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MP News: वीआईटी यूनिवर्सिटी की लापरवाही उजागर, उच्च शिक्षा विभाग ने नोटिस जारी कर, 7 दिन में मांगा जवाब
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, भोपाल
Published by: आनंद पवार
Updated Mon, 01 Dec 2025 07:39 PM IST
सार
सीहोर की VIT यूनिवर्सिटी में गंभीर अनियमितताओं के खुलासे के बाद उच्च शिक्षा विभाग ने कुलाधिपति को कारण बताओ नोटिस जारी किया है। खराब हॉस्टल व्यवस्था से लेकर बीमारी छुपाने तक, जांच रिपोर्ट में कई चौंकाने वाली गड़बड़ियाँ सामने आई हैं।
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सीहोर वीआईटी यूनिवर्सिटी में जमकर हुआ बवाल (फाइल फोटो)
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
उच्च शिक्षा विभाग ने सीहोर की वीआईटी यूनिवर्सिटी के खिलाफ गंभीर अनियमितताओं और प्रशासनिक लापरवाही पर कड़ा रुख अपनाया है। विभाग ने जांच कमेटी की रिपोर्ट पर यूनिवर्सिटी के कुलाधिपति को कारण बताओ सूचना पत्र जारी करते हुए सात दिनों के भीतर जवाब मांगा है। निर्धारित समय सीमा में स्पष्टिकरण नहीं देने पर एकपक्षीय कार्रवाई की चेतावनी दी गई है। यह कार्रवाई विश्वविद्यालय में छात्रों की बीमारी, अव्यवस्थाओं और अमानवीय प्रबंधन के संबंध में मीडिया व अन्य माध्यमों से मिली शिकायतों और जांच समिति की रिपोर्ट के आधार पर की गई है। जांच समिति की रिपोर्ट में गंभीर गड़बड़ियां सामने आईं ।
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(1) छात्रावास प्रबंधन असंतोषजनक
लगभग 15,000 छात्र परिसर में निवास करते हैं, लेकिन भोजन, जल एवं अन्य सेवाएं बेहद निम्न स्तर की पाई गईं। मेस संचालन प्राइवेट एजेंसी को दिए जाने के बाद शिकायतें बढ़ीं और प्रबंधन प्रभावी नियंत्रण नहीं कर सका। छात्राओं ने पेयजल में बदबू आने की भी शिकायत की। 14 नवंबर से 24 नवंबर 2025 के बीच 23 छात्रों और 12 छात्राओं को पीलिया होने की बात भी प्रबंधन ने समिति के समक्ष स्वीकार की।
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(2) यूनिवर्सिटी प्रबंधन का तानाशाही पूर्ण रवैया
प्रबंधन परिसर को किले की तरह चला रहा था। शिकायत करने पर छात्रों को प्रताड़ित किए जाने का भय बना रहता था। परिसर में प्रबंधन के तानाशाही पूर्ण रवैए का उदाहरण यह है कि सीहोर जिला चिकित्सा अधिकारी को भी दो घंटे मुख्य द्वार पर रोके जाने का मामला रिपोर्ट में उल्लेखित है। विद्यार्थियों ने बताया कि अनुशासन के नाम पर आई कार्ड जब्त करना, परीक्षा में शामिल नहीं होने देना, प्रायोगिक परीक्षा में कम अंक देना या फेल कर देने की धमकी भ्ज्ञी दी जाती है। खाने की शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं होती थी, कहा जाता था कि जो बना है वही खाना पड़ेगा।
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(3) छात्रों में भयपूर्ण वातावरण
अनुशासन के नाम पर प्रबंधन द्वारा छात्रों को मानसिक दबाव में रखा जा रहा था। छात्रों की परेशानी बढ़ती रही लेकिन विश्वविद्यालय प्रशासन ने कोई सुधारात्मक कदम नहीं उठाया। यूनिवर्सिटी प्रबंधन आत्ममुग्धता एवं अति आत्मविश्वास की स्थिति में था कि वे किसी भ्ज्ञी स्थिति को संभाल सकते हैं। विद्यार्थियों में असंतोष बढ़ता रहा, लेकिन यूनिवर्सिटी प्रशासन ने उन्हें संतुष्ट करने की दिशा में कोई यथोचित कदम नहीं उठाए।
(4) अव्यवस्थित स्वास्थ्य सुविधाएं
पीत ज्वर फैलने के दौरान 35 छात्रों के बीमार होने के बावजूद परिसर स्थित स्वास्थ्य केंद्र ने रिकॉर्ड नहीं रखा और स्थिति छुपाने की कोशिश की। रोग नियंत्रण व मेडिकल प्रोटोकॉल का पालन नहीं किया गया। बीमारी फैलने की जानकारी होने के बावजूद प्रशासन इसे छुपा रहा था और लीपा पोती के प्रयास किए जा रहे थे। किसी तरह के रोकथाम या नियंत्रण के प्रयास नहीं किए गए। केंद्र में सुविधाएं भी अपर्याप्त पाई गईं तथा क्लिनिकल स्टेब्लिशमेंट एक्ट के अनुसार इसका पंजीयन भी नहीं पाया गया। मेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट का भी आभाव पाया गया।
(5) बिगड़ती परिस्थितियों को संभालने में विफलता
दबाव के आधार पर स्थापित अनुशासन के विरुद्ध विद्यार्थियों में आक्रोश पनप रहा था, जिसे समझने में प्रबंधन पूर्णत: असफल रहा। विद्यार्थियों ने अपने सार्थियों को बीमार होते हुए देखा तथा अस्पताल ले जाने के साथ पर उन्हें अपने घर जाने की सलाह प्रबंधन द्वारा दी गई तो वे उत्तेजित हो गए। वार्डन व गार्ड्स द्वारा छात्रों से दुर्व्यवहार की घटनाएं भी सामने आईं।
(6) पारदर्शिता का अभाव और अधिकारों का केंद्रीकरण
यूनिवर्सिटी की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता का अभाव है। अनेक अवसरों पर विद्यार्थी/पालकों को लिखित में सूचित नहीं किया जाता। शिकायत पत्रों की स्थिति अस्पष्ट रखी जाती थी। प्रशासनिक अधिकार सीमित अधिकारियों तक केंद्रित पाए गए।
(7) असहयोगात्मक प्रबंधन रवैया- जांच समिति ने पाया कि विश्वविद्यालय प्रशासन जांच प्रक्रिया में सहयोगी नहीं था और यह पूर्वाग्रहयुक्त रवैया प्रदर्शित कर रहा था।
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लगभग 15,000 छात्र परिसर में निवास करते हैं, लेकिन भोजन, जल एवं अन्य सेवाएं बेहद निम्न स्तर की पाई गईं। मेस संचालन प्राइवेट एजेंसी को दिए जाने के बाद शिकायतें बढ़ीं और प्रबंधन प्रभावी नियंत्रण नहीं कर सका। छात्राओं ने पेयजल में बदबू आने की भी शिकायत की। 14 नवंबर से 24 नवंबर 2025 के बीच 23 छात्रों और 12 छात्राओं को पीलिया होने की बात भी प्रबंधन ने समिति के समक्ष स्वीकार की।
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(2) यूनिवर्सिटी प्रबंधन का तानाशाही पूर्ण रवैया
प्रबंधन परिसर को किले की तरह चला रहा था। शिकायत करने पर छात्रों को प्रताड़ित किए जाने का भय बना रहता था। परिसर में प्रबंधन के तानाशाही पूर्ण रवैए का उदाहरण यह है कि सीहोर जिला चिकित्सा अधिकारी को भी दो घंटे मुख्य द्वार पर रोके जाने का मामला रिपोर्ट में उल्लेखित है। विद्यार्थियों ने बताया कि अनुशासन के नाम पर आई कार्ड जब्त करना, परीक्षा में शामिल नहीं होने देना, प्रायोगिक परीक्षा में कम अंक देना या फेल कर देने की धमकी भ्ज्ञी दी जाती है। खाने की शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं होती थी, कहा जाता था कि जो बना है वही खाना पड़ेगा।
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अनुशासन के नाम पर प्रबंधन द्वारा छात्रों को मानसिक दबाव में रखा जा रहा था। छात्रों की परेशानी बढ़ती रही लेकिन विश्वविद्यालय प्रशासन ने कोई सुधारात्मक कदम नहीं उठाया। यूनिवर्सिटी प्रबंधन आत्ममुग्धता एवं अति आत्मविश्वास की स्थिति में था कि वे किसी भ्ज्ञी स्थिति को संभाल सकते हैं। विद्यार्थियों में असंतोष बढ़ता रहा, लेकिन यूनिवर्सिटी प्रशासन ने उन्हें संतुष्ट करने की दिशा में कोई यथोचित कदम नहीं उठाए।
(4) अव्यवस्थित स्वास्थ्य सुविधाएं
पीत ज्वर फैलने के दौरान 35 छात्रों के बीमार होने के बावजूद परिसर स्थित स्वास्थ्य केंद्र ने रिकॉर्ड नहीं रखा और स्थिति छुपाने की कोशिश की। रोग नियंत्रण व मेडिकल प्रोटोकॉल का पालन नहीं किया गया। बीमारी फैलने की जानकारी होने के बावजूद प्रशासन इसे छुपा रहा था और लीपा पोती के प्रयास किए जा रहे थे। किसी तरह के रोकथाम या नियंत्रण के प्रयास नहीं किए गए। केंद्र में सुविधाएं भी अपर्याप्त पाई गईं तथा क्लिनिकल स्टेब्लिशमेंट एक्ट के अनुसार इसका पंजीयन भी नहीं पाया गया। मेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट का भी आभाव पाया गया।
(5) बिगड़ती परिस्थितियों को संभालने में विफलता
दबाव के आधार पर स्थापित अनुशासन के विरुद्ध विद्यार्थियों में आक्रोश पनप रहा था, जिसे समझने में प्रबंधन पूर्णत: असफल रहा। विद्यार्थियों ने अपने सार्थियों को बीमार होते हुए देखा तथा अस्पताल ले जाने के साथ पर उन्हें अपने घर जाने की सलाह प्रबंधन द्वारा दी गई तो वे उत्तेजित हो गए। वार्डन व गार्ड्स द्वारा छात्रों से दुर्व्यवहार की घटनाएं भी सामने आईं।
(6) पारदर्शिता का अभाव और अधिकारों का केंद्रीकरण
यूनिवर्सिटी की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता का अभाव है। अनेक अवसरों पर विद्यार्थी/पालकों को लिखित में सूचित नहीं किया जाता। शिकायत पत्रों की स्थिति अस्पष्ट रखी जाती थी। प्रशासनिक अधिकार सीमित अधिकारियों तक केंद्रित पाए गए।
(7) असहयोगात्मक प्रबंधन रवैया- जांच समिति ने पाया कि विश्वविद्यालय प्रशासन जांच प्रक्रिया में सहयोगी नहीं था और यह पूर्वाग्रहयुक्त रवैया प्रदर्शित कर रहा था।