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MP High Court: सभी समुदाय के गरीब वर्ग को मिलना चाहिए EWS प्रमाण-पत्र, हाईकोर्ट ने सरकार से मांगा स्पष्टीकरण
न्यूूज डेस्क, अमर उजाला, जबलपुर
Published by: जबलपुर ब्यूरो
Updated Tue, 01 Oct 2024 09:31 PM IST
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सार
जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय सराफ की युगलपीठ के समक्ष याचिका कर्ता तर्क दिया गया कि सभी वर्ग व जातियों को ईडब्ल्यूएस प्रमाण-पत्र नहीं दिया जा रहा है।

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट, जबलपुर
- फोटो : अमर उजाला
विस्तार
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट केवल सामान्य वर्ग के गरीब लोगों को ईडब्ल्यूएस प्रमाण पत्र जारी किए जाने को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई थी। जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय सराफ की युगलपीठ के समक्ष याचिका कर्ता तर्क दिया गया कि सभी वर्ग व जातियों को ईडब्ल्यूएस प्रमाण-पत्र नहीं दिया जा रहा है। युगलपीठ ने इस संबंध में मप्र शासन को स्पष्टीकरण पेश करने के निर्देश दिए हैं।
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एडवोकेट यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक एंड सोशल जस्टिस नामक संस्था की तरफ से दायर याचिका में कहा गया है कि मप्र सरकार द्वारा दो जुलाई 2019 को जारी ईडब्ल्यूएस नीति संविधान के अनुच्छेद 14, 15 (6) तथा 16 (6) के प्रावधानों से असंगत है। संविधान के अनुच्छेद 15 (6) तथा 15 (6) में स्पष्ट प्रावधान है कि ईडब्ल्यूएस का प्रमाण पत्र सभी वर्गों को दिया जाएगा। मध्यप्रदेश सरकार ने ईडब्ल्यूएस के 10 फीसदी आरक्षण का लाभ देने के उद्देश्य से उक्त प्रमाण पत्र केवल उच्च जाति के लोगों को ही जारी किए जाने की पॉलिसी जारी की है। इसमें ओबीसी, एससी तथा एसटी वर्ग को ईडब्ल्यूएस प्रमाण पत्र जारी नहीं किए जाने का उल्लेख किया गया है। उक्त पॉलिसी गरीबों में जाति तथा वर्ग के आधार पर विभेद करती है।
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पॉलिसी के साथ ईडब्ल्यूएस प्रमाण पत्र के फॉर्मेट में स्पष्ट रूप से जाति लिखे जाने का प्रावधान है। शासन की ओर से बताया गया कि सर्वोच्च न्यायालय के पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने ईडब्ल्यूएस आरक्षण से संबंधित मामले का पटाक्षेप कर दिया है, जिस पर आवेदकों की ओर से आपत्ति दर्ज कराते हुए कहा गया कि उक्त मामला जनहित अभियान बनाम भारत संघ का था। इसमें संविधान के 103वें संशोधन की वैधानिकता को अपहेल्ड किया गया है। इस याचिका में उठाए मुद्दों पर उक्त फैसले में कहीं भी विचार नहीं किया गया है, जिसके बाद न्यायालय ने मप्र शासन को 30 दिनों में अपना स्पष्टीकरण देने के निर्देश दिए हैं।
अंतिम संस्कार के लिए रेलवे ट्रैक करना पड़ता है पार
मुख्य मार्ग से मुड़वारा स्टेशन के बीच आधा किलोमीटर की सड़क का निर्माण नहीं किए जाने को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई थी। याचिका में कहा गया था कि बारिश के मौसम में सड़क तालाब में तब्दील हो जाती है। पानी भरने के कारण यात्रियों को आवाजाही में परेशानी होती है। इसके अलावा कब्रिस्तान भी उक्त मार्ग में स्थित है। बारिश के मौसम में अंतिम संस्कार के लिए रेलवे ट्रैक से होकर जाना पड़ता है। याचिका की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट जस्टिस संजीव सचदेवा तथा जस्टिस विनय सराफ की युगलपीठ ने सरकार को जवाब पेश करने दो सप्ताह का समय प्रदान किया है।
याचिकाकर्ता नजीम खान की तरफ से दायर याचिका में कहा गया है कि मुख्य मार्ग के समीप स्थित वाहन शोरूम से मुड़वारा स्टेशन की तरफ आने वाली आधा किलोमीटर सड़क का निर्माण नहीं किया गया है। बारिश के मौसम में आधा किलोमीटर की सड़क में पानी भर जाता है। इसके अलावा अन्य मौसम में भी लोगों को आवाजाही में परेशानी होती है, जिसके कारण क्षेत्रीय लोग व स्टेशन में आने-जाने वाले यात्रियों को परेशानी का सामना करना पड़ता है।
याचिका में कहा गया था कि उक्त मार्ग का उपयोग मुस्लिम समुदाय के लोग कब्रिस्तान जाने के लिए करते हैं। बारिश के मौसम में कब्रिस्तान जाने के लिए रेलवे ट्रैक का पार करना पड़ता है। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता शंकर सिंह ने बताया कि पूर्व में पश्चिम रेलवे जोन तथा नगर नगर ने अपने जवाब में कहा था कि उन्हें संबंधित विभाग से एनओसी मिलती है तो वह सड़क का निर्माण कर देंगे। उक्त मार्ग का 80 प्रतिशत हिस्सा रेलवे विभाग तथा 20 प्रतिशत हिस्सा माइनिंग विभाग में आता है। पूर्व में याचिका की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था।
याचिका पर मंगलवार को हुई सुनवाई के दौरान सरकार की तरफ से जवाब पेश करने समय प्रदान करने का आग्रह किया गया। युगलपीठ ने आग्रह को स्वीकार करते हुए याचिका पर अगली सुनवाई दो सप्ताह बाद निर्धारित की है।
80वें वर्ष में प्रवेश के साथ ब्याज सहित करें अतिरिक्त पेंशन का भुगतान
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने विभिन्न विभागों से सेवानिवृत्त उन कर्मियों को ब्याज सहित 20 प्रतिशत अतिरिक्त पेंशन का लाभ देने के निर्देश दिए हैं, जिन्होंने 80वें वर्ष में प्रवेश कर लिया है। जस्टिस संजय द्विवेदी की एकलपीठ ने भुगतान के लिए 30 दिन की समय सीमा निर्धारित की है।
जबलपुर निवासी अरविंद कुमार दुबे सहित अलग-अलग जिलों से सेवानिवृत्त कर्मियों की तरफ से दायर की गई याचिका में कहा गया था कि सरकार के नोटिफिकेशन के अनुसार 80 से 85 वर्ष के आयु के बीच सेवानिवृत्त कर्मचारियों को 20 प्रतिशत अतिरिक्त पेंशन देने का प्रावधान है। अतिरिक्त पेंशन के लाभ के लिए 80 वर्ष की गणना उस तारीख से करना चाहिए, जिस तारीख को वह 79 साल पूर्ण कर 80 वर्ष की आयु में प्रवेश करता है।
याचिकाकर्ताओं की तरफ से पैरवी करते हुए अधिवक्ता आदित्य संघी ने एकलपीठ को बताया कि सरकार के द्वारा 80 वर्ष पूर्ण करने पर उक्त लाभ प्रदान किया जाता है। जो सरकार के द्वारा जारी किये गये नोटिफिकेशन का उल्लंघन है। इसके अलावा सेवानिवृत्त कर्मचारियों के साथ अन्याय है। एकलपीठ ने सेवानिवृत्त कर्मचारियों को राहत प्रदान करते हुए उक्त आदेश जारी किए।