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Parenting Tips: बचपन से मेकअप की लत? जानिए क्या आपके बच्चे भी सेफोरा किड्स का हिस्सा हैं
लाइफस्टाइल डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: शिवानी अवस्थी
Updated Sat, 06 Sep 2025 06:11 PM IST
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सार
Sephora Kids Syndrome: क्या आपकी बच्ची को मेकअप बहुत पसंद है और वह अभी से हर मेकअप ट्रेंड को फॉलो करने लगी है? जानकार कहते हैं कि यह ‘सेफोरा किड’ की पहचान है।

सेफोरा किड सिंड्रोम क्या है
- फोटो : Adobe stock
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विस्तार
प्रज्ञा पाण्डेय

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आज के समय में बच्चे स्क्रीन के सबसे ज्यादा करीब हैं। वे विज्ञापनों, डांस रिएलटी शो या धारावाहिकों में अपनी उम्र के बच्चों को देखते हैं। कई बच्चे उनके लुक्स से प्रभावित हो जाते हैं और वैसा ही दिखना चाहते हैं। ऐसे में अगर आपकी 10 से 17 साल की बेटी भी मेकअप की दीवानी है और बर्थ-डे गिफ्ट में मेकअप का सामान मांगती है, फैशन ट्रेंड्स फॉलो करती है और फुल मेकअप करके ही घर से बाहर निकलना पसंद करती है तो वह ‘सेफोरा किड’ है।
पहले समझें
‘सेफोरा किड’ एक ऐसा शब्द है, जिसे 10 से 17 साल की उन लड़कियों के लिए इस्तेमाल किया जाता है, जो मेकअप और ब्यूटी प्रोडक्ट्स की दीवानी होती हैं। वे सेफोरा जैसे ब्यूटी स्टोर्स से प्रभावित होकर कम उम्र में ही स्किनकेयर, मेकअप और फैशन ट्रेंड्स को फॉलो करने लगती हैं। वे सोशल मीडिया, यूट्यूब और रिएलिटी शोज से ब्यूटी आइडियाज लेकर खुद पर अप्लाई करती हैं और ग्लैमरस दिखना चाहती हैं।
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जेन-अल्फा
आंकड़ों की बात करें तो सेफोरा किड्स जेन-अल्फा से संबंधित हैं, जो 2010 के बाद जन्मे बच्चे हैं। ये बच्चे डिजिटल युग में पले-बढ़े हैं और सोशल मीडिया से प्रभावित हैं, इसलिए इनकी सुंदरता और फैशन में रुचि कम उम्र में ही विकसित हो जाती है। माता-पिता की अनुमति, ऑनलाइन ट्रेंड्स और ब्रांड्स की मार्केटिंग इस प्रवृत्ति को बढ़ावा दे रही है, जिससे ये मेकअप और स्किनकेयर में रुचि लेने लगे हैं।
एक सिंड्रोम
इसे एक आधुनिक सामाजिक सिंड्रोम भी कहा जा सकता है, क्योंकि बच्चियां कम उम्र में ही सौंदर्य मानकों के दबाव में आ जाती हैं। इससे उनकी मानसिक और शारीरिक सेहत पर नकारात्मक असर पड़ता है। यह प्रवृत्ति उन्हें असमय वयस्कता की ओर धकेलती है और आत्मसम्मान तथा पहचान की समस्याएं उत्पन्न करती है। सोशल मीडिया पर ‘परफेक्ट लुक’ की चाह उनके बचपन और मानसिक विकास को अस्वस्थ दिशा में मोड़ देती है।
हानिकारक
सेफोरा किड्स मेकअप और महंगे एंटी-एजिंग स्किनकेयर उत्पादों के दीवाने होते हैं, जिनकी उन्हें वास्तव में कोई जरूरत नहीं होती। ये उत्पाद वयस्कों के लिए बनाए गए होते हैं और बच्चों की नाजुक त्वचा के लिए हानिकारक साबित हो सकते हैं। विशेषज्ञ बताते हैं कि बच्चों की त्वचा अधिक संवेदनशील होती है, इसलिए उन्हें रेटिनॉल तथा तेज एसिड जैसे तत्वों से दूर रखना आपकी जिम्मेदारी है।
समझाना होगा
अपनी बच्ची को समझाने के लिए पहले उसकी उम्र और समझ के अनुसार सरल और नरम भाषा का चयन करें। उसे बताएं कि स्किनकेयर और मेकअप प्रोडक्ट्स वयस्कों के लिए बने होते हैं और बच्चों की त्वचा नाजुक होती है। यह भी समझाएं कि सोशल मीडिया पर जो दिखता है, वह हमेशा सच नहीं होता। आप उसे आत्मसम्मान, स्वाभाविक सुंदरता और उम्र के अनुसार देखभाल का महत्व भी जरूर बताएं।
आत्मविश्वास चमके, चेहरा नहीं
वरिष्ठ मनोवैज्ञानिक डॉ. हेमा खन्ना कहती हैं, आज के डिजिटल युग में हमारे बच्चे ऐसे माहौल में पल रहे हैं, जहां सुंदरता के मापदंड सोशल मीडिया और ब्रांड्स तय कर रहे हैं, न कि मूल्य, आत्मसम्मान और असली अनुभव। इसलिए अपने बच्चों को यह सिखाएं कि चमकती त्वचा नहीं, बल्कि चमकता आत्मविश्वास जरूरी है। तुलना को संवाद से बदलिए और स्क्रीन टाइम को आत्मबोध से। उनकी मासूमियत को उपभोक्तावाद से बचाना आपकी जिम्मेदारी है। वहीं सबसे जरूरी है संवाद। आफ उन्हें समझाएं कि स्किनकेयर की जगह अपने सपनों की देखभाल करें। याद रखें, आपको ऐसी पीढ़ी बनानी है, जो भीतर से सुंदर, अनुशासित, आत्मनिर्भर और आत्मविश्वासी हो। इसलिए आप उनके रक्षक नहीं, मार्गदर्शक बनें और डांटें कम, सुनें ज्यादा।