लंबाई 15 से 20 मीटर। इस प्लांट के विशाल मैदान में ऐसे पचासों ब्लेड्स रखे थे।
यहां काम करने वाले एक कर्मचारी ने बताया कि उनकी कंपनी की अलग अलग यूनिट्स में विंड मिल्स के अलग अलग पार्ट्स बनते हैं जैसे – रोटर ब्लेड्स के अलावा टावर, जेनरेटर, गियर बॉक्स, फाउंडेशन हब, ब्रेक आदि। बाद में इन्हें उस जगह ले जाया जाता है जहां इन्हें लगना होता है, फिर वहीं इन तमाम पुर्जों को जोड़कर एक विंड मिल तैयार होता है।
यह भी पता चला कि सुजलॉन और दूसरी बड़ी कंपनियों के अलावा अब छोटे किसानों और नमक बनाने वाले किसानों के लिए महज 25 हजार रूपये की लागत वाले नए विंड मिल भी बनाए जा रहे हैं जिसे ग्रासरूट इनोवेशन ऑगमेंटेशन नेटवर्क (जीआईएएन) तैयार कर रहा है। जाहिर है पवन ऊर्जा के क्षेत्र में गुजरात के इन इलाकों को देखकर विकास की एक नई तस्वीर जरूर नजर आती है जो आने वाले वक्त में पवन ऊर्जा के क्षेत्र में हो रहे नए-नए प्रयोगों और तकनीक के इस्तेमाल की कहानी कहती है।