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पहले पशुधन मेले में उमड़े लोग

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cattle fair
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नगरी में बुधवार को प्रदेश का पहला पशुधन मेला लगा। इसमें किसानों को पशुपालन के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से पशुपालन विभाग द्वारा आयोजित मेले में देसी-विदेशी नस्लों के सैकड़ों दुधारू पशुओं की प्रदर्शनी लगाई गई। इस दौरान गाय की जर्सी, फ्रीजियन, हरियाणा, साहीवाल के साथ गुजरात की गिरी और राजस्थान की राठी जैसी नस्लों और भैंस की मुर्रा और नीली रावी जैसी उन्नत नस्लों का प्रदर्शन किया गया, जो आकर्षण का केंद्र बनीं।
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पशुपालन विभाग के साथ अन्य विभागों द्वारा लगाए स्टालों से पशुपालन की महत्वपूर्ण जानकारी किसानों को दी गई। जिसे देखने के लिए सुबह से किसानों का हुजूम मेला स्थल पर उमड़ा रहा। नगरी में पशुधन मेले के सफल आयोजन के बाद अब आगामी 15 अप्रैल को हीरानगर में इसी तरह के मेले का आयोजन किया जाएगा। इसकी घोषणा प्रधान सचिव पशुपालन नवीन चौधरी ने नगरी में आयोजित समारोह के दौरान कही।
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उन्होंने कहा कि खेतीबाड़ी से जुड़ा हुआ विभाग होने के कारण पशुपालन विभाग सरकार द्वारा किसानों की आय को दोगुना करने की घोषणा के तहत आयोजित इस मेले में किसानों ने जिस प्रकार की रुचि दिखाई है, वह उनके विभाग को उत्साहित करती है। लिहाजा अब विभाग द्वारा समय-समय पर इसका आयोजन किया जाएगा, ताकि किसानों की आय को पशुपालन के जरिए बढ़ाया जा सके।
पशुपालन विभाग के निदेशक विवेक शर्मा ने बताया कि किसानों की आय बढ़ाने के लिए विभाग द्वारा एकीकृत डेयरी विकास योजना चलाई जा रही है। इसके माध्यम से अपनी डेयरी शुरू करने वाले किसानों को 50 प्रतिशत सब्सिडी विभाग के माध्यम से दी जा रही है। उन्होंने किसानों को विभाग की योजना का ज्यादा से ज्यादा लाभ उठाने को कहा।
मुख्य अतिथि ने कहा कि हमारे समाज में एक आम मानसिकता ने जन्म लिया है, जिसमें डॉक्टर का बेटा डॉक्टर, इंजीनियर का बेटा इंजीनियर और आईएएस का बेटा आईएएस तो बनना चाहता है लेकिन किसान का बेटा किसान नहीं बनना चाहता है। ग्रेजूएट और पोस्ट ग्रेजूएट होने के बाद किसान का बेटा चतुर्थ श्रेणी के अस्थाई कर्मचारी की नौकरी करने के लिए सहर्ष तैयार होता है। लेकिन खेती को नहीं अपनाता। इसका मुख्य कारण कृषि में आमदनी का न्यूनतम होना है। अगर हम कृषि के साथ सहायक रोजगारों को भी अपनाएं तो आय बढ़ सकती है। सरकार लगातार इसके लिए प्रयास कर रही है। युवाओं को भी इसके लिए आगे आने की जरूरत है।
उन्होंने स्थानीय लोंगों की मांग पर नगरी के पशु चिकित्सा केंद्र को सुविधा संपन्न बनाने के साथ एक पशु चिकित्सा मोबाइल वैन की सुविधा भी शुरू करने की घोषणा की। अंत में उन्होंने मेले में अपने पशु लेकर पहुंचे पशुपालकों को सम्मनित भी किया। इस मौके पर डीसी राहुल यादव, जिला विकास परिषद के उपचेयरमैन रघुनंदन सिंह, जिला विकास परिषद सदस्य नगरी संदीप मजोत्रा, नगरी म्यूनिसिपल कमेटी के चेयरमैन अनिल सिंह अंदोत्रा, बागवानी निदेशक राम सेवक, जिला पशुपालन अधिकारी सतवीर सिंह के अलावा कई अन्य विभागों के अधिकारी उपस्थित रहे।
ऐसे आयोजन समय-समय पर होते रहने चाहिए
पशुधन मेले का आयोजन अच्छी पहल है। इसके माध्यम से ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले लोगों को कई नई नस्लों के बारे में जानकारी मिली है। लेकिन इस तरह के आयोजन समय समय पर होते रहने चाहिए, ताकि किसान को बेहतर से बेहतर जानकारी मिल सके।
- सुभाष शर्मा, किसान
गाय-भैंस को खरीदने की व्यवस्था भी होनी चाहिए
मेले में दुधारू पशुओं की प्रदर्शनी के साथ ऐसी व्यवस्था भी होनी चाहिए कि इच्छुक किसान अगर किसी नस्ल की गाय या फिर भैंस को खरीदना चाहे, तो वह भी उसे उपलब्ध हो। साथ ही यह खरीद विभाग के माध्यम से होनी चाहिए, ताकि किसान के साथ किसी प्रकार की धोखाधड़ी न हो सके।
- करतार चंद, किसान
ग्रामीण क्षेत्र के लोगों के लिए सराहनीय पहल
ग्रामीण क्षेत्र में लोगों को रोजगार के साधन उपलब्ध कराने के लिए की जा रही पहल सराहनीय है। लेकिन इसके साथ मेले में ही सरकार की ओर से ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिए कि वहीं से उसे पशुओं को खरीदने के लिए ऋण भी उपलब्ध हो पाए।
- प्रभात सिंह, किसान
मेले का आयोजन निश्चित अवधि पर किया जाए
मेले में प्रदर्शित किए गए दुधारू मवेशी 80 हजार से लेकर 1.25 लाख तक की कीमत के हैं। इतना पैसा किसान के पास हर समय उपलब्ध नहीं होता है। अगर इस तरह के मेले का आयोजन निश्चित अवधि पर किया जाए, तो ही किसान यहां से अपनी पसंद का मवेशी खरीदने के लिए पैसों का इंतजाम कर सकता है।
- केवल किशन शर्मा, किसान
पांच वर्ष पूर्व गिरी नस्ल की गाय को पाला
मेले में अपनी गिरी नस्ल की गाय को लेकर पहुंचे पशुपालक नितिन ने बताया कि करीब पांच वर्ष पूर्व उन्होंने इस गाय को पाला। आज उनके पास इस नस्ल की दो गाय और एक बछड़ी है। औसतन 18 से 20 लीटर प्रतिदिन दूध देने वाली उनकी गाय के दूध की गुणवत्ता किसी भी अन्य नस्ल की गाय से ज्यादा अच्छी है। सबसे ज्यादा लाभ उन्हें इसका भारतीय नस्ल से होना है। इससे यह हमारे वातावरण में आसानी से रह लेती हैं और उन्हें किसी विदेशी नस्ल की गाय की अपेक्षा कम चिकित्सकीय सेवा लेनी पड़ती है।
पंजाब में लगने वाले मेले से खरीदी थी साहीवाल
मेले में अपनी साहीवाल नस्ल की गाय को लेकर पहुंचे पशुपालक सुभाष चंद्र ने बताया कि पड़ोसी राज्य पंजाब में लगने वाले पशु मेले से उन्होंने अपनी गाय को तब खरीदा था। जब वह मात्र 14 महीने की बछड़ी थी। आज उनकी गाय सुबह और शाम में मिलाकर करीब तीस लीटर तक दूध दे रही है। जो कि काफी अच्छा दूध का उत्पादन है वहीं दूध की क्वालिटी भी बहुत अच्छी है। जिसके कारण उन्हें दूध के दाम भी अच्छे मिल रहे है।
विदेशी पर देसी नस्लें दिखी भारी
आम अवधारणा के विपरीत मेले में प्रदर्शित की गई देसी नस्लों की गाय वहां आने वाले लोगों में आकर्षण का केंद्र बनी रही। ज्यादातर लोगों ने मेले में प्रदर्शित की गई गुजरात की गिरी, राजस्थान की राठी और साहिवाल गाय के बारे में जानने के लिए उत्सुक दिखे। हालांकि मेले में जर्सी, फ्रीजियन जैसी गाय भी प्रदर्शित की गई थी, लेकिन उन गायों के बारे में जानने के लिए कम ही लोग उत्सुक दिखाई दिए।
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