Uttarakhand: सुनकिया गांव की महिलाओं ने शुरू की नई पहल, घस्यारियों के घर में करें पहाड़ का अनोखा अनुभव
उत्तराखंड के नैनीताल जिले के सुनकिया गांव में आप शहर की भीड़भाड़ से दूर एक अनोखा अनुभव कर सकते हैं। घस्यारी होमस्टे में रहने आपको पहाड़ों की संस्कृति का पूरा मजा दिलाएगा। इस होमस्टे में ठहरना किसी होटल या रिसॉर्ट में रहने जैसा नहीं है। यहां मेहमानों को गांव का हिस्सा माना जाता है। आइए विस्तार से जानते हैं।
विस्तार
हिल स्टेशनों की भीड़ और शोर से दूर, अगर आप सच में पहाड़ को महसूस करना चाहते हैं, तो इस बार उत्तराखंड के नैनीताल जिले के सुनकिया गांव का रुख कर सकते हैं। यहां आपको एक अनोखा अनुभव मिलेगा। यह अनुभव आप हासिल कर सकेंगे घस्यारी होमस्टे में। यहां रहने का मतलब सिर्फ ठहरना नहीं, बल्कि पहाड़ में रहने वालों की संस्कृति से रूबरू होना है।
घस्यारी से घस्यारी होमस्टे तक का सफर
पारंपरिक तौर पर घस्यारी कहलाने वाली महिलाएं वे होती हैं जो रोज जंगलों से अपने पशुओं के लिए घास काटकर लाती हैं। लेकिन सुनकिया गांव की इन महिलाओं ने इस पहचान को अपनी ताकत बना लिया। उन्होंने अपने पुश्तैनी घरों को ही घस्यारी होमस्टे में बदल दिया। खास बात यह है कि इसमें कोई बाहरी फंडिंग नहीं ली गई। गांव की पुरानी आल्टा-पाल्टा (आपसी श्रम) की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए, महिलाओं ने मिलकर अपने घरों की मरम्मत और साज-सज्जा खुद की। आज यह मॉडल ग्रामीण आत्मनिर्भरता और महिला सशक्तिकरण की मिसाल बन चुका है।
घस्यारी होमस्टे में करें संस्कृति का अनुभव
घस्यारी होमस्टे में ठहरना किसी होटल या रिसॉर्ट में रहने जैसा नहीं है। यहां मेहमानों को गांव का हिस्सा माना जाता है। महिलाएं उन्हें गपशप के दौरान में शामिल करती हैं, पारंपरिक कुमाऊंनी झोड़ा नृत्य सिखाती हैं और गांव के बुजुर्गों से लोककथाएं सुनने का मौका देती हैं। यह अनुभव बनावटी नहीं, असली और दिल से जुड़ा होता है। यहां का खाना भी उतना ही खास है। यहां आप मिट्टी के चूल्हे पर बने भट्ट की चुड़कानी, झंगोरे की खीर और मंडुवे की रोटी का स्वाद पा सकेंगे। अगर चाहें तो आप भी इन व्यंजनों को बनाना सीख सकते हैं या महिलाओं के साथ जंगल में निकलकर बुरांश के फूल और अन्य जंगली सामग्री इकट्ठा कर सकते हैं, जिनसे रस, अचार और जड़ी-बूटियां तैयार की जाती हैं।
घस्यारी महिलाओं की यह पहल दिखाती है कि अगर इरादा मजबूत हो तो बदलाव अपने घर से भी शुरू हो सकता है। उन्होंने साबित किया है कि आत्मनिर्भरता और संस्कृति से जुड़ा पर्यटन न सिर्फ पर्यावरण के अनुकूल है, बल्कि पूरे गांव की अर्थव्यवस्था को भी मजबूत कर सकता है।
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