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मेले में 331 दुधारू पशुओं की हुई बिक्री
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हीरानगर। परंपरागत खेती के साथ किसानों को पशुपालन के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से मिनी स्टेडियम में 28 जुलाई को शुरू किया गया पशुधन व्यापार मेले का शुक्रवार को समापन हो गया। दो दिवसीय मेले को उपराज्यपाल के निर्देश पर एक दिन के लिए और बढ़ाया गया था। मेले को लेकर किसान काफी उत्साहित दिखे।
पशुपालन विभाग के मुख्य जिला अधिकारी डॉक्टर सतवीर सिंह ने बताया कि मेले में करीब 331 दुधारू पशुओं की बिक्री हुई। इनमें से 280 पशु दूसरे राज्यों से आए थे। अन्य पशु सांबा, कठुआ, किश्तवाड़, डोडा जैसे इलाकों से लाए गए थे। इसमें साहिवाल, जर्सी, मुर्राह, एच एफ आदि कई नस्लों के दुधारू पशु लाए गए थे। उन्होंने कहा कि मेले का लोगों ने लाभ उठाया और इस तरह के मेले फिर से कराने की मांग भी की। यहां आए लोगों ने पशुपालन के लिए सब्सिडी व अन्य योजनाओं की जानकारी हासिल की।
पशुपालन के प्रति किसानों की रुचि को देखते हुए कहा जा सकता है कि बहुत जल्द किसान परंपरागत खेती के अलावा डेयरी फार्मिंग में भी तेजी से हिस्सा लेंगे। प्रदेश के दूरदराज इलाके से मेले में आए लोगों ने कहा कि सरकार की इस पहल का बेहद लाभ हुआ है। वहीं एक से एक बढ़िया नस्ल के दुधारू पशु लेकर दूसरे राज्यों से आए व्यापारियों ने कहा कि यहां उन्हें पशुओं की अच्छी कीमत मिली है और यह सब इस मेले से संभव हो पाया है। बहुत से लोगों ने इस तरह के मेले भविष्य में भी लगाने की मांग की।
इस तरह के मेले भविष्य में लगते रहें
मेले में अपनी जर्सी गाय को लेकर आए तरिडो राम ने कहा कि पहली बार उन्हें इस तरह के मेले में हिस्सा लेने का मौका मिला है। यहां आकर बहुत सी नई नस्लें हमें देखने को मिलीं। खास तौर पर यहां गाय की इतनी नस्लें थीं, जिनके बारे में हमें पहले कोई जानकारी नहीं थी। यह जानकारी इस मेले की बदौलत मिली है। यही नहीं, कौन सी नस्ल को कैसे पालना चाहिए की जानकारी भी मिली। इस तरह के मेले भविष्य में भी लगने चाहिए।
कई नस्ल के दुधारू पशु देखने को मिले मौका
सुरेंद्र सिंह ने कहा वह एच एफ नस्ल की दो गाय लेकर मेले में आए। सही रेट न बनने के कारण कोई भी गाय नहीं बिकी। लेकिन मुझे इसकी कोई चिंता नहीं है, बल्कि इस बात की खुशी है कि इस तरह का मेला पहली बार हमारे इलाके में आयोजित किया गया, जिसमें हमें हिस्सा लेने और यहां आए कई नस्लों के दुधारू पशु देखने का मौका मिला। पशुपालन से किस तरह से किसान आय में बढ़ोतरी कर सकते हैं, यह जानकारी भी हमें मिली, जो कि बेहद अहम थी।
पहाड़ी इलाकों में भी लगाए जाएं ऐसे मेले
रामबन से आए गुलजार अहमद शाह ने कहा कि वह अपने साथी के साथ यहां मवेशी खरीदने पहुंचे। जर्सी नस्ल की दो गाय खरीदी हैं। अगर हम इस मेले में नहीं पहुंच पाते, तो इस नस्ल की गाय खरीदने के लिए हमें कई राज्यों में भटकना पड़ सकता था। जिन दुधारू पशुओं को खरीदने के लिए हमें दूसरे राज्यों में जाना पड़ता था, वह सब एक पंडाल में देखने को मिल गए। उन्होंने उपराज्यपाल से मांग करते हुए कहा इस तरह के मेले हर 3 या 4 महीने के बाद लगाए जाएं। पहाड़ी इलाकों में भी इनका आयोजन किया जाना चाहिए, ताकि दूरदराज के लोग यहां आकर बढ़िया नस्ल के पशु खरीद सकें।

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पशुपालन विभाग के मुख्य जिला अधिकारी डॉक्टर सतवीर सिंह ने बताया कि मेले में करीब 331 दुधारू पशुओं की बिक्री हुई। इनमें से 280 पशु दूसरे राज्यों से आए थे। अन्य पशु सांबा, कठुआ, किश्तवाड़, डोडा जैसे इलाकों से लाए गए थे। इसमें साहिवाल, जर्सी, मुर्राह, एच एफ आदि कई नस्लों के दुधारू पशु लाए गए थे। उन्होंने कहा कि मेले का लोगों ने लाभ उठाया और इस तरह के मेले फिर से कराने की मांग भी की। यहां आए लोगों ने पशुपालन के लिए सब्सिडी व अन्य योजनाओं की जानकारी हासिल की।
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पशुपालन के प्रति किसानों की रुचि को देखते हुए कहा जा सकता है कि बहुत जल्द किसान परंपरागत खेती के अलावा डेयरी फार्मिंग में भी तेजी से हिस्सा लेंगे। प्रदेश के दूरदराज इलाके से मेले में आए लोगों ने कहा कि सरकार की इस पहल का बेहद लाभ हुआ है। वहीं एक से एक बढ़िया नस्ल के दुधारू पशु लेकर दूसरे राज्यों से आए व्यापारियों ने कहा कि यहां उन्हें पशुओं की अच्छी कीमत मिली है और यह सब इस मेले से संभव हो पाया है। बहुत से लोगों ने इस तरह के मेले भविष्य में भी लगाने की मांग की।
इस तरह के मेले भविष्य में लगते रहें
मेले में अपनी जर्सी गाय को लेकर आए तरिडो राम ने कहा कि पहली बार उन्हें इस तरह के मेले में हिस्सा लेने का मौका मिला है। यहां आकर बहुत सी नई नस्लें हमें देखने को मिलीं। खास तौर पर यहां गाय की इतनी नस्लें थीं, जिनके बारे में हमें पहले कोई जानकारी नहीं थी। यह जानकारी इस मेले की बदौलत मिली है। यही नहीं, कौन सी नस्ल को कैसे पालना चाहिए की जानकारी भी मिली। इस तरह के मेले भविष्य में भी लगने चाहिए।
कई नस्ल के दुधारू पशु देखने को मिले मौका
सुरेंद्र सिंह ने कहा वह एच एफ नस्ल की दो गाय लेकर मेले में आए। सही रेट न बनने के कारण कोई भी गाय नहीं बिकी। लेकिन मुझे इसकी कोई चिंता नहीं है, बल्कि इस बात की खुशी है कि इस तरह का मेला पहली बार हमारे इलाके में आयोजित किया गया, जिसमें हमें हिस्सा लेने और यहां आए कई नस्लों के दुधारू पशु देखने का मौका मिला। पशुपालन से किस तरह से किसान आय में बढ़ोतरी कर सकते हैं, यह जानकारी भी हमें मिली, जो कि बेहद अहम थी।
पहाड़ी इलाकों में भी लगाए जाएं ऐसे मेले
रामबन से आए गुलजार अहमद शाह ने कहा कि वह अपने साथी के साथ यहां मवेशी खरीदने पहुंचे। जर्सी नस्ल की दो गाय खरीदी हैं। अगर हम इस मेले में नहीं पहुंच पाते, तो इस नस्ल की गाय खरीदने के लिए हमें कई राज्यों में भटकना पड़ सकता था। जिन दुधारू पशुओं को खरीदने के लिए हमें दूसरे राज्यों में जाना पड़ता था, वह सब एक पंडाल में देखने को मिल गए। उन्होंने उपराज्यपाल से मांग करते हुए कहा इस तरह के मेले हर 3 या 4 महीने के बाद लगाए जाएं। पहाड़ी इलाकों में भी इनका आयोजन किया जाना चाहिए, ताकि दूरदराज के लोग यहां आकर बढ़िया नस्ल के पशु खरीद सकें।