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MP News: कोलकाता हाई कोर्ट के निर्देश पर बालाघाट के दो वन विभाग कार्यालय सील, 28.33 लाख की वसूली के आदेश

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, बालाघाट Published by: बालाघाट ब्यूरो Updated Sat, 12 Jul 2025 03:01 PM IST
सार

मध्यप्रदेश शासन की ओर से पुनरीक्षण याचिका दाखिल की गई थी, लेकिन सुनवाई के दौरान अधिवक्ता अदालत में उपस्थित नहीं हुए, जिससे कोई राहत नहीं मिल सकी। कार्यालयों की सीलिंग के बाद मामला और गंभीर हो गया है, जिससे शासन को वित्तीय और प्रशासनिक संकट का सामना करना पड़ सकता है।

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MP News: Two forest department offices in Balaghat sealed on instructions of Kolkata High Court
वन विभाग कार्यालय। - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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मध्य प्रदेश शासन की लापरवाही एक बार फिर सामने आई है। कोलकाता उच्च न्यायालय के आदेश पर शुक्रवार दोपहर को बालाघाट स्थित वन विभाग के दो प्रमुख कार्यालयों को अधिवक्ता ने मौके पर पहुंचकर सील कर दिया। यह कार्रवाई कल्पतरु एग्रोफॉरेस्ट इंटरप्राइजेस प्राइवेट लिमिटेड की याचिका पर हुई। जानकारी के अनुसार मध्यप्रदेश शासन को उक्त कंपनी को 28,33,356 रुपये की राशि 10 अप्रैल 2024 से 20 जून 2025 तक दस प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित चुकानी थी। यह मामला 2015 से लंबित था और उसी वर्ष कोर्ट ने कुर्की के आदेश भी दे दिए थे, लेकिन भुगतान नहीं किया गया।
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CCF कार्यालय और दक्षिण उत्पादन कार्यालय सील
कोर्ट के आदेश के अनुसार शुक्रवार दोपहर को कोलकाता हाईकोर्ट के अधिवक्ता शुभाशीष सेन गुप्ता बालाघाट पहुंचे और मुख्य वन संरक्षक (CCF) कार्यालय और दक्षिण वनोपज उत्पादन कार्यालय को सीलबंद कर दिया।
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खाते में सिर्फ 84,713 रुपये ही मिले
दक्षिण वन मंडल वनोपज सहकारी संघ के बैंक खाते की जब जांच की गई तो उसमें मात्र 84,713 रुपये की राशि पाई गई। शासन ने पूर्व में कंपनी को बैंक गारंटी दी थी, लेकिन भुगतान को लेकर लगातार टालमटोल की जा रही थी।

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पुनरीक्षण याचिका दायर की पर अधिवक्ता ही नहीं पहुंचे
मध्यप्रदेश शासन ने मामले में पुनरीक्षण याचिका (रिव्यू पिटीशन) दायर की थी, लेकिन सुनवाई के समय शासन पक्ष का कोई अधिवक्ता अदालत में उपस्थित नहीं हुआ, जिसके चलते कोर्ट कोई राहत नहीं दे सका। साथ ही आदेश पर रोक की भी कोई विधिवत मांग नहीं की गई थी।

अब क्या होगा
सरकारी कार्यालयों की सीलिंग के बाद यह मामला और भी गंभीर हो गया है। यदि समय पर राशि का भुगतान नहीं किया गया, तो शासन को और अधिक वित्तीय तथा प्रशासनिक परेशानी का सामना करना पड़ सकता है।
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