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Alert: युवाओं की ये एक 'गंदी लत' सालाना 13.5 लाख से अधिक मौतों का बन रही कारण, विशेषज्ञों ने चेताया
हेल्थ डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: अभिलाष श्रीवास्तव
Updated Sun, 14 Sep 2025 02:13 PM IST
सार
विशेषज्ञों ने चेताया है कि तंबाकू-धूम्रपान के कारण हर साल 13.5 लाख से अधिक भारतीयों की मौत हो जाती है, ये खतरा साल-दर-साल बढ़ता ही जा रहा है।
चिंताजनक बात ये है कि धूम्रपान को लेकर चलाई जा रही व्यापक जागरूकता के बावजूद अब भी धूम्रपान छोड़ने की दर बहुत कम है।
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धूम्रपान के कारण बढ़ता मृ्त्युदर
- फोटो : Adobe stock photos
लाइफस्टाइल की गड़बड़ आदतें दुनियाभर में कई प्रकार की क्रॉनिक और जानलेवा बीमारियों के खतरे को बढ़ाती जा रही हैं। लंबे समय तक एक ही स्थान पर बैठे रहना, सोने-जागने, खाने-पीने का अनियमित समय और नींद की कमी के कारण सेहत पर होने वाले दुष्प्रभावों को लेकर अक्सर चर्चा होती रहती है। एक हालिया रिपोर्ट में वैज्ञानिकों ने युवाओं में धूम्रपान की बढ़ती आदत को बहुत खतरनाक बताया है।
रिपोर्ट में विशेषज्ञों ने चेताया है कि तंबाकू-धूम्रपान के कारण हर साल 13.5 लाख से अधिक भारतीयों की मौत हो जाती है, ये खतरा साल-दर-साल बढ़ता ही जा रहा है। चिंताजनक बात ये है कि धूम्रपान को लेकर चलाई जा रही व्यापक जागरूकता के बावजूद अब भी देश में धूम्रपान छोड़ने की दर बहुत कम है।
विशेषज्ञों के अनुसार, धूम्रपान से हृदय रोग का खतरा 2 से 3 गुना तक बढ़ जाता है। तंबाकू में मौजूद निकोटिन रक्त वाहिकाओं को संकुचित कर देता है, जिससे हृदय को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पाती। इसके अलावा, धूम्रपान से ब्लड प्रेशर बढ़ता है और धमनियों में प्लाक जमा होने लगता है, जो हार्ट अटैक का मुख्य कारण है। हृदय रोगों अलावा धूम्रपान शरीर के लगभग सभी अंगों पर नकारात्मक असर डालता है।
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धूम्रपान के नुकसान
- फोटो : Freepik.com
धूम्रपान का स्वास्थ्य पर और आर्थिक असर
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की रिपोर्ट बताती है कि हर साल लाखों लोग धूम्रपान से होने वाली बीमारियों से असमय मौत का शिकार हो रहे हैं। खासतौर पर युवाओं में यह आदत उनके भविष्य को खतरे में डाल रही है। सिर्फ हृदय ही नहीं, फेफड़े, दिमाग और प्रतिरक्षा तंत्र भी धूम्रपान-तंबाकू के चलते कमजोर होने लगते हैं। यदि समय रहते इस आदत को नहीं छोड़ा गया तो गंभीर बीमारियों का खतरा कई गुना बढ़ जाता है।
इस हालिया रिपोर्ट में विशेषज्ञों ने बताया कि भारत तंबाकू से संबंधित बीमारियों पर सालाना 1.77 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च करता है। जिसका मतलब है धूम्रपान स्वास्थ्य के अलावा आर्थिक रूप से भी दिक्कतें बढ़ाने वाली आदत है, जिससे समय रहते दूरी बनाना जरूरी है।
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गंभीर स्वास्थ्य जटिलताओं का कारण है धूम्रपान
- फोटो : Freepik.com
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
पल्मोनरी मेडिसिन के विशेषज्ञ कहते हैं, क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) या हृदय संबंधी जोखिम वाले मरीजों के लिए हर एक सिगरेट जहर के समान है।
रॉयल कॉलेज ऑफ फिजिशियन (यूके) सहित कई अन्य वैज्ञानिक समीक्षाओं में पाया गया है कि स्मोक-फ्री निकोटीन, धूम्रपान की तुलना में 95 प्रतिशत तक कम हानिकारक हैं क्योंकि उनमें टार और धुंआ नहीं होता हैं। इसके कारण भी सेहत को खतरा रहता है, पर धूम्रपान छोड़ने के लिए इसे विकल्प के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है।
एम्स-सीएपीएफआईएमएस सेंटर के फिजियोलॉजी विभाग की सहायक प्रोफेसर डॉ. सुनैना सोनी कहती हैं, भारत में धूम्रपान छोड़ने की दर बहुत कम है, जोकि चिंताजनक है। फिलहाल इसके खतरों को कम करने के लिए सुरक्षित, टोबैको-फ्री निकोटीन विकल्पों पर जोर दिया जाना चाहिए जो सिगरेट छोड़ने में मदद कर सकते हैं। विज्ञान भी बोलता है और अब समय आ गया है कि हम सुरक्षित निकोटीन पर विचार करें। हालांकि निकोटीन पाउच भी सुरक्षित नहीं हैं, लेकिन इससे स्वास्थ्य संबंधित जोखिमों को जरूर कम किया जा सकता है।
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तंबाकू-धूम्रपान से बनाएं दूरी
- फोटो : Freepik.com
भारतीय आबादी में धूम्रपान एक बड़ा खतरा
भारत में तंबाकू का बोझ बहुत बड़ा है, यहां हर 10 में से 1 व्यक्ति तंबाकू-धूम्रपान से संबंधित बीमारियों के कारण समय से पहले मर जाता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के एनसीडी वैश्विक लक्ष्य के तहत भारत ने साल 2025 तक तंबाकू के उपयोग को 30 प्रतिशत तक कम करने का लक्ष्य रखा था। डॉ. सुनैना कहती हैं, धूम्रपान के विकल्प के रूप में निकोटीन पाउच के इस्तेमाल को बढ़ावा देने से भारत के इस लक्ष्य में भी सार्थक मदद मिल सकती है।
रोग नियंत्रण एवं रोकथाम केंद्र (सीडीसी) के अनुसार, भारत में धूम्रपान छोड़ने की दर कम बनी हुई है। केवल लगभग 7 प्रतिशत धूम्रपान करने वाले ही बिना किसी सहायता के सफलतापूर्वक धूम्रपान छोड़ पाते हैं।
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नोट: यह लेख मेडिकल रिपोर्टस से एकत्रित जानकारियों के आधार पर तैयार किया गया है।
अस्वीकरण: अमर उजाला की हेल्थ एवं फिटनेस कैटेगरी में प्रकाशित सभी लेख डॉक्टर, विशेषज्ञों व अकादमिक संस्थानों से बातचीत के आधार पर तैयार किए जाते हैं। लेख में उल्लेखित तथ्यों व सूचनाओं को अमर उजाला के पेशेवर पत्रकारों द्वारा जांचा व परखा गया है। इस लेख को तैयार करते समय सभी तरह के निर्देशों का पालन किया गया है। संबंधित लेख पाठक की जानकारी व जागरूकता बढ़ाने के लिए तैयार किया गया है। अमर उजाला लेख में प्रदत्त जानकारी व सूचना को लेकर किसी तरह का दावा नहीं करता है और न ही जिम्मेदारी लेता है। उपरोक्त लेख में उल्लेखित संबंधित बीमारी के बारे में अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से परामर्श लें।
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