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Gwalior News: 81 साल के बुजुर्ग ने 12 साल तक लड़ी कानूनी जंग, अब रेलवे देगा 25 हजार रुपये का हर्जाना
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, ग्वालियर
Published by: ग्वालियर ब्यूरो
Updated Mon, 10 Nov 2025 06:18 PM IST
सार
2013 में ग्वालियर से शताब्दी एक्सप्रेस में अपने बेटे के साथ आगरा जा रहे बुजुर्ग रेलवे की देरी के कारण आगे की ट्रेन नहीं पकड़ पाए, जिसके लिए उन्होंने रेलवे के खिलाफ मामला दायर किया।
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रामसेवक गुप्ता ने रेलवे की लापरवाही के खिलाफ चली कानूनी जंग जीत ली
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
ग्वालियर के रहने वाले 81 वर्षीय रामसेवक गुप्ता ने रेलवे की लापरवाही के खिलाफ 12 साल लंबी कानूनी जंग जीत ली है। मामला ट्रेन के देरी से पहुंचने का था, जिससे उनकी अगली ट्रेन छूट गई थी। इस पर उन्होंने न केवल शिकायत दर्ज कराई, बल्कि अपनी अधिकारों की लड़ाई अंत तक लड़ी। अब राज्य उपभोक्ता आयोग ने उनके पक्ष में फैसला देते हुए रेलवे को 15 हजार रुपए हर्जाने और 10 हजार रुपए अतिरिक्त कास्ट देने का आदेश दिया है।
मामला साल 2013 का है। रामसेवक गुप्ता अपने बेटे के साथ ग्वालियर से शताब्दी एक्सप्रेस में सवार होकर आगरा जा रहे थे। वहां से उन्हें अहमदाबाद के लिए दूसरी ट्रेन पकड़नी थी लेकिन बीच रास्ते में शताब्दी एक्सप्रेस ढाई घंटे तक रुकी रही, जिससे वे समय पर आगरा नहीं पहुंच सके और उनकी अहमदाबाद की ट्रेन छूट गई।
उन्होंने स्टेशन प्रबंधक को लिखित शिकायत दी और कहा कि या तो टिकट का पैसा लौटाया जाए या उन्हें किसी अन्य ट्रेन से भेजने की व्यवस्था की जाए। मगर स्टेशन प्रबंधक ने ई-टिकट का हवाला देते हुए पैसे लौटाने से इंकार कर दिया।
ये भी पढ़ें: इंदौर की सड़कें: 10 साल में भी नहीं बन पाई सिर्फ चार किलोमीटर की एमआर-4, जुड़ेंगे तीन रेलवे और दो बस स्टेशन
रामसेवक गुप्ता ने बताया कि मुझे पैसे से ज्यादा अपने अधिकार और सम्मान की चिंता थी। इसलिए मैंने कानूनी लड़ाई लड़ने का फैसला लिया। उन्होंने रेलवे के खिलाफ जिला उपभोक्ता आयोग में शिकायत दर्ज कराई लेकिन वहां रेलवे ने गलत जानकारी दी कि ट्रेन में आग लगने से देरी हुई थी। इसके बाद गुप्ता ने आरटीआई के जरिए सच्चाई सामने लाई कि असल में आग राजधानी एक्सप्रेस में लगी थी, शताब्दी में नहीं।
जिला आयोग ने उनकी याचिका खारिज कर दी पर गुप्ता ने हार नहीं मानी और राज्य उपभोक्ता आयोग में अपील की। आयोग ने रेलवे को दोषी ठहराते हुए हर्जाने का आदेश दिया। बाद में रेलवे ने राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग में अपील की लेकिन वहां चार सुनवाइयों में से किसी पर भी हाजिर नहीं हुआ और अंततः अपनी अपील वापस ले ली।
राष्ट्रीय आयोग ने न केवल राज्य आयोग का निर्णय बरकरार रखा, बल्कि रेलवे पर 10 हजार रुपए की अतिरिक्त कास्ट भी लगा दी। रामसेवक गुप्ता ने कहा- मैंने यह लड़ाई पैसे के लिए नहीं, बल्कि अपने उपभोक्ता अधिकारों की रक्षा के लिए लड़ी थी। मैंने 12 साल गंवाए लेकिन न्याय मिलने की संतुष्टि सबसे बड़ी जीत है।
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मामला साल 2013 का है। रामसेवक गुप्ता अपने बेटे के साथ ग्वालियर से शताब्दी एक्सप्रेस में सवार होकर आगरा जा रहे थे। वहां से उन्हें अहमदाबाद के लिए दूसरी ट्रेन पकड़नी थी लेकिन बीच रास्ते में शताब्दी एक्सप्रेस ढाई घंटे तक रुकी रही, जिससे वे समय पर आगरा नहीं पहुंच सके और उनकी अहमदाबाद की ट्रेन छूट गई।
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उन्होंने स्टेशन प्रबंधक को लिखित शिकायत दी और कहा कि या तो टिकट का पैसा लौटाया जाए या उन्हें किसी अन्य ट्रेन से भेजने की व्यवस्था की जाए। मगर स्टेशन प्रबंधक ने ई-टिकट का हवाला देते हुए पैसे लौटाने से इंकार कर दिया।
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रामसेवक गुप्ता ने बताया कि मुझे पैसे से ज्यादा अपने अधिकार और सम्मान की चिंता थी। इसलिए मैंने कानूनी लड़ाई लड़ने का फैसला लिया। उन्होंने रेलवे के खिलाफ जिला उपभोक्ता आयोग में शिकायत दर्ज कराई लेकिन वहां रेलवे ने गलत जानकारी दी कि ट्रेन में आग लगने से देरी हुई थी। इसके बाद गुप्ता ने आरटीआई के जरिए सच्चाई सामने लाई कि असल में आग राजधानी एक्सप्रेस में लगी थी, शताब्दी में नहीं।
जिला आयोग ने उनकी याचिका खारिज कर दी पर गुप्ता ने हार नहीं मानी और राज्य उपभोक्ता आयोग में अपील की। आयोग ने रेलवे को दोषी ठहराते हुए हर्जाने का आदेश दिया। बाद में रेलवे ने राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग में अपील की लेकिन वहां चार सुनवाइयों में से किसी पर भी हाजिर नहीं हुआ और अंततः अपनी अपील वापस ले ली।
राष्ट्रीय आयोग ने न केवल राज्य आयोग का निर्णय बरकरार रखा, बल्कि रेलवे पर 10 हजार रुपए की अतिरिक्त कास्ट भी लगा दी। रामसेवक गुप्ता ने कहा- मैंने यह लड़ाई पैसे के लिए नहीं, बल्कि अपने उपभोक्ता अधिकारों की रक्षा के लिए लड़ी थी। मैंने 12 साल गंवाए लेकिन न्याय मिलने की संतुष्टि सबसे बड़ी जीत है।