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Indore News: नवजात में नाभि से घुसा वायरस, हालत गंभीर हुई, आर्टिफिशियल स्किन से बचाया, देश का पहला मामला
अमर उजाला, डिजिटल डेस्क, इंदौर
Published by: अर्जुन रिछारिया
Updated Mon, 17 Feb 2025 06:35 PM IST
सार
Indore News: डॉक्टरों की मेहनत से मासूम को मिला नया जीवन, पूरी पीठ व पुट्ठे की खाल काली पड़ने लगी थी, कंपनी ने आर्टिफिशियल स्किन निःशुल्क उपलब्ध करवाई।
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नन्हे सार्थक के साथ माता पिता।
- फोटो : अमर उजाला, डिजिटल डेस्क, इंदौर
एक 15 दिन के नवजात शिशु को दुर्लभ और खतरनाक संक्रमण ने अपनी चपेट में ले लिया, जिससे उसकी पूरी पीठ और पुट्ठे की त्वचा काली पड़ने लगी। यह संक्रमण धीरे-धीरे बढ़ते हुए पेट और नाभि तक पहुंच गया, जहां से यह रक्तप्रवाह के माध्यम से आंतरिक अंगों को प्रभावित करने लगा। स्थिति इतनी गंभीर थी कि बच्चे की ब्लड काउंट 29,000 तक पहुंच गई और वह सेप्टीसीमिया की गंभीर अवस्था में था। इस खतरनाक संक्रमण के कारण नवजात दूध तक नहीं पी पा रहा था, जिससे उसकी हालत और बिगड़ती गई।
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डाक्टरों की टीम ने किया सफल आपरेशन।
- फोटो : अमर उजाला, डिजिटल डेस्क, इंदौर
इंदौर के बारोड़ अस्पताल में भर्ती इस नवजात का इलाज डॉक्टर हिमांशु केलकर की निगरानी में शुरू किया गया। प्लास्टिक और रिकंस्ट्रक्टिव सर्जरी विशेषज्ञ डॉ. अश्विनी दास के अनुसार, यह मामला अत्यधिक जटिल और चुनौतीपूर्ण था। सिनर्जिस्टिक बैक्टीरियल गैंग्रीन विद सेप्टीसीमिया नामक इस संक्रमण में बैक्टीरिया की कई प्रजातियां त्वचा और अंदरूनी ऊतकों को तेजी से नष्ट कर देती हैं, जिससे घाव गहरे और त्वचा पूरी तरह काली पड़ जाती है। यदि यह संक्रमण रक्तप्रवाह तक पहुंच जाए, तो सेप्टीसीमिया होने का खतरा रहता है, जिससे शिशु के अंग काम करना बंद कर सकते हैं और जान जाने का खतरा बढ़ जाता है। कमजोर प्रतिरोधक क्षमता वाले शिशुओं में यह संक्रमण तेजी से फैलता है, इसलिए समय पर इलाज और विशेष चिकित्सा देखभाल अत्यंत आवश्यक होती है।
डॉक्टरों की टीम ने अथक प्रयास कर नवजात के संक्रमण को नियंत्रित किया और उसकी जान बचाने में सफलता हासिल की। संक्रमण के कारण नवजात की पीठ और पुट्ठे की त्वचा बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो चुकी थी, जिसे पुनर्निर्मित करने के लिए फ्लैप एडवांसमेंट और मेट्रिडर्म (कृत्रिम त्वचा) का उपयोग किया गया। यह केवल एक चिकित्सा सफलता ही नहीं, बल्कि उस परिवार की उम्मीदों का पुनर्जन्म था, जो अपने बच्चे को बचाने की हरसंभव कोशिश कर रहा था।
कंपनी ने की मदद, निःशुल्क त्वचा दी
बच्चे के पिता होटल में काम करते हैं और सीमित संसाधनों के कारण लंबे इलाज का खर्च उठाना उनके लिए कठिन था। ऐसे में, एक कंपनी ने 40,000 रुपये की कृत्रिम त्वचा, मेट्रिडर्म, निःशुल्क उपलब्ध कराई, जिसका दो बार उपयोग किया गया। यह दुनिया में पहली बार था कि 15 दिन के नवजात पर डर्मल सब्सटीट्यूट का सफल उपयोग किया गया, जिससे अंतरराष्ट्रीय चिकित्सा विशेषज्ञ भी उत्साहित हैं।
टीम के सामूहिक प्रयास सफल हुए
बारोड़ अस्पताल के निदेशक डॉ. संजय गोकुलदास ने इस सफलता पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि यह हमारी डॉक्टरों की टीम के सामूहिक प्रयासों की जीत है। इस ऑपरेशन में एनेस्थीसिया विशेषज्ञ डॉ. चौहान ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, वहीं पीडियाट्रिशियन डॉ. हिमांशु केलकर, पीडियाट्रिक आईसीयू की इंटेंसिविस्ट डॉ. ब्लूम वर्मा और उनकी टीम ने नवजात की स्थिति को स्थिर करने के लिए लगातार प्रयास किए। जब संक्रमण ने विकराल रूप ले लिया, तब प्लास्टिक और रिकंस्ट्रक्टिव सर्जरी विशेषज्ञ डॉ. अश्विनी दास ने चुनौती को स्वीकार कर इस केस को सफलतापूर्वक संभाला।
सार्थक के चेहरे पर लौटी खुशी
आज, सार्थक नामक यह नवजात 4 किलो का स्वस्थ बच्चा है, जो जीवन के नए सफर पर है। इस चमत्कारी बचाव गाथा ने चिकित्सा जगत को नई प्रेरणा दी है और यह दिखाया है कि सही समय पर इलाज और समर्पण से असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है।
डॉक्टरों की टीम ने अथक प्रयास कर नवजात के संक्रमण को नियंत्रित किया और उसकी जान बचाने में सफलता हासिल की। संक्रमण के कारण नवजात की पीठ और पुट्ठे की त्वचा बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो चुकी थी, जिसे पुनर्निर्मित करने के लिए फ्लैप एडवांसमेंट और मेट्रिडर्म (कृत्रिम त्वचा) का उपयोग किया गया। यह केवल एक चिकित्सा सफलता ही नहीं, बल्कि उस परिवार की उम्मीदों का पुनर्जन्म था, जो अपने बच्चे को बचाने की हरसंभव कोशिश कर रहा था।
कंपनी ने की मदद, निःशुल्क त्वचा दी
बच्चे के पिता होटल में काम करते हैं और सीमित संसाधनों के कारण लंबे इलाज का खर्च उठाना उनके लिए कठिन था। ऐसे में, एक कंपनी ने 40,000 रुपये की कृत्रिम त्वचा, मेट्रिडर्म, निःशुल्क उपलब्ध कराई, जिसका दो बार उपयोग किया गया। यह दुनिया में पहली बार था कि 15 दिन के नवजात पर डर्मल सब्सटीट्यूट का सफल उपयोग किया गया, जिससे अंतरराष्ट्रीय चिकित्सा विशेषज्ञ भी उत्साहित हैं।
टीम के सामूहिक प्रयास सफल हुए
बारोड़ अस्पताल के निदेशक डॉ. संजय गोकुलदास ने इस सफलता पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि यह हमारी डॉक्टरों की टीम के सामूहिक प्रयासों की जीत है। इस ऑपरेशन में एनेस्थीसिया विशेषज्ञ डॉ. चौहान ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, वहीं पीडियाट्रिशियन डॉ. हिमांशु केलकर, पीडियाट्रिक आईसीयू की इंटेंसिविस्ट डॉ. ब्लूम वर्मा और उनकी टीम ने नवजात की स्थिति को स्थिर करने के लिए लगातार प्रयास किए। जब संक्रमण ने विकराल रूप ले लिया, तब प्लास्टिक और रिकंस्ट्रक्टिव सर्जरी विशेषज्ञ डॉ. अश्विनी दास ने चुनौती को स्वीकार कर इस केस को सफलतापूर्वक संभाला।
सार्थक के चेहरे पर लौटी खुशी
आज, सार्थक नामक यह नवजात 4 किलो का स्वस्थ बच्चा है, जो जीवन के नए सफर पर है। इस चमत्कारी बचाव गाथा ने चिकित्सा जगत को नई प्रेरणा दी है और यह दिखाया है कि सही समय पर इलाज और समर्पण से असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है।

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