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Indore News: भूतों की कहानी, गुप्त रास्ते और गुलाबों की महक, होलकरों के लालबाग पहुंचे सीएम, देंगे नया रूप
अमर उजाला, डिजिटल डेस्क, इंदौर
Published by: अर्जुन रिछारिया
Updated Tue, 20 May 2025 02:21 PM IST
सार
Indore News: मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने इंदौर के लालबाग पैलेस के 47.59 करोड़ रुपये के जीर्णोद्धार कार्य का भूमिपूजन किया। इस परियोजना के तहत पैलेस और उद्यान का ऐतिहासिक स्वरूप पुनः स्थापित किया जाएगा।
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मुख्यमंत्री के साथ सांसद और अन्य मंत्री।
- फोटो : अमर उजाला, डिजिटल डेस्क, इंदौर
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने मंगलवार को इंदौर के ऐतिहासिक स्थल लालबाग पैलेस पहुंचकर होलकर राजवंश के संस्थापक सूबेदार मल्हारराव होलकर की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया। उन्होंने 47.59 करोड़ रूपये लागत से लालबाग पैलेस के जीर्णोद्धार एवं उद्यान पुनर्विकास कार्य का भूमिपूजन किया। इस अवसर पर उन्होंने लालबाग पैलेस का भ्रमण भी किया, जहां उन्होंने महल की ऐतिहासिक संरचना और सौंदर्य का अवलोकन किया। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने इस ऐतिहासिक विरासत के संरक्षण के प्रयास कार्य की प्रगति का जायजा लेते हुए बैठक कक्ष, क्राउन हॉल, बैंकेट हॉल, दरबार हॉल, किंग्स ऑफिस, मंत्रणा कक्ष, पश्चिमी बैठक कक्ष, भारतीय भोजन कक्ष पुरुष एवं महिला, बॉल रूम आदि की विशेषताओं की जानकारी प्राप्त की। इस दौरान आर्किटेक्ट श्री पुनीत सोहल द्वारा लालबाग पैलेस परियोजना का प्रस्तुतिकरण दिया गया, जिसमें उन्होंने लालबाग पैलेस के जीर्णोद्धार एवं पुनर्विकास के लिए किए गए कार्य एवं आगामी कार्ययोजना से मुख्यमंत्री डॉ. यादव को अवगत करवाया।
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छत के झूमर देखते सीएम
- फोटो : अमर उजाला, डिजिटल डेस्क, इंदौर
मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने इस महत्वाकांक्षी कार्य के सफलतापूर्वक पूर्ण होने की कामना व्यक्त की। कहा यह कार्य लालबाग के समृद्ध इतिहास और उसकी पुनः प्रतिष्ठा के लिए एक नई शुरुआत का प्रतीक है। उद्यान और होलकरों की विरासत को जीवित रखने, उद्यान को सामाजिक-सांस्कृतिक गतिविधि स्थल के रूप में विकसित करने एवं ऐतिहासिक अवधारणा पर आधारित रचना अनुसार पुनःविकसित करने के उद्देश्य से यह कार्य किया जाएगा। इसके लिए 47.59 करोड़ की स्वीकृति सिंहस्थ मद अंतर्गत प्राप्त हुई है। यह कार्य मध्यप्रदेश राज्य पर्यटन विकास निगम द्वारा किया जाएगा। कार्य की समयसीमा 24 माह अर्थात मई 2027 निर्धारित है। इसमें बाउंड्री वाल, पाथवे, पार्किंग, सॉफ्टस्केपिंग एवं सिंचाई, जनसुविधा, टिकिट काउंटर, उद्यान कैफे, मुक्ताकाश मंच, मंडप,रानी अहिल्या बाई आत्मरक्षा केंद्र (बालिकाओं के लिए), वनस्पति रक्षाग्रह, बाहरी विद्युतीकरण, सजावटी प्रकाश खंभे, बगीचे के लिए पाइप संगीत प्रणाली, सीसीटीवी आदि का कार्य किया जाएगा। इस महत्वपूर्ण अवसर पर मंत्री परिषद के सदस्य एवं अन्य जनप्रतिनिधि भी उपस्थित थे, जिन्होंने परियोजना की महत्वता और विकास के प्रति सरकार के संकल्प का समर्थन किया।
150 साल पुरानी इमारत की अनोखी चमक आज भी बरकरार
इंदौर स्थित लालबाग पैलेस की दीवारों पर बनी भव्य पेंटिंग्स को देखकर कोई यह नहीं कह सकता कि ये दशकों पुरानी हैं। आज भी इनकी चमक बरकरार है और ऐसा लगता है मानो हाल ही में चित्रित की गई हों। इस महल की एक और खासियत यह है कि भारत में पहली बार प्लास्टर ऑफ पेरिस (पीओपी) का उपयोग यहीं किया गया था। होलकर राजाओं के निजी कक्ष बेडरूम और बाथरूम की भव्यता और आधुनिकता चौंकाने वाली है। इस ऐतिहासिक संरचना का निर्माण 1844 में तुकोजीराव होलकर द्वितीय ने शुरू करवाया था, जिसे उनके पुत्र शिवाजीराव होलकर ने 1886 से 1903 तक पूरा कराया। इसके पश्चात तुकोजीराव होलकर तृतीय ने 1903 से 1926 तक विभिन्न हिस्सों में काम करवाया। लगभग 150 वर्ष पुरानी इस इमारत की विशिष्टताओं की चर्चा इसलिए भी अहम है क्योंकि अब इसका मुख्य द्वार "विरासत" के रूप में विकसित किया जा रहा है। यहां सेल्फी पॉइंट और सुंदर गार्डन बनाए जाने की योजना है। 47 करोड़ रुपये की लागत से गार्डन, बाउंड्री वॉल जैसी संरचनाएं तैयार की जाएंगी।
बिना पंखे के भी ठंडक, शानदार वास्तुकला का अनूठा उदाहरण
सरस्वती नदी के किनारे उत्तर-दक्षिण दिशा में निर्मित यह महल वास्तुकला की अद्भुत मिसाल है। महल के चारों ओर खुला क्षेत्र है और प्रत्येक कमरे में फ्रेंच और भारतीय शैली की खिड़कियां बनाई गई हैं। यूरोपियन शैली में बने इस महल के किसी भी हिस्से में गर्मी का अहसास नहीं होता। सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि पूरे पैलेस में कहीं भी सीलिंग फैन के लिए इलेक्ट्रिक पॉइंट नहीं छोड़े गए थे और न ही कभी पंखे लगाए गए। इसके बावजूद, यहां हर वक्त हवा का संचार बना रहता है और ठंडक महसूस होती है। महल के झूमर, झाड़ फानूस और कालीन आज भी वैसे ही चमकते हैं जैसे वर्षों पहले। इसके निर्माण में रोमन शैली, पेरिस के शाही महलों की सजावट, बेल्जियम की कांच कला और कसारा संगमरमर का उपयोग किया गया था। यह महल उस समय की कल्पना से परे सुविधाओं से युक्त था। यहां का फर्नीचर अत्यंत भव्य है और वेस्टर्न स्टाइल डाइनिंग हॉल में एक साथ 100 लोगों के भोजन की व्यवस्था थी। कहा जाता है कि लालबाग पैलेस होलकर राजाओं के लिए पार्टी डेस्टिनेशन भी था, इसलिए वहां डांस फ्लोर की भी व्यवस्था की गई थी।
लालबाग नाम की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और गुलाबों की महक
महल का नाम "लालबाग" क्यों पड़ा, इसके पीछे भी एक ऐतिहासिक कारण है। तुकोजीराव द्वितीय ने इस लोकेशन को महल निर्माण के लिए स्वयं चुना था। उस समय महल के बाईं ओर सरस्वती नदी बहती थी, जिसका उल्लेख तुकोजीराव द्वितीय के प्रधानमंत्री बक्षी खुमानसिंह की डायरी में मिलता है। महल के बाग में 400 से अधिक प्रजातियों के गुलाब लगाए गए थे, जिनमें लंदन की नेशनल रोज सोसायटी द्वारा तैयार की गई 68 विशेष प्रजातियां भी शामिल थीं। इन गुलाबों की लालिमा के कारण ही इस स्थान का नाम "लालबाग" रखा गया। इस बाग की शोभा उस समय के किसी भी अन्य महल से अधिक मानी जाती थी, और यह होलकर राजाओं की सौंदर्यप्रियता का प्रतीक था।
महल की रहस्यमयी गहराइयां और खुफिया रास्ते, भूतहा कहानी का भी सच
महल की भव्यता के अलावा इसके तलघर और खुफिया रास्ते भी लोगों की जिज्ञासा का केंद्र बने हुए हैं। बुधवार को इन्हीं गुप्त रास्तों और तलघर के बारे में बताया गया था, जिनका उपयोग तत्कालीन समय में सुरक्षा कारणों से किया जाता था। आज इस महल के रहस्य और अनदेखे पहलुओं को सामने लाने की कोशिश की जा रही है। लालबाग पैलेस को लेकर वर्षों से यह भी चर्चा रही है कि यह भूतहा है, लेकिन इसके पीछे कोई ठोस प्रमाण नहीं हैं। महल की अद्वितीय बनावट, अत्याधुनिक सुविधाएं और इसके निर्माण की परतें आज भी इतिहास के शोधकर्ताओं और पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र हैं। यह महल न केवल इंदौर की सांस्कृतिक विरासत है, बल्कि भारत की शाही वास्तुकला का जीता-जागता उदाहरण भी है।
150 साल पुरानी इमारत की अनोखी चमक आज भी बरकरार
इंदौर स्थित लालबाग पैलेस की दीवारों पर बनी भव्य पेंटिंग्स को देखकर कोई यह नहीं कह सकता कि ये दशकों पुरानी हैं। आज भी इनकी चमक बरकरार है और ऐसा लगता है मानो हाल ही में चित्रित की गई हों। इस महल की एक और खासियत यह है कि भारत में पहली बार प्लास्टर ऑफ पेरिस (पीओपी) का उपयोग यहीं किया गया था। होलकर राजाओं के निजी कक्ष बेडरूम और बाथरूम की भव्यता और आधुनिकता चौंकाने वाली है। इस ऐतिहासिक संरचना का निर्माण 1844 में तुकोजीराव होलकर द्वितीय ने शुरू करवाया था, जिसे उनके पुत्र शिवाजीराव होलकर ने 1886 से 1903 तक पूरा कराया। इसके पश्चात तुकोजीराव होलकर तृतीय ने 1903 से 1926 तक विभिन्न हिस्सों में काम करवाया। लगभग 150 वर्ष पुरानी इस इमारत की विशिष्टताओं की चर्चा इसलिए भी अहम है क्योंकि अब इसका मुख्य द्वार "विरासत" के रूप में विकसित किया जा रहा है। यहां सेल्फी पॉइंट और सुंदर गार्डन बनाए जाने की योजना है। 47 करोड़ रुपये की लागत से गार्डन, बाउंड्री वॉल जैसी संरचनाएं तैयार की जाएंगी।
बिना पंखे के भी ठंडक, शानदार वास्तुकला का अनूठा उदाहरण
सरस्वती नदी के किनारे उत्तर-दक्षिण दिशा में निर्मित यह महल वास्तुकला की अद्भुत मिसाल है। महल के चारों ओर खुला क्षेत्र है और प्रत्येक कमरे में फ्रेंच और भारतीय शैली की खिड़कियां बनाई गई हैं। यूरोपियन शैली में बने इस महल के किसी भी हिस्से में गर्मी का अहसास नहीं होता। सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि पूरे पैलेस में कहीं भी सीलिंग फैन के लिए इलेक्ट्रिक पॉइंट नहीं छोड़े गए थे और न ही कभी पंखे लगाए गए। इसके बावजूद, यहां हर वक्त हवा का संचार बना रहता है और ठंडक महसूस होती है। महल के झूमर, झाड़ फानूस और कालीन आज भी वैसे ही चमकते हैं जैसे वर्षों पहले। इसके निर्माण में रोमन शैली, पेरिस के शाही महलों की सजावट, बेल्जियम की कांच कला और कसारा संगमरमर का उपयोग किया गया था। यह महल उस समय की कल्पना से परे सुविधाओं से युक्त था। यहां का फर्नीचर अत्यंत भव्य है और वेस्टर्न स्टाइल डाइनिंग हॉल में एक साथ 100 लोगों के भोजन की व्यवस्था थी। कहा जाता है कि लालबाग पैलेस होलकर राजाओं के लिए पार्टी डेस्टिनेशन भी था, इसलिए वहां डांस फ्लोर की भी व्यवस्था की गई थी।
लालबाग नाम की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और गुलाबों की महक
महल का नाम "लालबाग" क्यों पड़ा, इसके पीछे भी एक ऐतिहासिक कारण है। तुकोजीराव द्वितीय ने इस लोकेशन को महल निर्माण के लिए स्वयं चुना था। उस समय महल के बाईं ओर सरस्वती नदी बहती थी, जिसका उल्लेख तुकोजीराव द्वितीय के प्रधानमंत्री बक्षी खुमानसिंह की डायरी में मिलता है। महल के बाग में 400 से अधिक प्रजातियों के गुलाब लगाए गए थे, जिनमें लंदन की नेशनल रोज सोसायटी द्वारा तैयार की गई 68 विशेष प्रजातियां भी शामिल थीं। इन गुलाबों की लालिमा के कारण ही इस स्थान का नाम "लालबाग" रखा गया। इस बाग की शोभा उस समय के किसी भी अन्य महल से अधिक मानी जाती थी, और यह होलकर राजाओं की सौंदर्यप्रियता का प्रतीक था।
महल की रहस्यमयी गहराइयां और खुफिया रास्ते, भूतहा कहानी का भी सच
महल की भव्यता के अलावा इसके तलघर और खुफिया रास्ते भी लोगों की जिज्ञासा का केंद्र बने हुए हैं। बुधवार को इन्हीं गुप्त रास्तों और तलघर के बारे में बताया गया था, जिनका उपयोग तत्कालीन समय में सुरक्षा कारणों से किया जाता था। आज इस महल के रहस्य और अनदेखे पहलुओं को सामने लाने की कोशिश की जा रही है। लालबाग पैलेस को लेकर वर्षों से यह भी चर्चा रही है कि यह भूतहा है, लेकिन इसके पीछे कोई ठोस प्रमाण नहीं हैं। महल की अद्वितीय बनावट, अत्याधुनिक सुविधाएं और इसके निर्माण की परतें आज भी इतिहास के शोधकर्ताओं और पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र हैं। यह महल न केवल इंदौर की सांस्कृतिक विरासत है, बल्कि भारत की शाही वास्तुकला का जीता-जागता उदाहरण भी है।

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