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What is the New Name of Multai?: मां ताप्ती की ऐतिहासिक धरती मुलताई अब ‘मूलतापी’ से पहचानी जाएगी, ये है वजह
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, बैतूल
Published by: दिनेश शर्मा
Updated Wed, 24 Dec 2025 05:59 PM IST
सार
Betul News: बैतूल जिले के मुलताई का नाम बदलकर ‘मूलतापी’ करने की घोषणा की गई है। यह मां ताप्ती के उद्गम स्थल की प्राचीन ऐतिहासिक पहचान को पुनः स्थापित करने का कदम है। इससे धार्मिक, सांस्कृतिक महत्व और पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा।
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बैतूल के मुलताई का नाम अब मूलतापी होगा
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
मध्यप्रदेश के बैतूल जिले में स्थित मां ताप्ती का उद्गम स्थल मुलताई धार्मिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से विशेष महत्व रखता है। अब इसी ऐतिहासिक पहचान को और अधिक प्रामाणिक रूप देने के उद्देश्य से मुलताई का नाम बदलकर ‘मूलतापी’ किए जाने की घोषणा की गई है। यह नाम परिवर्तन मां ताप्ती की प्राचीन विरासत और क्षेत्र की ऐतिहासिक जड़ों से जुड़ा हुआ माना जा रहा है।
मां ताप्ती को भारत की प्रमुख पवित्र नदियों में स्थान प्राप्त है। यह नदी मध्यप्रदेश के बैतूल जिले के सतपुड़ा पर्वत शृंखला में स्थित मुलताई क्षेत्र से निकलती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मां ताप्ती को सूर्य पुत्री कहा जाता है। पौराणिक कथाओं में उल्लेख मिलता है कि सूर्यदेव की तपस्या से प्रसन्न होकर ताप्ती नदी का जन्म हुआ, इसी कारण इसका नाम ‘ताप्ती’ पड़ा।
ये भी पढ़ें- परंपरा, आस्था और सादगी, नर्मदा परिक्रमा पर निकले सीएम के बेटा-बहू, ओंकारेश्वर से शुरू की यात्रा
विशाल कुंड से निकलती है ताप्ती
मां ताप्ती का उद्गम स्थल एक विशाल कुंड के रूप में है, जिसे स्थानीय लोग ताप्ती कुंड के नाम से जानते हैं। यह स्थान सदियों से श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र रहा है। कार्तिक पूर्णिमा सहित विभिन्न पर्वों पर यहां बड़े स्तर पर धार्मिक आयोजन और स्नान परंपरा का पालन किया जाता है।
लौटाई पहचान
इतिहासकारों और विद्वानों के अनुसार प्राचीन ग्रंथों और लोक परंपराओं में इस क्षेत्र का उल्लेख ‘मूलतापी’ नाम से मिलता है। इसका अर्थ है— ताप्ती नदी का मूल स्थान। समय के साथ उच्चारण और बोलचाल में यह नाम बदलकर मुलताई हो गया। अब प्रशासनिक स्तर पर नाम को उसकी मूल ऐतिहासिक पहचान से जोड़ते हुए ‘मूलतापी’ किए जाने का निर्णय लिया गया है।
लोगों में खुशी
स्थानीय लोगों और इतिहासप्रेमियों का मानना है कि यह नाम परिवर्तन केवल एक प्रशासनिक निर्णय नहीं, बल्कि सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इससे मां ताप्ती की ऐतिहासिक महत्ता को राष्ट्रीय स्तर पर नई पहचान मिलेगी और धार्मिक पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा। लोगों का कहना है कि मां ताप्ती की पवित्र धरती, जो अब मूलतापी के नाम से जानी जाएगी, न केवल मध्यप्रदेश बल्कि पूरे देश की सांस्कृतिक धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह निर्णय आने वाली पीढ़ियों को अपने इतिहास और परंपराओं से जोड़ने का कार्य करेगा।
ये भी पढ़ें- महेश्वर में बढ़ेगा पर्यटन, ओंकारेश्वर से महेश्वर होते हुए धामनोद तक फोरलेन बनेगी
लोगों की मांग को दिया सम्मान
नगरपालिका अध्यक्ष मुलताई वर्षा गाड़ेकर का कहना है कि मुख्यमंत्री मोहन यादव ने जो एतिहासिक घोषणा करके मां ताप्ती का मान बढ़ाया है। मैं उनका बहुत-बहुत धन्यवाद और आभार व्यक्त करती हूं क्योंकि उनकी घोषणा से मूलतापी जो प्राचीन नाम था। इसके लिए मुलताई से लेकर सूरत तक के लोगों ने मांग की थी। इसके लिए कई बार प्रस्ताव रखा गया जिसे मंज़ूरी मिल चुकी है।
गायत्री परिवार से जुड़े रामदास देशमुख बताते हैं कि मुख्यमंत्री मोहन यादव ने जो मुलताई का नाम मूलतापी करने की घोषणा की है। उससे पूरे गायत्री परिवार में हर्ष व्याप्त है। हम सरकार से अब ये मांगते हैं कि मां ताप्ती के लिए कुछ अनुदान आए और यहां विकास हो, जिससे पर्यटन बढ़े।
ताप्ती उद्गम स्थल के पुजारी सौरभ जोशी बताते हैं कि मां ताप्ती का उद्गम मूलतापी, जिसके नाम में ही मूल छुपा हुआ है, इस नाम के लिए हम कई वर्षों से प्रयासरत थे। मूलतापी नाम होने से जब भी तापी नदी को विश्व में सर्च किया जाएगा तो मूलतापी नाम सर्वप्रथम उद्गम के रूप में स्थापित होगा। इसकी सबसे बड़ी उपलब्धि ये होगी कि लोग जानेंगे कि मूलतापी ही माता का उद्गम है। इससे आध्यात्मिक और धार्मिक महत्व बढ़ेगा लोग पर्यटन के लिए यहां आएंगे। मां ताप्ती समिति के सदस्य गुड्डू पवार बताते हैं कि ये बहुत हर्ष का विषय है कि मां ताप्ती के उद्गम स्थल का नाम मूलतापी किया गया।
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मां ताप्ती को भारत की प्रमुख पवित्र नदियों में स्थान प्राप्त है। यह नदी मध्यप्रदेश के बैतूल जिले के सतपुड़ा पर्वत शृंखला में स्थित मुलताई क्षेत्र से निकलती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मां ताप्ती को सूर्य पुत्री कहा जाता है। पौराणिक कथाओं में उल्लेख मिलता है कि सूर्यदेव की तपस्या से प्रसन्न होकर ताप्ती नदी का जन्म हुआ, इसी कारण इसका नाम ‘ताप्ती’ पड़ा।
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विशाल कुंड से निकलती है ताप्ती
मां ताप्ती का उद्गम स्थल एक विशाल कुंड के रूप में है, जिसे स्थानीय लोग ताप्ती कुंड के नाम से जानते हैं। यह स्थान सदियों से श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र रहा है। कार्तिक पूर्णिमा सहित विभिन्न पर्वों पर यहां बड़े स्तर पर धार्मिक आयोजन और स्नान परंपरा का पालन किया जाता है।
लौटाई पहचान
इतिहासकारों और विद्वानों के अनुसार प्राचीन ग्रंथों और लोक परंपराओं में इस क्षेत्र का उल्लेख ‘मूलतापी’ नाम से मिलता है। इसका अर्थ है— ताप्ती नदी का मूल स्थान। समय के साथ उच्चारण और बोलचाल में यह नाम बदलकर मुलताई हो गया। अब प्रशासनिक स्तर पर नाम को उसकी मूल ऐतिहासिक पहचान से जोड़ते हुए ‘मूलतापी’ किए जाने का निर्णय लिया गया है।
लोगों में खुशी
स्थानीय लोगों और इतिहासप्रेमियों का मानना है कि यह नाम परिवर्तन केवल एक प्रशासनिक निर्णय नहीं, बल्कि सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इससे मां ताप्ती की ऐतिहासिक महत्ता को राष्ट्रीय स्तर पर नई पहचान मिलेगी और धार्मिक पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा। लोगों का कहना है कि मां ताप्ती की पवित्र धरती, जो अब मूलतापी के नाम से जानी जाएगी, न केवल मध्यप्रदेश बल्कि पूरे देश की सांस्कृतिक धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह निर्णय आने वाली पीढ़ियों को अपने इतिहास और परंपराओं से जोड़ने का कार्य करेगा।
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गायत्री परिवार से जुड़े रामदास देशमुख बताते हैं कि मुख्यमंत्री मोहन यादव ने जो मुलताई का नाम मूलतापी करने की घोषणा की है। उससे पूरे गायत्री परिवार में हर्ष व्याप्त है। हम सरकार से अब ये मांगते हैं कि मां ताप्ती के लिए कुछ अनुदान आए और यहां विकास हो, जिससे पर्यटन बढ़े।
ताप्ती उद्गम स्थल के पुजारी सौरभ जोशी बताते हैं कि मां ताप्ती का उद्गम मूलतापी, जिसके नाम में ही मूल छुपा हुआ है, इस नाम के लिए हम कई वर्षों से प्रयासरत थे। मूलतापी नाम होने से जब भी तापी नदी को विश्व में सर्च किया जाएगा तो मूलतापी नाम सर्वप्रथम उद्गम के रूप में स्थापित होगा। इसकी सबसे बड़ी उपलब्धि ये होगी कि लोग जानेंगे कि मूलतापी ही माता का उद्गम है। इससे आध्यात्मिक और धार्मिक महत्व बढ़ेगा लोग पर्यटन के लिए यहां आएंगे। मां ताप्ती समिति के सदस्य गुड्डू पवार बताते हैं कि ये बहुत हर्ष का विषय है कि मां ताप्ती के उद्गम स्थल का नाम मूलतापी किया गया।

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